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होम मत अभिमत

एकजुटता ही बचाएगी संतति और संस्कृति

by WEB DESK
May 26, 2021, 10:37 am IST
in मत अभिमत, पश्चिम बंगाल
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सनातनधर्मियों की उदारता का लाभ उठाकर ही भारतवर्ष पर पहले मुसलमानों ने 800 वर्ष तक और फिर अंग्रेजों ने लगभग 200 वर्ष तक राज किया। आज भी इन्हीं सांप्रदायिक तत्वों के बल पर सेकुलर राजनीतिक दल सत्ता पर काबिज हो रहे हैं और हिंदुओं को प्रताड़ित कर रहे हैं। इसलिए हिंदुओं को भी अपनी संतति और संस्कृति की रक्षा के लिए एकजुट होना ही होगा

इन दिनों पश्चिम बंगाल के लगभग 1,00,000 हिंदू परिवार अपनी जान बचाने के लिए शरणार्थी जीवन जी रहे हैं। इनकी गलती केवल इतनी है कि इन्होंने सत्तारूढ़ टीएमसी को वोट नहीं दिया और इसलिए टीएमसी के गुंडे इन पर हमले कर रहे हैं। यही नहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इन शरणार्थियों को फर्जी बताते हुए कहती हैं, ‘‘राज्य में सब कुछ ठीक है। कहीं कोई हिंसा नहीं हो रही है।’’

एक मुख्यमंत्री ही अपने राज्य में होने वाली हिंसा को फर्जी करार दे तो इसके पीछे के कारणों को जानना बहुत जरूरी है। सबसे बड़ा कारण है वोट बैंक। जिस वोट बैंक के कारण वह तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी हैं, उसे वह किसी भी सूरत में नाराज नहीं करना चाहती हैं।

उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल के 27 प्रतिशत मुस्लिम आबादी के बल पर ही ममता बनर्जी फिर से सत्ता पर आई हैं। इसके बाद भारत के लोगों को यह सोचना चाहिए कि वोट बैंक की राजनीति देश के लिए कितना खतरनाक है। अक्सर देखा गया है कि देश के विभिन्न राज्यों में मुस्लिम वोट बैंक के आधार पर ही राजनीतिक दल सत्ता पर कब्जा कर लेते हैं और बाद में बहुसंख्यक हिंदू आबादी देखती रह जाती है! इसके बाद सत्ताधारी दल अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए उन्हें तरह-तरह के लाभ और सुख-सुविधाएं देते हैं, जिन्हें बहुसंख्यक हिंदू चुपचाप देखते रहने के लिए विवश होते हैं। इसका मुख्य कारण है भारतवर्ष में बहुसंख्यक समुदाय का कोई निश्चित मार्ग या धार्मिक नियम या कोई ऐसी पुस्तक नहीं है, जिसे हर सनातनधर्मी एक स्वर में मानता हो। इस स्थिति का इतिहास बहुत पुराना है! मानवता की उत्पत्ति के समय विश्व में न कोई संप्रदाय था और न ही कोई मत-मजहब। धीरे-धीरे मनुष्य ने एक विवेकशील प्राणी के रूप में सोचते हुए समस्त मानवता के कल्याण के उद्देश्य से कुछ नियम और सिद्धांत तय किए, जिन्हें भारतवर्ष में ‘सनातन धर्म’ नाम दिया गया। सनातन धर्म का तात्पर्य है, जो सार्वभौम होने के साथ-साथ सर्व व्याप्त है तथा विश्व के हर मानव के लिए कल्याणकारी है। इसके साथ-साथ इसमें ऐसा कोई बंधन नहीं है जिनके द्वारा किसी मनुष्य को एक संप्रदाय में कुछ नियत कर्म ही करने ही होंगे। इस कारण भारत के हर हिस्से में सनातन धर्म के अनुयायी अलग-अलग इष्ट देवों की पूजा करते हैं तथा अलग-अलग रीति-रिवाज को अपनाते हैं, जबकि इस्लाम में पूरे विश्व में एक ही नियम-कानून है और एक ही उनका इष्ट देव है। जिस समय विश्व में कोई धार्मिक पुस्तक नहीं थी, न कोई ऐसा ज्ञान का स्रोत था जिसके आधार पर कुछ तय किया जा सकता, उस समय आदिकाल में भारतवर्ष के ऋषि-मुनियों ने अपनी तपस्याओं के द्वारा मानवता के कल्याण और आध्यात्मिक उन्नति के लिए वेदों का निर्माण किया। इनमें संसार के हर तरह के कार्यकलाप का वर्णन किया गया है और उन्हें करने की विधि भी बताई गई है। इस प्रकार विश्व में वेद ही सबसे पुराने ग्रंथ हैं, जिन्हें विश्व के हर भाग में श्रद्धा और मान्यता प्राप्त है। इसलिए भारतवर्ष को विश्व गुरु की उपाधि पूरे विश्व में बहुत समय पहले दे दी गई थी। बाद में वेदों के आधार पर तरह-तरह के आध्यात्मिक और जीवन के अन्य क्षेत्रों के लिए ग्रंथों का निर्माण किया गया जैसे पुराण, उपनिषद इत्यादि। इसलिए भारत में जीवनशैली को नियंत्रित करने वाली परंपराओं और नियमों को सनातन धर्म का नाम दिया गया।

इसका तात्पर्य है न इसका कोई आदि है और न ही इसका कोई अंत है। यह व्यापक है और संसार की पूरी मानवता के कल्याण के लिए है। इसलिए सनातन धर्म के ग्रंथों में कहीं पर भी हिंदू या अन्य सांप्रदायिक सूचक शब्द नहीं है, जबकि अन्य संप्रदायों में हर कदम पर संप्रदाय का नाम लिया गया है जिससे उस संप्रदाय को मानने वाले हर समय अपने आपको उसका हिस्सा महसूस करते रहें। हिंदू शब्द का प्रयोग सनातन धर्म के लिए कुछ इतिहासकारों ने किया जो बाद में प्रसिद्ध हो गया, अन्यथा इसके मानने वालों का धर्म सनातन ही है। इसके बाद विश्व के खासकर मध्य एशिया में नई-नई विचारधाराओं ने जन्म लेना शुरू किया और पहली शताब्दी में ईसाई मत और सातवीं शताब्दी में मक्का में इस्लाम मजहब की उत्पत्ति हुई। इस्लाम की उत्पत्ति के फौरन बाद इसके प्रचार-प्रसार के प्रयास बलपूर्वक शुरू हुए और इसी के तहत मध्य-एशिया के हमलावरों ने सातवीं शताब्दी से भारतवर्ष के सीमावर्ती क्षेत्रों जैसे अफगानिस्तान इत्यादि में इस्लाम का प्रचार-प्रसार शुरू कर दिया और बलपूर्वक भारतवर्ष में इस्लाम अपने पैर पसारने लगा। इस्लाम एक संप्रदाय है, जिसमें पूरे संप्रदाय के कार्यकलापों को उसकी मजहबी पुस्तक के अनुसार नियंत्रित किया जाता है और जीवन के हर क्षेत्र में उन्हें इसके नियम-कानूनों के अनुसार ही जीवन-यापन करना होता है। इस प्रकार इस्लाम के सभी अनुयायी एक डोर से बंधे हुए हैं। इसलिए आवश्यकता पड़ने पर ये लोग शीघ्र एकत्रित होकर शक्ति प्रदर्शन करते हैं। इसी के कारण छोटे-छोटे समूहों में आकर इस्लाम के अनुयायियों ने 10 वीं शताब्दी में भारत की राजधानी दिल्ली पर कब्जा कर लिया और अपनी कट्टर और सख्त प्रणाली द्वारा विवेकशील और व्यापक मानसिकता वाले भारतीयों की सोच का फायदा उठाते हुए देश में चारों तरफ अपने साम्राज्य को बढ़ाया। इसके बाद भारतीयों की उदारवादी सोच का फायदा उठाते हुए पूरे 800 साल तक भारतवर्ष पर राज किया। फिर 17वीं शताब्दी में ईसाई मत को मानने वालों ने पश्चिमी देशों से इतनी दूर आकर इस्लाम की तरह ही संगठित रहकर पूरे भारत पर अपना कब्जा कर लिया।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि सांप्रदायिक संगठन के द्वारा विदेशियों ने आकर भारत पर पूरे 1,000 साल तक शासन किया और बहुसंख्यक हिंदू इसको निराशा की स्थिति में सहते रहे। इसलिए यह कहना जरूरी लगता है कि मनुष्य के लिए सांप्रदायिक जुड़ाव बहुत जरूरी है। इसके द्वारा वह अपने समुदाय से जुड़ कर अपने विश्वास और स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है। इस्लाम और ईसाई समुदाय दोनों में नियत पांथिक ग्रंथ और दिशानिर्देश होने के कारण दोनों के अनुयायी संगठित हो पाए और सत्ता पर कब्जा किया। इस प्रकार देखा जा सकता है कि समाज को बांधने और नियंत्रित करने के लिए एक निश्चित मार्ग और दिशानिर्देशों की आवश्यकता होती है जो भारत के सनातन धर्म में नहीं है। सनातनधर्मियों की देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग मान्यताएं और विश्वास हैं। इस कारण इसको मानने वालों के विचार कभी भी एक जैसे नहीं हो सकते हैं। इसी का परिणाम है कि देश के ज्यादातर भागों में अल्पसंख्यक कहे जाने वाले मुस्लिमों द्वारा द्वारा सत्ता का निर्णय होता है। पिछले 50 साल से देश के हिंदू-बहुल कहे जाने वाले राज्यों में अक्सर ऐसे राजनीतिक दलों का शासन रहा, जिन्होंने मुसलमानों को अपने पक्ष में रखते हुए सत्ता पर पकड़ हासिल की। उत्तर प्रदेश, बिहार पश्चिम बंगाल आदि ऐसे ही राज्य हैं, जहां बरसों तक वोट बैंक के कारण सरकारें बनी हैं और अभी भी बन रही हैं। दक्षिण के राज्यों में भी आजकल मुसलमानों द्वारा ही सत्ता का निर्धारण हो रहा है।

इसलिए अब समय आ गया है कि सनातनधर्मियों के लिए भी कुछ निश्चित नियम-कानून तय होने चाहिएं, ताकि इनके द्वारा सनातन समाज को एक किया जा सके। अब समय आ गया है कि जीवन की वास्तविकता को देखते हुए देश के भाग्य का निर्धारण करने वाली सत्ता की चालों को समझा जाए और उसके दुष्परिणामों को रोकने के लिए कदम उठाए जाएं! इस समय भारत के हर भाग में सनातन धर्म की अपनी सुविधा के अनुसार व्याख्या की गई है और पूजा-पद्धति अपनाई गई है! इस कारण सनातन समाज बिखरा हुआ है। इसे एकजुट करने के लिए राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ लगभग 95 वर्ष से लगा है, लेकिन इसके विरोधी इस पर तरह-तरह की संकीर्णता और सांप्रदायिकता का आरोप लगाकर इसे बदनाम करते रहे हैं। देश पर लंबे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी ने अपने वोट बैंक की मजबूती के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बदनाम करने की अनेक साजिशें रची हैं और यह काम अभी भी चल रहा है।

पश्चिम बंगाल में टीएमसी की जीत केवल राजनीतिक विचारधारा के कारण नहीं हुई है। इसमें सांप्रदायिक तत्वों का पूरा सहयोग है। सेकुलर राजनीतिक दलों को देश से कोई मतलब नहीं रह गया है, उन्हें तो किसी भी प्रकार से सत्ता चाहिए। अक्सर इस प्रकार के ध्रुवीकरण का परिणाम देश का विघटन होता है और खासकर यदि यह ध्रुवीकरण सीमावर्ती राज्य में हुआ है तो इस ध्रुवीकरण का फायदा देश के दुश्मन उठा सकते हैं। जैसा कि 80 के दशक में पंजाब तथा बाद में जम्मू-कश्मीर में देखने में आया था। समय रहते स्थिति को संभाल लिया गया, अन्यथा आज भारत का पंजाब खालिस्तान के रूप में पाकिस्तान के साथ खड़ा होता।

इस समय पूरे दक्षिण एशिया में चीन सत्ता संघर्ष में लगा हुआ है। अभी कुछ दिन पहले श्रीलंका में वहां के बंदरगाह पर चीन का नियंत्रण कराने के लिए एक विधेयक वहां की संसद में प्रस्तुत किया गया है। हालांकि इसके विरुद्ध में वहां के ज्यादातर राजनीतिक दल हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि चीन इस समय किसी न किसी बहाने अनेक देशों में घुसकर वहां की सत्ता पर कब्जा कर रहा है। इसकी शुरुआत उसने साझा आर्थिक गलियारे के रूप में पाकिस्तान में कर दी है। चीन किसी बहाने पश्चिम बंगाल में भी घुसपैठ की कोशिश कर सकता है।
सलिए राष्ट्रवादी शक्तियों को अपने सांप्रदायिक संकीर्ण विचारों से ऊपर उठ कर राष्ट्रवादी सोच के द्वारा जनता में जागृति लानी चाहिए और इस प्रकार 10वीं शताब्दी के इतिहास को दोहराने का मौका नहीं देना चाहिए।

-कर्नल (सेनि) शिवदान सिंह
(लेखक रक्षा विशेषज्ञ हैं)

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