—अरुण कुमार सिंह
हममें से ज्यादातर लोगों ने भगवा रंग के रिक्शे पर हिंदू देवी—देवताओं के चित्र रखकर भीख मांगने वालों को अवश्य देखा होगा और भिक्षा भी दी होगी। पहले इस काम में हिंदू ही होते थे, लेकिन अब इसमें नकली हिंदू बनकर मुसलमान, विशेषकर बांग्लादेशी घुसपैठिए घुस आए हैं। ये लोग हमारी श्रद्धा और धार्मिक भावनाओं के साथ धोखा कर हमसे पैसे ले रहे हैं
बात कुछ दिन पहले की है। दिल्ली के द्वारका इलाके में एक व्यक्ति बहुत जोर—जोर से यह कहते हुए भीख मांगता था—''विष्णु माई के नाम पर कुछ दे दो…''। पहले तो लोगों ने उसके शब्दों पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन बराबर वह व्यक्ति आता और 'विष्णु माई' के नाम पर कुछ न कुछ कमा लेता। कोई हिंदू 'विष्णु माई' तो नहीं बोलेगा! इसलिए उस पर कुछ लोगों को शक हुआ, तो उससे पूछताछ की गई। पहले तो वह अपना नाम हिंदू ही बताता रहा, लेकिन जब उसके साथ सख्ती की गई तो उसने अपना असली नाम बताया— मेराजुद्दीन। खैर, उन लोगों ने उसे यह कहते हुए छोड़ दिया कि किसी को धोखे में रखकर भीख मत मांगो, एक मुसलमान के नाते भी तुम्हें भीख मिल जाएगी।
दिल्ली में ऐसी घटनाओं की एक तरह से बाढ़ आ गई है। आपने भी अक्सर देखा होगा कि कुछ लोग एक रिक्शे पर शिर्डी के साईं बाबा और कुछ अन्य देवी—देवताओं के चित्र रखकर गली—गली भीख मांगते फिरते हैं। पहले इस काम में हिंदू ही होते थे, लेकिन अब इस धंधे में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिए शामिल हो गए हैं। पता चला है कि जो बांग्लादेशी घुसपैठिए पहले रिक्शा चलाते थे, अब वे रिक्शे पर हिंदू देवी—देवताओं के चित्र रखकर भीख मांग रहे हैं। उल्लेखनीय है कि जंगपुरा, निजामुद्दीन, ओखला, सरायकाले खां जैसे इलाकों में सैकड़ों ऐसे लोग हैं, जो किराए पर रिक्शा चलवाते हैं। एक—एक व्यक्ति के पास सैकड़ों रिक्शा हैं। ज्यादातर रिक्शा मालिक मुसलमान हैं और चलाने वाले भी अधिकतर मुसलमान ही हैं। ये सब अपने को पश्चिम बंगाल का बताते हैं, लेकिन असली में हैं बांग्लादेशी। बैट्री रिक्शा आ जाने के कारण सामान्य रिक्शा का काम लगभग ठप हो गया है। इसलिए अब बहुत सारे रिक्शा मालिक रिक्शों की बनावट बदलकर उनमें देवी—देवताओं के चित्र लगवा देते हैं और उन्हें किसी को किराए पर दे देते हैं। किराए पर रिक्शा लेने वाले ज्यादातर बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं। इसलिए उन्हें यह नहीं पता है कि भगवान विष्णु पुरुष हैं या स्त्री। अज्ञानता के कारण ये लोग 'विष्णु माई' जैसे शब्द बोलते हैं। इसी दो शब्द से इनका असली चेहरा सामने आ जाता है।
ऐसे देवी—देवताओं के चित्रों के साथ भीख मांगने की परम्परा बहुत पुरानी है। इस काम में मुख्य रूप से महाराष्ट्र के नाथ पंथी शामिल हैं। जनकपुरी के पास डेसू कॉलोनी के सामने पटरी पर रहने वाला विक्रम हिंगोले भी देवी—देवताओं की आड़ में ही भीख मांगकर गुजारा करता है। विक्रम कहता है, ''देवी—देवताओं के चित्रों के साथ भीख मांगना मेरा पारिवारिक पेशा है। मेरे दादा और पिता बैलगाड़ी पर चित्र रखकर भीख मांगते थे। अब नई तकनीक का सहारा लिया गया है। रिक्शे में मोटर लगा दी गई है। इससे एक दिन में हम लोग 30—40 किलोमीटर दूर तक जाकर भीख मांगते हैं। हर दिन अलग—अलग इलाके में जाना पड़ता है, तभी गुजारा लायक कमाई हो पाती है।''
डेसू कॉलोनी के सामने पंखा रोड की पटरी पर लगभग 15 परिवार रह रहे हैं। इनकी कुल आबादी लगभग 100 है। इनमें अधिकतर छोटे—छोटे बच्चे हैं। दिन में इनके मां—बाप भीख मांगते हैं और बच्चे सड़क के किनारे पड़े रहते हैं। इस कारण यहां कई बार दुर्घटना भी हो चुकी है। ये सभी महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के रहने वाले हैं। ऐसे ही एक व्यक्ति बाबूलाल ने बताया कि गांव में कोई रोजगार न मिलने के कारण भीख मांगकर गुजारा करना पड़ता है।
विक्रम और बाबूलाल जैसे लोग स्पष्ट रूप से तो यह नहीं बता पा रहे हैं कि उनके धंधे में बांग्लादेशियों की घुसपैठ हो चुकी है, लेकिन वे इतना जरूर कहते हैं कि कई स्थानों पर कुछ ऐसे लोग मिलते हैं, जो हम लोगों से बात नहीं करना चाहते हैं और किसी न किसी बहाने से दूर चले जाते हैं। इससे उनको लेकर कुछ शक तो होता है।
बाबूलाल ने यह भी बताया कि इस समय महाराष्ट्र के लगभग 150 नाथपंथी दिल्ली में रिक्शे पर देवताओं के चित्र रखकर भीख मांग रहे हैं। लेकिन आप दिल्ली के जिस भी हिस्से में चले जाएं, वहीं रिक्शे पर देवताओं के चित्र रखकर भीख मांगने वाले मिल जाते हैं। इसलिए कई लोगों का अनुमान है कि घुसपैठियों ने हिंदुओं के इस काम में भी घुसपैठ कर ली है।
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