एक बड़ा झूठ, बड़ा फरेब है कि रमजान इबादत और शांति का महीना है. फलस्तीन से जिस तरीके से इस्राइल पर राकेट हमले हो रहे हैं, वो रमजान और इसकी शांति प्रियता का अकेला उदाहरण नहीं है.
यह हमले इस बात की तस्दीक करते हैं कि रमजान में जिहाद फर्ज है. जिहादी कट्टरपंथी ज्यादा से ज्यादा काफिरों की हत्या को सबाब का काम मानते हैं. इस देश में एक बहुत बड़ा तबका है, जो दलील देगा कि ये रंजिश पुरानी है. वैसे भी इस तबके के लिए इस्राइल पर गिरने वाले राकेट न्याय का संदेश होते हैं और गाजा पर होने वाली जवाबी कार्रवाई इस्राइल का जुल्म. खैर, यहां तो जिहाद है, फिर कोई बताएगा कि रमजान के इस मुकद्दस महीने में लेबनान, सीरिया, अफगानिस्तान, इराक समेत तमाम मुल्कों में रक्तपात क्यों मचा हुआ है. कहीं मूल में हिंसा है. और बहुत गहरे तक है.
पहले बात इस्राइल और फलस्तीन के मौजूदा संघर्ष की. अल अक्सा मस्जिद से ये विवाद शुरू हुआ. वैसे भी इस्लाम में कथित तौर पर ये तीसरा सबसे पवित्र स्थल मुसलमानों और यहूदियों के बीच हमेशा से विवाद की जड़ रहा है. अल अक्सा मस्जिद पर कुछ फलस्तिनियों ने इस्राइली पुलिस पर पथराव किया. यहीं से टकराव की शुरुआत हुई. ये पथराव बिना किसी उकसावे, योजनाबद्ध था. इसके बाद की पुलिस कार्रवाई ने हमास को मौका दे दिया. ये आतंकवादी संगठन इस समय गाजा की सत्ता संभाले हुए है. 2014 के बाद से कोई बड़ा टकराव न होने के कारण हमास की लोकप्रियता कम होती जा रही थी. दूसरी बात ये कि फलस्तीनियों के लिए 20 करोड़ डॉलर की मदद अमेरिका ने डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में रोक रखी थी. जिसके कारण हमास और ज्यादा अलोकप्रिय होता जा रहा था. लेकिन अमेरिका में सत्ता बदलने के साथ ही हमास को अहसास हो गया कि उसे हमदर्द मिल गए हैं. उसने इस अशांति को फैलाने के लिए खासतौर पर रमजान का महीना चुना, ये आप समझ सकते हैं. हमास ने इस्राइल पर ताबड़तोड़ राकेटों से हमला किया. दो सौ से ज्यादा राकेट दागे गए, जिसे इस्राइल के आयरन डोम नाम के डिफेंस सिस्टम ने हवा में ही नाकाम कर दिया. जवाब में इस्राइली युद्धक विमानों ने कुछ इमारतों में छिपे हमास के आतंकवादियों को निशाना बनाकर बमबारी की. जाहिर है, हमास के राकेट इस्लामिक थे, इसलिए जिहादियों, वामपंथियों, सेक्यूलरों के लिए वे जायज थे. इस्राइल की बमबारी पर अब यही लोग हायतौबा मचा रहे हैं. तो भी इस पूरे संघर्ष का एक बड़ा पहलू रमजान है.
अपने मजहबियों को ही बख्शने को तैयार नहीं
रमजान को लेकर जो नैरेटिव गढ़ा गया है, वह है अमन, शांति और इबादत. लेकिन इस्लाम में ये कहां. ये अपने मजहबी भाइयों तक को इस माह में बख्शने के लिए तैयार नहीं है. अफगानिस्तान में सत्तारूढ़ पार्टी ने तालिबान से अपील की कि रमजान में हिंसा न हो. इसके लिए युद्ध विराम किया जा सकता है. लेकिन तालिबान ने साफ इंकार कर दिया. . पिछले सप्ताह ही 63 छात्राओं का तालिबान ने नरसंहार किया.
अफगानिस्तान में रमजान के महीने में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं. फलस्तीन में हवाई हमले में बच्चों की मौत दुखद है तो तालिबान द्वारा किया गया नरसंहार कम दुखद नहीं है, लेकिन आंसू सिर्फ गाजा के बच्चों के हिस्से में आ रहे हैं. सीरिया में यही हो रहा है. वहां भी रक्तपात मचा है. लीबिया की हालत तो और ज्यादा खराब है. भारत में इसी रमजान माह में एक फैक्ट्री पकड़ी गई, जहां इस्तेमाल किए जा चुके सर्जिकल दस्तानों को धोकर पैक किया जा रहा था. सब रोजेदार थे, जो ये कर रहे थे. रेमडेसिविर इंजेक्शन बनाने की नकली फैक्ट्री मेरठ में पकड़ी गई, वो भी रमजान के महीने में. सब रोजे से. आक्सीजन की कालाबाजारी से लेकर धोखाधड़ी तक के मामले सामने आ रहे हैं, ये सब रमजान में मुसलमान कर रहे हैं. तो क्या रमजान में ये जानलेवा कारोबार हलाल है. या ये भी एक किस्म का जिहाद है.
रमजान और जिहाद का संबंध
इसके लिए हमें रमजान और जिहाद के संबंध को समझना होगा. क्या कोई इस्लामिक विचारधारा ऐसी है, जो कहती है कि रमजान में जिहाद फर्ज है. इस बाबत दुनियाभर के रक्षा विशेषज्ञ अध्ययन कर चुके हैं, शोध कर चुके हैं. निष्कर्ष यही है कि हां, रमजान और जिहाद के बीच सीधा संबंध है.
पैगंबर मोहम्मद की पहली जिहाद को बद्र की लड़ाई के नाम से जाना जाता है. यह वर्ष 624 में रमजान के महीने में ही लड़ी गई थी. इसके आठ साल बाद उन्होंने जब मक्का पर जीत हासिल की, तो महीना रमजान का ही था. रमजान में जिहाद को सुन्नत बताने वाले कट्टरपंथी मौलाना इन दो लड़ाइयों का ही उदाहरण देते हैं. जिस तरह पैगंबर जिए, उसी तरीके से जीवन जीने को सही इस्लाम मानने वाले संगठन गाहे-बगाहे रमजान से पहले मुसलमानों को इन जिहादों की याद दिलाते हैं. दलील ये भी होती है कि रमजान में जिहाद के दौरान मारे जाने पर सबसे ऊंची जन्नत मिलती है. जिहाद का पूरा फलसफा वैसे भी जन्नत की ख्वाहिश और हूरों की कामना पर टिका है.
आधुनिक जिहाद के खलनायक
आधुनिक जिहाद का जनक अब्दुल्ला आजम को माना जाता है. अब्दुल्ला आजम ही वह शख्स है, जो 1980 के दशक में जिहाद की सोच को लेकर मदरसों और मस्जिदों में पहुंचा. अब्दुल्ला आजम अफगानिस्तान में सोवियत संघ की फौज के खिलाफ लड़ने वालों के बीच बहुत मशहूर था. खासतौर पर अरब व अन्य विदेशी लड़ाकों के बीच उसकी भूमिका सेनापति जैसी थी. उसने अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ जिहाद का ऐलान किया था. आजम की दलील थी कि जैसे रमजान में रोजा और नमाज फर्ज है, वैसे ही जिहाद भी फर्ज है. उसका कहना था कि जिहाद रमजान के दौरान इबादत का सबसे अच्छा तरीका है. अल्लाह को रोजा और नमाज से ज्यादा जिहाद प्रिय है. इस्लामिक स्टेट (आईएस) तो रमजान के पहले बाकायदा पूरी दुनिया में खिलाफत (खलीफा के साम्राज्य) को मानने वालों के लिए जिहाद की अपील जारी करता था. 2016 में आईएस के प्रवक्ता अबु मोहम्मद अल-अदनानी के रमजान से पहले के बयान पर गौर कीजिए. उसने दुनियाभर के अपने समर्थकों से कहा था, “तैयार हो जाओ. काफिरों के लिए रमजान को आफत का महीना बनाने के लिए तैयार हो जाओ. खासतौर पर यूरोप और अमरीका में मौजूद खिलाफत के समर्थकों से ये अपील की गई थी. उसकी इस अपील पर उमर मतीन जैसे अकेले लड़ाके ने फ्लोरिडा के ऑरलैंडो में समलैंगिक पुरुषों के एक क्लब में 49 लोगों की हत्या कर दी. जून 2018 में पाकिस्तान के रावलकोट में हाफिज सईद के जमात उद दावा के मौलाना बशीर अहमद खाकी की एक नमाज के दौरान तकरीर पर गौर कीजिए. रमजान जिहाद एक कत्ल का पाक महीना है. जो लोग जिहाद के दौरान मारे जाएंगे, उनके लिए जन्नत के दरवाजे हमेशा खुले रहेंगे.
रमजान में ज्यादा होते हैं जिहादी हमले
आईएसआईएस और अलकायदा के हर बार रमजान से पहले जिहाद की अपीलें जारी करते हैं.अमेरिकन यूनिवर्सिटी के न्याय, कानून एवं अपराधशास्त्र विभाग के प्रोफेसर सुत कबुकु और ब्रैड बार्थोलोम्यू ने रमजान और जिहाद के आपसी संबंध को लेकर शोध किया. दोनों ने 1984 से लेकर 2016 के बीच मुस्लिम बहुल देशों और आईएसआईएस जैसे जिहादी संगठनों पर ध्यान केंद्रित करते हुए रमजान के दौरान होने वाली आतंकवादी घटनाओं और हत्याओं का विश्लेषण किया. शोध के मुताबिक चूंकि रमजान चंद्रमा पर आधारित कलेंडर से निर्धारित होते हैं, इसलिए 33 साल के चक्र में ये सभी मौसम में आते हैं. ग्लोबल टेरेरिज्म डाटाबेस (जीटीडी) पर उपलब्ध आंकड़ों की समीक्षा में पाया गया कि 33 साल के दौरान हर मौसम में रमजान के दौरान सामान्य दिनों के मुकाबले ज्यादा लोग मारे गए. इस बाबत पुख्ता प्रमाण मिले कि जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है, वहां रमजान के दौरान आतंकवादी घटनाओं में ज्यादा बढ़ोतरी देखने आई. मुस्लिम देशों में सामान्य दिनों के मुकाबले रमजान के दौरान होने वाली आतंकवादी घटनाओं में सात फीसदी की बढ़त दर्ज की गई. जो दिखाता है कि रमजान का असर जिहाद पर मुस्लिम देशों में बहुत ज्यादा होता है.
शोध में बिग, एलाइड एंड डेंजेरस (बीएएएडी) के डाटाबेस को भी शामिल किया गया. बीएएडी जिहादी आतंकवादी संगठनों का सबसे भरोसेमंद डाटाबेस है. पाया गया कि जिहादी संगठनों ने सामान्य दिनों के मुकाबले रमजान में 27 फीसद ज्यादा आतंकवादी हमलों को अंजाम दिया. यह भी देखने में आया कि रमजान के दौरान इन संगठनों द्वारा आतंकवादी हमले की संभावना 25 प्रतिशत बढ़ जाती है.
दोनों विशेषज्ञों ने आईएसआईएस द्वारा किए गए आतंकवादी हमलों का टेस्ट केस के रूप में ज्यादा गहराई से अध्ययन किया. देखने में आया कि रमजान के दिनों में आईएसआईएस के आतंकवादी हमलों में 24 प्रतिशत का इजाफा हुआ. अगर इसे हिंसक गतिविधियों, मौसम के साथ होने वाले बदलावों पर रमजान के साथ देखा जाए, तो यह आंकड़ा बढ़कर 39 फीसद हो जाता है. यह भी देखने में आया कि अकेले आईएसआईएस नहीं, बाकी संगठनों के आतंकवादी हमलों में भी रमजान के दौरान ज्यादा तेजी आ जाती है. इस अध्ययन ने सेक्यूलर जमात की इस दलील की भी धज्जियां उड़ा दीं कि रमजान के दौरान होने वाली आतंकवादी हिंसा में मुख्य हिस्सेदारी आईसआईएस की है. अध्ययन में पाया गया कि सभी जिहादी संगठन आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने के लिए रमजान के इंतजार में रहते हैं. इसकी कई वजह हो सकती हैं. लेकिन मुख्य वजह ये कि रमजान इबादत का महीना है. तराबीह, तकरीरें, दुआओं के बीच में एक धार्मिक माहौल बनता है. इसी धार्मिक आवेग में कट्टरपंथी मुस्लिम नौजवानों को हिंसा के लिए भड़काना ज्यादा आसान होता है.
जीटीडी के एक अन्य अध्ययन में हम पाते हैं कि रमजान और सामान्य दिनों में आतंकवादी हिंसा के बीच बड़ा अंतर है. रमजान के दौरान आतंकवादी हमले दुनिया में छह प्रतिशत बढ़ जाते हैं और 17 प्रतिशत ज्यादा लोगों की जान जाती है. 2006 से 2015 के रमजान के अध्ययन के दौरान पाया गया कि इस दौरान ये पाक महीना जून से अक्टूबर के बीच पड़ा. मार्च और अक्टूबर में हत्याओं की दर सामान्य दिनों के मुकाबले 25 फीसद अधिक पाई गई. अलग-अलग देश की समीक्षा करेंगे, तो ये दर बदल जाती है. मसलन ईरान, बांग्लादेश और लेबनान में आतंकवादी हमलों की दर में सामान्य दिनों के मुकाबले पचास फीसद तक की कमी आई. लेकिन जैसे ही आप इस्राइल को देखते हैं तो रमजान में 200 प्रतिशत अधिक आतंकवादी हमले हुए. मिस्र में हमलों की तादाद में सौ फीसद की बढ़ोतरी देखने में आई. ये अध्ययन भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. क्योंकि यह दर्शाता है कि जहां इस्लामिक परिभाषा के अनुसार काफिरों की संख्या अधिक है, वहां आतंकवादी हमलों में रमजान में इजाफा होता है.
मृदुल त्यागी
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