झारखंड सरकार ने कोरोना से मरने वालों को नि:शुल्क कफन देने का निर्णय लिया है। लोग कह रहे हैं कि यदि सरकार ने स्वास्थ्य सुविधाओं पर ध्यान दिया होता तो आज उसे लोगों को नि:शुल्क कफन देने की बात नहीं करनी पड़ती। विपक्षी दल भाजपा ने इस निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक बताया है झारखंड सरकार अपने प्रदेश की जनता के लिए कितनी संवेदनशील है इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सरकार की अति महत्वपूर्ण बैठक में प्रदेश की जनता के लिए नि:शुल्क कफन योजना बनाई जाती है। लोग व्यंग्यात्मक लहजे में कह रहे हैं कि जिस राज्य में लोग इलाज के अभाव में मर रहे हों, वहां पर कफन तो कम से कम नि:शुल्क बांटा ही जा सकता है। उल्लेखनीय है कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में 25 मई को संपन्न कैबिनेट मंत्रियों की महत्वपूर्ण बैठक में पारित प्रस्तावों में एक प्रस्ताव नि:शुल्क कफन योजना भी है। इसकी घोषणा मुख्यमंत्री ने स्वयं एक वीडियो संदेश के माध्यम से की है। मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि यह बहुत ही शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है। सोशल मीडिया पर भी विपक्ष के नेताओं और राज्य की जनता ने मुख्यमंत्री के इस फैसले का विरोध किया है। कई लोगों ने कहा कि झारखंड में नि:शुल्क कफन पाने के लिए लोगों को मरना पड़ेगा और इसका श्रेय खुद मुख्यमंत्री को लेना चाहिए। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता कुणाल षाडंगी ने बयान जारी कर झारखंड सरकार पर ज़ोरदार हमला बोला है। कुणाल षाडंगी ने इस विषय पर शायराना अंदाज़ में हेमंत सरकार पर तंज कसते हुए कहा है, "हुज़ूर ने ना दवा और न दुआओं के काबिल समझा, गुस्ताखी इतनी थी कि कफ़न ही मुनासिब समझा।" इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि इतिहास में शायद यह पहला मौका होगा जब किसी सरकार की प्राथमिकता जन स्वास्थ्य न होकर के मृत्यु और कफ़न तक सीमित रह गई है। झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने हेमंत सोरेन को ट्वीट करते हुए कहा कि झारखंड में कफ़न मुफ़्त बाँटने वाला आपका वक्तव्य जनमानस के लिए पीड़ादायक और हैरान करने वाला है। अगर आपने कफ़न बाँटने के बदले सिर्फ़ राजधानी के प्रमुख निजी अस्पतालों मेदांता, मेडिका, आर्किड, पल्स, रामप्यारी, सैमफोर्ड के अलावा राज्य के दूसरे अस्पतालों कम से कम पाँच-पाँच निर्धन/गरीब/दलित/वनवासियों का भी मुफ़्त इलाज करा दिया होता तो 100—200 की जान तो बच ही जाती। खैर, इस निर्णय पर राज्य सरकार अमल कैसे करती है, यह तो वही बताएगी। लेकिन एक बात हर झारखंडी के मन में घूम रही है कि क्या झारखंड में इतनी गरीबी है कि कोई मर जाए तो उसके परिजन उसके लिए एक कफन भी खरीद न सके! —रितेश कश्यप
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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