चीन की राजधानी बीजिंग में 2022 को ओलंपिक खेल होने हैं, लेकिन अमेरिका में इसमें शामिल न होने को लेकर सांसद एकजुट होते दिख रहे हैं। वे कहते हैं, चीन उइगर नरसंहार का दोषी है इसलिए किसी भी प्रमुख देश को इन खेलों में भाग नहीं लेना चाहिए
अमेरिका में हाउस आफ रीप्रेजेंटेटिव्स की अध्यक्ष डेमोक्रेट सांसद नैंसी पलोसी ने सदन में यह कहकर सनसनी पैदा कर दी कि अमेरिका को 2022 में चीन के बीजिंग में होने जा रहे ओलंपिक खेलों का कूटनीतिक बहिष्कार करना चाहिए। नैंसी ने चीन को मानवाधिकार उल्लंघन का दोषी ठहराते हुए यह भी कहा है कि दुनिया के जो भी बड़े नेता उसमें शामिल होंगे वे अपनी नैतिकता से समझौता करेंगे।
नैंसी पलोसी चीन में उइगरों पर हो रहे अत्याचारों को लेकर मुखर रही हैं और मानती हैं कि चीन ने मानवाधिकार उल्लंघन की तमाम सीमाएं लांघ दी हैं। अमेरिकी सांसद यूं भी बीजिंग ओलंपिक के विरोधी रहे हैं और स्थान परिवर्तन की मांग करते रहे हैं। सांसदों ने उन बड़ी अमेरिकी कंपनियों को भी आड़े हाथों लिया है जो अमेरिकी विदेश विभाग के उइगरों और दूसरे अल्पसंख्यकों के चीन द्वारा नरसंहार किए जाने के मत पर चुप्पी ओढ़े रहे हैं।
रायटर के हवाले से आई खबर के अनुसार, पलोसी का यह वक्तव्य संयुक्त सदन की उस बैठक में आया है जिसमें विश्व के नेताओं के चीन ओलंपिक से दूर रहने के मुद्दे पर चर्चा की गई थी। 18 मई को पलोसी ने कहा, ”मैं, इस प्रस्ताव के सभी प्रस्तावकों के साथ, अपील करती हूं कि दुनिया के प्रमुख देश चीन ओलंपिक का कूटनीतिक बहिष्कार करें और वहां अपनी उपस्थिति दर्ज न कराएं।” उन्होंने कहा कि विश्व के नेताओं को चीन जाकर उसका सम्मान नहीं बढ़ाना चाहिए।पलोसी ने कहा कि चीन में जारी नरसंहार के बावजूद अगर ये नेता वहां जाकर बैठते हैं तो वे अपनी नैतिकता से हाथ धो बैठेंगे, फिर उन्हें मानवाधिकार पर बात करने का कोई अधिकार नहीं रह जाएगा।
रिपब्लिकन सांसद क्रिस स्मिथ ने तो यहां तक कहा कि कारपोरेट प्रायोजकों को संसद के सामने बुलाकर बात करनी चाहिए और उन्हें उनके बर्ताव के लिए दोषी मानना चाहिए।
बहरहाल, पलोसी के इस वक्तव्य के बाद बीजिंग शांत नहीं बैठा। विदेश विभाग के प्रवक्ता झाओ लीजिआंग ने पलोसी के कहे को ‘झूठ से भरा और भ्रामक’ बताया। इससे पहले वाशिंगटन स्थित चीनी दूतावास के प्रवक्ता लियू पैंग्यू ने अपेन वक्तव्य में कहा कि अमेरिका के चीन के घरेलू मामलों और ओलंपिक में दखल देने के प्रयास सफल नहीं होंगे। लियू का कहना है कि अमेरिका ऐतिहासिक और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मानवाधिकार पर बोलने की नैतिकता नहीं रखता। अमेरिका चीन पर बेबुनियाद आरोप लगाने से बाज आए। स्मिथ ने यहां तक कहा कि बड़े उद्योग बस मोटा पैसा बनाना चाहते हैं, उन्हें फर्क नहीं पड़ता मेजबान देश कितनी बर्बरता-या नरंसहार-मचा रहा है।
डेमोक्रेट सांसद जिम मैक्गवर्न ने बीजिंग ओलंपिक स्थगित करके उन्हें किसी ऐसे देश में कराने का सुझाव दिया जो किसी का दमन न कर रहा हो।
अमेरिकी नेताओं में बीजिंग ओलंपिक का बहिष्कार किए जाने का मुद्दा गर्माया हुआ है, ज्यादातर का कहना है कि इन खेलों में किसी को हिस्सा नहीं लेना चाहिए। मानवाधिकार गुटों के संगठन ने भी खिलाड़ियों से बीजिंग ओलंपिक का बहिष्कार करने की अपील की है जिससे ओलंपिक कमेटी पर दबाव पड़े।
तिब्बत में बौद्धों का 1959 से ही दमन करता आ रहे चीनी कम्युनिस्टों ने वहां अब तिब्बती नस्ल को ही खत्म करने का बीड़ा उठाया हुआ है। वहां चप्पे—चप्पे पर सैनिक गश्त लगाते हैं और बचे हुए चंद बौद्धों पर नजर रखते हैं। बौद्ध मठों में भी सरकार के भेजे लामा बैटाए जाते हैं। बौद्ध अपने धर्म की रस्में खुलकर नहीं मना सकते। चीन ने वहां चीनी हान नस्ल वालों को बड़े पैमाने पर बसा कर तिब्बत की जनसांख्यिकी ही बदल दी है। ठीक ऐसा ही दमन चीन ने उइगर बहुल सिंक्यांग प्रांत में चला रखा है। वहां उइगरों पर जबरदस्त पाबंदियां लगी हुई हैं। उनकी मस्जिदें ढहा दी गई हैं, खुले में नमाज पढ़ने की इजाजत नहीं है। 2018 में संयुक्त राष्ट् के एक स्वतंत्र समूह को पुख्ता जानकारी मिली थी कि चीन सरकार ने कम से कम 10 लाख उइगरों को सिंक्यांग में शिविरों में रखा हुआ है। इन शिविरों को बीजिंग उग्रवाद को खत्म करने के लिए चलाए जा रहे ‘पेशेवर कार्य प्रशिक्षण केन्द्र’ बताता है और किसी भी तरह के दमन के आरोपों को सिरे से नकारता रहा है।
आलोक गोस्वामी
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