एक फर्जी तस्वीर के जरिए सुदर्शन चैनल पर आरोप लगाया है कि उसने एक कार्यक्रम के दौरान मदीना की एक मस्जिद का अपमान किया है। वहीं चैनल का दावा है कि जिस मस्जिद की बात की जा रही है, उसे कार्यक्रम में दिखाया ही नहीं गया है, जिसे दिखाया गया है वह गाजा की एक सामान्य मस्जिद है। चैनल का यह भी कहना है कि उसके कार्यक्रमों से जिन लोगों की असलियत बाहर आती है, वे लोग बहुत परेशान रहते हैं। ऐसे ही लोग जब-तब चैनल के विरुद्ध षड्यंत्र करते रहते हैं
गत डेढ़ दशक से भी अधिक समय से पत्रकारिता के क्षेत्र में एक नई लीक बनाने वाला सुदर्शन न्यूज चैनल अब कुछ लोगों को बिल्कुल नहीं सुहा रहा है। इसमें वामपंथी, सेकुलर और जिहादी तत्वों के साथ-साथ वे लोग भी शामिल हैं, जो फर्जी गंगा-जमुनी तहजीब को भारत की थाती मानते हैं। यही कारण है कि अब तक इस चैनल और इसके स्वामी सह संपादक सुरेश चौहानके के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की लगभग सभी धाराओं के अंतर्गत मुकदमे दायर हो चुके हैं। पर सच तो सच होता है और इसलिए ये सारे मुकदमे किसी न्यायालय में नहीं टिकते हैं और सुदर्शन चैनल हर बार आरोपों से बरी होता रहा है। इसके बावजूद कुछ लोग या संगठन किसी न किसी बहाने इस चैनल पर मुकदमा करने से बाज नहीं आ रहे हैं, वह भी सुनी-सुनाई बातों को आधार बना कर।
इस बार यह काम किया है अपने फतवों और कारनामों के लिए हमेशा चर्चा में रहने वाली मुम्बई की रजा एकेडमी ने। इसने 18 मई को मुम्बई की पायधोनी पुलिस चौकी में सुदर्शन न्यूज चैनल के विरुद्ध प्रथम सूचना रपट (एफआईआर) दर्ज कराई है।
चैनल पर आरोप लगाया गया है कि उसने एक कार्यक्रम के दौरान इस्लाम के दूसरे सबसे पवित्र स्थल मदीना स्थित ‘मस्जिद ए नबवी’ और मदीना शहर का अपमान किया है। उल्लेखनीय है कि चैनल ने 15 मई को इजरायल और फिलिस्तीन युद्ध के संदर्भ में एक कार्यक्रम किया था। इसमें एक ‘डिजिटल ग्राफिक’ के जरिए एक मस्जिद की ओर मिसाइल गिरते हुए दिखाया गया था। दरअसल, जिस मस्जिद की ओर मिसाइल गिरते हुए दिखाया गया है वह ‘मस्जिद ए नबवी’ है ही नहीं और उस मस्जिद के पीछे जिस शहर का दृश्य दिखाया गया है, वह भी मदीना का नहीं, बल्कि गाजा का है। वही गाजा, जहां हमास के आतंकवादी रहते हैं और उन्हें खत्म करने के लिए ही पिछले दिनों इजरायल ने वहां जबर्दस्त बमबारी की थी।
लेकिन कुछ कट्टरवादी तत्वों ने ‘डिजिटल ग्राफिक’ में दिखाई गई मस्जिद को ‘मस्जिद ए नबवी’ बता कर दुष्प्रचार शुरू कर दिया। इस दुष्प्रचार को बल उस समय और मिल गया, जब ‘अल्ट न्यूज’ नामक एक पोर्टल ने कहा कि उसने तथ्य की जांच की है और ‘डिजिटल ग्राफिक’ में दिखाई गई मस्जिद ‘मस्जिद ए नबवी’ है। इसके साथ ही इस पोर्टल से जुड़े मोहम्मद जुबैर ने एक ट्वीट किया। इसमें उसने सुदर्शन न्यूज, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, विदेश मंत्रालय और रियाद स्थित भारतीय दूतावास को टैग करते हुए लिखा, ‘‘नफरत फैलाने वाले इस चैनल और उसके मालिक के विरुद्ध कोई कार्रवाई होगी?’’ इसके बाद उसने एक अन्य ट्वीट में दो मस्जिदों को दिखाते हुए लिखा, ‘‘सुदर्शन चैनल ने अपने ग्राफिक्स में मदीना की ‘मस्जिद ए नबवी’ को पुराने गाजा शहर की एक तस्वीर के साथ मिलाकर दिखाया है।’’
चैनल के इनकार करने के बाद भी जुबैर ने जानबूझकर ‘ग्राफिक्स’ में दिखाई गई मस्जिद को मदीना की मस्जिद बताया, ताकि लोग इस पर हंगामा करें और यही हो रहा है। भारत सहित अनेक मुस्लिम देशों में सुदर्शन चैनल और उसके मालिक के विरुद्ध आवाज उठी। इसी क्रम में रजा एकेडमी भी कूद आई और उसके एक प्रतिनिधिमंडल ने पहले मुम्बई के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त सुनील कोल्हे से भेंट कर चैनल के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की। फिर पुलिस ने चैनल का पक्ष जाने बिना उसके विरुद्ध एफआईआर भी दर्ज कर ली। इसमें धारा 194-ए, 153-ए, 505 (2) जैसी संगीन धाराएं लगाई गई हैं। कार्यक्रम में जो अतिथि आए थे, उन्हें भी नामजद किया गया है। सुरेश चौहानके कहते हैं, ‘‘दुनिया में इस तरह की एफआईआर कहीं भी किसी चैनल के विरुद्ध दर्ज नहीं हुई है, केवल सुदर्शन चैनल को छोड़कर। यह सब सुदर्शन न्यूज चैनल और मेरे विरुद्ध एक षड्यंत्र है।’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘सुदर्शन न्यूज चैनल 16 साल से मजहबी उन्मादियों द्वारा प्रताड़ित और शोषित हिंदुओं की आवाज बना हुआ है। इसलिए कुछ लोगों को यह चैनल चुभ रहा है। दरअसल, ऐसे लोगों को सुदर्शन चैनल से नहीं, बल्कि सुदर्शन चक्र से परेशानी है।’’
उनकी इस बात में दम भी लग रहा है। जब से सुदर्शन चैनल के विरुद्ध एफआईआर दर्ज हुई है तब से ट्वीटर पर ‘सुरेश चौहानके को गिरफ्तार करो’ नाम से अभियान चलाया जा रहा है। 20 मई को तो यह अभियान दूसरे क्रमांक पर ‘ट्रेंड’ कर रहा था। इसमें भारत के मुसलमानों और सेकुलरों के अलावा अनेक मुस्लिम देशों के लोग शामिल हैं।
साफ है कि सुदर्शन चैनल अपनी नई पत्रकारिता से जिन लोगों को बेनकाब कर रहा है, वे उससे परेशान हैं। यही कारण है कि वे लोग जब-तब इस चैनल के खिलाफ मोर्चा खोल देते हैं और इस बार भी यही हो रहा है।
सुदर्शन न्यूज चैनल 16 साल से मजहबी उन्मादियों द्वारा प्रताड़ित और शोषित हिंदुओं की आवाज बना हुआ है। इसलिए कुछ लोगों को यह चैनल चुभ रहा है। दरअसल, ऐसे लोगों को सुदर्शन चैनल से नहीं, बल्कि सुदर्शन चक्र से परेशानी है।
-सुरेश चौहानके, संपादक एवं स्वामी, सुदर्शन न्यूज चैनल
जब भी सांप्रदायिक संगठनों या लोगों के विरुद्ध कोई आवाज उठाता है, तो उसे डराने के लिए रजा एकेडमी जैसी संस्थाएं सामने आती हैं। सुदर्शन न्यूज चैनल के साथ भी यही हो रहा है।
-प्रेम शुक्ला, प्रवक्ता, भाजपा
रजा एकेडमी के कारनामे
रजा एकेडमी पहली बार 1999 में तब चर्चित हुई थी, जब उसने मुम्बई में तस्लीमा नसरीन के उपन्यास ‘लज्जा’ के विरोध में आवाज उठाई। इसी के गुर्गों ने 12 अगस्त, 2012 को मुम्बई के आजाद मैदान पर लगी अमर ज्योति को लात मार कर तोड़ दिया था। यही नहीं, एकेडमी के सैयद नूरी ने दिसंबर, 2020 में कोरोना के टीका को लेकर कहा था कि इसमें सुअर की चर्बी मिलाई गई है, इसलिए जब तक इसकी जांच न हो जाए तब तक मुसलमान टीका न लगवाएं। हालांकि बाद में उन्होंने इस पर सफाई दी थी, लेकिन इस कारण अनेक लोगों ने टीका लगाने से मना कर दिया था। 2016 में इसी रजा एकेडमी ने अपने जहरीले बयानों के लिए कुख्यात और इन दिनों भगोड़े के रूप में विदेश में रहने वाले जाकिर नाइक की जांच का भी विरोध करने के लिए प्रदर्शन किया था। रजा एकेडमी के सूत्रधार थे मुसन्ना मियां। ये आंबेडकर नगर (उ.प्र.) जिले के अकबरनगर के रहने वाले थे। पहले सरकारी नौकरी करते थे। बाद में मजहबी गुरु बने। 1980 के दशक में वे मुम्बई में बस गए। धीरे-धीरे उन्होंने वहां के मुसलमानों के बीच अपनी पैठ बनाई। उन दिनों मुम्बई में मुसलमानों के बीच उलेमा काउंसिल का प्रभाव रहता था। उसके प्रभाव को कम करने के लिए ही मोहम्मद सईद नूरी को आगे कर रजा एकेडमी की शुरुआत की गई। मुम्बई में बरसों तक पत्रकार रहे और अब भाजपा के प्रवक्ता प्रेम शुक्ला कहते हैं, ‘‘रजा एकेडमी को पालने का दुष्कर्म कांग्रेस, राकांपा जैसे दलों ने किया है। जब से शिवसेना की सरकार बनी है तब से रजा एकेडमी को शिवसेना का भी सहारा मिल गया है।’’
-अरुण कुमार सिंह
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