आशीष कुमार 'अंशु'
पश्चिम बंगाल से जो लोग पलायन कर रहे हैं, उनमें अधिक संख्या पिछड़ी जाति, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों की ही है। अम्बेडकरवाद के नाम पर चलने वाले संगठनों ने बंगाल की हिंसा पर खेद तक व्यक्त नहीं किया है। बंगाल के दलितों को अम्बेडकरवादियों ने क्या इसलिए अकेला छोड़ दिया है, क्योंकि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया था ?
राजस्थान से लेकर पश्चिम बंगाल तक हासिए के समाज के पक्ष में कथित तौर पर बोलने वाले चर्च प्रेरित अम्बेडकरवादियों की भूमिका संदिग्ध नजर आ रही है। जहां भारतीय जनता पार्टी का विरोध अनुसूचित जाति के नाम पर करना हो, वहां डॉ. आम्बेडकर के नाम बने सारे समूह अति सक्रिय नजर आते हैं। उस समय इनके ट्विटर हैंडल तक ओवर टाइम करते हैं।
इन पर सवाल तब उठता है, जब अम्बेडकरवादी विनोद बामनिया की हत्या हनुमानगढ़ (राजस्थान) में होती है। कहीं कोई विरोध नजर नहीं आता। जबकि विनोद भीम आर्मी का सक्रिय सदस्य था, लेकिन दुर्भाग्यवश जिस राज्य में उसकी हत्या हुई, वहां कांग्रेस की गहलोत सरकार है। यदि बीजेपी की सरकार होती तो उदित राज से लेकर मायावती तक मिलकर विनोद के लिए ईंट से ईंट बजा देते। चन्द्रशेखर भी अपने कार्यकर्ता के लिए कम से कम गिरफ्तारी तो दे ही सकते थे। सवाल तो यह भी है कि फिरोज जहांगीर के दोनों पोता—पोती राहुल और प्रियंका पिछले दिनों हाथरस में अपनी संवेदना दिखाने फौरन पहुंचे थे। क्या हनुमानगढ़ में विनोद बामनिया की हत्या से उन्हें फर्क नहीं पड़ता ? कांग्रेस की सरकार में भीम आर्मी का एक कार्यकर्ता मारा गया लेकिन इस कदर खामोशी छाई रही, मानो राजस्थान में भीम और मंडल आर्मी वालों की मिली जुली सरकार हो। प्रदर्शन तो तब करना होता है, जब ऐसी हत्या बीजेपी शासित राज्य में हो।
इस मामले पर स्तम्भकार गुरु प्रकाश ने लिखा ,''राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में विनोद बामनिया नामक 21 वर्षीय दलित नवयुवक की पीट—पीट कर नृशंस हत्या कर देने का मामला सामने आया है। अविलंब जांच हो और दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई हो। कांग्रेस और उनके द्वारा पोषित बुद्धिजीवियों ने जो शांति बना रखी है वो चिल्ला—चिल्ला कर उनके दोहरे मापदंड का परिचय दे रही है। क्या कांग्रेस शासित प्रदेश के दलित उनके नजरों में दलित नहीं हैं। राजनीति से प्रेरित इस दोहरे व्यवहार से उनका चेहरा बेनकाब हुआ है।''
पश्चिम बंगाल पर कांग्रेस इको सिस्टम की खामोशी की वजह भी वही है। जिसकी तरफ गुरु प्रकाश ने संकेत किया है। वहां भी भारतीय जनता पार्टी का शासन नहीं है। इसलिए वहां हो रहे सारे अपराधों पर तमाम दलित अधिकारों और मानवाधिकार वालों की चुप्पी है। वामपंथी लेखक सुधीश पचौरी शायद इन्हीं स्थितियों से खिन्न होकर कहते हैं,''सारे मानवाधिकार वाले संगठन वामपंथियों के पास हैं, इसलिए उनके सारे सवाल वहीं हैं जो वामपंथ के विचार को लाभ पहुंचाए।''
पश्चिम बंगाल में सांसद—विधायक तक सुरक्षित नहीं हैं। जलपाईगुड़ी से बीजेपी सांसद डॉ. जयंत कुमार रॉय पर 12 जून को तृणमूल के गुंडों ने हमला कर दिया। उन पर डंडे बरसाए गए। उनके साथ कुछ लोग और थे, उन पर भी हमला हुआ। पश्चिम बंगाल में किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा। मीडिया में भी खौफ है कि तृणमूल की आलोचना के बाद उनके दफ्तर का चार्ली हेब्दो के दफ्तर जैसा हाल ना हो जाए।
पश्चिम बंगाल से अपनी जान बचाकर बड़ी संख्या में लोग दिल्ली भी आए हैं। कई पीड़ितों से मेरी बात भी हुई। उनका कहना है,''जब तक हमारी सुरक्षा केन्द्र सरकार सुनिश्चित नहीं करती, हम लौट कर नहीं जा सकते।''
पश्चिम बंगाल से दिल्ली आए लोगों ने अपने परिवार को अलग—अलग जगहों पर छोड़ रखा है। किसी ने बिहार में, किसी ने असम या झारखंड में। कई ने बंगाल में ही अपने रिश्तेदारों के घर। दिल्ली आने के बाद अपना खुद का घर बंगाल में अब तक सही सलामत बचा है या लूट लिया गया है, ये भी इन लोगों को नहीं पता।
अपना सब कुछ पार्टी के लिए संघर्ष करते हुए पश्चिम बगाल में दांव पर लगाकर आए कार्यकर्ताओं की सहायता प्रदेश भाजपा को करनी चाहिए थी। इतने सारे लोग इसी भरोसे पर यहां आए होंगे लेकिन इस संबंध में बृजेश उपाध्याय ने बताया,''पश्चिम बंगाल से आए हुए लोगों को एक पश्चिम बंगाल के भाई से मदद मिल रही है। वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से रहे हैं। इन दिनों वे स्वदेशी जागरण मंच के लिए काम कर रहे हैं। उनका नाम अरुण मुखर्जी है। वे पहले कानपुर रहते थे। इन दिनों दिल्ली में रहकर संगठन का काम कर रहे हैंं।''
बृजेश ने यह सब लिखते हुए अपनी चिन्ता भी व्यक्त की, ''वे अकेले इतने सारे लोगों की मदद कब तक कर पाएंगे? उनकी मदद की चिन्ता स्थानीय लोगों को भी करनी चाहिए।''
यहां गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल से जो लोग पलायन कर रहे हैं, उनमें अधिक संख्या पिछड़ी जाति, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों की ही है। अम्बेडकरवाद के नाम पर चलने वाले संगठनों ने बंगाल की हिंसा पर खेद तक व्यक्त नहीं किया है। बंगाल के दलितों को अम्बेडकरवादियों ने क्या इसलिए अकेला छोड़ दिया है क्योंकि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया था ?
एक अनुमान के अनुसार पश्चिम बंगाल से अनुसूचित जाति और जनजाति के ढाई लाख से अधिक लोग पलायन कर चुके हैं। लेकिन देश भर में इसे लेकर कहीं कोई विशेष चिन्ता नजर नहीं आ रही है। ऐसा लग रहा है कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल ने सीपीएम और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई है और वहां विपक्ष में सिर्फ भाजपा है। जिसे तीनों राजनीतिक दल मिलकर हिंसा के माध्यम से पश्चिम बंगाल में खत्म कर देना चाहते हैं।
पश्चिम बंगाल की राजनीति को नजदीक से समझने वाले एक व्यक्ति ने ममता की राजनीति पर टिप्पणी करते हुए कहा— ''20 मई 2011 को ममता बनर्जी ने जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, वह तिरंगा ओढ़कर आई थीं। एक राष्ट्रवादी विचार के साथ। 26 मई 2016 को जब दूसरी बार उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो उनकी साड़ी का रंग लाल हो गया था। इसी लाल रंग का परिणाम राजनीतिक हत्याएं थीं। जो तृणमूल ने पिछले शासन के दौरान कराई।''
सज्जन अपनी टिप्पणी में साड़ी के रंग का इस्तेमाल प्रतिकात्मक रूप में कर रहे थे। उन्होंने आगे कहा— ''2 मई, 2021 को ममता हरे रंग की साड़ी पहन कर शपथ ग्रहण के लिए सामने आई हैं और उसके बाद जिस तरह का नरसंहार पश्चिम बंगाल में हुआ। वह उसी हरे रंग की साड़ी का परिणाम है, जिसकी घूंघट में बैठी ममता को पश्चिम बंगाल में क्या हो रहा है, वह दिखाई नहीं दे रहा है।''
स्वदेशी जागरण मंच से जुड़े अरुण मुखर्जी ने फिर ठीक ही कहा — ''केन्द्र सरकार को चुनाव से पहले सीएए लागू करके पश्चिम बंगाल को बांग्लादेशियो और रोहिंग्याओं से खाली कराना चाहिए था। आज आदिवासियों और दलितों पर जो अत्याचार हो रहा है, तृणमूल के कार्यकर्ता के तौर पर बड़ी संख्या में हत्यारे बने रोहिंग्या और बांग्लादेशी ही हैं। जिन्हें पश्चिम बंगाल में पहले ज्योति बसु ने संरक्षण दिया और अब ममता दे रहीं हैं।''
इस वक्त पश्चिम बंगाल में खौफ का ऐसा दृश्य है कि मानों उसे 1990 के कश्मीर के रास्ते पर ढकेला जा रहा हो। जहां भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को बाध्य किया जा रहा है कि वे माइक पर सार्वजनिक तौर पर भाजपा में जाने की माफी मांगें। नेता अपने स्तर पर लड़ने को तैयार भी हो जाए लेकिन परिवार पर होने वाले हमलों की आशंका उन्हें कमजोर बना देती है। बंगाल में जंगलराज चल रहा है, जहां से लगातार बलात्कार और हत्याओं की खबरे आ रहीं हैं। हर आदमी डरा हुआ है।
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