पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद भड़की हिंसा पर सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। हिंसा के कारण राज्य से लोगों का पलायन रोकने की मांग करने वाली याचिका पर शीर्ष अदालत ने यह नोटिस जारी किया है। याचिका में ‘‘राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित’’ हिंसा के कारण लोगों का पलायन रोकने के लिए निर्देश देने और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की गई है। इस याचिका में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग को भी प्रतिवादी बनाया गया है।
न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र और राज्य सरकार से 7 जून तक जवाब दाखिल करने को कहा है। साथ ही, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई जून के दूसरे सप्ताह में होगी। अरुण मुखर्जी सहित पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं ने यह जनहित याचिका दाखिल की है, जिसमें दो अधिवक्ता हैं। इस याचिका में राज्य में राजनीतिक हिंसा, लक्षित हत्या, बलात्कार जैसी घटनाओं की जांच के लिए एक विशेष जांच दल का गठन करने की मांग की गई है। साथ ही, विस्थापितों के लिए भोजन, शिविर, दवाएं आदि की तत्काल व्यवस्था कराने की मांग भी की गई है।
क्या है याचिका में
याचिका में कहा गया है कि चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल में हिंसा और डर के कारण लोग समूह में पलायन कर रहे हैं या विस्थापित हो रहे हैं। पलायन करने वाले लोग राज्य में और राज्य के बाहर बने आश्रय गृहों या शिविरों में रहने को विवश है। पुलिस और ‘राज्य प्रायोजित गुंडों’ की मिलीभगत के कारण मामलों की जांच नहीं हो रही है। याचिका में एक लाख से अधिक लोगों के पलायन करने की बात कही गई है। याचिका में कहा गया है कि यह लोगों के अस्तित्व का मामला है। उन्हें दयनीय परिस्थितियों में रहने के लिए विवश किया जा रहा है, जो स्पष्ट रूप से संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत नागरिकों को मिले मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद-355 के तहत अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए राज्य को आंतरिक अशांति से बचाना चाहिए।
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