एस. वर्मा
चीन का दावा है कि उसने पिछले 8 वर्षों में 248 अरब डॉलर खर्च कर गरीबी के नवनिर्धारित मानकों के अनुसार 9.89 करोड़ गरीब ग्रामीण आबादी को गरीबी से बाहर निकाला है। हालांकि अर्थशास्त्री इन दावों की बखिया उधेड़ रहे हैं। माना जा रहा है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के शताब्दी वर्ष के अवसर पर जुलाई में होने वाले कामों के मद्देनजर यह शिगूफा छोड़ा गया है।
इस वर्ष फरवरी माह के अंत में एक भव्य समारोह में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने घोषणा की कि उनके देश ने नितांत गरीबी के उन्मूलन का "चमत्कार" कर दिखाया है। चीन की सरकार का दावा है कि पिछले आठ साल की अवधि में 248 अरब डॉलर खर्च कर, ‘नव-निर्धारित’ गरीबी के मानदंडों के अनुसार 9.89 करोड़ गरीब ग्रामीण आबादी को गरीबी से बाहर निकाला गया है, और इसके द्वारा 832 गरीबी से त्रस्त काउंटीज के साथ-साथ 128,000 गांवों को गरीबी रेखा से नीचे वाली सूची से हटा दिया गया है। परन्तु शी जिनपिंग और चीन की सरकार के इस दावे को संयुक्त राष्ट्र के एक पूर्व अर्थशास्त्री द्वारा किए गए एक अध्ययन द्वारा चुनौती दी गई है, जिसमें तर्क दिया गया है कि बीजिंग ने गरीब होने के अर्थ की एक सीमित और अनम्य परिभाषा का उपयोग किया है।
दावों पर शंका !
फाइनेंसियल टाइम्स द्वारा प्रकाशित एक समाचार के अनुसार चीन में संयुक्त राष्ट्र के पूर्व वरिष्ठ अर्थशास्त्री बिल बिकलेस ने एक हालिया प्रकाशित शोध में बताया है, कि चीन ने ऐसे पर्याप्त प्रयास ही नहीं किये हैं, जिससे कि वह दावा कर सके कि उसने गरीबी पर अंतिम जीत हासिल कर ली है। फाइनेंसियल टाइम्स के अनुसार बिक्लेस ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि “चीन ने गरीबी को नहीं मिटाया है, और यह तब तक संभव भी नहीं है, जब तक कि वह ऐसी व्यवहार्य प्रणालियां उपयोग नहीं करता जो चीन में गरीब लोगों की पहचान कर सकें, साथ ही समस्त नागरिकों के लिए एक सुरक्षा जाल प्रदान नहीं करता है, जो मौत, गंभीर बीमारी, काम के नुकसान या अन्य किसी आघात की चपेट में हैं। उल्लेखनीय है कि 2017 में उन्नीसवीं पार्टी कांग्रेस में चीन की सरकार के लिए कुछ महत्वपूर्ण लक्ष्य निर्धारित किये गये थे, जिनमें से एक कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के शताब्दी वर्ष अर्थात 2021 में गरीबी के समूल उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। और, इस शताब्दी वर्ष के जुलाई माह में होने वाले कार्यक्रमों द्वारा इस विफल विचारधारा में प्राण फूंकने की कोशिश के तहत जोर-शोर से इस उपलब्धि का डंका विश्व भर में पीटा जा रहा है|
चीन में आखिर गरीब है कौन?
स्विस एजेंसी फॉर डेवलपमेंट एंड कोऑपरेशन द्वारा वित्त पोषित इस रिपोर्ट में बिकलेस बताते हैं कि समूल गरीबी उन्मूलन के लिए बीजिंग ने जिन स्थिर परिभाषाओं का इस्तेमाल किया, वे गरीबी की सतत परिवर्तनशील वास्तविकताओं के विपरीत थीं। चीन की अर्थव्यवस्था पर गहन अध्ययन करने वाले विश्लेषकों का भी मानना है कि चीन के "गरीबी के खिलाफ लड़ाई" को जीतने के दावे संदेहास्पद हैं। पहला तो यह चीन गरीबी को विशुद्ध रूप से ग्रामीण परिघटना मानता है, भले ही उसकी 60 प्रतिशत से अधिक आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है। और जब चीन की सरकार गरीबी उन्मूलन की बात करती है तो वह भारी मात्रा में बेरोजगार बेहाल शहरी दरिद्रों को पूर्ण रूप से अनदेखा कर देती है। चीन के अनेकों प्रान्तों में घोर अभाव के ढेरों मामले देखे जा सकते हैं। इसके साथ ही यह भी देखा गया है कि चीन ने गरीबी की अपनी परिभाषा में इसका निम्न स्तर निर्धारित किया है।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व बैंक की वैश्विक सीमा 1.90 डॉलर प्रतिदिन की तुलना में, चीन द्वारा अत्यधिक गरीबी की सीमा मौजूदा विनिमय दरों पर 1.69 डॉलर प्रति दिन के स्तर पर निर्धारित की है। परन्तु यह मामला यहां भी पूर्णत: भ्रामक हो जाता है। गौरतलब है कि 2019 में, चीन के सांख्यिकी ब्यूरो ने ग्रामीण गरीबी को 2,300 युआन अथवा 356 डॉलर प्रतिवर्ष की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय से कम के रूप में परिभाषित किया था। 2020 में इसे बढ़ाकर 4000 युआन अर्थात 620 डॉलर प्रतिवर्ष प्रतिव्यक्ति यानी 1.69 डॉलर प्रति दिन से कम आय के रूप में परिभाषित कर दिया गया, जो कि एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। परन्तु गड़बड़ी कहीं और ही है! यह सामान्यत: माना जा रहा है कि गरीबी रेखा विश्वबैंक की 1.90 डॉलर प्रति दिन की सीमा से कम के स्तर पर है। परन्तु यह दर सार्वत्रिक उपयोग के लिए नहीं है।
विश्व बैंक ने विकास के अलग-अलग स्तरों पर मौजूद देशों के लिए इसकी अलग-अलग सीमाएं निर्धारित की हैं। 1.90 डॉलर प्रति दिन की सीमा केवल विकास के तुलनात्मक रूप से निचले पायदान के देशों के लिए है, वहीं अमेरिका जैसे उच्च सकल घरेलू उत्पाद वाले देश के लिए गरीबी रेखा, चार सदस्यों वाले परिवार के लिए 72 डॉलर प्रतिदिन से कम है, जो कि एक निम्न आय वाले देश के लिए एक स्वप्न की तरह है। इसी प्रकार अगर हम चीन की बात करें तो वह जिस आर्थिक स्तर का दावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करता है, उस के अनुसार उसे उच्च-मध्यम आय वाले देशों में रखा जाना चाहिए जिसके लिए अर्थशास्त्रियों द्वारा गरीबी रेखा की सीमा 5.50 डॉलर प्रति दिन से कम सुझाई गई है। अगर यह तार्किक दृष्टिकोण से सर्वथा उपयुक्त पैमाना चीन पर लागू किया जाता है, तो देखना होगा कि चीन में कितने सौभाग्यशाली लोग ऐसे होंगे जो इस रेखा से ऊपर होंगे?
आंकड़ों की दरिद्रता !
एक तथ्य यह भी है कि इस चर्चा में प्रतीत हो रहा है कि बदहाली केवल गरीबी रेखा से नीचे वालों की ही है, परन्तु ऐसा भी नहीं है। एक बहुत बड़ा वर्ग, जो आंकड़ों के उलटफेर द्वारा किनारे पर फेंक दिया गया है, देखा जाए तो वह भी खतरे में है। ऐसी आबादी जो इस रेखा से नाममात्र को ऊपर है, वह केवल चीनी शासकों के दंभ की संतुष्टि भर करने के लिए है। वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार कई आर्थिक विश्लेषकों का आकलन है कि चीन के ऐसे कई नागरिक हैं, जो गरीबी रेखा से तो ऊपर हैं, पर उनका अस्तित्व के लिए संघर्ष किसी भी तरह से कम पीड़ादायक नहीं है। पिछले वर्ष चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग ने भी एक सार्वजनिक टिप्पणी में स्वीकार किया था, कि लगभग 60 करोड़ चीनी नागरिक, जो इस देश की आबादी का लगभग 40 प्रतिशत हैं, प्रतिमाह 1000 युआन अर्थात 155 डॉलर पर जीवन निर्वाह कर रहे हैं।
वाशिंगटन पोस्ट एक और महत्वपूर्ण संदेह को उठाता है। उसके अनुसार कोविड महामारी के आघात से उबरने के बाद इस साल चीन की अर्थव्यवस्था के लगभग 8 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है, परन्तु उपभोक्ता द्वारा किये जाने वाले परिव्यय में पूरी तरह से सुधार नहीं आया है। साथ ही विश्लेषकों का मानना है कि बेरोजगारी दर जो चीनी अधिकारियों की रिपोर्ट दिखाती है, उसकी तुलना में बहुत अधिक है। इस समय चीन के नव स्नातकों को नौकरी खोजने के लिए संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है, इसके साथ ही साथ गिरती जन्म दर विकास की गति पर भविष्य में नकारात्मक प्रभाव की आशंका दर्शाती है। देश में व्यापक आय असमानताएं भी मौजूद हैं, और लगातार बढ़ती जा रही हैं, और साथ ही चीन के नागरिकों का आक्रोश भी। चीन के माइक्रोब्लॉगिंग साईट वीबो पर चीनियों के अनेक तरह की टिप्पणियों की बाढ़ आई हुई है, जिनमें वह चीनी सरकार पर व्यंग्य कर रहे हैं और उनसे तल्ख़ प्रश्न भी पूछ रहे हैं। गरीबी को खत्म करने के लिए आधिकारिक मानक क्या है? मैं अब भी सड़कों पर लोगों को भीख मांगते क्यों देख रहा हूं? परन्तु चीन में सरकार को जवाब देने के लिए बाध्य भी नहीं किया जा सकता!
पिछले आठ वर्षों में, जब से शी सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख बने हैं, सरकार ने विश्व भर में एक नवसाम्राज्यवाद के विस्तार का अभियान छेड़ दिया है। शी की महत्वाकांक्षाएं असीमित हैं। वह चीन के सर्वोपरि नेता तो हैं परन्तु अपने प्रभाव की दृष्टि से वह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक माओत्से तुंग को भी पीछे छोड़ने की इच्छा रखते हैं। और इस क्रम में माओ वाले तौर-तरीकों को त्यागा भी नहीं गया है, चाहे वह भ्रामक दुष्प्रचार का हो या दमन और उत्पीड़न का। चीन, कम्युनिस्ट पार्टी के नए उदित होने वाले राजकुमारों का रंगमंच बना हुआ है जिनके हाथ में शक्ति का अभूतपूर्व सकेन्द्रण हो चुका है, वह भी बिना किसी उत्तरदायित्व के। गरीबी उन्मूलन जैसे शिगूफे इनके बदनुमा चेहरों के लिए बस एक फेसलिफ्ट हैं, और कुछ नहीं।
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