भारत इन दिनों दो मोर्चोें पर युद्ध लड़ रहा है। एक ओर कोरोना महामारी है और दूसरी ओर है फर्जी-भ्रामक खबरों की बमबारी। झूठी-बेबुनियाद खबरें देश के लोकतंत्र के लिए ही नहीं, बल्कि पत्रकारिता के लिए भी खतरनाक है। शर्म की बात है कि संवेदनशील परिस्थितियों में देश के तथाकथित बुद्धिजीवियों, विपक्षी दलों और मीडिया के एक बड़े वर्ग का व्यवहार देश विरोधी हो जाता है
यदि कोई राष्ट्र किसी आपदा, युद्ध या किसी भी तरह की आंतरिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा हो, तब उस देश की मीडिया, सोशल मीडिया या बुद्धिजीवियों की क्या जिम्मेदारी होती है? यही न कि वह हालात को देखते हुए संयमित व्यवहार करे। समाज में सकारात्मकता फैलाए और लोगों का मनोबल बढ़ाए। लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। संकट काल या संवेदनशील परिस्थितियों में यहां तथाकथित बुद्धिजीवी, विपक्षी राजनीतिक दलों के नेता और मीडिया के एक बड़े वर्ग का व्यवहार देश विरोधी हो जाता है। मीडिया का यह नैतिक कर्तव्य और जिम्मेदारी है कि वह खबर प्रकाशित करने से पहले उसकी प्रामाणिकता की पुष्टि करे। इसी तरह, एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते देश के लोगों को भी सोशल मीडिया का प्रयोग विवेकानुसार करना चाहिए। उन्हें भी सजग रहना चाहिए कि जाने-अनजाने कहीं वे किसी दुष्प्रचार तंत्र का हिस्सा बन कर हथियार की तरह इसका प्रयोग तो नहीं कर रहे! जब से केंद्र में नरेंद्र्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी है, तभी से देश में फर्जी खबरों की बाढ़ सी आ गई है। देश में मीडिया का एक बड़ा हिस्सा रोजाना फर्जी खबरें परोस रहा है। कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में सरकार की सफलता को नकारने के उद्देश्य से फर्जी और भ्रामक खबरें फैलाई जा रही हैं। यह लोकतंत्र के लिए ही नहीं, पत्रकारिता के लिए भी खतरनाक है। झूठी खबरें फैलाने में कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी के बड़े नेता भी शामिल हैं। झूठी खबरों के तेजी से बढ़ते कारोबार को देखते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत पत्र सूचना कार्यालय यानी पीआईबी ने ‘फैक्ट चेक’ के लिए एक तंत्र विकसित किया है। यह मुख्यधारा मीडिया, वेबसाइट पर परोसी जाने वाली फर्जी खबरों तथा सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे झूठ और अफवाहों की पड़ताल कर उसकी असलियत सोशल मीडिया पर प्रस्तुत करता है।
26 अप्रैल, 2021 को दैनिक भास्कर ने अखबार में और अपनी वेबसाइट पर एक समाचार छापा, जिसमें कोरोना की दूसरी लहर की भयावहता को दर्शाते हुए दावा किया गया था कि संक्रमण से मरने वालों की वास्तविक संख्या सरकारी आंकड़ों से बहुत अधिक है। दुनिया के लगभग आधे नए मामले भारत में मिल रहे हैं, लेकिन राज्य सरकारें कोरोना के सही आंकड़े नहीं बता रही हैं, क्योंकि उन पर केंद्र सरकार का दबाव है। खास बात यह है कि ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ और दैनिक भास्कर के अनुबंध के तहत इस खबर को प्रकाशित किया गया था। लेकिन दैनिक भास्कर द्वारा ‘‘भारत में कोरोना से मौतों की वास्तविक संख्या 5 गुना अधिक, असल संख्या छिपाने के लिए राज्य सरकारों पर केंद्र्र का दबाव’’ शीर्षक से प्रकाशित खबर में किया गया दावा फर्जी था। कोविड-19 संबंधी सभी आंकड़े राज्य सरकारों द्वारा स्वतंत्र रूप से दिए जा रहे हैं। इस पर केंद्र सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। ऐसा संभव ही नहीं है। अगर ऐसा होता तो सबसे पहले महाराष्ट्र के आंकड़े सामने नहीं आते। बता दें कि दैनिक भास्कर समूह अपने पाठकों को फर्जी खबरों के विरुद्ध जागरूक करने का दावा करता है।
बीते साल 21 मई को ‘द वायर’ नामक वेबसाइट ने अंग्रेजी और हिंदी में एक खबर चलाई थी, जो गुजरात की एक कंपनी से 5,000 वेंटिलेटर की खरीद से संबंधित थी। कहा गया कि कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने जिस कंपनी को वेंटिलेटर का ठेका दिया था, अमदाबाद के सबसे बड़े कोविड अस्पताल के डॉक्टरों के अनुसार वह मानकों के अनुकूल नहीं था। यह दावा भी किया गया था कि इस कंपनी के वर्तमान और पूर्व प्रवर्तकों के भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से निकट संबंध हैं। कंपनी के प्रवर्तक उसी उद्योगपति परिवार से जुड़े हैं, जिन्होंने 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनका नाम लिखा सूट उपहार में दिया था। यह संभावना जताई गई थी कि वेंटिलेटर खरीद के लिए धनराशि ‘पीएम केयर्स फंड’ से दी गई। पड़ताल में यह खबर फर्जी निकली। गुजरात सरकार के अनुसार, वेंटिलेटर खरीदे नहीं गए थे, बल्कि दान किए गए थे और वे चिकित्सा मानदंडों के अनुरूप ही थे।
इसी तरह, इन दिनों सोशल मीडिया पर ‘द क्विंट’ नामक वेबसाइट की एक खबर तैर रही है, जो बीते साल अप्रैल की है। इसमें कोविड-19 अस्पतालों के लिए गठित कार्यबल के संयोजक डॉ. गिरधर ज्ञानी के हवाले से कोरोना संक्रमण के तीसरे चरण में पहुंचने का दावा किया गया था। इस खबर को आज के संदर्भ से जोड़कर व्हाट्सएप पर धड़ल्ले से भेजा जा रहा है और संक्रमण के तीसरे चरण में पहुंचने का दावा किया जा रहा है। सच की कसौटी पर यह खबर झूठी पाई गई। डॉ. ज्ञानी ने पिछले साल यह बयान दिया था, फिर बाद में वापस ले लिया गया था।
एनडीटीवी को तो जैसे फर्जी और बेबुनियाद खबरों के प्रचार-प्रसार में महारत हासिल है! इसने बीते माह 20 अप्रैल को एक फर्जी खबर चलाई। इसमें कहा गया कि देश में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। लोगों का दम फूल रहा है और आॅक्सीजन की मांग बढ़ गई है, लेकिन सरकार आॅक्सीजन निर्यात कर रही है। आॅक्सीजन निर्यात पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले चालू वित्त वर्ष में दोगुना हो गया है। देश के कई राज्यों में चिकित्सा आॅक्सीजन की किल्लत के बीच अस्पतालों में औद्योगिक आॅक्सीजन की आपूर्ति की जा रही है। साथ ही, वेबसाइट ने दावा किया कि जनवरी 2020 के मुकाबले जनवरी 2021 तक महामारी के बीच आॅक्सीजन का निर्यात बढ़कर 734 प्रतिशत से अधिक हो गया। तथ्यों की जांच-पड़ताल में झूठ पकड़ में आ गया। दरअसल, खबर में औद्योगिक आॅक्सीजन के निर्यात को चिकित्सा आॅक्सीजन का निर्यात लिखा गया। सच यह है कि वार्षिक निर्यात क्षमता 0.4 प्रतिशत से कम थी और अब आॅक्सीजन का निर्यात नहीं किया जा रहा। दिसंबर 2020 और जनवरी 2021 के कम मांग वाले महीनों में केवल अतिरिक्त औद्योगिक आॅक्सीजन का ही निर्यात किया गया।
इससे पहले 8 मार्च को एनडीटीवी ने एक और झूठा समाचार चलाया था। समाचार के शीर्षक में इसने लिखा कि राजस्थान में कोविड-19 वैक्सीन की खुराक अगले दिन खत्म हो जाएगी, जबकि नीचे लिखा कि राज्य में प्रतिदिन 2.5 लाख लोगों को टीके लगाए जा रहे हैं और मात्र 5.85 लाख खुराकें ही बची हैं, जो दो दिन चलेंगी। इसलिए राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. रघु शर्मा ने केंद्र से वैक्सीन की मांग की है। अभियान जारी रखने के लिए राज्य को मार्च में ही वैक्सीन की 60 लाख खुराक की जरूरत है। यदि समय रहते वैक्सीन नहीं मिला तो अभियान बीच में ही रुक सकता है। लेकिन केंद्र सरकार का कहना था कि राज्य में कोविड-19 वैक्सीन की कोई कमी नहीं है। राज्य को 37.61 लाख खुराक की आपूर्ति की गई, जिसमें से केवल 24.28 लाख खुराक की ही खपत हुई है। केंद्र सरकार नियमित रूप से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में वैक्सीन आपूर्ति की उपलब्धता की निगरानी कर रही है। उनकी आवश्यकता और खपत के अनुसार खुराक प्रदान कर रही है। अगले दिन 9 मार्च को एनडीटीवी ने अपनी वेबसाइट पर खबर अपडेट करते हुए लिखा कि राजस्थान में कोरोना-रोधी वैक्सीन की कमी नहीं है। यानी कांग्रेस सरकार के मंत्री और एनडीटीवी दोनों ही झूठे निकले।
महामारी के इस कठिन दौर में भारत सरकार और लोगों की सहायता करने के बजाए कांग्रेस के नेता न केवल झूठ फैला रहे हैं, बल्कि लोगों को उकसा कर देश का माहौल बिगाड़ने का प्रयास भी कर रहे हैं। राहुल गांधी ने हाल में ट्वीट किया, ‘‘केंद्र सरकार की वैक्सीन रणनीति नोटबंदी से कम नहीं है। आम जन कतारों में लगेंगे, धन, स्वास्थ्य और जान का नुकसान झेलेंगे और अंत में सिर्फ कुछ उद्योगपतियों का फायदा होगा।’’ कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ ने तो वैक्सीन के परीक्षण पर ही सवाल उठाते हुए इसे राज्य के लोगों को लगवाने से इनकार कर दिया था। वहीं, कांग्रेस के सांसद शशि थरूर भी महामारी को लेकर ट्विटर पर झूठ फैला रहे हैं। 10 मई को उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘अंदमान में कोविड से बिगड़ती स्थिति की रिपोर्ट मिलने से अशांत, जीबी पंत अस्पताल में रोजाना 4-5 मौतों की दास्तां, कथित तौर पर दबाए गए मामले और मौतों के आंकड़े, लक्षण वाले मामलों की भी जांच नहीं और 4 लाख लोगों के लिए केवल 50 वेंटिलेटर। दुर्भाग्यवश मीडिया खामोश।’’ लेकिन थरूर का दावा तथ्यात्मक रूप से गलत था। सच यह है कि अंदमान द्वीप पर देश में प्रति 10 लाख पर सबसे अधिक यानी 9,43,233 जांच हुए हैं। वहीं, दूसरी लहर के दौरान दर्ज मौतों की संख्या 16 रही। देश में स्वास्थ्य सुधार की दर सबसे अधिक यानी 96 प्रतिशत है।
हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की वेबसाइट ‘मिंट’ ने 19 अप्रैल, 2021 को ‘भारत का ‘डबल म्यूटेशन’ कोविड वायरस वैरिएंट दुनिया को चिंतित कर रहा है’ शीर्षक से ब्लूमबर्ग की एक खबर छापी। सच यह है कि ‘डबल म्यूटेशन’ कोरोना वायरस दुनिया के कई देशों में भी मिले हैं। इसी समूह के हिंदी अखबार ‘हिन्दुस्तान’ ने ‘पेंशनर निजी अस्पतालों में लगवाएं टीका, सीजीएचएस करेगा भुगतान’ शीर्षक से समाचार छापा। फैक्ट चेक में यह समाचार झूठा निकला। केंद्र सरकार की ओर से कहा गया था कि पेंशनभोगी अगर निजी अस्पताल में कोरोना का टीका लगवाते हैं तो इसका भुगतान सीजीएचएस द्वारा नहीं किया जाएगा।
इनके अलावा, झूठी खबरों के कारोबार से इंडिया टुडे भी अछूता नहीं है। इसने 6 अप्रैल को हरिद्वार में कुंभ के आयोजन को लेकर फर्जी खबर प्रकाशित की। कहा कि केंद्र सरकार ने कहा है कि हरिद्वार में चलने वाला कुंभ कोरोना का ‘सुपर स्प्रेडर’ साबित हो रहा है, इसलिए उम्मीद है कि कुंभ स्थल पर इसे रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे होंगे, जबकि केंद्र की ओर से ऐसा कुछ नहीं कहा गया था। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने रिपोर्ट के शीर्षक पर नाराजगी जताई और गलत सूचना फैलाने के लिए मीडिया संस्थान को लताड़ा। खबर का खंडन करते हुए मंत्रालय ने तुरंत ट्वीट किया। केंद्र्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने उसी दिन पत्रकारों से कहा कि कुंभ की अवधि पहले ही कम कर दी गई है। अमूमन कुंभ साढ़े तीन से चार महीना चलता है,लेकिन इसे पहले ही एक माह घटा दिया गया है। इसलिए तथ्यों की दृष्टि न खोएं। दरअसल, यह रिपोर्ट नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी.के पॉल के हवाले से एक न्यूज ऐजेंसी के अलर्ट पर आधारित थी। उनसे पूछा गया था कि क्या कुंभ आयोजन कोरोना का ‘सुपर स्प्रेडर’ बन सकता है, इस पर उन्होंने कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि कुंभ मेले में मानक संचालन प्रक्रिया का पालन किया जा रहा होगा। इसी को इंडिया टुडे ने रिपोर्ट का शीर्षक बना दिया।
फर्जी खबरें परोसने वालों की भीड़ में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ भी शामिल है। उसने 18 अप्रैल, 2021 को खबर छापी, जिसमें दावा किया गया कि केंद्र्र ने कोविड ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाले स्वास्थ्यकर्मियों की बीमा सुरक्षा को वापस ले लिया है। अब 50 लाख रुपये की बीमा योजना का विस्तार नहीं किया जाएगा। केंद्र सरकार ने इसका खंडन करते हुए कहा कि रिपोर्ट में योजना की गलत व्याख्या की गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने लगातार कई ट्वीट कर स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज (पीएमजीकेपी) की घोषणा मार्च 2020 को की गई थी, जिसे 24 अप्रैल, 2021 तक तीन बार बढ़ाया गया था। योजना के तहत इस तारीख तक बीमा कंपनियों को दावों का निपटारा करना था। इसके बाद नई व्यवस्था के तहत कोरोना योद्धाओं को बीमा सुरक्षा प्रदान किया जाएगा। इसके लिए नई बीमा कंपनियों के साथ बातचीत चलने की बात कही गई थी।
फर्जी, भ्रामक और बेबुनियाद खबरें छापने पर भले ही मीडिया घरानों की सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर लानत-मलानत की जा रही हो, लेकिन इन पर कोई असर नहीं हो
रहा है। इन्हें अपनी विश्वसनीयता खो देने का भी मलाल नहीं है।
-नागार्जुन
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