सुदेश गौड़
कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार किसी बाहरी संस्था को राज्य में भूमि आंटित की गई है। रविवार को यहां तिरुमला तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट द्वारा भूमि पूजन करके भव्य मंदिर का निर्माण प्रारंभ किया गया। इसी के साथ राज्य में एक नए अध्याय का प्रारंभ हो गया
5 अगस्त 2019 को रोपे गये पौधे ने 13 जून 2021 को फल देना शुरू कर दिया है। 5 अगस्त वह ऐतिहासिक दिन था जब कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त करने का फैसला लिया गया था और 13 जून 2021 को जम्मू के मजीन गांव में केंद्रीय गृहराज्यमंत्री जी. किशन रेड्डी, पीएमओ में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह, जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और तिरुमला तिरूपति देवस्थानम् के अध्यक्ष वाईवी सुब्बा रेड्डी की उपस्थिति में भव्य मंदिर के लिए भूमि पूजन संपन्न हो गया। कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच आमंत्रित विशिष्टजनों, प्रशासन के अनेक वरिष्ठ अधिकारियों के साथ प्रदेश भाजपा के नेता व समाज के अन्य कई गणमान्य लोगों की उपस्थिति में पुरोहितों ने मंत्रोच्चार के साथ भूमि पूजन कराया। तिरूपति मंदिर के तर्ज पर यह भव्य मंदिर दो वर्ष में तैयार होने की आशा है। मंदिर के लिए भूमि आवंटन पहले ही हो चुका था।
हिन्दू हित में जम्मू-कश्मीर राज्य के पुनर्गठन के बाद पहला बड़ा निर्णय इसी साल अप्रैल माह में लिया गया जिसके तहत धार्मिक पर्यटन के लिहाज से देवस्थानम् को लीज पर जम्मू जिले में भूमि दी गई है। जम्मू-कश्मीर राज्य के पुनर्गठन के फैसले से राज्य का विशेष दर्ज समाप्त हो गया था। ऐसा होने से अब देश के दूसरे राज्यों के निवासी भी राज्य में संपत्ति खरीद सकते हैं। सबसे शर्मनाक स्थिति तो यह थी कि अनुच्छेद 370 के कारण देश की संसद को जम्मू-कश्मीर के लिए रक्षा, विदेश मामले और संचार के अलावा अन्य कोई भी कानून बनाने का अधिकार नहीं था। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा की गई भूल को वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आखिर दुरुस्त कर ही दिया।
25 हेक्टेयर में बनेगा मंदिर
5 अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग हिस्सों में विभाजित कर उसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। अनुच्छेद 370 हटाने के 17 महीने बाद 13 फरवरी 2021, शनिवार को केंद्र सरकार ने लोकसभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2021 पेश किया, जो चर्चा के बाद पास हो गया। इस विधेयक को मोदी सरकार ने 8 फरवरी 2021, सोमवार को राज्यसभा में पहले ही पास करवा लिया था। नई परिस्थितियों में अब विश्वभर में चर्चित तिरुपति बालाजी मंदिर की तर्ज पर जम्मू संभाग में 25 हेक्टेयर जमीन पर भव्य मंदिर बनेगा।
बृहद तीर्थ परिसर बनेगा
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की अध्यक्षता में हुई प्रशासनिक परिषद की बैठक में तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) को 40 साल की लीज पर जमीन देने का फैसला किया गया। राजस्व विभाग ने देवस्थानम ट्रस्ट को मजीन गांव में 496 कनाल 17 मरला सरकारी भूमि हस्तांतरित कर दी है। दो वर्ष पहले तक अकल्पनीय सपना अब पूरा होने जा रहा है। इस तीर्थ परिसर में वेद पाठशाला, आध्यात्मिक/ध्यान केंद्र, कार्यालय, आवासीय क्वार्टर, पार्किंग आदि का निर्माण किया जाएगा।
जम्मू-कश्मीर में पर्यटन को बल मिलेगा
1932 में गठित तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम बोर्ड (टीटीडी) की ओर से मंदिर तथा अन्य संरचनाओं का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद जम्मू-कश्मीर में पर्यटन को बल मिलेगा। माता वैष्णो देवी व अमरनाथ यात्रा के साथ ही धार्मिक पर्यटकों की संख्या यहां बढ़ेगी। इससे यहां रोजगार के साधन भी सृजित होंगे। साथ ही मंदिर परिसर के आस-पास के इलाकों में व्यवसाय को भी बल मिलेगा। बता दें कि आंध्र प्रदेश की तिरुमाला की पहाड़ियों में भगवान विष्णु तिरुपति बालाजी के रूप में पत्नी पद्मावति के साथ विराजमान हैं। यहां साल भर श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। इस मंदिर की गणना देश के कुछ सबसे संपन्न मंदिरों में होती है। यहां श्रद्धालु अपनी मान्यता पूरी होने पर केश दान भी करते हैं।
भविष्य में विस्तार का योजना
राजस्व विभाग की ओर से इस बाबत जारी आदेश में कहा गया कि हर साल 10 रुपये प्रति कनाल के किराया भुगतान के हिसाब से भूमि आवंटन को मंजूरी दी गई। साथ ही शर्त रहेगी कि ज़मीन का उपयोग सिर्फ उसी उद्देश्य के लिए किया जा सकेगा, जिसके लिए आवंटन किया गया है। प्रस्ताव को मंजूरी देने के दौरान जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने कहा कि भविष्य में इसके परिसर में शैक्षणिक और मेडिकल सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाएंगी।
उल्लेखनीय है कि तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम बोर्ड का गठन सरकार ने टीटीडी एक्ट 1932 एक्ट के तहत एक चैरिटेबल संगठन के तहत किया था। इस ट्रस्ट ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अध्यात्म, संस्कृति, समाज और शिक्षा के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त की है। जम्मू-कश्मीर में इस ट्रस्ट के आने का मकसद यहां की पर्यटन क्षमता को बढ़ाना है तथा आर्थिक गतिविधियों में भी तेजी लाना है।
रक्ततंजित दौर से मिली राहत
आपको याद होगा कि 90 के दशक को कश्मीर में घाटी से बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं के पलायन के लिए जाना जाता है। 19 जनवरी 1990 की तारीख को कश्मीरी पंडित काले दिन के रूप में याद करते हैं। उस दिन, मस्जिदों ने घोषणाएं कीं कि कश्मीरी पंडित काफ़िर हैं और पुरुषों को या तो कश्मीर छोड़ना होगा, इस्लाम में परिवर्तित होना होगा या उन्हें मार दिया जाएगा। जिन लोगों ने इनमें से पहले विकल्प को चुना, उन्हें कहा गया कि वे अपनी महिलाओं को पीछे छोड़ जाएं। कश्मीरी मुसलमानों को पंडित घरों की पहचान करने का निर्देश दिया गया ताकि धर्मांतरण या हत्या के लिए उनको विधिवत निशाना बनाया जा सके। 1990 के दशक में डर और भय के कारण लगभग एक लाख कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी थी। हालिया आंकड़ों के अनुसार भारत सरकार के पास कश्मीरी शरणार्थियों के तौर पर 62,000 परिवारों के नाम रजिस्टर्ड हैं। इनमे कुछ सिख व मुस्लिम परिवार भी हैं।
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