मदरसा तालीम को सरकारी अनुदान को संविधान के विरुद्ध बताने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केरल उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से पूछे तीखे सवाल
गत 1 जून को केरल उच्च न्यायालय ने एक मामले पर सुनवाई करते हुए केरल की वामपंथी सरकार से पूछा है कि वह मदरसा शिक्षकों को पेंशन क्यों दे रही है? मदरसे तो मजहबी तालीम दे रहे हैं इसलिए केरल सरकार का एक मजहबी काम को अनुदान देना कैसे उचित है? उल्लेखनीय है कि केरल की पिनरई विजयन के नेतृत्व में चल रही कम्युनिस्ट सरकार अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों पर विशेष रूप से मेहरबान रहती आई है। अपने पिछले कार्यकाल में भी विजयन सरकार ने कई योजनाएं और नीतियां मुसलमानों के हित को ही देखते हुए बनाई थीं। बताते हैं, कोरोना महामारी के दौरान सरकार की तरफ से बांटी गई राहत में, स्कूलों में दाखिले में, सरकारी नौकरियों आदि में मुसलमानों को तरजीह दी जाती रही है। इसी तरह मदरसों में सरकारी पैसा देना और उस पैसे से पुराने मौलानाओं को पेंशन बांटना भी सरकार की मनपसंद योजना है। इस पर बार-बार सवाल खड़े किए गए हैं लेकिन सरकार ने हर आवाज अनसुनी ही की थी। अब इस पर एक याचिका का संज्ञान लेते हुए, अदालत ने उक्त सवाल सीधे सरकार से पूछे हैं। अदालत ने वामपंथी सरकार से यह भी साफ बताने को कहा कि क्या उसने केरल मदरसा शिक्षक कल्याण कोष में कैसी भी कोई मदद दी है कि नहीं?
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए. मोहम्मद मुश्ताक और न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागत की बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान लोकतंत्र, समानता, शांति व पंथनिरपेक्षता के लिए एक नागरिक संगठन के मनोज नामक सदस्य की याचिका पर फैसला सुनाते हुए सरकार से इन सवालों के जवाब मांगे हैं। याचिका में याची ने केरल मदरसा शिक्षक कल्याण कोष अधिनियम—2019 को खत्म करने की भी मांग की है। केरल सरकार ने यह मदरसों में तालीम देने वालों को पेंशन व अन्य लाभ देने के लिए पारित किया था।
मनोज की तरफ से अदालत में प्रस्तुत हुए अधिवक्ता राजेंद्रन ने न्यायालय को बताया कि उसी अधिनियम को पढ़ने पर साफ हुआ है कि राज्य में मदरसे सिर्फ कुरान और इस्लाम से जुड़ी किताबें ही पढ़ाते हैं, यानी मजहबी तालीम देते हैं, इनमें अन्य कुछ राज्यों, जैसे उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि में चल रहे मदरसों की तरह आधुनिक विषयों को नहीं पढ़ाया जाता। इसलिए मजहबी तालीम के लिए सरकार का अनुदान देना संविधान विरोधी है। यह पूरी तरह से पंथनिरपेक्षता के मूल्यों के खिलाफ है।
याचिका के संदर्भ में ही अदालत ने पिनरई विजयन सरकार से पूछा है कि वह मजहबी गतिविधि के लिए पैसा क्यों दे रही है?
-वेब डेस्क
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