उत्तरी, दक्षिणी, मध्य अमेरिका और यूरोपीय देशों पर भले ही भारतीय वाङ्मय के प्रभाव का कोई लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं हो, लेकिन वहां मिले कुछ पुरावशेषों से यह स्पष्ट होता है कि इन देशों पर भी भारतीय संस्कृति का प्रभाव था
भारतीय वैदिक देवताओं के समान ही उत्तरी, दक्षिणी और मध्य अमेरिकी समुदायों में भी सूर्य, चन्द्र्र, अग्नि, नाग, जल, वर्षा, पवन तथा चिकित्सा आदि की अधिष्ठाता देवी-देवताओं का चलन रहा है। यूरोपीय अप्रवासियों द्वारा स्थानीय पूजा परंपराओं को प्रतिबंधित करने के पूर्व वहां विविध, विस्तृत एवं अनगिनत आध्यात्मिक अनुष्ठानों का व्यापक चलन रहा है। उनकी कष्टसाध्य उपासनाओं तथा प्राचीन साहित्य पर 150-200 वर्षों तक लगाए गए कठोर प्रतिबंधों के उपरान्त भी आज कई प्राचीन परंपराएं एवं उनके प्राचीन पुरावशेष विद्यमान हैं। विगत 6-7 दशकों में यूरोपीय शासकों द्वारा इन प्रतिबंधों को शिथिल किए जाने के बाद ये परंपराएं न्यूनाधिक मात्रा में पुनर्जीवित हो रही हैं। इन पर भारतीय वाङ्मय के प्रभाव के कोई लिखित प्रमाण नहीं होने पर भी कुछ प्राचीन पुरावशेष भारतीय संस्कृति से प्रभावित व जुड़े हुए हैं।
पेरू के 5000 वर्ष प्राचीन हवन कुंड
दक्षिणी अमेरिकी देश पेरू में पुरातत्वविदों ने लीमा के पास स्थित प्रसिद्ध ‘एल पराइसो’ में एक मंदिर व 5000 वर्ष प्राचीन हवन कुंड का पता लगाया है। इस प्राचीन मंदिर की पीली मिट्टी लगी दीवारें और भगवा लाल पेंट भारतीय प्रतीक है और वह एक प्राचीन अग्नि मन्दिर हिन्दू यज्ञशाला जैसा है, जिसका इसका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों में होता था।
यह हवन कुंड व मन्दिर मुख्य ‘एल पराइसो’ पिरामिड के पश्चिमी विंग के भीतर स्थित है। विश्व के पिरामिडों की भारत के कैलाश पर्वत के पिरामिड से सम्बद्धता का विवेचन पूर्व में किया जा चुका है। अमेरिकी पुरातत्वविदों के अनुसार इस ‘हवन कुंड’ का उपयोग आनुष्ठानिक प्रसाद को जलाने के लिए होता था। शोधकर्ता टीम के प्रमुख मार्को गुलेन के अनुसार अग्नि में हवन, देवताओं से संबंध स्थापित करने का प्रतीक था।
ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक अनुसन्धानों में भी ये संरचनाएं हवन कुंड ही सिद्ध हुई हैं। वहां स्थानीय लोग र्इंटों के इन वर्गाकार कुंडों में मन्त्रोच्चारपूर्वक आहुतियां देते थे। हवन कुंडों की सीढ़ीनुमा तीन मेखलाओं की तरह पेरू के इन हवन कुंडों में भी तीन मेखलाएं हैं।
‘हवन कुंड’ युक्त पेरू के इस अग्नि मन्दिर में सामूहिक हवन हेतु यज्ञशाला जैसा बड़ा मन्दिर भी है। इसमें पुरोहितों या पंडितों अर्थात पुजारियों के लिए मन्त्रोच्चार हेतु एक साथ बैठने का स्थान भी है। पुरातत्वविदों के अनुसार यह स्थल अमेरिका के सबसे पुराने पूर्व-कोलंबियाई पुरातात्विक स्थल काराल जितना प्राचीन है, जो 2,600-2,100 ईसा पूर्व के बीच बसा था। काराल यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल है।
इसका प्रवेश द्वार 48 सेंटीमीटर (19-इंच) चौड़ा है जो एक कक्ष की ओर ले जाता है। यह कक्ष आठ मीटर गुणा छह मीटर (26 फीट गुणा 20 फीट) है। वहां प्रसाद रूप में शंख, अनाज, फूल और फल आदि मिलें हैं। मंदिर के चार स्तरों में प्रत्येक एक-दूसरे से पुराना है। ऐसी मान्यता है कि हवन की अग्नि भौतिक घटकों और अग्नि में अर्पित प्रसाद को देवताओं तक श्रद्धांजलि के रूप में पहुंचाती है। इस पुरातात्विक खोज से लगता है कि भारतीय वैदिक परम्परानुसार वहां भी अग्नि में आहुति की भेंट की परंपरा प्रचलित थी।
होंडुरास में हनुमान व मकरध्वज की प्रतिमाएं
मध्य अमेरिकी देश होंडुरास के उजड़ चुके एक अत्यन्त प्राचीन नगर में राम भक्त हनुमान जी का मन्दिर है। यहां हनुमान घुटनों पर बैठे हुए हैं और उनके हाथ में गदा है। गदा रहित प्रतिमाएं भी प्राप्त हुई हैं जो वानर वीर मकरध्वज की प्रतीत होती हैं। इतिहासकारों के अनुसार इस प्राचीन नगर सियुदाद ब्लांका के लोग एक विशालकाय वानर देवता की पूजा करते थे। रामायण के अनुसार जब मायावी अहिरावण ने भगवान श्रीराम और लक्ष्मण का अपहरण कर लिया था, तब हनुमान जी अहिरावण की पातालपुरी के वानर सेनाध्यक्ष मकरध्वज को परास्त कर अहिरावण का वध करके भगवान श्रीराम व लक्ष्मण को मुक्त कराया था। बाद में मकरध्वज को भगवान श्रीराम ने पातालपुरी का राजा बनवा दिया था। तब से ही सम्भवत: हनुमान जी व मकरध्वज को यहां के लोग पूजने लगे थे।
नेशनल जियोग्राफिक के अनुसार, कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर क्रिस्टोफर फिशर के नेतृत्व में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने भूगर्भ में 3-डी मैपिंग की ‘लीडर’ तकनीक से होंडुरास के इस प्राचीन रहस्यमय शहर सियुदाद ब्लांका का पता लगाया।
अमेरिकी खोजकर्ता थियोडोर मोर्डे ने 1940 में बतलाया था कि इस प्राचीन शहर के लोग एक वानर देवता की पूजा करते थे। लेकिन लेख में उस स्थान का उल्लेख नहीं था। इसके सत्तर वर्ष बाद लाइडार तकनीक (लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग तकनीक) से होंडुरास के घने जंगलों में मस्कीटिया क्षेत्र में यह प्राचीन शहर मिला। अमेरिका के ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी और नेशनल सेंटर फॉर एयरबोर्न लेजर मैपिंग ने होंडुरास के जंगलों के ऊपर आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों से इस प्राचीन शहर को खोजा है। वहां और भी प्रचुर पुरावशेष हैं, जिनमें वानर देवता की कई मूर्तियां हैं। देखें चित्र 2-4। हनुमान जी की गदा सदृश एक कलाकृति भी मिली है। देखें- चित्र 5। होंडुरास के पड़ोसी देश ग्वाटेमाला में भी हनुमान जी की दो विशाल प्रतिमाएं मिली हैं। प्राचीन अमेरिकी माया सभ्यता में इन वानर देव का प्रचलित नाम हॉल्वेर और ग्वाटेमाला में विल्क हुवेमान है। माया सभ्यता में ‘हॉल्वेर’ को वायु देव मानते हैं। भारत में भी पवनपुत्र ही माने गये हैं।
पर्यावरण सजगतावश होंडुरास के जंगलों में पुरातात्विक खुदाई निषिद्ध है। तथापि बजरंगबली जैसी वानर देवता की भी कुछ मूर्तियों से पुष्टि होती है कि यह शहर रामायणकालीन अहिरावण की राजधानी था। होंडुरास व श्रीलंका भूमध्य रेखा से लगभग समान दूरी पर क्रमश: 8 डिग्री और 14.7 डिग्री अक्षांश पर यानी क्रमश: 700 व 1600 कि.मी. दूरी पर है। श्रीलंका से पश्चिम की ओर लगभग सीधी रेखा में आगे बढ़ने से होंडुरास आता है।
=प्रो. भगवती प्रकाश
(लेखक गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा के कुलपति हैं)
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