पूरा देश कोरोना की तीसरी और बेहद घातक लहर से जूझ रहा है। ऐसे में भारतीय सेना के तीनों अंगों का योगदान अभूतपूर्व ही कहा जाएगा। थलसेना के डाक्टर और अस्पताल जरूरतमंदों की सेवा में जुटे हैं तो वायुसेना के जहाज और नौसेना के पोत विदेशों से आक्सीजन और चिकित्सकीय उपकरण लाने में दिन-रात सेवारत हैं
पिछले साल हमारे देश में जनवरी में जिस चायनीज वायरस की बीमारी कोरोना के दस्तक दी, उससे हम भली प्रकार निपट रहे थे, लेकिन इस साल मार्च में इसकी दूसरी लहर ने जिस तरह देश को बेहाल कर रखा है वह असाधारण है।
केन्द्र और राज्य सरकारें इस आपदा से जल्दी से जल्दी से उबरने की पूरी कोशिश कर रही हैं। देश के चिकित्सक, स्वास्थ्यकर्मी व अन्य अग्रिम पंक्ति के कर्मी भरपूर सेवाएं दे रहे हैं। कुछ दिन पहले हाथ से बाहर जाते दिखे हालात धीमे—धीमे ही सही पर काबू में आते दिख रहे हैं। यह संतोष की बात है। ऐसे में भारत के मित्र देशों और अंतरराष्टÑीय मंचों ने देश की मदद के लिए पूरे प्रयास किए हैं। हमारी सेना के तीनों अंग भी देश को सुरक्षित रखने के साथ इस महामारी के वक्त अपने पूरे प्रयास कर रहे हैं। हमारी सशस्त्र सेनाएं चीन के बाद विश्व में दूसरी सबसे बड़ी स्थायी सेनाएं हैं। हमारी सेना के तीनों अंगों का देश में प्राकृतिक आपदाओं का डटकर मुकाबला करने का पर्याप्त अनुभव और गौरवशाली परम्परा है।
पिछले साल महामारी की पहली लहर के दौरान सशस्त्र सेनाओं की वक्त के हिसाब से भूमिका निभाई थी। नागर विमान सेवाओं के ठप हो जाने के कारण विदेशों में फंसे भारतीय नागरिकों और भारतीय मूल के लोगों को स्वदेश वापस लाने में भारतीय वायुसेना के मालवाहक विमानों और नौसेना के पोतों का महत्वपूर्ण योगदान रहा था।
लेकिन अब महामारी की दूसरी और ज्यादा घातक लहर को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को रक्षा मंत्री, चीफ आॅफ डिफेन्स स्टाफ जनरल बिपिन रावत और तीनों सेनाओं के प्रमुखों से सशस्त्र सेनाओं के भरपूर सहयोग का आश्वासन मिला।
दूसरी लहर ने जैसे जैसे वेग पकड़ा, देश में इस आपदा से लड़ने के लिए और संसाधनों की आवश्यकता महसूस हुई। सशस्त्र सेनाओं के पास देश भर की फौजी छावनियों में अस्पतालों और उपचार केन्द्रों का विशाल ताना—बाना है और समर्थ संचार सुविधाएं भी हैं। सशस्त्र सेनाओं के पास डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ से लेकर मेडिकल तकनीशियनों, एम्बुलेंस चालकों तक की अच्छी खासी संख्या है। इन मानवीय और भौतिक संसाधनों को देश के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचाने में वायुसेना के विमानों से लेकर सेना के वाहन हैं। विदेशों से भारी मात्रा में दवाएं, वैक्सीन, वेंटीलेटर, आॅक्सीजन टैंकर, आॅक्सीजन निर्माण संयंत्र आदि लाने के लिए विशालकाय विमान और नौसेना के जहाज लगे।
थलसेना का अनूठा योगदान
थलसेना ने अपने अभियान को ‘आपरेशन को-जीत’ नाम दिया और दिल्ली हवाई अड्डे पर टर्मिनल एक के निकट अपनी आधारभूत सुविधाओं को ऐसा रूप देने में जुटी कि वहां से आक्सीजन आपूर्ति की श्रृंखला नियंत्रित की जा सके। लगे हाथ दिल्ली कैंट स्थित बेस अस्पताल को कोविड अस्पताल का रूप दे दिया गया। इस अस्पताल में 350 कोविड शय्याएं हैं जिनमें से 250 पर आॅक्सीजन की सुविधा है। अब इस अस्पताल में कोविड शय्याओं की संख्या बढ़ाकर 650 कर दी गई है जिनमें 450 आॅक्सीजनयुक्त शय्याएं हैं। जून के दूसरे सप्ताह तक यहां आक्सीजनयुक्त शय्याओं की संख्या 900 करने की योजना है। इस बीच थलसेना ने चौबीसों घंटे कोविड संबंधी सामान्य जानकारी और कोविड अस्पतालों में भरती, शय्याओं की उपलब्धि तथा टीकाकरण आदि से सम्बंधित जानकारी देने के लिए एक सहायता प्रकोष्ठ बनाया है। रक्षा मंत्रालय ने बताया है कि सैनिक अस्पतालों में 750 शय्याएं बढ़ेंगी। 19 सैन्य अस्पतालों में 4000 शय्याएं और 585 आईसीयू इकाइयां अब सामान्य नागरिकों को भी उपलब्ध हैं। साथ ही, सशस्त्र सेनाओं से सेवानिवृत्त हो चुके लगभग 600 डॉक्टरों को पुन: सेवा में लेकर उनकी कोविड प्रबंधन के लिए फौजी और नागरिक अस्पतालों में नियुक्ति की जायेगी। एक महत्वपूर्ण निर्णय यह भी लिया गया कि थलसेना के उप प्रमुख की अध्यक्षता में एक समन्वय समिति कोविड संबंधी गतिविधियों में सशस्त्र सेनाओं और नागरिक प्रशासन के बीच तालमेल बैठाने का काम कर रही है।
आक्सीजन जुटाने में जुटी वायुसेना
उधर वायुसेना की अपनी विशेषता है, त्वरित गति से भौगोलिक दूरियों को पाट देना। दूसरी लहर की सबसे बड़ी समस्या है देश में मेडिकल आक्सीजन संयंत्रों की एकाएक कमी होना। बड़े—बड़े अस्पतालों में आक्सीजन समाप्त हो जाने या सीमित उपलब्धि के कारण बहुत से रोगियों की जान नहीं बचाई जा सकी। इस कमी से निपटने में सरकारी और निजी इस्पात उत्पादन करने वाले संस्थानों से उल्लेखनीय सहायता मिली। लेकिन इस्पात बनाने की प्रक्रिया में आक्सीजन उत्पादन करने वाले संयंत्र प. बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में हैं जहां से पूरे देश में आक्सीजन पहुंचाना एक चुनौतिभरा काम था। ऐसे में भारतीय वायुसेना के मालवाहक विमानों ने महत्वपूर्ण किरदार निभाया। वायुसेना के सी 17 ग्लोबमास्टर, आईएल 76 जैसे विमानों ने विदेशों तक तूफानी उड़ानें भरकर आक्सीजन टैंकरों को तेजी से देश में लाने का कार्य किया। 24 अप्रैल 2021 को इन विमानों ने सबसे पहले सिंगापुर से 4 आक्सीजन टैंकर लाने के लिए उड़ानें भरीं, उसके बाद तो दुबई, थाईलैंड, जर्मनी और आस्ट्रेलिया तक से आक्सीजन टैंकर लाए गए। अभी तक विभिन्न देशों तक 50 उड़ानें भरकर 61 आक्सीजन कंटेनर लाये गए हैं, जिनकी क्षमता 1142 मीट्रिक तन तरल आक्सीजन की है। वायुसेना के जांबाज उड़ाकों ने दिन—रात जुटकर यह काम किया। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि 2 मई 2021 को हिंडन हवाई अड्डे से उड़ान भरने वाला ग्लोबमास्टर विमान 12 घंटे की उड़ान भरकर जर्मनी से 4 क्रायोजेनिक आक्सीजन कंटेनर लेकर 3 मई को वापस हिंडन पहुंच गया। 450 आक्सीजन सिलिंडरों की खेप इंग्लैण्ड से चेन्नई तक पहुंचाने वाला विमान भी ग्लोबमास्टर ही था। देश के अन्दर भी लम्बी उड़ानें भरकर इन विमानों ने एक बार में दो दो क्रायोजेनिक आक्सीजन सिलिंडर लाने के लिए चंडीगढ़ से भुवनेश्वर, जोधपुर से जामनगर, हिंडन और आगरा से रांची तक की उड़ानें भरीं। तरल आक्सीजन इतना ज्वलनशील पदार्थ न होती तो ये उड़ानें भरे आॅक्सीजन सिलिंडर पहुंचाकर आॅक्सीजन आपूर्ति की समस्या जल्दी ही खत्म कर देतीं। उड़ानों से दवाओं, वेंटिलेटर और अन्य चिकित्सकीय साजोसामान की त्वरित आपूर्ति की गई। इस महत्वपूर्ण काम को अंजाम देने में अपेक्षाकृत मध्यम श्रेणी के भारवाहक सी 130 और एएन 32 विमानों का भरपूर उपयोग किया गया।
नौसेना की अहम भूमिका
सशस्त्र सेनाओं में भारतीय नौसेना अपेक्षाकृत छोटी है, लेकिन इस अभूतपूर्व चुनौती से लड़ने में नागरिक प्रशासन को भरसक सहायता देने में वह कैसे पीछे रहती! उसके पास संसाधन भले कम हों लेकिन जोश और देशभक्ति से वह भी लबरेज है। भारतीय नौसेना ने 27 सदस्यों वाली एक चिकित्सकीय टीम अमदाबाद के कोविड अस्पताल धन्वन्तरी में सहायता के लिए नियुक्त किया। धीरे धीरे इस दल की संख्या 210 तक पहुंच गई है। नौसेना के नौ पोतों को विविध मित्र देशों से मिलने वाली सहायता के रूप में हासिल आक्सीजन टैंकरों, आक्सीजन सिलिंडरों एवं अन्य मेडिकल उपकरणों को भारतीय बंदरगाहों तक पहुंचाने का काम सौंपा गया है। इनमें भारतीय नौसेना पोत आईएनएस तलवार बहरीन से ऐसी सामग्री लेकर मंगलूरू पहुंचाने वाला पहला जहाज था। उसके साथ ही जिन अन्य आठ नौसेना पोतों को इस तरह की जिम्मेदारी सौंपी गयी उनके नाम हैं—भारतीय नौसेना पोत कोलकाता, ऐरावत, कोच्चि, टाबर, त्रिकांड, जलाश्वा और शार्दूल। बहरीन, दोहा, कतर, सिंगापुर आदि देशों से चिकित्सकीय सहायता भारत पहुंचाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान है।
सशस्त्र सेनाओं का रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) के साथ चोली—दामन का नाता रहता है। जब सशस्त्र सेनाएं कोविड महामारी से युद्धस्तर पर संघर्ष में व्यस्त हों तो भला यह संगठन कैसे पीछे रहता! नई दिल्ली, लखनऊ, अमदाबाद आदि शहरों में कोविड के उपचार के लिए चिकित्सकीय सुविधाएं प्रदान करने के अतिरिक्त इस संगठन का सबसे महत्वपूर्ण कृत्य है कोविड की चिकित्सा के लिए मुंह के जरिये ली जाने वाली एक दवा का आविष्कार। यदि यह दवा कसौटी पर खरी उतरती है तो यह एक बड़ी सफलता होगी।
-विंग कमांडर अरुणेन्द्र नाथ वर्मा (से.नि.)
(लेखक वरिष्ठ रक्षा विश्लेषक हैं)
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