सिविल डिफेंस कर्मियों को कोरोना महामारी के समय फ्रंटलाइन वर्कर हैं। उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए आम आदमी पार्टी के पास क्या योजनाएं हैं? कोरोना सेवा के दौरान उनकी मृत्यु होने की स्थिति में एक करोड़ की राशि दिल्ली सरकार की तरफ से देने की घोषणा की गई है। किसी भी कर्मचारी के परिवार के लिए यह साबित करना आसान नहीं होगा कि सेवा के दौरान ही परिवार व्यक्ति कोरोना से संक्रमित हुआ। एक शिक्षक के मामले में पिछले साल ऐसा देखने को मिला था, जिनकी मृत्यु कोरोना ड्यूटी के दौरान संक्रमित होने की वजह से हुई थी। संक्रमित होने के बाद वे छुट्टी पर गए और उनकी मृत्यु हुई। अब उनकी मृत्यु को सेवा के दौरान हुई मौत माना जाएगा या नहीं, इस पर विवाद है। आवश्यकता इस बात की है कि ऐसे परिवार भी आगे आएं और दावा करें और दिल्ली सरकार ऐसे परिवारों को भी सहायता राशि उपलब्ध कराए।
सिविल डिफेंस कर्मियों के लिए दिल्ली वाले कहते हैं कि वे आम आदमी पार्टी के ही कार्यकर्ता है। उनके ये कथित कार्यकर्ता ड्यूटी के दौरान यदि कोरोना से संक्रमित होते हैं तो इसके लिए सरकार की तरफ से उन्हें क्या सुविधाएं मिल रही हैं? इस पर दिल्ली सरकार खामोश हो जाती है। जो सरकार अपने कथित कार्यकर्ताओं का कोरोना काल में सही प्रकार से ध्यान रखने में असफल साबित हो रही है, उससे हम दिल्ली की चिन्ता करने की अपेक्षा कैसे रखें ? जबकि अब दिल्ली वालों को लगने लगा है कि सिविल डिफेंस कर्मियों की नियुक्ति ही केजरीवाल सरकार में मानो शहर के अंदर अराजकता फैलाने के लिए हुई हो।
नियुक्ति के बाद से ही सिविल डिफेंस कर्मी मानो सरकार की नहीं बल्कि दिल्ली वालों की जवाबदेही बन गए हैं।
इनके संबंध में इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार महेन्द्र सिंह मनराल ने 6 अप्रैल को एक वीडियो ट्वीट किया और लिखा — (https://twitter.com/mahendermanral/status/1379295010357530626?lang=en ) —
”यह हाई वोल्टेज ड्रामा दक्षिणी दिल्ली के आईआईटी गेट का है। जहां सिविल डिफेंस कर्मी की एक 20 वर्षीय छात्र से कहा सुनी मास्क लगाने को लेकर हो गई है।” बात इतनी बढ़ गई कि सिविल डिफेंस कर्मियों बेल्ट निकाल कर उसे पीटना शुरु कर दिया। यह देखकर लोग वहां इकट्ठा होने लगे और डिफेंस कर्मी के इस कदम की जमकर आलोचना हुई। इस घटना के बाद लोगों के मन में सवाल खड़ा होना ही था कि आखिर सिविल डिफेंसकर्मी हैं कौन? जिन्होंने पुलिस की तरह खाकी वर्दी पहन रखी है। जिनके पास सड़क चलते किसी भी व्यक्ति को रोक लेने और फिर बेल्ट से पीटने तक का अधिकार है।”
दिल्ली की सड़कों पर एक साल से नजर आ रहे इन कर्मियों को लेकर लोगों की आम धारणा है कि ये लोग आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता हैं। जो पैसा दिल्ली सरकार से लेते हैं और काम आम आदमी पार्टी का करते हैं। कहा जाता है कि ये यदि खाकी वर्दी न पहने तो ये सड़क पर रास्ता रोककर चंदा के नाम पर पर्ची काटने वाले किसी गिरोह की तरह ही लगते हैं। वैसे खाकी वर्दी का दुरुपयोग ये लोग खूब करते हैं। ऐसे मामलों में इनकी गिरफ्तारी भी हुई है। उन्होंने अपनी हरकतों से खाकी पर कई—कई बार दाग लगाया है।
सिविल डिफेंस कर्मी कौन हैं
सिविल डिफेंस कर्मियों को तत्काल आपातकालीन स्थितियों से निपटने, जनता की रक्षा करने और महत्चपूर्ण सेवाओं और सुविधाओं को बहाल करने के लिए नियुक्त किया जाता है।
सिविल डिफेंस कर्मियों को सिविल वोलिंटियर एक्ट 1968 के अन्तर्गत बहाल किया गया है। जो मई 1968 में संसद द्वारा पारित हुआ था। इसका उद्देश्य संपत्ति और जीवन की सुरक्षा, उत्पादन की निरंतरता को बनाए रखना और आम जन का मनोबल ऊंचा रखना है। युद्ध और आपातकाल की स्थिति में सिविल डिफेंस कर्मियों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। जो ऐसी स्थिति में आम जन और अधिकारियों की सुरक्षा की जिम्मेवारी निभाती है। कोरोना महामारी के दौरान लॉक डाउन का सख्ती से पालन कराने और जनता तक इसके संदेश को लेकर जाने की जिम्मेवारी सिविल डिफेंस कर्मियों को दी गई है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए डीटीसी के बसों में जिन मार्शल की नियुक्ति हुई पिछले दिनों हुई है, वे भी सिविल डिफेंस कर्मी ही हैं।
दिल्ली पुलिस की तरफ से जारी एक बयान के अनुसार — सिविल डिफेंस कर्मियों को ऐसी कोई शक्ति प्रदान नहीं की गई है जिसके अन्तर्गत वो बेरीकेट लगाकर जांच करे, या फिर मास्क नहीं लगाने वालों पर मुकदमा दर्ज करें। ऐसे में मास्क न पहनने पर राह चलते व्यक्ति पर बेल्ट चलाना, न तो सिविल डिफेन्स वालंटियर्स के कार्य क्षेत्र में आता है और न एक सभ्य समाज में ऐसा करने की इजाजत उन्हें दी जानी चाहिए। सिविल डिफेंस कर्मियों के पास ऐसा करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। दिल्ली पुलिस की ओर से यह भी स्पष्ट किया गया है कि अक्सर इन सिविल डिफेंस कर्मियों को दिल्ली पुलिस कर्मी समझ लिया जाता है और इनकी अनुशासनहीनता को दिल्ली पुलिस का कृत्य समझा जाता है। इसकी वजह से दिल्ली पुलिस की छवि खराब हुई है।
सिविल डिफेंस के वॉलिंटियर दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग जिला उपायुक्त कार्यालय (राजस्व) के अधीनस्थ आते हैं। इस बात पर कौन यकीन करेगा कि आठवीं पास करके सिविल डिफेन्स की नौकरी करने वाले 18—20 साल के युवक केजरीवाल की पार्टी के नेताओं के शह के बिना सड़क पर इतनी अराजकता फैला सकते हैं।
भर्ती की प्रक्रिया
दिल्ली सरकार समय—समय पर सिविल डिफेन्स के नाम पर युवको की भर्ती करती है। कोई भी व्यक्ति जिसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक हो और जिसने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी कर ली हो वे आवेदन कर सकते हैं। आठवीं तक की पढ़ाई करने वालों को यहां वरीयता मिल जाती है। लेकिन अधिक पढ़े लिखे लोग भी यहां आवेदन करते हैं। जिनका चयन होता है उन्हें एक सप्ताह के लिए प्रशिक्षण कोर्स के लिए भेजा जाता है। दिल्ली वालों के बीच में सिविल डिफेंस कर्मियों के चयन प्रक्रिया को आम आदमी पार्टी की कार्यकर्ता भर्ती योजना के नाम से जाना जाता है।
एक करोड़ रुपए दिए
दिल्ली में सिविल डिफेंस वालंटियरों के लिए एक दिन का वेतन 763 रुपये निर्धारित है। यदि सेवा के दौरान कोई कार्यकर्ता बीमार पड़ जाता है तो उसे किसी तरह की अतिरिक्त सुविधा सिविल डिफेन्स के नाम पर उपलब्ध नहीं है। यदि मौत हो जाती है सेवा के दौरान तो एक करोड़ की राशि केजरीवाल खुद घर आकर देकर जाएंगे। जैसे उन्होंने सिविल डिफेंस के अरुण सिंह के परिवार को घर जाकर पिछले साल 26 जुलाई को एक करोड़ रुपया दिया था। बीते एक साल में उनकी कोई दूसरी तस्वीर सिविल डिफेंस कर्मियों के किसी कर्मी के परिवार के साथ नहीं मिलती। न ही कितने परिवारों को अब तक एक करोड़ की सहायता राशि दिल्ली सरकार की तरफ से दी गई है, इसका कोई विवरण मिलता है।
दिल्ली सरकार अब पुलिस, सिविल डिफेंस, फायरमैन, प्रधानाचार्य, शिक्षकों को यदि कोरोना हो जाता है और उनकी मृत्यु हो जाती है तो ऐसे परिवार को भी एक करोड़ की राशि देगी।
कोरोना के मरीजों की देखभाल में लगे डॉक्टर, शिक्षक, सिविल डिफेंस के लोग बड़ी संख्या में कोरोना से प्रभावित हुए हैं। दिल्ली सरकार ने उन्हें एक करोड़ रुपए देने की घोषणा कर दी है लेकिन उसके दावे पर प्रश्न इसलिए खड़ा होता है क्योंकि कोरोना के 14 महीनों के कालखंड में एक करोड़ की राशि जितने परिवारों को मिली है, उनकी गिनती का कोई रिकॉर्ड नहीं मिलता। जिनकी खबर मीडिया में आई, उनकी संख्या उंगलियों पर गिने जाने लायक है।
मरने का इंतजार क्यों
दूसरी तरफ उत्तरी दिल्ली नगम निगम में 8500 शिक्षकों का तीन महीनों का वेतन रुका पड़ा है। निगमों को सरकार से मिलने वाली किस्तों का फंड केजरीवाल जारी ही नहीं कर रहे हैं। जिसकी वजह से शिक्षकों के परिवार में त्राहिमाम मचा हुआ है। यदि शिक्षक परिवार में कोई दुर्घटना हो जाएगी, उसके बाद वे एक करोड़ रुपया लेकर करेंगे भी क्या? क्या इस दिशा में केजरीवाल को नहीं सोचना चाहिए।
नगर निगम शिक्षक संघ केजरीवाल से मांग करता हुआ थक गया लेकिन कोरोना के इस मुश्किल घड़ी में भी उनकी बातें नहीं सुनी जा रही है। शिक्षक संघ मांग कर रहा है कि डीडीएमए एक्ट के अनुसार वे 15 दिनों के बाद नियमानुसार रोटेशन लागू किया जाए क्योंकि थकान और अन्य कारणों से अनेक शिक्षक कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं। शिक्षक संघ की मांग यह भी है कि 50 साल से अधिक के शिक्षकों और महिला कर्मियों को डीडीएमए एक्ट से मुक्त रखें। जबकि केजरीवाल सरकार इन बातों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही।
एक करोड़ रुपया की सांत्वना राशि कोरोना वारियर्स की मृत्यु पर देने की जगह यदि दिल्ली सरकार उन वारियर्स को जीवित बचाए रखने को लेकर जागरू हो जाए। कोरोना वारियर्स यदि बीमार पड़ते हैं तो उनके मरने का इंतजार ना करके उन्हें बचाने के लिए फंड का प्रावधान करना चाहिए। बीमारी की स्थिति में उन्हें अधिक से अधिक सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए। यदि कोई कोरोना वारियर अपनी ड्यूटी करते हुए बीमार पड़े तो उसके ईलाज का सारा खर्च सरकार को उठाना चाहिए। यदि कोरोना के दौरान कोरोना वारियर्स की ही मौत हो जाएगी तो फिर दिल्ली की रक्षा कोरोना से कौन करेगा।
आशीष कुमार ‘अंशु’
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