क्या आप जानते हैं कि दिल्ली सरकार केंद्र से मिलने वाले अनाज का वितरण भी नहीं कर रही है। आप इसका कारण भी जरूर जानना चाहेंगे। कारण यह है कि दिल्ली सरकार अनाज वितरण में पारदर्शिता नहीं रखना चाहती है। अब फिर सवाल उठता है कि जिस सरकार को भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन करने वाले चला रहे हैं, वे पारदर्शिता क्यों नहीं रखना चहते हैं! तो इसका जवाब भी जानिए। दरअसल, दिल्ली सरकार उन बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या मुसलमानों को भी अनाज देना चाहती है, जो दिल्ली में ओखला के पास अवैध रूप से बसाए गए हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि ओखला के विधायक अमानतुल्लाह खान इन घुसपैठियों और रोहिंग्याओं को संरक्षण दे रहे हैं। दूसरा कारण है कि केजरीवाल सरकार अनाज वितरण करने के माध्यम से अनाज माफिया को लाभ पहुंचाना चाहती है।
अब बिना आधार कार्ड घुसपैठियों को राशन नहीं मिल सकता है। आधार कार्ड के जरिए राशन देने से इसमें कोई घपला भी नहीं हो सकता है। इसलिए दिल्ली सरकार राशन की दुकानों पर लगी इलेक्ट्रानिक प्वाइंट आफ सेल (ईपीओएस) मशीनों का प्रमाणीकरण भी नहीं करवा रही है। और केंद्र सरकार तो यही कह रही है कि ईपीओएस मशीन ठीक कराकर अनाज बांटो, किसने रोका है। इन सबको देखते हुए ही 11 जून को केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आरोप लगाया है कि दिल्ली सरकार राशन माफिया के इशारे पर काम कर रही है। उन्होंने यह भी पूछा है, ‘‘दिल्ली में राशन की दुकानों में अप्रैल, 2018 से अब तक ईपीओएस मशीनों का प्रमाणीकरण शुरू क्यों नहीं हुआ?’’
बता दें कि ईपीओएस मशीन के माध्यम से आधार कार्ड को जोड़कर लोगों की पहचान करने के बाद ही उन्हें राशन दिया जाता है। दिल्ली, पश्चिम बंगाल और असम को छोड़कर हर राज्य में इसी तरह से लोगों को राशन मिल रहा है। असम में आधार कार्ड बनने का काम बहुत देर से शुरू हुआ है, इसलिए वहां इस पद्धति से राशन नहीं दिया जा रहा है, जबकि दिल्ली और पश्चिम बंगाल में ऐसी कोई बात नहीं है। इसके बावजूद ये दोनों राज्य इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता नवीन कुमार कहते हैं कि दिल्ली सरकार को राशन माफिया चला रहा है, इसलिए सरकार राशन वितरण में पारदर्शिता नहीं रखना चाहती है।
उल्लेखनीय है कि भारत सरकार पूरे देश में दो रुपए प्रति किलो गेहूं और तीन रुपए प्रति किलो चावल उपलब्ध कराती है। चावल का वास्तविक दाम 37 रु. और गेहूं का 27 रु. प्रति किलो है। भारत सरकार सब्सिडी देकर राशन की दुकानों के माध्यम से वितरण के लिए राज्यों को खाद्यान्न देती है। केंद्र सरकार इस पर हर साल लगभग 2,00,000 करोड़ रु. खर्च करती है। यह सब इसलिए किया जाता है कि हर गरीब तक अनाज पहुंचे, लेकिन केजरीवाल हैं कि हर चीज में राजनीति करना चाहते हैं। ठीक है राजनीति करें, लेकिन जब राजनीति बाहरी देश के लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए हो तो यह ठीक नहीं है।
दिल्ली सरकार के निठल्लेपन से सड़ने लगा अनाज
गरीबों को बांटने के लिए केंद्र सरकार से जो अनाज दिल्ली सरकार को मिलता है, वह उसे बांट भी नहीं पा रही है। कई जगहों पर अनाज सड़ने लगा है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी विफलता को छिपाने के लिए केंद्र सरकार से मांग कर रहे हैं कि घर—घर अनाज वितरण की अनुमति दें। लोग सवाल कर रहे हैं कि जो सरकार राशन की दुकानों तक अनाज नहीं पहुंचा पा रही है, वह घर—घर अन्न कैसे पहुंचा सकती है!
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