पूरी दुनिया में एक बार फिर बहस छिड़ी हुई है कि कोरोना वायरस कहीं जैविक हथियार तो नहीं! कोविड-19 के संक्रमण के लिए चीन एक बार फिर निशाने पर है। चीन और उसके समर्थक लाख इनकार करें और कोविड-19 के वायरस के संयोग से प्रसारित होने का सिद्धांत स्थापित करें लेकिन परिस्थितिजन्य साक्ष्य, घटनाक्रम तो कोविड-19 के न सिर्फ जैविक हथियार होने की ओर इशारा करते हैं बल्कि इसे साजिशन फैलाये जाने का भी संकेत देते हैं।
अगर किसी प्रश्न का उत्तर न देकर उसके औचित्य पर ही प्रश्न खड़ा किया जाए तो जैसे मौका मिलेगा, वह सामने आकर उत्तर मांगने लगेगा। सार्स सीओवी-2 का स्रोत क्या है, ऐसा ही एक प्रश्न है। पिछले साल इसके फैलने के कुछ ही समय बाद सवालों के तीर ताने, लोगों को ‘समझा’ दिया गया था कि यह प्रकृति की लीला है और इसके लिए किसी पर निशाना साधने की कोई वजह नहीं। लेकिन दुनिया भर में ऊंचे होते लाशों के ढेर ने उस सवाल को फिर से जिंदा कर दिया है। इस बार चिन्गारी को हवा दी है एक लीक दस्तावेज ने जो कहता है कि कोविड-19 दरअसल प्रयोगशाला में निर्मित जैविक हथियार है जिससे चीन तीसरे विश्व युद्ध में दुनिया को घुटनों पर लाने का ख्वाब देख रहा है।
सार्स सीओवी-2 का स्रोत दुनिया के लिए सबसे बड़ा सवाल बन गया है क्योंकि इससे 34 लाख से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है और यह गिनती कहां रुकेगी, कोई नहीं जानता। यह सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि इसके जवाब में दुनिया का भविष्य छिपा है।
सनसनीखेज खुलासा
सबसे पहले चिन्गारी की बात जिसने दुनियाभर में आग भड़काई। आॅस्ट्रेलिया के अखबार वीकेंड आॅस्ट्रेलियन में प्रकाशित रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कोविड-19 के संक्रमण से पांच साल पहले ही चीनी सेना कोरोना वायरस के जैविक हथियार के तौर पर इस्तेमाल की संभावनाओं पर विचार कर रही थी। चीनी सेना का आकलन था कि अगला विश्व युद्ध जैविक हथियारों के बूते लड़ा जाएगा। इसके लिए नीतिपत्र तैयार किया जाता है। इसमें कोरोना वायरस को ‘जैविक हथियार का नया दौर’ करार देते हुए कहा जाता है कि ‘कृत्रिम तरीके से बदलाव कर इसे इंसान में बीमारी फैलाने वाले नए वायरस का रूप दिया जा सकता है और फिर इसका ऐसे हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है जैसा पहले कभी नहीं हुआ।’ इसी कारण ‘अननैचुरल ओरिजन आॅफ सार्स एंड न्यू स्पेसीज आॅफ मैनमेड वायरसेज एज जेनेटिक बायोवीपन्स’ शीर्षक इस रिपोर्ट पर दुनियाभर में हंगामा मचा हुआ है। रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया पीएलए के मेजर जनरल के साथ-साथ महामारी और सार्स विशेषज्ञ डेझौंग जू तथा पीएलए के ही जनरल लॉजिस्टिक्स डिपार्टमेंट में हेल्थ ब्यूरो के उप निदेशक फेंग ली ने। इस रिपोर्ट का प्रकाशन मिलिट्री मेडिकल साइंस प्रेस में होता है।
रिपोर्ट तैयार करने वाले वैसे तो आश्वस्त थे कि इस तरह विकसित जैविक हथियार को कृत्रिम सिद्ध करना मुश्किल होगा, लेकिन वे यह भी बताते हैं कि अगर इसके सबूत मिल भी जाएं कि ये मानव निर्मित हैं तो क्या रणनीति अपनाई जाए। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि ‘…अगर (इसके कृत्रिम होने के) वायरस विज्ञान और जानवरों से जुड़े सबूत मिल जाएं, तो भी जैविक हथियारों के इस्तेमाल के आरोपों से इनकार करें, आरोपों को (लगाए जाने से) रोकें और इन्हें दबाएं जिससे अंतरराष्ट्रीय संगठन और न्याय व्यवस्था असहाय हो जाए और वे दोष सिद्ध न
कर सकें।’
बहरहाल, जैविक हथियार की थ्योरी को विराम देते हुए इसके स्रोत के संभावित विकल्पों पर आते हैं। इसके दो ही विकल्प हैं। एक, यह प्राकृतिक था और दो, प्रयोगशाला में बना जहां से किसी तरह लीक हो गया। अगर यह मानने के तर्कसंगत कारण हों कि यह प्रयोगशाला में बना, तभी इसपर बात हो सकती है कि इसे क्यों बनाया गया और क्या इसे जैविक हथियार के तौर पर विकसित किया गया।
कौन बता रहा प्राकृतिक
जब वायरस के प्रयोगशाला में बने होने की छिटपुट अटकलें ही थीं, 19 फरवरी, 2020 को वायरोलॉजिस्ट के एक समूह ने पत्रिका लैंसेट को लिखे पत्र में कहा कि ‘हम उन षड्यंत्रकारी अवधारणाओं की कड़ी निंदा करते हैं जो बता रहे हैं कि कोविड-19 का स्रोत प्राकृतिक नहीं था…हम सर्वसम्मति से इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इस कोरोनावायरस का स्रोत जंगली जानवर ही हैं’। इतनी हड़बड़ी? इन वैज्ञानिकों में पीटर डैसजैक नाम के जाने-माने वायरोलॉजिस्ट भी थे।
फिर आती है विश्व स्वास्थ्य संगठन की बारी। वही संगठन जिसके मुखिया डॉ. टेड्रोस घेब्रेयेसेस चीन की तरफदारी के लिए तब तक बदनाम हो चुके थे। तमाम रोकटोक के साथ चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम को वुहान आने दिया। टीम को न तो वहां वायरस के लैब से निकलने का कोई सुराग मिलना था, न मिला। लेकिन चीन भी इस बात के सबूत नहीं दे सका कि वायरस का स्रोत प्राकृतिक ही था। ऐसा लगता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम को वुहान आने की अनुमति चीन ने वायरस के प्राकृतिक स्रोत को साबित करने के लिए नहीं, बल्कि इसके प्रयोगशाला से लीक होने के आरोपों से दामन साफ करने के लिए दी थी। इस टीम में भी पीटर डैसजैक थे। वही जो पहले से ही सार्स-2 को प्राकृतिक बता रहे थे।
चमगादड़ और इंसान के बीच कौन
इंसानों में कोरोना वायरस का संक्रमण चमगादड़ की प्रजातियों से आता रहा है। सार्स-1 और मर्स के मामलों में ऐसा ही हुआ। इसलिए सार्स-2 के बारे में भी यही मान लिया गया। सार्स-1 में चमगादड़ से बिल्ली जैसे जंगली जानवर सिवेट में संक्रमण हुआ और उसके बाद इंसान को। वैसे ही मर्स के मामले में चमगादड़ से ऊंट और फिर ऊंट से इंसान को। सार्स-1 के मामले में चार महीने और मर्स के मामले में 8-9 माह में पता चल चुका था कि चमगादड़ और इंसान के बीच पुल का काम किस जानवर ने किया। लेकिन सार्स-2 के मामले में 15 माह से ज्यादा वक्त बीत चुका है और अब तक पता नहीं चल सका है कि किस जानवर ने चमगादड़ और इंसान के बीच कड़ी की भूमिका निभाई। जबकि पूरी दुनिया हाथ धोकर पीछे पड़ी है।
वुहान इंस्टीट्यूट आॅफ वायरोलॉजी की प्रमुख वैज्ञानिक झेंग ली शी ने नेचर पत्रिका में प्रकाशित लेख में दावा किया कि चीन के युन्नान प्रांत में चमगादड़ की एक प्रजाति से कोरोना वायरस आरएटीजी13 मिला जो सार्स-2 से 96.2 फीसदी मेल खाता है। जीनोम में 96.2 फीसदी की समानता बेशक संख्या के लिहाज से बहुत लगती हो लेकिन अनुवांशिक तौर पर यह एक बहुत बड़ा बदलाव है। खैर, बाद में पता चला कि आरएटीजी13 तो महज कागजों में था। यह चमगादड़ से मिले बीटीसीओवी-4991 कोरोना वायरस की सिक्वेंसिंग थी और इस वायरस के बारे में ठीक से रिसर्च भी नहीं हुआ था।
जाने-माने वायरोलॉजिस्ट डेविड रॉबर्ट्सन का मानना है कि सार्स-2 चमगादड़ से सीधे इंसान में फैला। इस थ्योरी में यह गड़बड़ी है कि चमगादड़ की जिस प्रजाति से इसके फैलने की बात है, उसे युन्नान प्रांत की गुफाओं में पाया गया है। चमगादड़ 50 किलोमीटर क्षेत्र में ही रहते हैं इसलिए उनका सीधे 1500 किलोमीटर दूर वुहान वेट मार्केट में किसी को संक्रमित करने का सवाल नहीं उठता। अगर कोई इंसान उनके संपर्क में आकर संक्रमित हुआ तो क्या उसने 1500 किलोमीटर की दूरी बिना किसी और को संक्रमित किए तय कर ली? और फिर यह भी याद रखना चाहिए कि पहला संक्रमित व्यक्ति तो वुहान का ही था।
प्रयोगशाला में तैयार हुआ वायरस
अब यह देखें कि कौन और क्यों कहता है कि सार्स-2 प्रयोगशाला में विकसित हुआ और वह भी वुहान इंस्टीट्यूट आॅफ वायरोलॉजी में। इनमें एक हैं डॉ. फ्रांसिस बॉयल। वह यूनिवर्सिटी आॅफ इलनॉइस में प्रोफेसर हैं और उन्होंने ही जैविक हथियार कानून का मसौदा तैयार किया है। उनका स्पष्ट मानना है कि कोरोना वायरस का स्रोत वुहान का सी-फूड बाजार नहीं है बल्कि वुहान इंस्टीट्यूट आॅफ वायरोलॉजी है और इसी कारण चीन संक्रमण के बाद अंतरराष्ट्रीय टीम को आने नहीं दे रहा था।
फ्रांस के वायरोलॉजिस्ट और चिकित्सा के लिए नोबेल पुरस्कार जीत चुके वैज्ञानिक लुक मोंटैगनेर भी मानते है कि नोवेल कोरोना वायरस को वुहान की प्रयोगशाला में तैयार किया गया। इसका कारण उन्होंने यह बताया कि इस कोरोना वायरस के जीनोम में एचआईवी-1 रेट्रोवायरस और मलेरिया विषाणु पारासाइट प्लाजमोडियम फैलसिपरम के भी अंश पाए गए हैं। एचआईवी-1 रेट्रोवायरस की खोज मौंटैगनेर ने ही 1983 में की थी। मोंटैगनेर का अनुमान है कि एचआईवी की वैक्सीन तैयार करने में यह गड़बड़ी हो गई होगी।
दुनिया में परमाणु विज्ञान के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रतिष्ठित प्रकाशन है बुलेटिन डॉट ओआरजी। इससे दुनिया के उत्कृष्ट वैज्ञानिक जुड़े हैं। इसमें प्रकाशित लेख में बताया गया है कि सार्स-2 प्रयोगशाला में ही बनाया गया। सार्स-1 और मर्स के मामले में यह देखने को मिला था कि पहले जानवर से दूसरे जानवर से गुजरते हुए इंसान को संक्रमित करने की स्थिति में पहुंचने में इनके जीनोम में अच्छा-खासा बदलाव हुआ जबकि सार्स-2 तो जैसे पहले संक्रमण के समय से ही इंसान को संक्रमित करने को तैयार था और इंसान में पहले संक्रमण के बाद भी उसमें अपेक्षाकृत नगण्य बदलाव आया। यानी, इसके प्रयोगशाला में तैयार होने की संभावनाओं की ओर इशारा करता एक और प्रमाण। इन सब तथ्यों से पता चलता है कि सार्स-2 प्राकृतिक तरीके से नहीं बना बल्कि उसे वुहान की प्रयोगशाला में बनाया गया और इसका स्रोत वुहान का वेट बाजार नहीं है, जैसा बताया जा रहा है।
वुहान में कैसे तैयार हुआ वायरस
यहीं पर एक बार फिर नाम आता है पीटर डैसजैक का। वायरस को प्राकृतिक साबित करने में सबसे ज्यादा दिलचस्पी पीटर डैसजैक दिखा रहे थे- लैंसेट को लिखे पत्र से लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन की वुहान जाने के बाद जारी की गई रिपोर्ट को तैयार करने में उनकी अहम भूमिका था। लैंसेट को लिखे पत्र में पीटर समेत सभी वैज्ञानिकों ने साफ किया था कि ऐसा लिखने के पीछे उनका कोई हित नहीं। लेकिन ऐसा नहीं था। दरअसल, पीटर डैसजैक न्यूयॉर्क स्थित इकोहेल्थ अलायंस नाम की संस्था के अध्यक्ष हैं और यही वह संस्था है जिसने वुहान इंस्टीट्यूट आॅफ वायरोलॉजी को ऐसे सार्स वायरस बनाने के लिए पैसे उपलब्ध कराए जो इंसानों को संक्रमित कर सके। इकोहेल्थ को कोरोना वायरस पर काम करने के लिए पैसे उपलब्ध कराए थे अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ एलर्जी एंड इन्फेक्शस डिसीज ने जिसके डायरेक्टर हैं डॉ. एंथोनी फाउसी और इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य यह पता लगाना था कि भविष्य में कोरोना वायरस के कैसे संक्रमण की संभावना है ताकि जब भी हो, आसानी से इसका मुकाबला किया जा सके। ऐसे में अगर यह बात साबित हो जाए कि वुहान की प्रयोगशाला से जिस प्रोजेक्ट पर काम करते हुए सार्स-2 बाहर निकल गया, उसके लिए पैसे उन्होंने उपलब्ध कराए थे तो पीटर डैसजैक इस दोष से बच नहीं सकते थे। वैसे, इस बारे में फिलहाल कुछ भी कहना मुश्किल है।
बुलेटिन डॉट ओआरजी में प्रकाशित लेख में दावा किया गया है कि इस बात के दस्तावेजी साक्ष्य हैं कि वुहान इंस्टीट्यूट आॅफ वायरोलॉजी में पहले से ही ऐसे कई कोरोना वायरस बनाने का काम चल रहा था जो इंसानों को संक्रमित कर सकें। इसके प्रयोग में चूहे में इंसानी जीन और कोशिकाएं डालकर उसे संक्रमित किया जा रहा था। सार्स-2 भी इसी तरह से तैयार हुआ होगा। हां, यह कहना मुश्किल है कि जिस प्रोजेक्ट के लिए पैसे इकोहेल्थ से मिले, सार्स-2 वायरस उसी से निकला या नहीं। अब इस संदर्भ में पिछले साल चीन और अमेरिका के एक-दूसरे पर लगाए जा रहे आरोप-प्रत्यारोप को याद करें। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन कह रहा था कि उसके पास पक्की जानकारी है कि सार्स-2 वुहान इंस्टीट्यूट आॅफ वायरोलॉजी से ही निकला। दूसरी ओर चीन इसे अमेरिका की करतूत बता रहा था। तो दोषी कौन?
रिसर्च कैसा हो, इसकी सीमा क्या हो, यह एक अलग बहस का विषय है। लेकिन खतरनाक रिसर्च कैसे हों, इसके अपने कायदे-कानून हैं। इस तरह के खतरनाक प्रोजेक्ट पर काम बायोसेफ्टी लेवल-4 की प्रयोगशाला में ही हो सकता है जहां से किसी भी वायरस का निकल जाना असंभव होता है। बुलेटिन डॉट ओआरजी में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक यह प्रोजेक्ट वुहान की बायोसेफ्टी लेवल-4 की जगह लेवल-2 प्रयोगशाला में हो रहा था। संभव है, वहां से ही लीक हो गया हो। लेकिन तब क्या चीन की जिम्मेदारी नहीं थी कि वह दुनिया को सच्चाई बताता? लेकिन उसने किया इसका उलटा। उसने हर तरह से मामले को दबाने की कोशिश की। इंस्टीट्यूट के दस्तावेजों को सेंसर कर दिया। ऐसा क्यों?
इसका जवाब पाने के लिए 2020 में जाना होगा। संक्रमण न फैले, इसके लिए वुहान में लॉकडाउन लगाया जा चुका है और घरेलू उड़ानें रद्द कर दी गई हैं। लेकिन विदेशों के लिए उड़ानें जारी हैं। क्यों? शायद इसलिए कि एक बार जब सार्स-2 प्रयोगशाला से बाहर आ ही चुका है तो पूरी दुनिया में उसके असर को देख लो! शायद इसीलिए उसने वुहान से वायरस को दुनियाभर में पहुंचाने का इंतजाम किया। दूसरी बात, वुहान में तब सामुदायिक टेस्टिंग की गई। जिन्हें कोई समस्या नहीं थी, उनकी भी जांच हुई। यह भी क्या वायरस के प्रभाव को बेहतर तरीके से समझने के लिए ज्यादा बड़ा डाटा इकट्ठा करने की कवायद तो नहीं थी? अब भला जैविक हथियार और किसे कहते हैं?
तब की लीपापोती आज भी अबूझ
डॉ. लीमेंग यान
हांगकांग स्कूल आॅफ पब्लिक हेल्थ से जुड़ी चीन की वायरोलॉजिस्ट डॉ. लीमेंग यान ने पिछले साल जो खुलासा किया था, वह आज के संदर्भ में महत्वपूर्ण हो जाता है। डॉ. यान को पता चला कि चीनी सेना ने सार्स-2 को जैविक हथियार के तौर पर विकसित किया है। उन्होंने वायरस का जीनोम हासिल किया। उसकी पड़ताल के बाद पाया कि सार्स-2 जो सिक्वेंस प्रयोगशाला में जमा कराया गया था, उसमें बदलाव किया गया था। उन्होंने अपने सीनियर से शिकायत की तो उन्हें धमकी मिली। तब उन्होंने जो खुलासा किया था, उन्हें याद करना चाहिए।
वायरस को पीएलए की प्रयोगशाला में बनाया गया।
चीन सरकार रोग के बारे में सही जानकारी नहीं दे रही है।
यह वायरस इंसान से इंसान में फैल रहा है।
वायरस न तो किसी जानवर से आया और न ही वेट मार्केट।
अगर इसे तत्काल नियंत्रित नहीं किया गया तो महामारी आ जाएगी और फिर बड़ी तेजी से वायरस के कई म्यूटेंट आ जाएंगे।
डॉ. यान ने यह बात एक छोटे से यू-ट्यूब चैनल के जरिये कही। खुलासे के बाद क्या हुआ, इसपर भी गौर कीजिए।
प्रसारण के चार घंटे बाद ही चीन ने संक्रमण की संख्या 62 से बढ़ाकर 198
कर दी।
करीब आठ घंटे बाद सरकार ने पहली बार माना कि संक्रमण वुहान के बाहर भी फैल चुका है।
अगले दिन चीन पहली बार इंसान से इंसान में संक्रमण की बात स्वीकारता है।
तीन दिन बाद वुहान में लॉकडाउन लगा दिया जाता है।
चीन की मजबूरी थी कि वह डॉ. यान की शायद इससे ज्यादा बातें मान ही नहीं सकता था।
अरविंद
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