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संस्कृति संवाद : कम्बोडियाई जनजीवन एवं इतिहास पर भारतीय सांस्कृतिक प्रभाव

by WEB DESK
May 14, 2021, 12:10 pm IST
in धर्म-संस्कृति, दिल्ली
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दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के जनजीवन पर ही नहीं, वहां के इतिहास और संस्कृति पर भारत का सांस्कृतिक प्रभाव रहा है। म्यांमार, थाईलैण्ड, मलेशिया, कम्बोडिया, वियतनाम, इंडोनेशिया एवं बोर्नियो में दूसरी व तीसरी सदी के संस्कृत अभिलेखों में वैदिक वांग्मय के सन्दर्भ हैं

दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के जनजीवन, संस्कृति और इतिहास पर सहस्राब्दियों से रामायण, महाभारत, पुराणों, अन्य भारतीय प्राचीन ग्रंथों एवं भारतीय हिन्दू व बौद्ध संस्कृतियों का व्यापक प्रभाव रहा है। इंडोनेशिया, कम्बोडिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, थाईलैण्ड व फिलीपीन्स आदि देशों में हजारों प्राचीन हिन्दू मंदिर व उनके पुरावशेष, हिन्दू राजवंशों की दीर्घ शृखला, प्राचीन संस्कृत अभिलेखों की प्रचुरता, संस्कृत शब्दावली का प्रयोग व वाल्मीकि रामायण आधारित रामकथाओं के स्थानीय संस्करण और रामायण व महाभारत के मंचन आदि दक्षिण-पूर्व एशिया में प्राचीन वृहत्तर भारत के सांस्कृतिक विस्तार के प्रमाण हैं।

साहित्य एवं संस्कृति पर भारतीय प्रभाव
म्यांमार, थाईलैण्ड, मलेशिया, कम्बोडिया, वियतनाम, इंडोनेशिया एवं बोर्नियो में दूसरी व तीसरी शताब्दी के एक हजार से अधिक संस्कृत अभिलेखों में वैदिक वांग्मय के सन्दर्भ हैं। चम्पा और कम्बुज के 100 से अधिक संस्कृत अभिलेखों की भाषा उच्च कोटि की हैं। बड़े अभिलेखों में यशोवर्मन के चार अभिलेख क्रमश: 50, 75, 93 और 108 छन्दों एवं राजेन्द्र्रवर्मन के दो अभिलेख 218 और 298 छन्दों के हैं। अभिलेखों में प्राय: सभी छन्दों, उन्नत संस्कृत व्याकरण एवं अलंकारों का समावेश है। रामायण, महाभारत, काव्य, पुराण भारतीय दर्शन हिन्दू आध्यात्म और साहित्य भी सन्दर्भित हैं। इनमें वेद, वेदांग, स्मृति, ब्राह्मण ग्रंथों, बौद्ध और जैन साहित्य, रामायण, महाभारत, काव्य, पुराण, पाणिनिकृत व्याकरण और पतंजलि महाभाष्य तथा मनु, वात्स्यायन, विशालाक्ष, सुश्रुत, त्रवरसेन, मयुर और गुणारव्य की रचनाओं के सन्दर्भ एवं शब्दावली व छन्द कालिदास से प्रभावित है।

विश्व दुर्लभ प्राचीन हिन्दू मन्दिर
दक्षिण-पूर्व एशिया के 20,000 से अधिक मन्दिरों व उनके पुरावशेषों में कम्बोडिया के अंकोरवाट एवं सहस्रलिंग तीर्थ विशेष महत्वपूर्ण हैं।
कम्बोडिया में तिब्बत से निकलने वाली मेकांग नदी तट पर 402 एकड़ में फैला 12वीं सदी का अंकोरवाट विष्णु मन्दिर विश्व का विशालतम धर्म स्थल है। कम्बोडिया अर्थात प्राचीन कम्बुज में अंकोरथोम व अंकोरवाट, खमेर अर्थात यशोधरपुर राज्य की राजधानी थे। तीसरी से 15वीं सदी तक अंकोर अपने उत्कर्ष पर था। प्राचीन संस्कृत अभिलेखों के अनुसार, इस राज्य का संस्थापक अश्वत्थामा का वंशज कौण्डिन्य नामक ब्राह्मण था, जिसका सन्दर्भ 658 ईस्वी के चम्पा (वियतनाम) के चामवंशीय राजा प्रक्षधर्म के अभिलेख में 16-18वीं पंक्ति में है। परवर्ती काल में नौवीं शताब्दी में जयवर्मा तृतीय जब कम्बुज का राजा बना, तब अंकोरथोम नगर के ठीक मध्य में ईसा पूर्वकालीन विशाल शिव मन्दिर था, जहां समाधिस्थ शिव की प्रतिमा थी और 1000 अन्य मन्दिर थे। अंकोरवाट व अंकोरथोम का क्षेत्र यूनेस्को की विश्व धरोहर घोषित है। अंकोरवाट मन्दिर आज भी विश्व का सर्वाधिक भव्य एवं एक मानवेत्तर कृति जैसा लगता है।

मन्दिर की नक्काशी और शैल चित्रों में रामायण व पुराणों के प्रसंगों के साथ समुद्र्र मंथन का भी भव्य उत्कीर्णन है। इनमें रावण वध, सीता स्वयंवर, विराध एवं कबंध वध के सुन्दर चित्रण हैं। भगवान श्रीराम स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ते हुए, सुग्रीव से मैत्री, बाली-सुग्रीव युद्ध, अशोक वाटिका में हनुमान, राम-रावण युद्ध और राम की अयोध्या वापसी के मनोरम दृश्य हैं। गलियारों में कम्बुज के तत्कालीन सम्राट, बलि-वामन प्रसंग, स्वर्ग-नरक के दृश्य, समुद्र्र मंथन और देव-दानव युद्ध सहित महाभारत, हरिवंश पुराण आदि कई पुराणों से संबंधित अनेक शिलाचित्र हैं। अंकोरवाट का निर्माण एक प्राचीन विष्णु मन्दिर स्थल पर सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-1153) ने प्रारम्भ किया, जिसे उनके उत्तराधिकारी धरणीन्द्र्रवर्मन ने पूरा किया।

ऊंचे चबूतरे पर तीन खण्डों के मन्दिर के हर खंड में 8 गुम्बज, सुन्दर मूर्तियां और ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां हैं। मुख्य मन्दिर तीसरे खण्ड की चौड़ी छत पर है, जिसका शिखर 213 फीट ऊंचा है। मन्दिर के चारों ओर पत्थर की दीवार का घेरा पूर्व-पश्चिम में करीब दो-तिहाई मील एवं उत्तर-दक्षिण में आधा मील लंबा है। बाहर 700 फीट चौड़ी खाई पर 36 फीट चौड़ा पुल है। पुल से पक्की सड़क मन्दिर के पहले खण्ड द्वार तक जाती है। खमेर साम्राज्य में बना विष्णु का हिन्दू मंदिर अब बौद्ध साधना स्थल में बदल गया है।

विश्व दुर्लभ सहस्रलिंग तीर्थ
अंकोरवाट से 25 किलोमीटर दूर श्यामरीप स्थान पर कम्बोडिया की पवित्रतम क्बाल स्पीन नदी तल में कई सहस्राब्दी प्राचीन हजारों शिवलिंग उत्कीर्णित हैं। शिवलिंगों पर से प्रवाहित जल को दिव्य, रोग निवारक, कृषि उपज वृद्धि कारक एवं मनोरथों की पूर्ति का माध्यम माना जाता है। अन्य हिन्दू देवताओं विष्णु, लक्ष्मी, ब्रह्मा, शिव एवं राम आदि की प्रतिमाएं भी उत्कीर्णित हैं। ऐसा ही एक सहस्रलिंग तीर्थ 17वीं सदी का विजयनगर साम्राज्यकालीन कर्नाटक के सिरसी में भी है। यहां नदी तल में शिवलिंग के सम्मुख बैल या नंदी भी है।

ईसा पूर्वकालीन हिन्दू बौद्ध इतिहास
ई. पू. प्रथम सदी से 550 ई. तक कम्बोडिया के हिन्दू मतावलम्बी फुनान साम्राज्य में शिव व विष्णु का प्राधान्य था। जयवर्मन द्वितीय (790-850 ई.) के काल से हिन्दुत्व चरम पर था। सूर्यवर्मन प्रथम (1010-1050 ई.) ने तमिल चोलराज राजराजा को रथ भी भेंट किया था। चोलराज राजेन्द्र्र ने कम्बोडिया पर श्रीविजय व ताम्रलिंग राज्यों के आक्रमणों पर सैन्य सहायता दी थी। जयवर्मन सप्तम के काल में 13वीं सदी में कम्बोडिया में 798 मन्दिर 102 चिकित्सालय व 121 बड़ी धर्मशालाएं थीं। सम्पूर्ण कम्बोडिया में हिन्दू देवी-देवताओं के उत्कीर्णन, अंकोर पुरातात्विक पार्क व राष्ट्रीय संग्रहालय में गणेश तथा हनुमान के खमेर स्वरूप एवं अन्य हिन्दू देवी-देवताओं के प्राचीन विग्रह, देवराज इन्द्र्र प्रदत्त कौण्डिन्य की तलवार आदि कम्बोडियाई हिन्दू इतिहास के प्रमाण हैं। अनमोल पुरावशेषों के संरक्षण व रख-रखाव हेतु प्रिन्स सिहांनुक के 1980 के अंकोरवाट सहित प्राचीन मन्दिरों के संरक्षण की अपील पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 1986-93 तक वहां के कुछ मन्दिरों का जीर्णोद्धार किया था।

कम्बोडिया के सकल घरेलू उत्पाद का 25 प्रतिशत से अधिक चीनी ऋण व बड़ी मात्रा में चीनी प्रत्यक्ष निवेश होने से चीन, कम्बोडिया के प्राचीन इतिहास को भी बदलने मे लगा है। भारत व प्रवासी भारतीयों को कम्बोडिया की सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण हेतु आगे आना होगा।

प्रो. भगवती प्रकाश
(लेखक गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा के कुलपति हैं)

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