चीन को छोड़कर दुनिया के हर देश में आज वैज्ञानिक आधार पर ऐसी चर्चाएं चल रही हैं कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति बहुत हद तक वुहान की प्रयोगशाला में हुई है। अमेरिका के एनआईएच की एक रपट इस बात के प्रमाण रखती है जो इस संभावना को बल देते हैं
अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ ने हाल में एक आलेख प्रकाशित करके चीन की असलियत छुपाने वालों को धता बताते हुए कहा है कि सार्स—कोरोना वायरस2 की जेनेटिक बनावट उन शंकाओं को खत्म नहीं करती कि ये वायरस प्रयोगशाला में जन्माया गया है। इस वायरस की चिमेरिक बनावट और फ्यूरिन क्लिअवेज साइट जेनेटिक छेड़छाड़ का नतीजा हो सकती है। इंस्टीट्यूट की नतीजों पर आधारित रपट में ये खुलासा किया गया है। इस आलेख को लिखने वाले रोसन्ना सेगेरेतो और यूरी दीगेन का कहना है कि ‘इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वायरस में जेनेटिक छेड़छाड़ की गई हो।’ और चीन की प्रयोगशाला में हुई कथित जेनेटिक छेड़छाड़ का उद्देश्य वही लगता है जिसकी आज देशी—विदेशी मंचों पर जोर—शोर से चर्चा है—जैविक हथियार!
लेखकों का कहना है कि उनके अध्ययन के आधार पर सार्स—कोरोना वायरस2 को अप्राकृतिक रूप से पैदा करने का अंदेशा आधारहीन नहीं है। कोरोना की वैक्सीन और दवाओं के अनुसंधान के दौरान बनावट और क्लिअवेज की जांच ऐसे संदेह को पुख्ता करती है। ‘नेचर’ पत्रिका में हाल के एक आलेख की मानें तो शोधकर्ताओं को गलती से संक्रमण लगा हो जो इसकी सार्स—कोरोना वायरस2 की क्रियाओं को और बढ़ाने के प्रयोग वुहान के संस्थान में किए गए हों। सिंथेटिक जेनेटिक्स पर आधारित आधुनिक तकनीकें वायरसों को उनके जीनोमिक क्रम के आधार पर नया रूप दे सकती हैं।
तो अब इस मुद्दे की तह में जाने के लिए करना क्या होगा? करना ये होगा कि कोरोना महामारी के फैलन से पहले कोराना वायरस के अनुसंधान से जुड़ीं तमाम प्रयोगशालाओं के शोध रिकार्ड और नमूनों की समग्र जांच करनी होगी। यह काम जरा टेढ़ा है क्योंकि वुहान इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी ने जब डब्ल्यूएचओ की टीम को ही अंदर आने देने में हजार रोढ़े अटकाए थे तो किसी स्वतंत्र जांच में वह मददगार बनेगा ही नहीं।
बताया जाता है कि 2019 में इस महामारी से अपने तीन वैज्ञानिकों के संक्रमित होने पर इंस्टीट्यूट ने गुपचुप चिकित्सकीय परामर्श किया था। उस खबर को दबाए रखा था। अमेरिकी विदेश विभाग की एक रपट में था कि नवम्बर 2019 में वुहान प्रयोगशाला में कई शोधकर्ता बीमार पड़े थे। यहां तक कि जिस डाक्टर ली वेनलिआंग ने दिसम्बर 2019 में अपने 30 साथियों को इस वायरस से सावधान करने की जुर्रत की थी वह फरवरी 2020 के पहले हफ्ते में ही वुहान सेंट्ल हास्पीटल में मृत घोषित कर दिया गया था। पुलिस ने दिसम्बर 2020 में उसे ‘झूठी बातें फैलाने से बाज आने को था’। ली की मौत से चीन की बर्बरता पर भी सवाल उठे थे और शंका जताई गई थी कि वह मरा नहीं, बल्कि मारा गया है।
उधर 23 मई को अमेरिका के फॉक्स न्यूज चैनल को दिए साक्षात्कार में निकोलस वेड ने चीन के दुष्प्रचार को हवा देने वाले मुख्यधारा मीडिया को लताड़ लगाते हुए एक बार फिर कोरोना वायरस के शायद वुहान प्रयोगशाला से प्रसारित होने का फिर से अंदेशा जताया है। वेड ने कहा कि चीन का समर्थन करने वाला मीडिया राजनीतिक चश्मे से चीजों को देख रहा है। उल्लेखनीय है कि निकोलस वेड न्यूयार्क टाइम्स में विज्ञान संपादक रह चुके हैं। वेड ही नहीं दुनिया भर में बड़ी संख्या में वैज्ञानिकों की यह धारणा पुख्ता होती जा रही है कि कोरोना वायरस प्रयोगशाला में ही विकसित किया गया है।
वेड का मानना है कि जांचों के नतीजों और सबूतों से इस बात की संभावना बहुत ज्यादा है कि वायरस प्रयोगशाला से ही निकला है। वे मानते हैं कि इसे साबित करने की प्रक्रिया बहुत जटिल है, लेकिन मीडिया अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहा है। वेड का इशारा शायद धुर वामपंथी माने जाने वाले सीएनएन, न्यूयार्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट की तरफ था जिनकी महामारी के दौरान रिपोर्टिंग में वायरस के वुहान प्रयोगशाला में पैदा होने की संभावना को हमेशा नकारा जाता रहा है। इसके साथ ही, मीडिया के चीन के प्रति नरम होने के पीछे चीन के दुष्प्रचार तंत्र का मीडिया घरानों पर मोटा पैसा खर्च करने की खबरों को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। सिर्फ अमेेरिका ही नहीं, चीन ने प्रभाव रखने वाले तमाम देशों के प्रमुख पत्रकारों, मीडिया संस्थानों पर काफी पैसा खर्च किया है। भारत के सेकुलर पत्रकार भी जिस तरह से सोशल मीडिया पर चीन का बचाव करते हैं, उसकी वैक्सीन का प्रखर करते हैं, उसकी ‘दरियादिली’ के गुणगान गाते हैं, उससे यह संदेह और गहराता ही है।
नवम्बर 2019 में वुहान प्रयोगशाला में कई शोधकर्ता बीमार पड़े थे। यहां तक कि जिस डाक्टर ली वेनलिआंग ने दिसम्बर 2019 में अपने 30 साथियों को इस वायरस से सावधान करने की जुर्रत की थी वह फरवरी 2020 के पहले हफ्ते में ही वुहान सेंट्ल हास्पीटल में मृत घोषित कर दिया गया था। पुलिस ने दिसम्बर 2020 में उसे ‘झूठी बातें फैलाने से बाज आने को था’। ली की मौत से चीन की बर्बरता पर भी सवाल उठे थे और शंका जताई गई थी कि वह मरा नहीं, बल्कि मारा गया है।
कोरोना वायरस के शायद वुहान प्रयोगशाला से प्रसारित होने का अंदेशा है। चीन का समर्थन करने वाला मीडिया राजनीतिक चश्मे से चीजों को देख रहा है। जांचों के नतीजों और सबूतों से इस बात की संभावना बहुत ज्यादा है कि वायरस प्रयोगशाला से ही निकला है। इसे साबित करने की प्रक्रिया बहुत जटिल है, लेकिन मीडिया अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहा है।
-आलोक गोस्वामी
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