कुछ किसान दिल्ली के आसपास छह महीने से धरने पर बैठे हैं। इनकी एक ही रट है कि भारत सरकार अपने तीनों नए कृषि कानूनों को वापस ले। दूसरी ओर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्यों से ही अनेक ऐसी खबरें आ रही हैं, जो बताती हैं कि नए कृषि कानूनों के कारण किसानों को अच्छा लाभ मिलने लगा है। कई किसानों ने पाञ्चजन्य को बताया कि नए कृषि कानूनों ने उनकी राहें आसान कर दी हैं
नए कृषि कानूनों का विरोध करने में सबसे आगे हैं पंजाब के किसान। इन किसानों का कहना है कि नए कृषि कानूनों से उनका जीवन तबाह हो जाएगा। इसलिए वे लोग इन कानूनों को खत्म करवाने के लिए छह महीने से धरना दे रहे हैं। वहीं दूसरी ओर पंजाब के ही फाजिल्का जिले के गांव तिलनवाली के किसान विकास दीप नए कृषि कानूनों को अच्छा मानते हैं। वे कहते हैं, ‘‘इस बार हमारे इलाके में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने सीधे किसानों से गेहूं और धान की खरीद की है। इस कारण एक हफ्ते के अंदर सारा पैसा खाते में जमा हो गया। कहीं कोई दिक्कत नहीं हुई। इससे पहले आढ़तियों के जरिए खरीद होती थी और पैसा मिलने में भी कई-कई महीने का वक्त लगता था। इस लिहाज से नए कृषि कानून अच्छे हैं।’’ हालांकि विकास इस बात पर भी जोर देते हैं कि यदि एमएसपी की गांरटी हो और जो सरकारी एजेंसियां माल खरीदती हैं, वे एक साथ किसान के घर से माल ले जाएं, ऐसी शर्तें जोड़ दी जाएं, तो ये कानून और अच्छे हो जाएंगे।
उल्लेखनीय है कि फसल काटने के बाद उसे रखने के लिए किसानों के पास जगह नहीं होती है और कई एजेंसियां माल खरीदकर जल्दी ले नहीं जाती हैं। इस कारण किसानों को असुविधा होती है। विकास केवल इसी बात पर चितिंत हैं, बाकी वे कृषि कानूनों को शानदार मानते हैं।
इन सबके बीच एक सुखद खबर यह भी आ रही है कि नए कृषि कानूनों के कारण कई किसान अच्छी कमाई करने लगे हैं। उल्लेखनीय है कि तीन कृषि कानूनों में से एक कानून किसानों को खुले बाजार में अपनी उपज बेचने की आजादी देता है। पहले किसान अपनी फसल मंडी में बैठे आढ़तियों को ही बेच सकते थे। नए कानून ने किसानों को अपनी मर्जी से कहीं भी अपनी फसल बेचने का अधिकार दिया है। इसमें आढ़ती के साथ-साथ अन्य लोग भी खरीददार हो सकते हैं। इस अधिकार का जिन किसानों ने उपयोग करना शुरू किया है, उन्हें बाजार में फसल की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से भी अधिक मिलने लगी है।
बता दें कि इन दिनों पंजाब, राजस्थान और हरियाणा में सरसों एमएसपी से ज्यादा दाम पर बिक रही है। इस बार हरियाणा सरकार ने सरसों का एमएसपी 4,650 रु. प्रति कुंतल तय किया है, लेकिन किसानों को खुले बाजार में प्रति कुंतल 7,000-7,300 रु. तक का दाम मिल रहा है। हालत यह रही कि सरकारी एजेंसियों को सरसों का एक दाना भी नहीं मिला, जबकि 4,00,000 किसानों ने सरकारी पोर्टल ‘मेरी फसल, मेरा ब्योरा’ में पंजीकरण कराया था। गांव मतूआला, जिला सिरसा के किसान कुलदीप कहते हैं, ‘‘मैंने कुछ दिन पहले ही खुले बाजार में सरसों बेची है, फिर भी पिछले साल के मुकाबले इस साल अच्छी कीमत मिली।’’ क्या नए कृषि कानून के कारण ऐसा हुआ, तो उन्होंने कहा, ‘‘यह तो नहीं पता, लेकिन दाम ठीक मिल गया।’’ बता दें कि इस वर्ष कुलदीप ने 15 बीघे में सरसों की खेती की थी। एक बीघे में सात-आठ कुंतल सरसों की उपज हुई है। खुले बाजार में अच्छे दाम मिलने के कारण कुलदीप एमएसपी के चक्कर में नहीं पड़े। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि ऐसा नए कानूनों के कारण ही हो रहा है।
गांव मलेका (सिरसा) के किसान पवन कुमार ने भी इस बार लगभग 100 कुंतल सरसों खुले बाजार में बेचकर अच्छी आमदनी की है। कहते हैं, ‘‘पिछले साल से कीमत अच्छी मिली है। इस बार सरकारी खरीद एजेंसियों की खुशामद नहीं करनी पड़ी।’’
उल्लेखनीय है कि यदि किसान को बाजार में किसी अनाज का अच्छा भाव नहीं मिलता है, तो सरकारी खरीद एजेंसियां एमएसपी पर उनकी फसल खरीद लेती हैं, ताकि किसानों को नुकसान न हो। पर जब किसानों को खुले बाजार में ही अच्छा दाम मिला, तो वे सरकारी एजेंसियों के पास गए ही नहीं। इस पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर कुमार ने कहा है, ‘‘सरकारी खरीद एजेंसियों के पास इस बार सरसों नहीं आई, इसकी हमें खुशी है।’’ हालांकि इससे सरकारी तेल मिलों के लिए समस्या खड़ी हो सकती है। उन्हें सरसों खुले बाजार से लेनी पड़ेगी।
ऐसे ही पंजाब में भी हुआ। पंजाब में तो इस बार किसानों को गेहूं से ज्यादा सरसों से कमाई हो रही है। पिछली बार जिन किसानों ने 3,200-3,500 रु. प्रति कुंतल सरसों बेची थी, वे इस बार आसानी से प्रति कुंतल 7,000-8,000 रु. तक में बेच रहे हैं। ऐसे पंजाब में सरसों का एमएसपी तय है, लेकिन वहां सरकार सरसों नहीं खरीदती है। इस वर्ष एक बात यह भी देखी जा रही है कि किसानों को गेहूं से ज्यादा सरसों की कीमत मिल रही है।
इस बार हमारे इलाके में भारतीय खाद्य निगम ने सीधे किसानों से गेहूं और धान की खरीद की है। इस कारण एक हफ्ते के अंदर सारा पैसा किसानों के खाते में जमा हो गया। कहीं कोई दिक्कत नहीं हुई। इससे पहले आढ़तियों के जरिए खरीद होती थी और पैसा मिलने में भी कई-कई महीने का वक्त लगता था। इस लिहाज से नए कृषि कानून अच्छे हैं।
-विकास दीप, किसान, गांव तिलनवाली, फाजिल्का
भारत सरकार द्वारा बनाए गए कृषि कानूनों का लाभ अब किसानों के साथ-साथ व्यापारियों को भी मिलने लगा है। इस वर्ष हर चीज की फसल अच्छी हुई है और दाम भी बहुत अच्छा मिल रहा है। फसल बेचने के लिए किसानों को मंडी जाने की जरूरत नहीं पड़ रही है।
-मैनाराम गोदारा, किसान, गांव चक तीनपीपी, श्रीगंगानगर
अनुच्छेद 370 की समाप्ति का मिल रहा है लाभ
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति का लाभ कृषि क्षेत्र को भी मिल रहा है। श्रीगंगानगर (राजस्थान) के फल ठेकेदार राजन बंसल ने बताया कि अनुच्छेद 370 के लागू रहने से जम्मू-कश्मीर से दूसरे राज्यों में जाने वाले फलों, सब्जियों पर व्यापारियों को प्रति किलो एक रुपया कर देना पड़ता था। इसी तरह भारत के विभि्न्न हिस्सों से जो कृषि उत्पाद जम्मू-कश्मीर जाता था, उस पर भी प्रति किलो एक रुपया कर लगता था। अब ऐसा नहीं होता है। उल्लेखनीय है कि बंसल हर महीने अनेक बार किन्नू फल जम्मू-कश्मीर भेजते हैं। पहले एक ट्रक पर उन्हें 10,000 रु. कर देना पड़ता था, अब उनका यह पैसा बच रहा है।
राजस्थान में भी सरसों एमएसपी से अधिक कीमत पर बिक रही है। इस वर्ष के लिए राज्य सरकार ने सरसों का एमएसपी 4,650 रु. प्रति कुंतल तय किया था, लेकिन खुले बाजार में किसानों को लगभग 7,000 रु. प्रति कुंतल का भाव मिल रहा है। श्रीगंगानगर के पास चक तीनपीपी गांव के रहने वाले किसान मैनाराम गोदारा बहुत खुश हैं। कहते हैं, ‘‘भारत सरकार द्वारा बनाए गए कृषि कानूनों का लाभ अब किसानों के साथ-साथ व्यापारियों को भी मिलने लगा है।’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘इस वर्ष हर चीज की फसल अच्छी हुई है और दाम भी बहुत अच्छा मिल रहा है। फसल बेचने के लिए किसानों को मंडी जाने की जरूरत नहीं पड़ रही है। व्यापारी किसानों के घर से ही माल ले जा रहे हैं, वह भी अच्छे भाव में।’’ बता दें कि इस बार मैनाराम ने 55 कुंतल सरसों बेची है, वह भी 6,800 रु. प्रति कुंतल। मैनाराम ने अपने इलाके में धरने पर बैठे किसानों के बारे में कहा, ‘‘मैं ऐसे बहुत किसानों को जानता हूं, जिन्हें नए कानूनों का लाभ मिल रहा है। लेकिन राजनीति करने के लिए वे लोग धरने पर बैठे हैं।’’
एक आंकड़े के अनुसार इस वर्ष राजस्थान में लगभग 32,00,000 टन सरसों का उत्पादन हुआ है।
सरसों की तरह सूरजमुखी ने भी किसानों को मालामाल करना शुरू कर दिया है। सूरजमुखी भी न्यूनतम समर्थन मूल्य से ज्यादा भाव में बिक रही है। इसका भी एक मात्र कारण है बेचने की आजादी। हरियाणा सरकार ने इस बार के लिए सूरजमुखी का एमएसपी 5,885 रु. तय किया है, लेकिन बाजार में यह 6,542 रु. में धड़ल्ले से बिक रही है। हरियाणा की शाहाबाद अनाज मंडी में पिछले पांच दिन में ही 550 कुंतल से अधिक सूरजमुखी बिक चुकी है।
संविदा खेती से खुशहाली
राजस्थान में माउंट बाबू के पास सिरोही जिले का रेवदर गांव है। यहां के कई किसान संविदा खेती करके खुशहाल हो रहे हैं। एक ऐसे ही किसान हैं छगन माली। ये बड़े पैमाने पर आलू की खेती करते हैं। छगन कहते हैं, ‘‘इस वर्ष आलू बोने से पहले मैंने एक कंपनी से प्रति किलो 10.75 रु. की दर से करार कर लिया था। यह मेरे लिए बहुत ही लाभ का सौदा रहा, क्योंकि जब तक आलू की फसल तैयार हुई तब तक बाजार में आलू 4-5 रु. प्रति किलो बिकने लगा था, लेकिन अग्रिम करार के कारण इसका कोई असर मुझ पर नहीं पड़ा। कंपनी ने सारा आलू उसी भाव पर ले लिया। इसलिए संविदा खेती का स्वागत करना चाहिए।’’
फाजिल्का (पंजाब) जिले के शेरगढ़ में किन्नू फल की खेती करने वाले इंद्रजीत भी बहुत आनंद में हैं। कहते हैं, ‘‘हम तीन भाई हैं और हमारे पास 120 एकड़ जमीन है। तीनों किन्नू की खेती करते हैं और हर भाई प्रतिवर्ष लगभग 30,00,000 रु. कमा लेता है। नए कानून के कारण व्यापारियों को कहीं भी माल ले जाने में कोई समस्या नहीं आ रही है, इसलिए हमारा उत्पाद भी आसानी से बिक रहा है।’’
उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए ही ये तीनों कानून बनाए हैं और अब वह उद्देश्य भी पूरा होने लगा है। इसलिए जो लोग इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं, वे जरा श्रीगंगानगर के पास चक तीनपीपी गांव या पंजाब के फाजिल्का जिले के गांव तिलनवाली का दौरा अवश्य कर लें। विश्वास मानिए कि इन गांवों में जाने के बाद ये लोग धरना स्थल की ओर बढ़ना नहीं चाहेंगे।
arun kumar singh
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to Hitesh, me
मिलने लगे नए कृषि कानून के लाभ
कुछ किसान दिल्ली के आसपास छह महीने से धरने पर बैठे हैं। इनकी एक ही रट है कि भारत सरकार अपने तीनों नए कृषि कानूनों को वापस ले। दूसरी ओर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्यों से ही अनेक ऐसी खबरें आ रही हैं, जो बताती हैं कि नए कृषि कानूनों के कारण किसानों को अच्छा लाभ मिलने लगा है। कई किसानों ने पाञ्चजन्य को बताया कि नए कृषि कानूनों ने उनकी राहें आसान कर दी हैं
-अरुण कुमार सिंह
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