सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से‘एक देश, एक राशन कार्ड’योजना को लागू करने को कहा है। इस योजना के लागू होने के बाद प्रवासी श्रमिक उन राज्यों में भी राशन प्राप्त कर सकेंगे, जहां वे काम करते हैं, भले ही उनका राशन कार्ड वहां पंजीकृत न हो। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को प्रवासी श्रमिकों की समस्या से जुड़ी स्वत: संज्ञान मामले पर सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया।
क्या है मामला?
कोरोना महामारी के कारण प्रवासी श्रमिकों को होने वाली परेशानियों को देखते हुए 2020 में न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लिया था, जो लंबित थी। इसी बीच, संक्रमण की दूसरी लहर के कारण देशभर में लॉकडाउन लगाया गया, जिससे प्रवासी श्रमिकों को बहुत परेशानी हुई। इसी को आधार बनाते हुए अंजलि भारद्वाज, हर्ष मंदर और जगदीप चोकर ने शीर्ष अदालत में नए सिरे से याचिकाएं दाखिल की हैं। इनमें प्रवासी श्रमिकों के लिए खाद्य सुरक्षा, नकद अंतरण, परिवहन सुविधाएं व अन्य कल्याणकारी उपायों को जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को निर्देश देने का आग्रह किया गया है। कहा गया है कि श्रमिकों को इन सुविधाओं की बहुत अधिक जरूरत है, क्योंकि इस बार संकट पहले से गंभीर है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एम.आर शाह की अवकाशकालीन पीठ इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने ताजा याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया तथा केंद्र, याचिकाकर्ताओं और राज्यों से अपना पक्ष लिखित में पेश करने को कहा है।
बंगाल से कहा- बहाना नहीं चलेगा
सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दिल्ली, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और असम जैसे राज्यों ने अब तक ‘एक देश, एक राशन कार्ड’ योजना लागू नहीं की है। हालांकि, दिल्ली के वकील ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इस योजना को लागू कर दिया गया है। वहीं, पश्चिम बंगाल के वकील ने कहा कि योजना को आधार कार्ड से जोड़ने को लेकर कुछ मुद्दे थे, इसलिए योजना को लागू करने से रोक दिया गया। इस पर पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार से बिना किसी बहाने के तुरंत इस योजना को लागू करने को कहा। न्यायालय ने कहा, "आप (राज्य) एक या दूसरी समस्या का हवाला नहीं दे सकते। आपको इसे लागू करना चाहिए। यह प्रवासी श्रमिकों के लिए है।"
80 करोड़ लाभार्थियों की पहचान
वहीं, याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे, कॉलिन गोंजाल्विस और आनंद ग्रोवर का कहना था कि देश के करीब तीन करोड़ असंगठित श्रमिकों को राशन कार्ड के अभाव में इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा। दुष्यंत दवे का तर्क था कि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उन्हें भी मिलना चाहिए, जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं, क्योंकि इस साल समस्या ज्यादा गंभीर है। इस पर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना को इस साल नवंबर तक बढ़ा दिया गया है। साथ ही, 80 करोड़ लाभार्थियों की पहचान की गई है। इसके तहत हर व्यक्ति को प्रतिमाह पांच किलो अनाज निशुल्क दिया जाएगा। राज्यों द्वारा भी दूसरी कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। लेकिन दवे का तर्क था कि इस योजना का लाभ केवल उन लोगों को ही होगा, जिनके पास राशन कार्ड है। केंद्र सरकार राज्यों पर बोझ डालने की कोशिश कर रही है। इस पर पीठ ने जानना चाहा कि क्या योजना का लाभ उन प्रवासियों को मिल सकता है जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं। क्या उनके लिए प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर योजना को बढ़ाया जा सकता है? इस पर भाटी ने जवाब दिया कि जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं, उनके लिए योजनाएं बनाना राज्यों का काम है। केंद्र ने अतिरिक्त खाद्यान्न आवंटित किया है और राज्यों को इस योजना का विस्तार करना होगा।
केंद्र से सवाल
पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा, "असंगठित कामगारों के राष्ट्रीय डेटाबेस के लिए आपकी क्या परियोजना है। 417 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं, लेकिन एक मॉड्यूल भी नहीं बनाया गया है। आप कितना समय लेंगे? प्रक्रिया नहीं हुई है शुरू भी किया।" इस पर तुषार मेहता ने जवाब दिया कि राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) ने इस परियोजना को अपने हाथ में ले लिया है और डेटाबेस बनाने में तीन से चार महीने और लगेंगे। इस पर, शीर्ष अदालत ने कहा कि इसमें कम समय लगना चाहिए क्योंकि यह सिर्फ एक मॉड्यूल है और इस स्तर पर राज्यों से परामर्श करने की आवश्यकता नहीं है।
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