अभी हाल ही में कुछ जगहों पर नदी में तैरते हुए शव देखे गए थे. उसके बाद प्रयागराज जनपद के फाफामऊ घाट, श्रृंगवेरपुर घाट और कौशाम्बी जनपद में दफन किए गए शव की तस्वीरों को उस खबर से जोड़ा गया और फेक नैरेटिव बनाया गया कि कोरोना संक्रमण से मृत्यु हो जाने के बाद इतने शव रात- ओं- रात लाकर दफन कर दिए गए. देखिये पाञ्चजन्य की पड़ताल
गंगा किनारे कतार में दिखते शव की फोटो कुछ दैनिक समाचार पत्रों ने प्रकाशित कर दी. राहुल गांधी ने उस समाचार की कतरन को ट्वीट कर दिया. ‘द टेलीग्राफ’ ने दफन किये गए शवों की तस्वीर पर कैप्शन लिखा कि “आपके सुरक्षित स्थान से भारत कैसा दिखता है मिस्टर मोदी ? शायद आप कुरुक्षेत्र में गांधारी के विलाप को याद कर सकते हैं”. — तथ्य और सत्य से परे इस समाचार को प्रकाशित और प्रसारित किया गया. न्यूज़ चैनल के एंकर ने लगभग चीखते हुए इस खबर को चैनल पर प्रस्त्तुत किया. सोशल मीडिया पर तस्वीरों को वायरल किया गया. यह सब कुछ हुआ मगर किसी संवाददाता ने इन घाटों पर जाकर स्थानीय लोगों से यह नहीं पूछा कि दफन किये गए शव कोरोना महामारी के बाद के हैं या उसके पहले के हैं ? यह सवाल स्थानीय लोगों से जानबूझ कर नहीं पूछा गया. अगर यह सवाल गंगा के घाट पर किसी दुकानदार से पूछ लेते तो इतनी बड़ी फेक न्यूज़ कैसे बन पाती !
पांचजन्य ने इस फेक न्यूज़ की सचाई सामने लाने के लिए खोजबीन की. इस खबर के साथ एक फोटो पर गौर करिए. ये फोटो तारीख 16 मई 2021 को प्रयागराज के गंगा तट पर खींची गई है. जब चारों तरफ यह शोर मचाया जा रहा था कि उन घाटों पर कोरोना संक्रमितों का शव दफनाया गया है. तभी 16 मई 2021 को दिन में एक वृद्ध महिला का शव गंगा किनारे दफनाया जा रहा था. इधर पुलिस सख्त हो गई है सो, गंगा तट पर शव दफन नहीं करने दे रही है. मगर वो लोग जौनपुर जनपद से प्रयागराज पहुंचे थे. पुलिस ने अनुमति दे दिया. घाट पर विजय कुमार ने बताया कि उनकी मां की मृत्यु हो गई थी. वो लोग बौद्ध पंथ का पालन करने वाले लोग हैं. उनके पंथ के अनुसार वे शव को दफन भी कर सकते हैं और जला भी सकते हैं. उनका पंथ दोनों की अनुमति देता है. लेकिन उन्होंने शव को दफन करने का निर्णय लिया. वृद्ध महिला को कोरोना का संक्रमण नहीं हुआ था. उनकी मृत्यु हृदय गति रुक जाने से हुई थी. परिवार वालों ने शव दफनाया और वहां के स्थानीय लोगों को कोई आश्चर्य भी नहीं हुआ. आश्चर्य ना होने की वजह यह थी कि गंगा के कुछ घाटों पर कई दशकों से शव दफन किया जा रहा है. प्रयागराज जनपद के अलावा कौशाम्बी एवं कानपुर आदि जनपद में भी गंगा के घाट पर शव कई दशकों से दफन किये जा रहे हैं. कुछ दशक पूर्व इसका सिलसिला शुरू हुआ था. वो लोग जिन्होंने बौद्ध पंथ स्वीकार कर लिया. कुछ ऐसे लोग जो धनाभाव के कारण अंतिम संस्कार करने में सक्षम नहीं थे. उन लोगों ने प्रयागराज जनपद के फाफामऊ और श्रृंगवेरपुर घाट पर शवों को दफनाना शुरू कर दिया था.
अब इसके बाद 27 जून वर्ष 2019 की फोटो पर गौर करिए जब कोरोना वायरस नहीं आया था. उस समय की एक तस्वीर है. तारीख का विवरण फोटो के साथ उपलब्ध है. इस फोटो में श्रृंगवेरपुर घाट पर गंगा जी के किनारे शव दफन किया जा रहा है. शव दफन करने वाले लोग गंगा जी के तट पर करीब दो- तीन फीट गड्डा खोद कर शव को दफन करके चले जाते हैं. बारिश होने पर शव नदी में बहते हुए भी दिखाई पड़ते हैं.
बौद्ध पंथ को मानने वाले कौशाम्बी जनपद में काफी संख्या में पाए जाते हैं. कौशाम्बी पहले प्रयागराज जनपद का हिस्सा हुआ करता था. 4 अप्रैल 1997 को प्रयागराज से अलग कर कौशाम्बी को जिला बनाया गया था. कौशाम्बी जनपद प्राचीन काल में जैन एवं बौद्ध गतिविधियों का बड़ा केंद्र रहा है. इस जनपद में आज भी बौद्ध संत काफी संख्या में विचरण करते मिल जाते हैं. इन लोगों की काफी सक्रियता इस क्षेत्र में पाई जाती है. इसी वजह से बौद्ध पंथ को मानने वालों की खासी संख्या कौशाम्बी जनपद में हैं. कौशाम्बी जनपद में भी गंगा के घाट पर कई दशकों से शव दफन किये जा रहे हैं. इसमें कुछ भी नया नहीं है. हां ये जरूर है कि गंगा में प्रदूषण फैलाने वाले इस कार्य पर कभी रोक नहीं लगाई गई. पुलिस वालों ने भी इसे रोकना जरूरी नहीं समझा. अब इस मामले को तूल दिए जाने के बाद गंगा के घाट पर शव दफन करने वालों को पुलिस रोक रही है. पुलिस, जीप और नावों में लाउडस्पीकरों पर लोगों को बता रही है कि “नदियों में शवों को न फेंके और ना ही दफन करें. हम यहां अंतिम संस्कार करने में आपकी मदद करने के लिए हैं.” पुलिस अधिकारियों का कहना है कि नदी के किनारे दशकों से शव दफनाया जा रहा है. प्रयागराज जोन के पुलिस महानिरीक्षक कवीन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि “ गंगा जी के तट पर कोरोना से मरने वालों के लिए एक श्मशान घाट बनाया गया था. कोरोना संक्रमण से मृत्यु होने पर उसी घाट पर अंतिम संस्कार कराया जाता है. घाट पर दफन किये गए शव, कोरोना संक्रमितों के नहीं हैं. कुछ ग्रामीणों ने किसी परंपरा के कारण अपने मृतकों का अंतिम संस्कार नहीं किया. उन लोगों ने नदी के किनारे गड्डा खोदकर शव दफन कर दिया. यह सिलसिला वर्षों पुराना है. अब नदी के किनारे किसी को भी शव दफन करने की अनुमति नहीं दी जा रही है.”
-सुनील राय
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