अमिय भूषण
संयुक्त राष्ट्र महासंघ (UNGA) की अध्यक्षता का भार अब मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद के मज़बूत कंधों पर है। महासंघ के नए अध्यक्ष के तौर पर अब्दुल्ला शाहिद अपने कार्यकाल की शुरुआत सितंबर से करेंगे। शाहिद तुर्की के बड़बोले एवं धर्मांध वोल्कन बोजिकर का स्थान लेंगे। कैनबरा, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से शिक्षा प्राप्त करने वाले 59 वर्षीय पूर्व राजनयिक शाहिद फिलहाल मालदीव के विदेश मंत्री हैं। उनकी यह जीत अपने आप मे एक ऐतिहासिक घटना है। हालिया अतीत में वैश्विक संस्थाओं में बढ़ते चीनी प्रभाव के बीच ये अविस्मरणीय परिणाम सुकून देने वाला है। वैसे चीनी गठजोड़ के आरोप झेल रहे यूएन को इस बहाने एक बार फिर स्वतंत्र नियामक सत्ता के रूप में काम करने का अवसर मिला है।
भारत का खुला समर्थन
मालदीव की इस विजय गाथा के पीछे भारत का भरोसा और प्रयास भी है। भारत का मालदीव के ऊपर विश्वास और बेहद खुला समर्थन नए दौर की विश्व राजनीति की नई शुरुआत है। यूएन के नए अध्यक्ष पद के लिए भारतीय उपमहाद्वीप के दो मित्र देशों का एक साथ उतरना भारत के लिए भी परेशानी का सबब था। एक तरफ मालदीव तो दूसरी तरफ अफगानिस्तान इन चुनावों में खम ठोककर खड़ा था। ऐसे में भारतीय नेतृत्व ने अपनी स्थिति नवंबर के महीने में पहले ही साफ कर दी थी। उसने बेहद सधे लहजे में कहा था मालदीव इन चुनावों के लिए दिसंबर 2018 से प्रयत्नशील है। ऐसे में कोई और प्रयास उचित नहीं है। भारत के इस बयान को यूएनजीए के चुनावों परिणाम से और बेहतर समझा जा सकता है। यूएनजीए में जहाँ मतदाता के तौर पर कुल 193 देशों की मौजूदगी है, वहीं इन चुनावों मे कुल 191 देशों ने हिस्सा लिया था। बात अगर परिणामों की करें तो 143 देशों के समर्थन से मालदीव को ये विजयश्री प्राप्त हुई है।
अब्दुल्ला शाहिद की इस जीत पर अब चारों तरफ से प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं। मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिन ने इन उपलब्धियों को शानदार और महान सम्मान बताया है। वहीं चीन की आँखों की किरकिरी बने पूर्व राष्ट्रपति और स्पीकर मोहम्मद नशीद ने इसे महान विजय की संज्ञा दी है। बात अगर ऑल टाइम ऑल वेदर फ्रेण्ड भारत की करें तो चुनाव परिणामों की घोषणा के साथ ही यूएन में भारत के स्थाई मिशन ने इसे मजबूत जीत की संज्ञा दी है। वहीं भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस जीत को अब्दुल्ला के कद और मालदीव की स्थिति से जोड़ते हुए मालदीव को शुभकामनाएं प्रेषित की हैं। उन्होंने यूएनएससी के 76वें नए अध्यक्ष के रूप में बहुपक्षवाद और इसके आवश्यक सुधारों को मजबूत करने के लिए साथ में काम करने की भारतीय संकल्पनाओं को दोहराया है। दरसल मोहम्मद अब्दुल्ला के इसी कार्यालय के दौरान सुरक्षा परिषद में भारत भी अस्थायी सदस्य के तौर पर होगा।
अगर इस पूरे चुनाव परिणाम को भारत के नज़रिए से देखा-समझा जाए तो कुछ भी अनायास और अनअपेक्षित नही है। मालदीव की इस जीत के पीछे विश्व जनमत को तैयार करना कोई आसान काम नहीं था। किंतु भारत की वर्तमान सरकार और उसकी सधी विदेश नीति ने इसके लिए पुरजोर मेहनत की है। वैसे मालदीव और भारत के बीच भरोसे का यह संबंध आज का नहीं है। सन् 1988 में मालदीव में हुए तख्तापलट से सन् 2015 की राजनैतिक उठापटक तक भारत लगातार मालदीव के लोगों के साथ खड़ा रहा है। पर्यटन पर हद से ज्यादा निर्भर और जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझ रहे लघु द्वीपीय इस देश के साथ भारत सदैव से ही खड़ा रहा है। सन् 2004 की सुनामी लहर और अगले एक दशक तक पेयजल संकट के समय भी भारत सहयोग में प्राणपण से था। यहाँ की सामुदायिक विकास योजनाओं के लिए भी भारत सदैव तत्परता से खड़ा रहता है। कोविड के कहर में भी भारत वैक्सीन और जरूरी सामग्री के साथ मालदीव के लिए खड़ा था। भारत ये सब एक पड़ोसी और मित्र देश के रूप में करता आया है।
चीन के षड्यंत्रों से बचाव
मालदीव में चीन की मौजूदगी शांति, सहयोग के बजाय हमेशा प्रपंच के जरिये मालदीव पर बेजा पकड़ और प्रभुत्व बनाने की रही है। भारत को घेरने की चीनी योजना स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स का एक प्रमुख पड़ाव मालदीव रहा है। दरसल भारत के कुल विदेश व्यापार का 50% बेड़ा यहीं से होकर जाता है। वहीं उसकी ऊर्जा जरूरतों के आयात का 80% भी समुद्र के इसी हिस्से से होकर गुजरता है। ऐसे में भारत की दोहरी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। चीनी कर्ज के जाल से मालदीव को बचाना और अपने विरुद्ध होने वाले षड्यंत्रों से भी पड़ोसी देशों को महफूज रखना। बीजिंग सत्ता प्रतिष्ठान के उलट भारत सरकार ने पड़ोसी देशों की संप्रभुता, अखंडता को अक्षुण्ण रखने में अपनी भूमिका का हमेशा निर्वहन किया है। चीन की तरह उसकी आंतरिक राजनीत में सीधा हस्तक्षेप और भावनाओं को भड़काने की जगह भारत ने उनके स्वाभिमान को समझते हुए सदैव आपसी हित की बात रखी है।
नर्म, निरपेक्ष, निष्पक्ष इस्लामी मुल्क का उभार
यूएनजीए में मालदीव की जीत भारत के लिए कई और मामलों में भी बेहद महत्वपूर्ण है। भारत का प्रयास एक ओर जहाँ यूएनजीए के नेतृत्व को चीन और अतिवादी इस्लामिक देशों के गठजोड़ से बचाये रखने का था, वहीं दूसरी ओर विश्व के मानचित्र पर नेतृत्व के लिए कट्टर और अतिवादी इस्लामी देशों की जगह नर्म, निरपेक्ष और निष्पक्ष मुल्कों को उभारना भी था। भारत के दोनों प्रयास सफल और पूर्ण हुए हैं। वर्तमान के यूएनजीए प्रमुख वोल्कन बोजकिर कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों से भारत की विरोध और पाकिस्तान की तरफदारी कर चुके हैं। जम्मू एवं कश्मीर के मुद्दे पर भारत पर गैरजरूरी और गैर जिम्मेदाराना टिप्पणियाँ कर चुके है। यूएनजीए में मालदीव विजय का जो सफल राजनयिक प्रयास भारत ने किया, उस प्रयास की सार्थकता ने विश्व राजनीति में एक नए दौर की शुरुआत की है। अब से पहले तक मुट्ठी भर बेहद शक्तिशाली और चंद बड़े देशों के प्रभाव में रहे यूएनजीए में अब छोटे-मझोले और आंखों से ओझल रहने वाले देशों की महत्ता भी बढ़ गई है। यह विश्व राजनीति के लिए जहां एक सुखद बदलाव है, वहीं यूएनजीए जैसी संस्थाओं के साख और लोकतांत्रिकीकरण के लिए भी एक नजीर है।
क्यों महत्वपूर्ण है यूएनजीए अध्यक्ष पद
आखिर संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के अध्यक्ष का पद इतना महत्वपूर्ण क्यो है? अगर विशेषज्ञों के हवाले से समझें तो यह संयुक्त राष्ट्र संघ के छह प्रमुख अंगों में से एक है। वैसे यह यूएन की इकलौती ऐसी इकाई है जिसमें सभी सदस्य देशों का समान प्रतिनिधित्व है। इससे इसकी व्यापकता और भी अधिक बढ़ जाती है। सन् 1945 में शुरुआत में जहां सदस्य देशों की संख्या 51 थी, वहीं इक्कीसवीं सदी आते-आते आज इससे जुड़े देशों की संख्या करीब 193 है। अभी पर्यवेक्षक की भूमिका फिलहाल फिलिस्तीन के पास है। यह यूएन के अन्य उपक्रमों के इतर अत्यंत प्रभावी है। इसके जिम्मे बजट के निर्धारण, आवंटन और वितरण का कार्यभार है। वहीं यह सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्यों की नियुक्ति एवं संयुक्त राष्ट्र महासचिव की नियुक्ति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इतना ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के अन्य भागों की रिपोर्ट लेने और प्रस्तावों को जानने का भी इसे अधिकार प्राप्त है। इन मामलों में यह महासभा सिफारिशी प्रस्तावों को भी वैधानिक तौर पर रख सकता है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर में इसकी शक्ति, संरचना, कार्य और प्रक्रिया निर्धारित की गई है। जहां तक इसके चुनाव का प्रश्न है तो संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यप्रणाली के अनुसार इसे भौगोलिक तौर पर छह समूहों में बांटा गया है। इनमें से एक समूह एशियाई देशों का है। संयोगवश इस बार के संयुक्त राष्ट्र महासंघ अध्यक्ष पद का चुनाव एशिया महाद्वीप से होना था। ऐसे में मालदीव के दावे और भारतीय प्रयास ने रंग दिखाया है।
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