पश्चिम बंगाल में तृणमूल के समर्थकों द्वारा की जा रही हिंसा को लेकर देश का हर विचारवान व्यक्ति चितिंत और परेशान है। हिंसा से बड़ी संख्या में महिलाएं पीड़ित हो रही हैं। इसलिए देशभर की महिलाएं भी बंगाल हिंसा को लेकर उद्वेलित हैं। महिलाओं द्वारा संचालित ‘जिया’ नामक संगठन ने इस हिंसा को लेकर चिंता व्यक्त की है और सरकार से मांग की है कि बंगाल हिंसा को रोकने के लिए जल्दी ही कुछ कड़े कदम उठाए जाएं
आज 29 मई को नई दिल्ली में ग्रुप आफ इंटलेक्चुअलस् एंड एकेडेमिसियंस यानी ‘जिया’ के एक प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जे. किशन रेड्डी को पश्चिम बंगाल की हिंसा पर आधारित एक अध्ययन रिपोर्ट सौंपी। सर्वोच्च न्यायालय की प्रसिद्ध वकील मोनिका अरोड़ा के नेतृत्व में इस दल में जिया की कुछ और कार्यकर्ता बहनें शामिल थीं। जिया ने श्री रेड्डी से मांग की कि केंद्र सरकार पश्चिम बंगाल में मारे जा रहे लोगों की रक्षा के लिए उचित कदम उठाए, क्योंकि वहां अभी भी हिंसा जारी है।
जिया ने केंद्र सरकार से यह भी मांग की कि बंगाल हिंसा की जांच के लिए एक एसआईटी का गठन किया जाए। इसके साथ ही जरूरत पड़े तो इस हिंसा की जांच एनआईए से भी कराई जाए। यह भी मांग की गई कि हिंसा के दोषियों को दंडित करने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया जाना चाहिए। श्री रेड्डी ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि इस पर जल्दी ही सरकार कुछ निर्णय लेगी।
मोनिका अरोड़ा ने बताया कि जो भी बंगाल के हिंसा पीड़ितों के लिए आवाज उठाता है, उस पर तृणमूल के लोग हमला करते हैं। इसलिए हम लोग भी हिंसा की रिपोर्ट बनाने के लिए बंगाल नहीं जा सके। हम लोगों ने संचार के अनेक माध्यमों से पीड़ितों से बात की और उन्होंने जो बताया, उसके आधार पर ‘खेला इन बंगाल—2021’ के नाम से रिपोर्ट तैयार की गई है। कुल 50 पीड़ितों से बात की गई। इनमें से 20 पीड़ितों की आपबीती को विस्तार से रिपोर्ट में बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव के दौरान जो हिंसा शुरू हुई थी, वह चुनाव परिणाम आने के दिन यानी 2 मई से और बढ़ गई है और दुर्भाग्यवश हिंसा अभी भी हो रही है। मानिका अरोड़ा ने यह भी बताया कि बंगाल के 23 जिलों में उन लोगों को चुन—चुन कर मारा जा रहा है, जिन्होंने तृणमूल कांग्रेस को वोट नहीं दिया है। जब लोग पुलिस थाने जाते हैं, तो पुलिस कहती है कि कोरोना काल चल रहा है, संक्षिप्त में जानकारी दो और उन्हें वहां से भगा दिया जाता है। इसके बाद भी कुछ लोग एफआईआर दर्ज करने की बात कहते हैं, तो पुलिस वाले ही तृणमूल के समर्थकों को बुलाकर कहते हैं, कि देखो तुम्हारे विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने की बात की जा रही है और इसके बाद तृणमूल के लोग फिर से पीड़ितों पर हमला कर देते हैं। जब पुलिस वाले ही पीड़ितों को तृणमूल के समर्थकों से पिटवाते हैं, तो फिर उनकी रक्षा कौन करेगा! इसलिए केंद्र सरकार लोगों की रक्षा के लिए अपने अधिकारों का इस्तेमाल करे।
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