डॉ. अरविंद कुमार शुक्ल
इटली के पुनर्जागरण के नायक तथा प्रसिद्ध क्रांतिकारी विचारक मैजिनी ने एक बार कहा था कि "सभी महान राष्ट्रीय आंदोलनों का शुभारंभ जनता के अविख्यात या अनजाने, गैर- प्रभावशाली परिवारों में जन्मे व्यक्तियों से होता है जिनके पास समय, इच्छा शक्ति और बाधाओं की परवाह न करने वाले विश्वास के अलावा कुछ नहीं होता है।"
इसी मैजिनी की मां से अपनी मां की तुलना करते हुए भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रख्यात क्रांतिकारी अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि "यदि मुझे ऐसी माता ना मिलती तो मैं भी अति साधारण मनुष्यों के भांति संसार चक्र में फंस कर जीवन निर्वाह करता। शिक्षादि के अतिरिक्त क्रांतिकारी जीवन में उन्होंने मेरी वैसी ही सहायता की, जैसे कि मैजिनी की उनकी माता ने की थी।"
यह आत्मकथा लिखने वाले कोई और नहीं, बल्कि अमर बलिदानी क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल थे।
ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी संवत 1954 तद्नुसार 11 जून 1897 को राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म शाहजहांपुर में पंडित मुरलीधर और श्रीमती मूलमती के पुत्र के रूप में हुआ। माता मूलमती के संस्कारों के प्रभाव में यह बालक राम प्रसाद बिस्मिल मां भारती का पुजारी बन बैठा।
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रांतिकारी धारा के वह नायक हैं जो पूरे उत्तर भारत में क्रांतिकारी आंदोलन को सचिंद्र नाथ सान्याल के साथ मिलकर एक संगठित स्वरूप प्रदान करते हैं। और इस संगठित प्रयास की सबसे सशक्त घोषणा काकोरी स्टेशन से 1 मील दूर ईस्ट इंडिया रेलवे की पटरी पर आठ नंबर डाउन पैसेंजर गाड़ी की जंजीर खींच कर की जाती है। इस जंजीर का खींचा जाना ब्रिटिश साम्राज्यवाद से खुले युद्ध की घोषणा था। सम्राट का खजाना लूट लिया गया पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में। क्रांतिकारी गोलियां बरसाते हुए यह घोषणा करते हैं कि इन हथियारों का उपयोग केवल और केवल ब्रितानी हुकूमत की सत्ता और संपत्ति को उखाड़ फेंकने में है।
क्रांतिकारी संदेशों के प्रसार के लिए काकोरी कांड का उपयोग
काकोरी कांड ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद को दहला दिया। क्रांतिकारियों की धर-पकड़ के लिए ब्रितानी तानाशाही ने पूरी ताकत लगा दी। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल सहित सभी साथी गिरफ्तार हो जाते हैं। केवल और केवल आजाद और मन्मथ नाथ गुप्त आजाद रह जाते जाते हैं। काकोरी कांड का मुकदमा, भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण आयाम है। इस दृष्टि से भी कि पहली बार क्रांतिकारी, अदालतों का उपयोग अपने क्रांतिकारी संदेशों के प्रचार और प्रसार के लिए करते हैं और ब्रितानी आतंक को अपने आचरण से मिटाने की दृष्टि से भी। इस मुकदमे में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल अपना पक्ष स्वयं रखने की दलील देते हैं, जिसे स्वीकार नहीं किया जाता है किंतु क्रांतिकारी अदालत में अपनी उपस्थिति के दरमियान विभिन्न मौकों का उपयोग देशभक्ति का वातावरण बनाने में करते हैं। उसी मुकदमे में घटित एक घटना का विवरण क्रांतिकारी आंदोलन के स्वाभिमान तथा दृष्टिकोण का परिचय कराता है जब सरकारी वकील जगत नारायण मुल्ला क्रांतिकारियों को मुलजिम की जगह त्रुटिवश मुलाजिम कह बैठते हैं। तब उनकी बात का जवाब देते हुए पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जिन शब्दों का उपयोग करते हैं, वह भारत के इतिहास में सदैव स्वर्णाक्षरों से अंकित रहेगा। वे कहते हैं –
"मुलाजिम होंगे आप, मुलाजिम हमको मत कहिए, बड़ा अफसोस होता है, हम अदालत के अदब से यहां तशरीफ लाए हैं। पलट देते हैं मौजे हवादिस अपनी जुर्रत से कि आंधियों में भी चिराग अक्सर जलाए हैं।"
और काकोरी कांड के अमर शहीदों ने ब्रितानी तानाशाही के अंधेरे साम्राज्य में अंतिम दम तक चिराग जलाने की कोई कोशिश नहीं छोड़ी। जेल से अदालत और अदालत से जेल ले जाते वक्त इनके द्वारा गाए जाने वाला गीत "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजु -ए- कातिल में है" ने पूरे देश के नौजवानों की जुबान पर अपना राज जमा लिया और यह राज दिल में उतर कर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को व्यापक जनाधार देता है। यह आधार भूमि भारत की स्वतंत्रता को जन्म देती है। देशभक्ति के प्रचंड वातावरण को तैयार करने में काकोरी के अमर शहीदों का योगदान इतिहास कि वह थाती है जिसे सदैव पूजा जाएगा।
अंग्रेजी राज को खदेड़ने का साजिशी
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के गठन से पूर्व पंडित राम प्रसाद बिस्मिल 'मातृवेदी' नामक क्रांतिकारी संगठन बनाकर पंडित गेंदालाल दीक्षित के सानिध्य में मैनपुरी विप्लव का सपना देखते हैं। और, उसके बाद हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन की स्थापना में प्रमुख भूमिका का निर्वहन कर पूरे उत्तर प्रदेश के क्रांतिकारियों को एकत्र कर उसे बंगाल के क्रांतिकारी संगठनों से जोड़ने का महनीय कार्य करते हैं। एचआरए के पर्चे, जिसे पीले पर्चे के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त हुई, "द रिवॉल्यूशनरी" ने अंग्रेजों की नींद हराम कर दी। काकोरी कांड के मुकदमे में राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान को फांसी की सजा सुनाई गई। राम प्रसाद बिस्मिल को सजा सुनाते हुए जज ने कहा कि यह व्यक्ति अंग्रेजी राज को खदेड़ने का साजिशी है। साक्ष्य के आधार पर इसको सबसे खतरनाक दोषी कहा जा सकता है। अवध हाईकोर्ट ने अपने इस फैसले में करीब-करीब उन्हीं शब्दों का दोहराव किया, जिसकी प्रस्तावना सेशन जज की अदालत में हो चुकी थी। अंग्रेजों ने समझा, यह मुकदमा भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन को दफन कर देगा किंतु क्रांतिकारियों के इस त्याग ने स्वतंत्रता की चाहत को और भड़का दिया। सबसे पहले 17 दिसंबर 1927 को राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने गोंडा के जेल में फांसी का फंदा चूमा। 19 दिसंबर को राम प्रसाद बिस्मिल गोरखपुर जेल में फांसी के फंदे को चूमने से पहले एक गीत गाते हैं –
"मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे, बाकी ना मैं रहूं, ना मेरी आरजू रहे, जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे, तेरा ही जिक्र ए यार तेरी जुस्तजू रहे।
और फांसी के उस फंदे से अपनी परम इच्छा व्यक्त करते हैं कि "मैं ब्रिटिश साम्राज्य का पतन चाहता हूँ।"
काकोरी के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए जनवरी 1928 के 'किरती' में एक संपादकीय नोट प्रकाशित किया गया। माना जाता है कि यह नोट भगत सिंह या भगवती चरण वोहरा का है जिसमें कहा गया कि "जब कभी आजादी का इतिहास लिखा जाएगा, जब कभी शहीदों का जिक्र होगा, जब कभी भारत माता के लिए बलिदान करने वालों की चर्चा होगी, तो वही राजिंद्रनाथ लाहिड़ी, राम प्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला का नाम जरूर लिया जाएगा। उस समय आने वाली पीढ़ियां इन शहीदों के आगे शीश झुकाएंगी और इन वीरों के बहादुरी भरे किस्से सुन- सुन सिर हिलाएंगी। उस समय ये कौम के आदर्श माने जाएंगे, इन बुजुर्गों की पूजा होगी।
काकोरी के अमर शहीदों,
श्रद्धा से नत शीश हमारा।
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