एक ईसाई व्यक्ति के विरुद्ध मामला दर्ज कराया गया था क्योंकि उसने एक महिला के घर जाकर कहा था कि ‘बचाने आएगा तो सिर्फ यीशू।’ कर्नाटक उच्च न्यायालय ने व्यक्ति पर लगे आरोप को सही ठहराते हुए उस पर से केस हटाने से किया इनकार
गत 4 जून को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक ईसाई मत प्रसारक को खरी—खरी सुनाते हुए कहा कि किसी भी दूसरे मत—पंथ का अपमान नहीं किया जा सकता। उल्लेखनीय है कि वह व्यक्ति एक महिला के घर जाकर यह बोल रहा था कि ‘कोई और बचाने नहीं आएगा, बचाएगा तो बस यीशू।’ उस महिला ने उसकी इस बात पर आपत्ति जताते हुए उस पर मामला दर्ज कर दिया। अपने खिलाफ उस रिपोर्ट को रद्द कराने के लिए उस व्यक्ति ने यह कहते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया कि उसके ऊपर दर्ज मामला संविधान अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन कर रहा है। जबकि अदालत ने सुनवाई के बाद कहा कि आरोपी व्यक्ति पर खास आरोप लगे हैं और वे ये कि उसने अन्य मत का अपमान किया है। लिहाजा अदालत उस पर दर्ज मामला हटाने से इनकार करती है। उस व्यक्ति को मामले में राहत नहीं दी गई, जिसकी उसने मांग की थी।
अपनी टिप्पणी में उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी को भी दूसरे मत-पंथों का अपमान करने का हक नहीं है। प्रीसिला डिसूजा बनाम कर्नाटक राज्य मामले में जस्टिस न्यायमूर्ति एचपी संदेश ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए आरोपित के विरुद्ध दर्ज शिकायत को रद्द करने से मना किया। मामला प्रीसिला डिसूजा बनाम कर्नाटक राज्य था। अदालत ने साफ कहा कि अगर कोई व्यक्ति किसी पंथ को मानता है तो उसे दूसरे मत-पंथों का अपमान करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं मिल जाता।
उस व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज कराने वाली उक्त महिला क कहना है कि आरोपी उसके घर आया था। उसने अन्य मत-पंथों का अपमान करते हुए कहा कि भगवद्गीता और कुरान मन को शांति नहीं देंगे। यीशू को छोड़कर कोई बचाने नहीं आने वाला। अपने खिलाफ दर्ज केस को हटाने की अपील करते हुए आरोपित अदालत पहुंचा था। अपने फैसले में अदालत ने यह भी कहा कि साफ है कि मत प्रचार करते हुए आरोपी ने खासतौर पर कहा कि अन्य धार्मिक ग्रंथ किसी तरह की उम्मीद नहीं बंधाते। केवल यीशू ही बचा सकते हैं। अदालत ने कहा, “इसमें कोई शक नहीं कि कानून की स्थापना करते समय जान-बूझकर और दुर्भावना दर्शाते ऐसे कृत्यों पर ही भारतीय दंड संहिता की धारा 295 (ए) लगाई गई है, इसलिए, यह दलील कि याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध लगाए गए आरोप भादसं की धारा 298 के हिसाब से नहीं हैं, तथा याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध कार्यवाही भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन होगी, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।”
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पूर्व तमिलनाडु में पेरंबलूर जिले के एक मुस्लिम बहुल इलाके में हिंदुओं की धार्मिक शोभा यात्राएं निकालने का विरोध किया गया था। मुस्लिम पक्ष द्वारा मामला मद्रास उच्च न्यायालय में ले जाया गया। इस्लामी कट्टरपंथियों ने हिंदू त्योहारों को ‘पाप’ ठहराया था। उस मामले में अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा था-‘सिर्फ इसलिए कि एक मजहब विशेष की इलाके में बहुलता है, इसलिए दूसरे धार्मिक समुदाय को त्योहार मनाने या इलाके की सड़कों से शोभायात्रा निकालने से नहीं रोका जा सकता। मजहबी असहिष्णुता की छूट देना एक पंथनिरपेक्ष देश की दृष्टि से अच्छा नहीं है।”
अदालत ने आगे कहा, “इस मामले में, मजहब विशेष की असहिष्णुता ऐसे त्योहारों पर आपत्ति जता रही है, जो दशकों से आयोजित हो रहे हैं। शोभायात्राओं को केवल इसलिए बंद कराने की मांग की गई क्योंकि इलाका मुस्लिम बहुल है जहां कोई भी हिंदू त्योहार मनाया नहीं जा सकता, या शोभायात्रा नहीं निकाली जा सकती।
-आलोक गोस्वामी
टिप्पणियाँ