आज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का स्थापना दिवस है। इस विश्वविद्यालय को आकार लिए 101 साल पूरे हो गये हैं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खां 19वीं सदी के सातवें दशक से ही मुस्लिम समाज को शिक्षित करने में जुट गये थे। सर सैयद अहमद खां ने अलीगढ़ में (1875) में ’मोहम्मडन एंग्लो ओरिएण्टल कॉलेज (मदरसा-तुल-उलूम)’ खोला जो 1920 में ‘अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी’ में परिवर्तित हो गया। फिर क्या कारण है कि आज भी मुस्लिम समाज पिछड़ा हुआ है? मुस्लिम समाज की आधी आबादी में शिक्षा का स्तर पर बहुत ही कम है।
भारत में 66 प्रतिशत मुस्लिम महिलाएं निरक्षर
यह जानकर आश्चर्य होगा कि एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 66 प्रतिशत मुस्लिम महिलाएँ निरक्षर हैं और उच्च शिक्षा में मुस्लिम महिलाओं की उपस्थिति मात्र 3.56 प्रतिशत है जो दलित महिलाओं से भी कम है। इस समस्या की जड़ें तलाशने के लिए जब अध्ययन प्रारंभ होता है तो निश्चित तौर पर मुस्लिम समुदाय में शिक्षा के सबसे बड़े पैरोकार सर सैयद अहमद खां पर नजर पड़ेगी। मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा पर क्या सोच थी सर सैयद की, यह जानना समीचीन होगा। इस विषय पर नसरीन अहमद की शोध पुस्तक ‘सर सैयद अहमद खां ऐंड मुस्लिम फीमेल एजुकेशन : ए स्टडी इन कान्ट्राडिक्शंस’ विस्तार से प्रकाश डालती है।
आधुनिक शिक्षा मुस्लिम समुदाय की घरेलू और सामाजिक जरूरतों के प्रतिकूल : सर सैयद
ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी प्रेस से छपी एफ. रॉबिन्सन की पुस्तक ‘सेपरेटिज्म एमंग इंडियन मुस्लिम्स : द पॉलिटिक्स ऑफ युनाइटेड प्रॉविन्सेज’ के मुताबिक सैयद अहमद खां और उनके अधिकांश भाषणों में मुस्लिम का आशय केवल ‘पुरुष’ मुस्लिमों से था और समुदाय केवल ‘पुरुष’ समुदाय तक सीमित था। वस्तुत:, उन्होंने नई शिक्षा की आलोचना की और अपने साथियों को इसे ‘मुस्लिम समुदाय की घरेलू और सामाजिक जरूरतों के प्रतिकूल’ मानने के लिए प्रोत्साहित किया।
मुस्लिम महिलाएं पढ़न-लिख लेंगी तो पुरुषों के नियंत्रण में नहीं रहेंगी : सर सैयद
लिटरेरी सोसाइटी, बरेली (1870) द्वारा प्रकाशित पुस्तक मिन्हाज-ए-तालीम के मुताबिक सर सैयद मानते थे कि नि:संदेह शिक्षा को महिलाओं के लिए खतरनाक मानना चाहिए। एक बार महिलाएं पढ़ना-लिखना सीख जाएंगी तो वे पुरुषों के नियंत्रण में नहीं रहेंगी। वे चालाक हो जाएंगी, अन्य लोगों से बातचीत करने लगेंगी और इस तरह सम्मान और परिवार का नाम दांव पर लग जाएगा। इसके परिणामस्वरूप भारी अराजकता फैल जाएगी।
मुस्लिम लड़कियों केवल ‘घरेलू कामकाज, बड़ों के लिए आदर, पति से प्रेम करना, बच्चों की देखभाल करना और मजहबी नियम’ पढ़ें : सर सैय्यद
मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा की प्रगति पर 20 अप्रैल, 1894 को सर सैयद ने अपने भाषण के अनुसार वे मुस्लिम लड़कियों के लिए सरकार प्रायोजित शिक्षा व्यवस्था के विरुद्ध थे और उन्होंने आधुनिक शिक्षा और मुस्लिमों महिलाओं के लिए विद्यालयों का विरोध किया। वे मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा की परंपरागत शिक्षा का पालन करने की बहुत जोरदारी से सलाह देते थे और कहते थे कि केवल परंपरागत शिक्षा ही उनके नैतिक और भौतिक कल्याण में मदद कर करेगी। वह मानते थे कि एक मुस्लिम पुरुष शिक्षित होने पर अपनी महिला रिश्तेदारों को शिक्षित करेगा। मुस्लिम लड़कियों के लिए उपयुक्त पाठ्यक्रम ‘घरेलू कामकाज, बड़ों के लिए आदर, पति से प्रेम करना, बच्चों की देखभाल करना और मजहबी नियमों की समझ’ पैदा करना है। उन्होंने मुस्लिम लड़कियों के लिए शिक्षा के केवल इन्हीं पहलुओं को मंजूरी दी और इससे परे किसी भी चीज को नकार दिया। सर सैयद का यह भाषण अलीगढ़ इंस्टीट्यूट गजट के 15 मई, 1894 के अंक में उद्धृत है।
सर सैयद ने मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा के लिए उठाये जाने वाले कदमों का विरोध किया
ऐसा नहीं था कि सर सैयद शुरू से मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा का विरुद्ध थे। 19वीं सदी के 60 और 70 के दशक में कई जगह उन्होंने लड़कियों की शिक्षा पर हामी भरी थी। परंतु 1880 के बाद उनकी सोच बदल गई। नसरीन अहमद की पुस्तक में लिखा गया है कि उन्होंने (सर सैयद) ने मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा के लिए उठाये जाने वाले किसी भी कदम का विरोध करना शुरू कर दिया। उनके इस रवैये का उदाहरण 1882 में शिक्षा आयोग द्वारा रखे गये सवालों पर उनके द्वारा दिए गए जवाब से मिलता है। उन्होंने एपने एक जवाब में कहा था कि सम्मानित मुस्लिम परिवारों की महिलाएं गैर-जानकार होती हैं, यह कहना पूरी तरह गलत है। उन्होंने कहा कि संपन्न और सम्मानित मुस्लिम परिवार अपनी लड़कियों को उर्दू भाषा में कुरान और प्रारंभिक मजहबी पुस्तकों को पढ़ाने के लिए उस्तादिन या मुल्लानी रखते हैं। इस सवाल पर कि क्या सरकार मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा के लिए कोई कदम उठा सकती है, सर सैयद ने इसे सिरे से खारिज कर दिया था। उनका कहना था कि मुस्लिम लड़कियों को शिक्षित करने का सरकार का कोई भी प्रयास पूरी तरह विफल होगा और इससे संभवतया नुकसानदायक परिणाम होंगे।
महिलाओं को दूसरे दर्जे का मानते थे सर सैयद
सर सैयद यह मानते थे कि जो लोग यह सोचते हैं कि लड़कियों को लड़कों से पहले शिक्षित किया जाना चाहिए और सभ्य बनाया जाना चाहिए, वे बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वास्तव में जब तक मुस्लिम पुरुष अच्छी शिक्षा प्राप्त नहीं कर लेते, तब तक मुस्लिम लड़कियों को कई संतोषजनक शिक्षा नहीं दी जा सकती। महिलाओं को दूसरे दर्जे का मानने का सर सैयद अहमद का यह रवैया 1884 में गुरुदासपुर में महिलाओं द्वारा दिये गये एक प्रतिवेदन पर उनके द्वारा दिए गए जवाब से ज्यादा स्पष्ट होता है। उन्होंने कहा था कि वे आधुनिक शिक्षा के विरुद्ध हैं और मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा की परंपरागत व्यवस्था का पालन करना चाहिए। केवल इसी से उनके नैतिक और भौतिक कल्याण में मदद मिलेगी। उनका मानना था कि लड़के पढ़ेंगे-लिखेंगे और अच्छी स्थिति प्राप्त करेंगे तो महिलाओं की स्थिति खुद-ब-खुद अच्छी हो जाएगी। उनका कहना था, ‘जब मर्द लायक हो जाते हैं, औरतें भी लायक हो जाती हैं। जब तक मर्द लायक न हों औरतें भी लायक नहीं हो सकतीं। यही सबब है कि हम कुछ औरतों की तालीम का ख्याल नहीं करते हैं।’
-संदीप त्रिपाठी
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