बिलीवर्स ईस्टर्न का संस्थापक ‘आर्चबिशप’ के.पी. योहान्नन महज दो दशक में अकूत संपदा का मालिक बन गया। अनाथ बच्चों के नाम से विदेशों से चंदा लेकर उसने इतनी दौलत और रुतबा जमा लिया है कि कुछ ईसाई नेता तक सकते हैं और उसे ‘रास्ते से भटका’ बताते हैं
क्या आप जानते हैं कि भारत में तेजी से कन्वर्जन करके ईसाईकरण की मुहिम चलाते हुए अरबपति बनने वाला स्वयंभू आर्चबिशप कौन है? वह है के.पी. योहान्नन। एशिया का सबसे अमीर ईसाईकरण में लगा ‘आर्चबिशप’। करीब 12 अरब 73 करोड़ रुपए की अकूत संपत्ति का मालिक। भारत के ईसाईकरण के लिए विदेशों से चंदा उगाही करके भारत में अलग—अलग स्थानों पर इसने संपत्ति खड़ी की है। यही वजह है कि वर्षों से आयकर विभाग की इस पर नजर थी। दान के पैसे को कन्वर्जन की गतिविधियों में लगाने के आरोपों पर भारत के गृह मंत्रालय ने बिलीवर्स ईस्टर्न चर्च को मिला एफसीआरए लाइसेंस रद्द कर दिया था।
योहान्नन की कन्वर्जन मुहिम से पर्दा हटाएं तो कई ऐसी बातें सामने आती हैं जो एक ‘आर्चबिशप’ की मंशा पर संदेह व्यक्त करती हैं। केरल के पथनमथिट्टा जिले में तिरुवल्ला नामक शहर में वर्ष 2000 में बिलीवर्स ईस्टर्न चर्च की बुनियाद डालने वाला ‘आर्चबिशप’।
योहान्नन को वेटिकन या भारत में चर्च की किसी संस्था ने ‘आर्चबिशप’ नहीं बनाया बल्कि इसने खुद ही पहले नार्थ इंडिया और चर्च आफ साउथ इंडिया से बिशप नियुक्त करके खुद को भी ‘बिशप’ की पदवी दे डाली। इसके बाद अपने नीचे 6 बिशप भी रख लिए। दिलचस्प बात यह है कि ईसाईकरण में लगे इस ‘बिशप’ के लिए विकिपीडिया में भी ‘स्वयंभू आर्चबिशप’ लिखा मिलता है। 2018 में योहान्नन ने संतई वाला नाम रख लिया—मोरान मोर एथानासियस योहान।
‘गोस्पल फार एशिया’ के नाम से ‘अनाथ बच्चों के जीवन को सुधारने’ के नाम पर विदेशों से लाखों—करोड़ों का चंदा लिया जाता था। लेकिन उस चंदे से जमीनें खरीदी गईं। बताते हैं, चंदे के पैसे चेरुवल्ली एस्टेट खरीदा गया बिलीवर्स ईस्टर्न चर्च की तरफ से जिसका स्वयंभू आर्चबिशप है योहान्नन। 2015 में ही केरल इस ‘चर्च’ द्वारा गैरकानूनी तरीके से खरीदी जमीन को वापस लेने का आदेश जारी किया था। यह आदेश लैंड कंजरवेंसी एक्ट के तहत चर्च और दूसरे संगठनों से ऐसी जमीन वापस लेने के लिए दिया गया था। 2005 में इस चर्च ने हैरिसन्स मलयालम लिमिटेड से 85 करोड़ रुपए में 2,263 एकड़ के रबर के बगान खरीदे थे। योहान्नन ने तब कहा था कि बागान तो इससे होने वाली कमाई को अनाथ बच्चों की भलाई में लगाने के लिए खरीदे गए थे, लेकिन पता ये चला के योहान्नन ने उस पर 300 करोड़ खर्च कर दिए थे। जांच में सरकार ने पाया कि हैरिसन्स ने बागान बेचने के जो दस्तावेज पेश किए थे वे फर्जी थे। बस इतना पता चलते ही केरल सरकार ने उस जमीन को वापस लेने के आदेश दे दिए। इससे पहले 2008 में हुई जांच में पता चला था कि योहान्नन को अमेरिका से 1044 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे।
चर्च के नाम पर योहान्नन की रुतबा जमाने की ऐसी हरकतों पर चर्च के नेताओं के कान खड़े होने ही थे। ईसाई समाज में भी नाराजगी पनपने लगी थी। चर्च के एक नेता का यहां तक कहना था कि ‘योहान्नन ने कुल 20 साल में इतनी संपदा जमा कर ली। किसी के लिए ऐसा करना कैसे संभव है? कोट्टायम में 2500 एकड़ से ज्यादा का तो उसके नाम रबर बागान ही है। योहान्नन ने अपने साथियों के साथ मिलकर क्रिश्चियन मिशन के नाम पर एक बड़ा कारोबार खड़ा कर लिया है। ज्यादातर चर्च भटक चुके हैं।’
इतना ही नहीं, योहान्नन का टैक्सास,अमेरिका में भी एक न्यास है—गोस्पल फार एशिया। इसी की बदौलत स्वयंभू आर्चबिशप ने ऐसी जमात बना ली है जो उसके किसी भी मामले में उलझने पर एक आड़ देकर उसे बचाने का प्रयत्न करती रही है। इसी साल जनवरी में 25 ईसाई नेता आगे आ गए उसके टैक्सास वाले न्यास की तारीफें करने के लिए। कहा कि यह न्यास पूरी ‘ईमानदारी’ और ‘निष्ठा’ से काम कर रहा है। उन्होंने 18 दक्षिण एशियाई देशों में ईसाईकरण का काम पूरी ‘ईमानदारी’ से करने के लिए योहान्नन की बढ़ाइयां कीं। एक ईसाई संस्था सरमन इंडैक्स के संस्थापक ग्रेग गॉर्डन ने कहा कि उन्होंने एशिया में योहान्नन के काम देखे हैं जो बहुत बेहतरीन तरीके से चल रहे हैं।
कहना न होगा, एशिया, विशेषकर भारत पर ईसाई मिशनरियों की कन्वर्जन गतिविधियां तेजी से जारी हैं। अलग—अलग नामों से झांसे देकर विदेशों से चंदा मंगाकर अकेत संपदा इकट्ठी की जा रही है। वर्तमान केन्द्र सरकार की सैकड़ों फर्जी संस्थाओं को बंद करने और विदेशी चंदे पर कड़ी नजर रखने से कन्वर्जन में जुटे तत्व और बौखलाए हुए हैं। आज पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पूर्वोत्तर राज्यों आदि में ईसाईकरण की मुहिम में नई तेजी दिखाई दे रही है। योहान्नन जैसे अनेक ‘मिशनरी’ इस काम में जुटे हैं।
इस चर्च ने हैरिसन्स मलयालम लिमिटेड से 85 करोड़ रुपए में 2,263 एकड़ के रबर के बगान खरीदे थे। योहान्नन ने तब कहा था कि बागान तो इससे होने वाली कमाई को अनाथ बच्चों की भलाई में लगाने के लिए खरीदे गए थे, लेकिन पता ये चला के योहान्नन ने उस पर 300 करोड़ खर्च कर दिए थे। जांच में सरकार ने पाया कि हैरिसन्स ने बागान बेचने के जो दस्तावेज पेश किए थे वे फर्जी थे।
आईटी के छापे में मिले 15 करोड़!
अभी सात महीने पहले, नवम्बर 2020 में आयकर विभाग ने तिरुवल्ला स्थित बिलीवर्स ईस्टर्न चर्च पर छापा मारा तो नोटबंदी के 4 साल बाद भी, 15 करोड़ की बेहिसाब राशि बरामद हुई थी। इसमें से 2 करोड़ के तो 500 और 1000 के वे पुराने नोट थे जो नोटबंदी में चार साल पहले बंद होकर रद्दी कागज बन चुके थे। जबकि पता यह चला कि चर्च ने पिछले एक साल से अपने कर्मचारियों को तनख्वाह नहीं दी थी। उस वक्त भी आरोप लगा था कि पिछले कुछ सालों के अंदर ही चर्च ने कन्वर्जन की गतिविधियों में 6 हजार करोड़ झोंके थे।
-आलोक गोस्वामी
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