सुहास हिरेमठ
कोरोना संक्रमण के दूसरे दौर में स्थिति अत्यंत पीड़ादायक हो गयी है। दुख और पीड़ा से गुजर रहे कई लोग न्यायालयों में भी गये। इस पर कतिपय न्यायालयों की टिप्पणियों में उद्धृत शब्द उद्देश्य अच्छा होने के बावजूद दुखद रहे जिनसे सरकारों के प्रति अविश्वास का वातावरण निर्मित हुआ और संकट बढ़ा। इस पर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि शब्द के पीछे के भाव को समझिये। परंतु जनता पर असर तो शब्दों का ही होता है।
आज हमारा देश कोरोना वायरस के संकट से ग्रस्त है। संपूर्ण देश में अफरातफरी का माहौल है। कोरोना की इस दूसरी लहर में आॅक्सीजन की कमी का संकट खड़ा हो चुका है जिसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी। इस कारण कई लोगों का दुखद निधन हुआ है तथा कई लोगों के रिश्तेदारों को कष्ट तथा मानसिक दु:ख सहने पड़े। इन भीषण दृश्यों को देखकर मन में टीस उठती है। ऐसे समय में कई लोगों ने उच्च तथा उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर की थी। जिन लोगों ने भी यह याचिका दायर की है, जो कि गलत भी नहीं है, क्योंकि, निश्चित ही उन्हें अत्यंत पीड़ादायक परिस्थिति से गुजरना पड़
रहा है।
न्यायालयों की दुखद टिप्पणियां
हम लोगों को मरते हुए नहीं देख सकते
आप तो हाथी पर सवार हैं
शायद लोग मरते रहें, यह आपकी इच्छा है
आप पर हत्या का मामला दर्ज करना चाहिए
दुखद टिप्पणियां
परंतु इन याचिकाओं के संदर्भ में माननीय न्यायाधीशों के द्वारा दी गई प्रतिक्रिया मन को दुख पहुंचाने वाली है। दिल्ली के उच्च न्यायालय के एक सम्मानित न्यायाधीश ने कहा है कि ‘हम लोगों को मरते हुए नहीं देख सकते’। लोगों को मरते हुए तो कोई भी नहीं देख सकता परंतु क्या इसका अर्थ यह है कि केंद्र और राज्य सरकारों के सत्ताधिकारी, वहां के प्रशासनिक अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं? प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक प्रसार माध्यमों के द्वारा दी जाने वाली खबरों को देखने और सुनने वाले सभी लोग यह देख रहे हैं कि किस प्रकार युद्ध स्तर पर काम चल रहा है। केंद्र सरकार द्वारा हर प्रकार से आॅक्सीजन सप्लाई करने का प्रयत्न किया जा रहा है। रेलवे तथा सेना के तीनों दल अविरत रूप से इसी काम में लगे हुए हैं। बड़े-बड़े उद्योगपतियों को आवाहन करके उन्हें आॅक्सीजन बनाने के लिए प्रेरित किया गया है। विश्व के कई देशों से संपर्क करके वहां से आॅक्सीजन तथा दवाएं मंगाने की योजना भी बनाई गई है। इन योजनाओं पर कार्यवाही भी शुरू हो चुकी है। वैक्सीन एवं दवाइयों के बारे में भी यह सब प्रयास हो रहे है। साथ ही राज्यों तथा महानगरपालिकाओं ने भी युद्ध स्तर पर काम शुरू कर दिया है। यह सभी लोग इतनी मेहनत कर रहे हैं।
सम्मानित न्यायाधीश अपने दूसरे वाक्य में कहते हैं कि ‘आप तो हाथी पर सवार हैं’। न्यायाधीश जिन लोगों के लिए यह वाक्य कहे हैं, उन्हें जनता ने बहुमत से जिताया है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को छोड़कर अन्य सभी राज्यों के मुख्यमंत्री जनता के द्वारा चुने गए हैं। केंद्र की सरकार भी दूसरी बार बहुमत से चुनकर आई है। ऐसे में माननीय न्यायाधीश के द्वारा इस प्रकार के वाक्य से क्या जनता दुखी नहीं होगी? दिल्ली की उच्च न्यायालय की महिला न्यायाधीश ने तो यहां तक कह दिया कि ‘शायद लोग मरते रहें, यह आपकी इच्छा है’ (अंग्रेजी में उनके द्वारा कहे गए वाक्य तो मुझे नहीं पता परंतु अखबारों में आए हुए समाचारों के आधार पर मैं यह कह रहा हूं)। यह वाक्य मन को कितनी पीड़ा देने वाला है।
उसी प्रकार से मद्रास उच्च न्यायालय के सम्माननीय न्यायाधीश ने चुनाव आयोग से कहा है कि ‘आप पर हत्या का मामला दर्ज करना चाहिए’। चुनाव के कारण अगर कोरोना वायरस फैल रहा है तो दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि जिन राज्यों में कोरोना सबसे अधिक बढ़ा है, उनमें तो चुनाव हुए ही नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि वर्तमान के संकट से समाज को बचाना ही चाहिए परंतु जिस भाषा में माननीय न्यायाधीश महोदय बात कर रहे हैं, वे अचंभित करने वाले हैं।
मर्म पर उच्चतम न्यायालय का जोर
चुनाव आयोग के लोग जब उच्चतम न्यायालय में गए तब वहां के सम्माननीय न्यायाधीश ने कहा कि आप इन शब्दों के पीछे के भावों को पहचानिए। शायद चुनाव आयोग के लोग इस भाव को समझ भी लें परंतु सर्वसामान्य लोग जो अखबारों के माध्यम से केवल शब्द पढ़ते हैं या टीवी पर दिखने वाले अलग-अलग चैनलों पर समाचार सुनते हैं, उन्हें यह नहीं समझ में आएगा। वे तो केवल शब्द ही ध्यान में रखेंगे।
इसमें एक अच्छी बात है, वह यह है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रदेश के कुछ बड़े शहरों मे लॉकडाउन का आदेश राज्य सरकार को दिया। राज्य सरकार इसके विरोध में सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंची। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के इस आदेश को रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि इस बात का निर्णय राज्य सरकार ही करेगी। यही नीति सर्वदा होनी चाहिए।
उद्देश्य अच्छा पर असर नुकसानदायक
सभी माननीय न्यायाधीश महोदय लोगों का उद्देश्य अच्छा ही है, परंतु उनके वक्तव्य के कारण प्रधानमंत्री से लेकर गांव के सरपंच तक सभी के प्रति एक अविश्वास का वातावरण निर्माण हो रहा है। अगर ये श्रेष्ठ महानुभाव ही इस प्रकार अविश्वास का वातावरण निर्मित करेंगे, तो सामान्य व्यक्ति क्या करेगा? श्रीमदभगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है ‘यद् यद आचरति श्रेष्ठ: ततदेवेतरोजना:’। संत ज्ञानेश्वर जी ने भी ज्ञानेश्वरी में यही लिखा है। मंर ये जानता हूं कि मैं छोटा मुंह-बड़ी बात कह रहा हूं, परंतु आज की परिस्थिति में सभी प्रकार के मतभेदों को दूर रखकर संपूर्ण समाज तथा देश को बचाने का प्रयत्न करना चाहिए। इसी भाव से मैंने यह लिखा है। सुधि लोग इस पर विचार करेंगे, यही अपेक्षा है।
(लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं।)
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