कोरोना की इस साल आई दूसरी लहर की भयावहता के बीच देश को संबल दे रही है डीआरडीओ। देश के अनेक शहरों में हर सुविधा से युक्त नए अस्थायी अस्पताल खड़े किए, तो रातोंरात आक्सीजन की आपूर्ति के संयंत्र लगाए। सेना को अत्याधुनिक उपकरण देने वाले इस संस्थान के मानवता की सेवा के इस प्रेरक कार्य को मिल रही सर्वत्र सराहना
दो महीने पहले कोविड महामारी की अब तक की सबसे खतरनाक दूसरी लहर के शुरू होते ही इससे निपटने में मदद के लिए रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन यानी डीआरडीओ ने जो असाधारण काम देखते ही देखते पूरे किए हैं उसे यह नाम लोगों के दिलोदिमाग पर छा गया है। कोविड की भयानक दूसरी लहर के दौरान डीआरडीओ जिस तरह समस्याओं के तुरंत समाधान के लिए आगे आया है उससे देशवासी इसे संकट में सबसे बड़ा संबल मानने लगे हैं।
1958 में स्थापित हुए डीआरडीओ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य रक्षा उपकरणों और तकनीकों के लिए अनुसंधान तथा विकास कार्य करना है ताकि अपनी रक्षा सेनाओं को और मजबूत और आत्मनिर्भर बनाया जा सके। डीआरडीओ ने रक्षा उपकरणों के विकास के मामले में कई मौकों पर देश को विश्व के मुख्य देशों की श्रेणी में खड़ा किया है। आज देश कई प्रकार के रक्षा उपकरणों की आधुनिकतम श्रृंखला है, जैसे मिसाइलें, रडार, लड़ाकू विमान जैसे तेजस, उपग्रहरोधी प्रणाली, परमाणु पनडुब्बी अरिहंत, पिनाका राकेट, विश्व की सबसे लंबी दूरी तक सटीक मार करने वाली धनुष आर्टिलरी गन इत्यादि।
देश का भरोसा
किसी भी संस्थान की कार्यकुशलता और उत्पादकता मूलत: उसके नेतृत्व से परिभाषित होती हुई संस्थान के अंतिम कर्मचारी तक जाती है। आज डीआरडीओ में हम एक ऐसे नेतृत्व को देख रहे हैं जो किसी कार्य को मूर्तरूप देने के लिए खुद 18-20 घंटे काम करता है। इसका परिणाम आज किसी भी कठिन से कठिन परिस्थिति में सार्थक परिणाम दे सकने वाली संस्था डीआरडीओ के रूप में दिखता है। इसलिए बीते कुछ सालों में डीआरडीओ ने जो उपलब्धियां हासिल की हैं उसका श्रेय डॉ. जी. सतीश रेड्डी, जो वर्तमान में डीआरडीओ के प्रमुख हैं, को जाता है। 2 जनवरी, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डीआरडीओ की युवा वैज्ञानिकों की प्रयोगशालाओं के उद्घाटन के समय डीआरडीओ पर अपना विश्वास जताते हुए कहा था-ह्यह्यमैं डीआरडीओ को उस ऊंचाई पर देखना चाहता हूं जहां वह न सिर्फ भारत के संस्थानों की दशा और दिशा तय करे बल्कि दुनिया के अन्य संस्थानों के लिए भी हमारा डीआरडीओ और युवा वैज्ञानिक प्रयोगशालाएं प्रेरणास्रोत बन सकती हैं। आज देश की बेहतरीन वैज्ञानिक मेधा डीआरडीओ में है। डीआरडीओ की उपलब्धियां अनंत हैं। आपने देखा होगा जो बच्चा घर पर अच्छा काम करता है उसे मां-बाप ज्यादा काम देते हैं इसलिए डीआरडीओ को सब काम बताते रहेंगे। रामचरितमानस में कहा गया है-कौन सो काज कठिन जग माहीं, जो नहीं होहिं तात तुमह पाई।ह्णह्ण भारत के प्रधानमंत्री द्वारा किसी संस्थान विशेष यानी डीआरडीओ के लिए ऐसा बोलना अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है।
डीआरडीओ इस महामारी के खतरनाक रूप से होते हुए प्रसार पर तब से बहुत ध्यान दे रहा था, जबसे चीन के वुहान प्रांत में इसका विनाशकारी प्रभाव विश्व के संज्ञान में आया था। भारत में कोविड-19 के पहले रोगी की 30 जनवरी, 2020 को पहचान होने के बाद डीआरडीओ ने इस विषय पर अपना ध्यान और ज्यादा केंद्रित किया। 22 मार्च, 2020 को पूरे देश में लॉकडाउन के निर्णय से पहले ही डीआरडीओ ने मुख्य तीन बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित किया ताकि इस महमारी से सार्थक रूप से निपटा जा सके। ये थे—बचाव, परीक्षण तथा उपचार।
महामारी से बचाव हेतु सर्वप्रथम 28 फरवरी, 2020 को डीआरडीओ की दो प्रयोगशालाओं डीआरडीई, ग्वालियर तथा सीएफईईएस, दिल्ली को निर्देश दिया गया कि वे एक बड़ी मात्रा में सैनेटाइजर बनाना आरंभ करें ताकि सर्वप्रथम केर्न्द्रीय सरकार के विभिन्न विभागों तक इसे वितरित किया जा सके। साथ ही यह निर्देश भी दिया गया कि जल्द से जल्द सैनेटाइजर का फामूर्ला विभिन्न उद्योगों को देकर इसका उत्पादन बढ़ाया जाए। चूंकि बचाव के प्रमुख साधन सैनेटाइजर, मास्क, पीपीई किट और फेसशील्ड समझे गये थे, अत: संपूर्ण तालाबंदी के आरंभ में इन्हीं मुख्य साधनों के यथाशीघ्र उत्पादन में तेजी तथा देश में पर्याप्त उपलब्धता पर ध्यान दिया गया। ज्ञात हो कि मार्च 2020 तक एन-95 मास्क तथा पीपीई किट का स्वदेशी उतपादन करीब 4000 यूनिट प्रति सप्ताह था, जो महामारी के समय की आवश्यकताओं के सामने न केवल नगण्य था, वरन् उसमें गुणवत्ता की भारी कमी थी। फेसशील्ड का कोई उत्पादन नहीं होता था।
डीआरडीओ ने दो महीने के संपूर्ण लॉकडाउन के वक्त का उपयोग करके इन सभी बचाव के साधनों की उपलब्धता का ऐसा ढांचा खड़ा किया जिससे कि संपूर्ण लॉकडाउन के अंत तक 2-3 लाख मास्क और पीपीई किट प्रतिदिन बनने लगें। फेसशील्ड का डिजायन हर छोटे उद्योग तक पहुंच गया और बड़ी संख्या में उत्पादन होने लगा। गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए डीआरडीओ, ग्वालियर में मास्क तथा आईएनएमएएस (इनमास), दिल्ली में पीपीई किट और परीक्षण सुविधाएं उपलब्ध कराई गयीं और उन्हें परीक्षण प्रमाण पत्र भी दिये गये ताकि वे सब उद्योग स्वतंत्र इकाई के रूप में गुणवत्तापूर्ण उत्पादन कर सकें। फेसशील्ड के लिए भी लेजर आधारित स्पलैश एवं ड्रापलैट जांच की गई और गुणवत्ता प्रमाणित की गई। इस प्रकार जून 2020 के अंत तक डीआरडीओ ने करीब 18 प्रदेशों की शुरूआती आवश्यकताओं को पूरा किया और अक्तूबर 2020 तक हम स्वदेशी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए निर्यात की स्थिति तक पहुंच गये।
बचाव के उपकरणों का तेजी से निर्माण
सैनिटाइजर, मास्क, पीपीई और फेसशील्ड के अलावा कान्टेक्टलैस सैनेटाइजर डिस्पेन्सर, नमूने लेने के इनक्लोजर, शरीर का तापमान मापने के सेंसर आधारित यंत्र, वाहन तथा क्षेत्रीय सैनेटाइजेशन यंत्र, मेडिकल आक्सीजन संयंत्र, पराबैंगनी प्रकाश आधारित सैनेटाइजेशन यंत्र, दवाएं ले जाने वाले रोबोट, कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी एआई आधारित कांटैक्टलैस उपस्थिति सूचक प्रणाली जैसे कई नवाचार आधारित उत्पाद विकसित किये गये ताकि इस महामारी से बचाव हो सके। कोविड से बचाव के लिए जितनी भी तकनीकें विकसित की गईं उनका नि:शुल्क हस्तांतरण किया गया।
पिछले संपूर्ण लॉकडाउन में डीआरडीओ द्वारा स्वदेशी वेंटिलेटर के विकास में किया गया कार्य सबसे महत्वपूर्ण रहा। उस दौरान डीईबीईएल बेंगलूरु और आरसीआई हैदराबाद ने बीईएल, एएमटीजेड विशाखापट्टनम और एजीवीए हेल्पकेयर को वेंटिलेटर अपने देश में विकसित करने में मदद की। कई महत्वपूर्ण वेंटिलेटर पुर्जों, जो विदेशों से मंगाए जाते थे, को पूर्णत: देश में ही विकसित किया गया। इस प्रकार देश की वेंटिलेटर की आवश्यकता को पूरा किया गया।
आनन—फानन में खड़े किए अस्पताल
इसी बीच दिल्ली में कोविड के मरीजों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ अस्पतालों में बेड की संख्या में कमी आने लगी जिसके चलते रक्षा मंत्री और गृहमंत्री ने डीआरडीओ पर विश्वास जताते हुए दिल्ली में एक 1000 बेड वाले अस्थाई अस्पताल को बनाने के निर्देश दिये। इसमें 500 आईसीयू और वेंटिलेटर वाले तथा 500 आक्सीजन वाले बैड बनाए जाने थे। डीआरडीओ ने इतना बड़ा अस्पताल सिर्फ 11 दिनों में बनाकर दिखा दिया, जिसकी देश के सभी गण्यमान्य व्यक्तियों, जैसे उपराष्ट्रपति आदि ने प्रशंसा की। इसी प्रकार 500-500 बेड वाले अस्पताल मुजफ्फरपुर और पटना में भी बनाए गए, जिनसे आम जन को बहुत लाभ पहुंचा। मार्च 2021 के अंतिम सप्ताह में कोरोना की दूसरी घातक लहर आने के बाद ऐसे अस्थाई अस्पतालों की बहुत ज्यादा जरूरत महसूस हुई जिसके चलते पुन: डीआरडीओ को ये कार्यभार सौंपा गया। इसके तहत लखनऊ, बनारस, जम्मू, श्रीनगर, ऋषिकेश, अमदाबाद, गांधीनगर और हल्द्वानी में अस्थाई अस्पतालों का निर्माण किया जा रहा है। इनमें से कई अस्पतालों में भर्ती प्रक्रिया शुरू होने से कोविड से निपटने में बहुत मदद
मिली है।
आक्सीजन संकट से उबारा
कोविड महमारी की इस दूसरी लहर के दौरान देश को आक्सीजन की भारी किल्लत का सामना करना पड़ा, जिससे निपटने हेतु डीआरडीओ ने अल्प समय में कई नवाचार किये, जैसे एलसीए तेजस फाइटर एयरक्राफ्ट में पाइलट के लिए प्रयुक्त होने वाला आक्सीजन उत्पादन संयंत्र, जो डीआरडीओ द्वारा विकसित किया गया था, का स्तर बढ़ाकर उसे 1000 लीटर प्रति मिनट आक्सीजन उत्पादन संयंत्र बनाया गया। इसे सर्वप्रथम 15 दिन के अंदर ही एम्स तथा आरएमएल दिल्ली में प्रतिस्थापित कर दिया गया है। इस संयंत्र से करीब 200 मरीजों को आक्सीजन दी जा सकती है। अभी हाल में पीएम केयर्स फंड से ऐसे 500 आक्सीजन उत्पादन संयंत्र पूरे देश में लगाने के लिए डीआरडीओ को मंजूरी मिली है।
इसके अलावा डीआरडीओ की डीईबीईएल प्रयोगशाला द्वारा एक स्वदेशी आक्सीजन सेचुरेशन आधारित आक्सीकेयर उपकरण तैयार किया गया है जो रोगी की आक्सीजन की स्थिति को जांचकर आक्सीजन के फेफड़ों में बहाव को निर्देशित करता है। ऐसे 1,50,000 आक्सीकेयर खरीदना सरकार ने सुनिश्चित किया है और डीआरडीओ ने इसकी तकनीक उद्योगों तक हस्तांतरित कर दी है।
पिछले ही दिनों डीआरडीओ की एक दवा 2-डीजी को ड्रग कंट्रोलर जनरल आफ इंडिया ने मंजूरी प्रदान की है, जो कोविड के विरुद्ध एक मजबूत हथियार के रूप में उभरी है। इस दवा के काम करने के तरीके के अलग होने के कारण यह दवा हर तरह के कोविड के म्यूटेंट्स पर काम करेगी। इस दवा के आने के बाद पूरे देश को कोविड महामारी से लड़ने की मानसिक मजबूती भी मिली है। हम कह सकते हैं कि डीआरडीओ न केवल देश को अत्याधुनिक रक्षा उपकरण इत्यादि देने में सक्षम है वरन् कोरोना के संकट से लड़ने में देश के साथ खड़ा होकर समाज के प्रति अपनी महती भूमिका निभा रहा है।
डॉ. संजीव कुमार जोशी
(लेखक सचिव, डीआरडीओ के प्रौद्योगिकी सलाहकार हैं)
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