मुम्बई की एक मुस्लिम संस्था ‘रजा एकेडमी’ अपनी हरकतों और फतवों के कारण बराबर चर्चा में रहती है। इस संस्था को फिलिस्तीन से लेकर म्यांमार तक के मुसलमानों की चिंता रहती है, पर भारत के उन हिंदुओं के मामले में कभी कुछ नहीं बोलती है, जिन्हें मजहबी कट्टरवादियों के कारण अपने ही देश में शरणार्थी बनना पड़ता है
इन दिनों देश में एक ऐसा वर्ग बहुत फल-फूल रहा है, जो किसी कानून को नहीं मानता है। पर मजे की बात यह है कि यह वर्ग उसे कानून का पालन करने के लिए कहता है, जो कभी कानून तोड़ता ही नहीं है। कुछ ऐसा ही कर रही है मुम्बई की रजा एकेडमी। इसने सुदर्शन न्यूज चैनल पर कथित रूप से कानून तोड़ने का आरोप लगाकर उसके विरुद्ध एक एफआईआर दर्ज करवाई है। चैनल बार-बार चुनौती दे रहा है कि रजा एकेडमी के लोग आएं और बताएं कि उसने कौन-सा कानून तोड़ा है, लेकिन रजा एकेडमी कोई उत्तर नहीं दे रही है। इसलिए रजा एकेडमी की कुंडली खंगालना जरूरी हो गया है।
आपको ध्यान होगा कि 12 अगस्त, 2012 को मुम्बई स्थित आजाद मैदान में एक बड़ी रैली हुई थी। इसका आयोजन रजा एकेडमी ने ही किया था। यह रैली कथित रूप से म्यांमार में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार के विरोध में हुई थी, लेकिन रैली में शामिल लोगों ने अत्याचार की सारी हदें पार कर दी थीं। रैली के दौरान कुछ जिहादियों ने कारगिल के वीरों के नाम पर जलाई गई अमर ज्योति को लात मार तोड़ दिया था। इन लोगों ने पुलिस वालों को भी पीटा था, लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने किसी के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की।
रजा एकेडमी भाग्यनगर (हैदराबाद) के निजाम के सेनापति कासिम रिजवी द्वारा स्थापित अतिवादी संगठन (रजाकार मिलिशिया) के पदचिन्हों पर चलती है। उल्लेखनीय है कि रजाकार मिलिशिया हिंदुओं पर अत्याचार करती थी और यह हैदराबाद को पाकिस्तान में मिलाना चाहती थी, लेकिन सरदार पटेल की दृढ़ता के सामने उसकी एक नहीं चली और रिजवी को भारत से भागना पड़ा था। ऐसे अतिवादी संगठन के आदर्शों पर चलने वाली रजा एकेडमी की मंशा को कोई भी जान सकता है।
रजा एकेडमी और हैदराबाद के ओवैसी बंधुओं के बीच घनिष्ठ संबंध माना जाता है। उल्लेखनीय है कि ओवैसी बंधु भी खुद को कासिम रिजवी का ही वारिस मानते हैं।
रजा एकेडमी चीन में उइगर मुस्लिमों पर हो रहे कथित अत्याचारों के विरोध में पिछले महीने ही मुम्बई में एक प्रदर्शन कर चुकी है। यह एकेडमी तो इजरायल के विरोध में सालभर आवाज उठाती ही रहती है। 29 अक्तूबर, 2020 को मुम्बई के अनेक प्रमुख रास्तों पर फ्रांस के राष्ट्रपति एमनुएल मेकरोंन के चित्रों को चिपकाने के पीछे भी इसी संगठन का हाथ माना जाता है। उल्लेखनीय है कि उनके चित्रों को रौंदते हुए कट्टरवादी चलते थे। यह सब इसलिए किया गया था कि फ्रांस अपने यहां के जिहादियों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा था। ऐसे ही रजा एकेडमी ने बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन का भी विरोध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
महाराष्ट्र की वर्तमान सरकार में भी रजा एकेडमी की जबर्दस्त घुसपैठ है। वह जो कुछ करवाना चाहती करवा लेती है। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने पिछले साल कोरोना से मरने वाले हर व्यक्ति को जलाने का आदेश दिया था, ताकि कोरोना का संक्रमण न बढ़े, लेकिन सरकार पर ऐसा दबाव बनाया गया कि कुछ ही घंटों में यह निर्णय बदल दिया गया। इस दबाव के पीछे भी रजा एकेडमी रही है, ऐसा माना जाता है।
हाल ही में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में प्रशासन द्वारा गिराई गई अवैध मस्जिद को लेकर भी रजा एकेडमी ने माहौल खराब करने का प्रयास किया।
रजा एकेडमी भगोड़ा जाकिर नाईक की जांच का भी विरोध करती रहती है। इसने तीन तलाक कानून का भी विरोध किया है। बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या मुसलमानों के लिए आवाज उठाने वाली रजा एकेडमी ने कभी उन आतंकवादियों की निंदा नहीं की, जो निर्दोष लोगों की जान लेते हैं। जम्मू—कश्मीर में आतंकवादियों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त होने वाले सैनिकों के लिए भी रजा एकेडमी ने कभी कुछ नहीं कहा। रजा एकेडमी सीएए और एनआरसी का भी विरोध करती है। इसलिए सवाल उठता है कि उसके मन में कौन—सा राज छिपा हुआ है!
– राजेश प्रभु सालगांवकर
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