पाकिस्तान सरकार देश में नई शिक्षा नीति लागू करने जा रही है। इसमें हिंदू, ईसाई और सिखों के लिए भी कुरान और हदीस पढ़ना अनिवार्य होगा। इसे देखते हुए नई शिक्षा नीति का विरोध किया जा रहा है। इसे अल्पसंख्यकों का ‘इस्लामीकरण’ करने के षड्यंत्र के तौर पर देखा जा रहा है
पाकिस्तान की इमरान खान सरकार क्या अपने देश की चार प्रतिशत अल्पसंख्यक आबादी का ‘इस्लामीकरण’ करने का षड्यंत्र रच रही है? अब तक पड़ोसी देश में यह काम जिहादी मानसिकता रखने वाले करते रहे हैं। अल्पसंख्यक समुदाय की बच्चियों एवं महिलाओं का अपहरण, बलात्कार और कन्वर्जन कर नस्ल बर्बाद करने का खेल पाकिस्तान में लंबे समय से चल रहा है। मगर अब इस खेल में इमरान खान सरकार न केवल शामिल हो गई है, बल्कि इसे व्यवस्थित रूप देने में भी जुट गई है। इसके लिए सरकार एक समान शिक्षा नीति लाने जा रही है, ताकि सभी धर्म-मत-पंथ के मानने वालों को इस्लाम के रास्ते पर चलने को मजबूर किया जा सके। नई शिक्षा नीति से पाकिस्तान में इस्लामिक कट्टरवाद तो बढ़ेगा ही, गैर मुस्लिमों को भी कुरान, हदीस, नमाज पढ़ने को मजबूर किया जा सकेगा। हालांकि इमरान खान सरकार की इस साजिश की भनक लगते ही अल्पसंख्यकों और सेकुलर संगठनों ने नई शिक्षा नीति का विरोध शुरू कर दिया है। सरकार विरोधी आवाजों को दबाने के लिए नए-नए पैंतरे भी आजमाए जाने लगे हैं।
अदालतें भी दे रहीं बढ़ावा
पाकिस्तान एक इस्लामिक देश है। वहां के अल्पसंख्यक समुदाय का कहना है कि होश संभालते ही मुस्लिम बच्चे अपने घरों में इस्लामिक शिक्षा लेना शुरू कर देते हैं। ऐसे में स्कूलों में इस्लामिक शिक्षा को अनिवार्य करना कुछ खास दिशा की ओर इशारा करता है। इन्हीं दलीलों के साथ दूसरे देशों में भी पाकिस्तान का विरोध होने लगा है। चूंकि इस्लाम के बारे में देश के तमाम मुसलमानों की सोच एक जैसी है, इसलिए पाकिस्तान की अदालतें भी परोक्ष रूप से इमरान खान की नई शिक्षा नीति को आगे बढ़ाने में सहायता कर रही हैं। हाल ही में ईशनिंदा के एक मामले की सुनवाई की आड़ में लाहौर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश मुहम्मद कासिम खान ने वकील को झिड़कते हुए कहा, ‘‘सोशल मीडिया पर पाकिस्तान के खिलाफ साजिश रचने वालों पर किन धाराओं में कार्रवाई की जा सकती है। इस पर रिपोर्ट पेश करें ताकि ऐसे लोगों को कानून के दायरे में लाया जा सके।’’ इस पर वकील ओवैस खालिद का कहा, ‘‘ऐसे आरोपियों पर सीआरपीसी की धारा पांच के तहत देशद्र्रोह का मुकदमा चलाया जा सकता है।’’
मुस्लिम आबादी 94 प्रतिशत
पाकिस्तान में मुसलमानों की आबादी करीब 94 प्रतिशत है। शेष करीब तीन प्रतिशत हिंदू, 1.27 ईसाई और बाकी आबादी अन्य अल्पसंख्यक समुदाय की है। पाकिस्तान की 2017 की जनगणना की अनुसार, पाकिस्तान में हिंदुओं की कुल आबादी 44 लाख के करीब है, जबकि अन्य संगठन हिंदुओं की जनसंख्या 80 लाख के करीब बताते हैं। इस देश में कुल हिंदू आबादी का 93 प्रतिशत हिस्सा सिंध प्रांत और 5 प्रतिशत पंजाब में रहता है। पाकिस्तान के चर्चित अखबार ‘डान’ में सेंटर फॉर सोशल जस्टिस के हवाले से छपी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि हिंदू लड़कियों और महिलाओं के अपहरण, बलात्कार एवं कन्वर्जन की सर्वाधिक घटनाएं सिंध प्रांत में होती हैं। पाकिस्तान में सबसे अधिक हिंदुओं का कन्वर्जन किया जाता है। पाकिस्तान में हिंदुओं को कन्वर्ट करने की दर 54.3 प्रतिशत है। इसके बाद 44.44 प्रतिशत ईसाई और 0.65 प्रतिशत सिखों का कन्वर्जन होता है। मगर इमरान खान की नई शिक्षा नीति के लागू होने पर शायद ऐसे आंकड़े पेश करने की जरूरत ही न पड़े, क्योंकि सरकार की मंशा ही सभी को इस्लाम की राह पर धकेलना है। नई शिक्षा नीति में वह सारे काम कराए जाएंगे, जिसे करना इस्लाम में मुसलमानों के लिए अनिवार्य बताया गया है।
ऐसी होगी नई शिक्षा नीति
पाकिस्तान सरकार देशभर में चरणबद्ध तरीके से नई समान शिक्षा नीति लागू करने जा रही है। पहले चरण में पहली से पांचवीं कक्षा वाले प्राथमिक स्कूलों को शामिल किया जाएगा। इसके बाद हर स्कूल और कॉलेज में इसे लागू किया जाएगा। नई शिक्षा नीति के तहत कुछ खास विषयों को पढ़ाने के लिए हाफिज और कारी रखने की भी योजना है। अल्पसंख्यकों एवं आलोचकों को डर है कि इस तरह की शिक्षा प्रणाली से स्कूलों और विश्वविद्यालयों का इस्लामीकरण तो होगा ही, अल्पसंख्यकों के लिए अपनी धर्म-संस्कृति का अस्तित्व भी बचाना मुश्किल हो जाएगा। उनका कहना है कि इससे शैक्षिक क्षेत्र में मौलवियों का वर्चस्व बढ़ेगा, फिरकापरस्ती तेज होगी और सामाजिक ताना-बाना बिगड़ेगा। इस्लामाबाद के एक अकादमिक अब्दुल हमीद नायर कहते हैं कि नई योजना से उर्दू, अंग्रेजी और सोशल स्टडीज का इस्लामीकरण किया जा रहा है। सभी बच्चों के लिए कुरान के 30 अध्याय और बाद में कुरान का अनुवाद पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया है। साथ ही, बच्चे चाहे किसी भी धर्म-पंथ के हों, उन सब के लिए अन्य इस्लामिक किताबें पढ़ना अनिवार्य होगा। नायर कहते हैं कि आधुनिक ज्ञान का आधार आलोचनात्मक सोच पैदा करना है, लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार अपने पाठ्यक्रम में इसका उलटा आगे बढ़ाना चाहती है।
सरकार और कट्टरपंथियों का गठजोड़
पाकिस्तान बनने के बाद से ही सरकार और इस्लामिक कट्टरपंथियों में एक रिश्ता रहा है। वैसे देश का इस्लामीकरण 1950 और 60 के दशक में शुरू हो गया था, लेकिन 1970 के दशक में इसने रफ्तार पकड़ी और 1980 में जिया-उल-हक की तानाशाही में यह चरम पर पहुंच गया। हक ने देश के उदारवादी संविधान की शक्ल बदलने की मुहिम छेड़ दी। उन्होंने इस्लामिक कानून लागू किए। पढ़ाई का इस्लामीकरण किया। देशभर में हजारों मदरसे खोले, न्याय व्यवस्था, प्रशासन और सेना में इस्लामिक सोच वाले लोगों को भरा और ऐसे संस्थान बनाए जहां से मौलवी सरकार के काम-काज पर नजर रख सकते थे। 1988 में जिया-उल-हक की मौत के बाद से लगभग हर सरकार ने इस्लामी ताकतों को खुश रखने की कोशिश की है। अलग बात है कि इमरान खान के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार पर इस्लामिक ताकतें कुछ ज्यादा ही हावी हैं।
2018 में इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ ने पूरे देश में एक जैसी शिक्षा व्यवस्था लागू करने का वादा किया था। तब लोगों को लगा था कि नई शिक्षा व्यवस्था विज्ञान, कला, साहित्य और अन्य समकालीन विषयों को आगे बढ़ाएगी, लेकिन 2019 में सरकार ने जब नई योजना जारी की तो पता चला कि इमरान खान की हुकूमत में इस्लाम पर जोर ज्यादा रहेगा। नई शिक्षा के तहत सरकार की योजना है कि देश के सारे बच्चे पूरी कुरान अनुवाद के साथ पढ़ें, इस्लामिक प्रार्थनाएं सीखें और हदीस याद करें। हालांकि इस योजना को कोरोना वायरस महामारी के कारण पूरी तरह लागू करने में देर हो रही है, लेकिन चालू शैक्षणिक सत्र से इसकी शरुआत कर दी जाएगी। इसके लिए प्राथमिक स्कूलों की किताबें छप चुकी हैं। इसमें अंग्रेजी, उर्दू और सामाजिक विज्ञान की किताबों पर इस्लाम का प्रभाव साफ देखा जा सकता है।
लाहौर स्थित शिक्षाविद रूबीना साइगोल बताती हैं कि सरकारी स्कूलों का मदरसीकरण किया जा रहा है, जिसके गंभीर नतीजे होंगे। वह कहती हैं, ‘‘इस पाठ्यक्रम को पढ़कर बच्चे इस्लामिक रूढ़िवादी सोच को आगे बढ़ाएंगे। वे महिलाओें को कमतर इंसान मानेंगे। साथ ही, आतंकवादियों को जन्म देने का दायरा भी बढ़ेगा।’’ इस्लामाबाद स्थित परमाणु वैज्ञानिक परवेज हूदबोय कहते हैं कि नया पाठ्यक्रम पाकिस्तान की शिक्षा व्यवस्था को ऐसा नुकसान पहुंचाएगा, जैसा पहले कभी नहीं पहुंचा। वह कहते हैं, ‘‘इसके भीतर ऐसे बदलाव छिपे हुए हैं, जिनका असर बहुत गहरा होगा। इतना गहरा, जितना किसी ने सोचा नहीं होगा। जिया-उल-हक की तानाशाही में भी इतना नहीं हुआ होगा। इसके तहत सरकारी स्कूलों में इस्लाम की पढ़ाई मदरसों से भी ज्यादा हुआ करेगी।’
सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती
कुछ लोगों ने पाठ्यक्रम में बदलावों पर सरकार के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती भी दी है। लाहौर के मानवाधिकार कार्यकर्ता पीटर जैकब कहते हैं कि अनिवार्य विषयों का 30-40 प्रतिशत हिस्सा मजहबी है। उन्होंने कहा, ‘‘कई लोग अदालत गए हैं, क्योंकि यह संविधान के खिलाफ है। अल्पसंख्यक समुदाय के लोग नहीं मानते कि इस सामग्री को अनिवार्य विषयों में होना चाहिए।’’ सरकार का समर्थन कर रही मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पार्टी की सांसद किश्वर जेहरा भी इस्लामीकरण के खिलाफ हैं। वह कहती हैं, ‘‘हमें बांग्लादेश से सीखना चाहिए जो अपने यहां पंथनिरपेक्ष मूल्यों को बढ़ावा दे रहा है। पाकिस्तान सरकार की मौजूदा नीति बस इस्लामी ताकतों को खुश करने की कोशिश है। इसके बजाय सरकार को वैश्विक मानवाधिकार मूल्यों को शिक्षा में शामिल करना चाहिए, जिनकी पाकिस्तान के विद्यार्थियों को ज्यादा से ज्यादा सीखने की जरूरत है।’’
हालांकि तमाम विरोध और आशंकाएं व्यक्त किए जाने के बावजूद इमरान खान सरकार अपनी नई शिक्षा नीति से पीछे हटने को तैयार नहीं है। इसके साथ विरोधी सुरों को दबाने की भी कार्रवाई शुरू कर दी है। मीडिया पर अंकुश लगाया जा रहा है। सरकार के विरोध में लिखने-बोलने वालों पर काबू पाने के लिए मीडिया विकास प्राधिकरण अध्यादेश लाया जा रहा है। एपीएनएस, पीबीए, सीपीएनई, पीएफयूजे जैसे मीडिया संगठनों का कहना है कि इस अध्यादेश से सरकार मीडिया पर नियंत्रण करना चाहती है।
इमरान सरकार पूरी तरह तानाशाही अंदाज में काम कर रही है। सरकार के दबाव में आकर ही पाकिस्तान के सबसे बड़े मीडिया घराने ‘जिओ’ समूह के वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर को दरकिनार कर दिया गया है।
-मीम अलिफ हाशमी
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