स्वामी रामदेव के भगवा वस्त्र से चिढ़ने वाले और आयुर्वेद से नफरत करने वाले इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. जॉनरोज़ ऑस्टिन जयालाल पर समाज में वैमनस्य बढ़ाने के आरोप लगे हैं। इस मामले पर हुए एक मुकदमे की सुनवाई के बाद दिल्ली के द्वारका जिला न्यायालय ने जयालाल को आदेश दिया है वे लिखित मेें अपना पक्ष रखें
इन दिनों दिल्ली के द्वारका जिला न्यायालय में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ. जॉनरोज़ ऑस्टिन जयालाल के विरुद्ध दायर एक मामले की सुनवाई चल रही है। जयालाल पर आरोप है कि वे एलोपैथी चिकित्सा पद्धति का ईसाईकरण कराना चाहते हैं। इसी बात पर उनके विरुद्ध द्वारका न्यायालय में एक मामला दर्ज हुआ है। इस पर 31 मई को सुनवाई हुई थी। जयालाल के वकीलों ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए कहा था कि जयालाल के कहने का उद्देश्य चिकित्सा का ईसाईकरण करना नहीं था। लेकिन वादी रोहित झा की ओर से सुनवाई में भाग लेने वाले अधिवक्ता संजीव उनियाल एवं धवल उनियाल ने उनके तर्क का विरोध किया था। इसके बाद न्यायलय ने जयालाल को लिखित में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया था।
उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले जयालाल ने ‘हाग्गै इंटरनेशनल’ को एक साक्षात्कार दिया था।
इसमें उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि सरकार आधुनिक चिकित्सा प्रक्रिया को पश्चिमी होने के कारण समाप्त करना चाहती है। उन्होंने यह भी कहा था, ”वर्तमान भारत सरकार आयुर्वेद में आस्था रखती है, क्योंकि यह उनके पारंपरिक विश्वास हिंदुत्व से आता है।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि गत तीन-चार वर्ष में भारत सरकार ने आधुनिक चिकित्सा की जगह आयुर्वेद को स्थापित करने का प्रयत्न किया है। यह भी कहा था कि 2030 तक भारत में चिकित्सा की पढ़ाई करने वालों को साथ में आयुर्वेद, यूनानी, योग, होम्योपैथी जैसे विषय भी पढ़ने होंगे। जयालाल ने संस्कृत भाषा की भी आलोचना की थी। उन्होंने कहा था, ”आयुर्वेद, योग इत्यादि संस्कृत भाषा पर आधारित हैं, जो कि पारंपरिक रूप से हिंदू सिद्धांत पर आधारित हैं। सरकार द्वारा संस्कृत भाषा पढ़ाया जाना और इसका प्रचार करना अप्रत्यक्ष रूप से लोगों के दिमाग में हिंदुत्व की विचारधारा डालने जैसा है।”
डॉ. जयालाल ने एक कट्टर ईसाई की तरह अपने साक्षात्कार में यहां तक कहा था,”एक ईसाई डॉक्टर होने के नाते वह ऐसा मानते हैं कि सेकुलर संस्थाओं और मेडिकल कॉलेजों में और अधिक ईसाई डॉक्टर होने चाहिए।”
बता दें कि जयालाल स्वयं एक मेडिकल कॉलेज में सर्जरी के प्रोफेसर हैं, जिसे वे ईसाई उपचार को बढ़ावा देने का एक माध्यम मानते हैं। वे मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों को ईसाई उपचार सिखाना चाहते हैं।
जयालाल आयुर्वेद से बहुत घृणा करते हैं और वे एलोपैथी और ईसाई मत को ही किसी भी चिकित्सा के लिए पर्याप्त मानते हैं। आईएमए अध्यक्ष ने कोरोना वायरस के बारे में चर्चा के दौरान कहा कि “कोरोना वायरस के माध्यम से प्रकृति ने हमें दिखाया है कि हम सबसे शक्तिशाली है। इससे पहले जब लेप्रोसी और कोलेरा जैसे महामारियां आईं थीं तब ईसाई डॉक्टर और चर्च इनके विरोध में खड़े हुए थे, अब भी रोगियों की पीड़ा कम करने के लिए संस्थानों में ईसाई धर्म की प्रार्थनाओं की व्यवस्था होनी चाहिए।”
इन सबको देखते हुए ही उन पर मुकदमा किया गया है। अदालत में आज भी सुनवाई चली है, लेकिन इस समाचार के लिखने तक इसका विवरण नहीं मिला था।
-web desk
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