ओली के कुर्सी संभालते ही चीन ने नेपाल के सीमांत दाउलखा जिले की सरहद पर लगे सीमा पिलर हटाने शुरू कर दिए हैं। पिछले साल हुमला जिले में चीन के इलाका कब्जाने और अवैध निर्माण पर काठमांडू की अनदेखी से बढ़ रही है डे्गन की हिमाकत
14 मई को इधर सीपीएन—यूएमएल के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली ने तीसरी बार प्रधानतंत्री पद की शपथ और उधर चीन ने एक बार फिर अपनी विस्तारवादी हरकतें तेज कर दीं। डे्गन एक लंबे समय से सीमा से सटे नेपाल के एक बड़े भूभाग को निगलने में लगा है। सीमांत गांवों चीनी सैनिकों का आवाजाही बढ़ रही है। ओली के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के फौरन बाद उसने अपने ये हरकतें नए सिरे से शुरू कर दी हैं।
नेपाल से मिले समाचारों के अनुसार चीन ने दाउलखा जिले से सटी सीमा पर लगे पिलर गायब करने शुरू कर दिए हैं। जैसा वह पहले भी करता आया है, धीरे—धीरे इन सीमांत पिलर की जगह वह नेपाल की धरती पर और अंदर नए पिलर लगा देगा और इलाके पर कब्जा कर लेगा, वहां अपने ढांचे खड़े कर देगा। पिछले साल भी चीन ने यही कुछ किया था जब हुमला जिले में अचानक गांव वालों ने पिलर गायब देखे, और कुछ दूर चीन के नए भवन खड़े दिखाई दिए। पांचजन्य ने तब सितंबर, 2020 में इस पर विस्तार से समाचार प्रकाशित किया था। उस दौरान जब कुछ गांव वाले पड़ोस के गांव जाने लगे तो चीनी सैनिकों ने उनसे वापस लौट जाने को कहा था क्योंकि उनके हिसाब से ‘वह इलाका चीन का था’। हुमला जिले के सतर्क गांव वालों ने प्रशासन को सूचित किया तब जाकर सरकार के संज्ञान में यह बात आई थी। तब पूरे नेपाल में चीन की हेकड़ी के विरुद्ध प्रदर्शन हुए थे, पर नतीजा कुछ नहीं निकला था। प्रधानमंत्री ओली तब चीन के मोह में इतने खोए हुए थे कि उन्होंने बीजिंग के सामने सवाल उठाने की हिम्मत तक नहीं की थी। सिर्फ हुमला में ही नहीं, चीन ने दारचूला, गोरखा, सिंधुपाल चौक, संखूवासाभा और रासुवा में भी नेपाली इलाके कब्जाए हैं। काठमांडू इन उन सब हरकतों पर चुप्पी से शह पाकर अब चीन ने नेपाल के दाउलखा गांव के पिलर गायब किए हैं।
चीन और नेपाल में सीमा समझौता हुआ था 1960-61 में, जिसके अंतर्गत पिलर लगाकर सीमांकन किया गया था। समझौते के बाद भी सीमा रेखा में कई बदलाव हुए। चीन एक ही बात रटता आ रहा है कि सीमा अस्पष्ट होने से शायद पिलर हटाए होंगे। लेकिन इस बहाने के बावजूद वह नए लगाए पिलर हटाता नहीं है और काठमांडू में बैठी कम्युनिस्ट सरकार अपनी जनता को बहानों में उलझाकर चीन के लिए स्थिति सुगम बनाती आ रही है।
इसमें संदेह नहीं है कि चीन की नजर भारत को घेरने पर है। नेपाल का भी वह अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहा है, ठीक वैसे जैसे भारत की पश्चिमी सरहद के उस पार पाकिस्तान के इलाकों में उसका दबदबा बढ़ता जा रहा है। पाकिस्तान की सरकारें भी नेपाल की कम्युनिस्ट सरकारों की तरह बीजिंग के सामने कुछ बोल नहीं सकतीं। दूसरे, दोनों देशों में चीन ने कई परियोजनाओं में काफी पैसा लगाया हुआ है। अब ओली के प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालते ही डे्गन की विस्तारवादी गतिविधियां शुरू हो गई हैं।
चीन और नेपाल में सीमा समझौता हुआ था 1960-61 में, जिसके अंतर्गत पिलर लगाकर सीमांकन किया गया था। समझौते के बाद भी सीमा रेखा में कई बदलाव हुए। चीन एक ही बात रटता आ रहा है कि सीमा अस्पष्ट होने से शायद पिलर हटाए होंगे। लेकिन इस बहाने के बावजूद वह नए लगाए पिलर हटाता नहीं है और काठमांडू में बैठी कम्युनिस्ट सरकार अपनी जनता को बहानों में उलझाकर चीन के लिए स्थिति सुगम बनाती आ रही है। सीमा अस्पष्ट होने का बहाना बनाकर बीजिंग भारत के लद्दाख में भी घुसपैठ करता रहा है। वहां भी गाहे-बगाहे चीनी सैनिक लद्दाख के कई किलोमीटर अंदर तक आते रहे हैं, लेकिन 2014 में केन्द्र में मोदी सरकार के आने के बाद से उसकी इन हरकतों को करारा जवाब भी मिला है। शायद इसी से चिढ़कर बीजिंग ने जून 2020 में गलवान घाटी में घुसपैठ करके सीमा पर तनाव पैदा कर दिया था, लेकिन भारत से मुंह की खाई थी।
लेकिन नेपाल से आ रहे चीन की विस्तारवादी हरकतों के ताजे समाचार भारत से चौकन्ने रहने की मांग करते हैं। लद्दाख में भी चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियां उसकी मंशाएं साफ करती हैं।
आलोक गोस्वामी
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