राजग सरकार के सात साल -काम में आगे, प्रचार में पीछे
वर्तमान भाजपा नीत राजग गठबंधन सरकार के सात साल पूरे हो चुके हैं। ये एक ऐसी सरकार है जिसे यदि काम की कसौटी पर कसेंगे तो आपको एक से बढ़कर एक ठोस चीजें मिलेंगी, परंतु प्रचार के मोर्चे पर पर्याप्त पिलपिलापन दिखाई देता है। कुछ लोगों को यह बात अजीब लग सकती है कि ये सरकार प्रचार के मोर्चे पर पीछे है मगर यकीन जानिए कि हकीकत यही है। जिन लोगों के पास सरकार के काम के प्रचार-प्रसार का दायित्व है या जो सरकार के प्रवक्ता हैं, उनसे पूछें तो उनके पास सरकार के सभी मंत्रालयों के कामकाज की फैक्टशीट उपलब्ध नहीं होगी। भरोसा कीजिए, आज के दिन किसी भी पत्रकार के पास (यदि उसने दौड़भाग कर स्वयं नहीं जुटाया तो) सारे मंत्रालयों का डेटा
नहीं मिलेगा।
कहना जरूरी नहीं कि पत्रकार जानते हैं कि सरकार का प्रचार तंत्र समग्र जानकारियों को संजोने-साझा करने के प्रति उदासीन है। यह एक साल की बात नहीं है, चुनावी वर्ष को छोड़कर साल दर साल यही होता रहा है।
इसके उलट यह जरूर है कि इस सरकार पर यह लेबल चिपकाने का काम इसके विरोधियों ने सफलतापूर्वक किया है कि ये सरकार काम नहीं करती, सिर्फ प्रचार करती है, और जनअसंतोष बढ़ रहा हैै।
ठोस धरातल पर उतरे नारे
इस सरकार के काम की वास्तविकता देखेंगे तो पता चलेगा कि पहले जो चीजें नारों तक और केवल भावनात्मक थीं, अब वे ठोस धरातल पर उतार दी गई हैं। उदाहरण के लिए एक नारा था-‘जय जवान-जय किसान’। याद कीजिए नेहरू काल में 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध को। हथियार तो छोड़िए, उस हाड़ कंपाने वाली सर्दी में सैनिकों के पास पर्याप्त कपड़े और जूते तक नहीं थे। बाद के वर्षों में स्थिति उतनी खराब भले न रही हो, परंतु बहुत बेहतर कभी नहीं रही। इस सरकार के आने के बाद 30-30 साल पुराने रक्षा सौदे न सिर्फ पूरे किए गए बल्कि पारदर्शिता के साथ पूरे किए गए। सेना के तीनों अंगों का उन्नयन और आधुनिकीकरण, उनमें समन्वय (चीफ आॅफ डिफेंस स्टाफ), सौदों में पारदर्शिता लाना, सैनिकों के सम्मान का प्रश्न बने लंबे समय से लटके ओआरओपी को लागू करने का काम किया इस सरकार ने किया।
इस सरकार ने किसानों के सम्मान के लिए किसान सम्मान निधि का प्रावधान किया। अब तक किसानों को चुनाव के समय खुश किया जाता था परंतु अब लगातार किसानों के खातों में सीधे पैसा जा रहा है। पहले यूरिया की जरूरत के समय लाठीचार्ज की बात होती थी, अब उन्हें नीम कोटेड यूरिया मिल रहा है। अब किसानों की फसल की रिकॉर्ड खरीदी हो रही है, किसानों को आढ़तियों से मुक्ति मिल रही है।
शिक्षा और स्वास्थ्य
शिक्षा क्षेत्र का हाल यह था कि यह देश कभी गर्व से अपनी परंपरा को न जान पाए, अपने नायकों को न पहचान पाए, एक औपनिवेशक दासता का जुआ नई पीढ़ियों के कंधों पर पड़ा रहे, सर उठाने का मौका न मिले, ऐसा परोक्ष तंत्र शिक्षा के माध्यम से चलता था। इस सरकार ने इस पर संज्ञान लिया और पूरे देश से बात करके शिक्षा व्यवस्था बदलने का काम किया। देश के लिए किसी नीति को बनाने के लिए इतनी बड़ी रायशुमारी, इतनी बड़ी पहल पहले कभी नहीं की गई थी। इस देश के बच्चे अपनी प्रतिभा के हिसाब से विषय चुन सकें, यह अवसर इस सरकार ने बच्चों को दिया। स्कूल-कॉलेजों का ढांचा बेहतर करने में भी इस सरकार ने काफी काम किया है।
अभी महामारी का समय है। इस संकट काल में कलई खुल गई कि मेडिकल शिक्षा के मामले में 70 साल में कितना ढांचा बना था और अभी कितना बना है। 2014 में देश में क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों के तहत कुल 157 मेडिकल कॉलेज थे। फिलहाल इनकी संख्या 502 पहुंच गई है। दूसरी बात, केवल इमारतों से अस्पताल नहीं बनते। उसमें सेवा करने के लिए डॉक्टर भी चाहिए होते हैं। यहां सवाल आता है कि क्या समय के साथ मेडिकल शिक्षा की सीटों में पर्याप्त वृद्धि की गई, पहले कितनी सीटें बढ़ी, अब कितनी सीटें बढ़ीं, इसकी भी पड़ताल जरूरी है? 2013-14 में 52,000 एमबीबीएस सीटें थीं जो सात साल में बढ़कर 70,000 मेडिकल सीटें हो गई हैं।
बुनियादी ढांचा
विकास भी एक नारा हुआ करता था। विकास के लिए सड़क बुनियादी चीज है। ज्यादा पुराने पर न जाएं, केवल यूपीए सरकार के आखिरी चार वर्षों की बात कर लें तो उस दौरान जितने राष्ट्रीय राजमार्ग बने, उसके मुकाबले इस सरकार के पहले चार वर्षों के कार्यकाल में 73 प्रतिशत ज्यादा राष्ट्रीय राजमार्ग बने, गांवों को आपस में जोड़ने के लिए बने सड़कों के अंतरसंजाल को आप अलग से जोड़ लें।
यानी इस सरकार ने बुनियादी ढांचे पर काम किया, शिक्षा पर काम किया, स्वास्थ्य पर काम किया, जवान पर काम किया और किसान पर काम किया। लेकिन इस सरकार को समझना पड़ेगा कि सिर्फ काम करना ही सबकुछ नहीं है, जनता को बताना भी पड़ेगा। नहीं बताने पर जिंदगियों पर क्या फर्क आया और देश कैसे एक कदम आगे बढ़ा, ये जनता नहीं जानती तो विभाजक राजनीति करने वालों की पौ-बारह हो जाती है।
इस समाज में भ्रमित करने वाली ताकतें हावी न हों, इसके लिए जरूरी है कि देश के लिए जो भी अच्छा, विकासपरक काम हो रहा हो, उसे किसी एक पोर्टल के माध्यम से जनता के बीच रखा जाए। ताकि आने वाली पीढ़ी और समाज दलीय राजनीति के दलदल में उतरे बिना कामकाज की कसौटी पर शासन-प्रशासन की तुलना कर पाएं। लोग पीआर एजेंसियों के अभियान से नहीं, बल्कि तथ्यों की रोशनी में यह समझ सकें कि सड़क कितनी बनी, पानी कितने लोगों तक पहुंचा, बिजली के बिना कौन है, अस्पताल और डॉक्टर पर्याप्त हैं कि नहीं। लोग अपने प्रतिनिधि चुनते समय आरोप-प्रत्यारोप, एजेंडा, टूलकिट, जनमत सर्वेक्षण देखने के बजाय तथ्यों के आधार पर निर्णय करने में सक्षम हो सकें। ये काम इस सरकार के लिए भी जरूरी है और हर सरकार के लिए जरूरी है। क्योंकि यह दलीय राजनीति नहीं लोकतांत्रिक अपेक्षाओं से जुड़ी आवश्यकता है।
@hiteshshankar
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