इस अस्पताल को तैयार होकर खड़ा हुए तीन साल हो चुका है। उसके बावजूद दिल्ली सरकार कोविड 19 महामारी में इसका उपयोग नहीं कर पाई तो यह आपराधिक लापरवाही ही मानी जाएगी
जब साहब सिंह वर्मा दिल्ली के मुख्यमंत्री थे,उस समय उन्होंने द्वारका में एक जमीन खरीदी थी अस्पताल बनाने के लिए। यह लगभग 25 साल पुरानी बात है। उनके द्वारा खरीदी गई जमीन पर 1725 बिस्तरों वाला अस्पताल तीन सालों से बनकर तैयार है।
पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने ही इस अस्पताल को इंदिरा गांधी अस्पताल का नाम दिया। 2017—18 में इसे बनकर तैयार होना था और यह बिल्कुल समय पर बनकर तैयार हो गया। पिछले साल देश ने कोविड 19 की पहली लहर देखी। दिल्ली सरकार को सतर्क हो जाना चाहिए था। यदि समय रहते यह अस्पताल तैयार करके दिल्ली वालों को सौंप दिया जाता तो हजारों लोगों को यह अस्पताल सुविधा दे चुका होता है। सैकड़ों की जिन्दगियां बचाई जा सकती थीं, जिन्हें ईलाज के लिए बिस्तर नहीं मिल सका। उन्हें दिल्ली में बिस्तर उपलब्ध हो सकता था। इस अस्पताल को तैयार होकर खड़ा हुए तीन साल हो चुका है। उसके बावजूद दिल्ली सरकार कोविड 19 महामारी में इसका उपयोग नहीं कर पाई तो यह आपराधिक लापरवाही ही मानी जाएगी।
कोरोना के मरीजों को ध्यान में रखकर अरविन्द केजरीवाल नए—नए अस्पताल तैयार करा रहे हैं। जीटीबी अस्पताल के सामने 500 आईसीयू का अस्पताल शुरू हुआ है। केजरीवाल के अनुसार— ”अब दिल्ली में आईसीयू और ऑक्सीजन बेड्स की कमी नहीं है।” इसी तरह वे रामलीला मैदान में भी मरीजों के लिए इंतजाम करा रहे हैं।
पिछले साल कोविड की लहर से यह स्पष्ट था कि आने वाला समय भारत के लिए चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। लेकिन इसके लिए दिल्ली ने क्या तैयारी की? पिछले एक साल के दौरान दिल्ली में एक आईसीयू बेड तक नहीं जोड़ा गया है।
जबकि आनन—फानन में अस्थायी व्यवस्था कराने की जगह अरविन्द केजरीवाल चाहते तो पहले से तैयार पड़े अस्पतालों को वेंटीलेटर—आक्सीजन डॉक्टर उपलब्ध कराके उपयोग के लायक बना सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
उन्होंने मोहल्ला क्लीनिक के नाम पर दिल्ली में जरुर करोड़ों रुपए फूंक दिए। आज जब दिल्ली को उन क्लीनिक की जरुरत सबसे अधिक है तो उनपर ताले लटक रहे हैं। दिल्ली की हालत केजरीवाल ने ऐसी बना दी है कि मरीज बिना बेड के तड़प—तड़प कर मर रहे हैं। इसमें राहुल वोहरा जैसे यूट्यूबर भी शामिल है। जिन्हें सोशल मीडिया पर 20 लाख लोग फॉलो करते हैं। दिल्ली के राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी हास्पीटल में वे भर्ती थे। उसने लिखा कि यदि अच्छा ईलाज मिलता तो मैं बच भी सकता था। राजीव को दिल्ली के अंदर बेहतर स्वास्थ सुविधा नहीं मिल सकी।
दिल्ली के अंदर ही द्वारका में 1725 बिस्तरों वाला अस्पताल खड़ा है और इस अस्पताल के नाम पर एक सीरिंज भी अब तक नहीं खरीदी गई है। आज जो लोग दिल्ली में बेड और आक्सीजन के लिए तड़प रहे हैं। उनके लिए कितनी राहत की बात होती है यदि उनके परिजनों को यहां बिस्तर मिल पाता। सांसद मीनाक्षी लेखी ने दिल्ली का मामला उठाते हुए कहा कि— दिल्ली में केवल प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष द्वारा भेजे गए वेंटिलेटर हैं। केजरीवाल सरकार ने अवश्य ऑक्सीजन पर एक से डेढ़ करोड़ रुपये खर्च किए। शायद वही ऑक्सीजन सिलिंडर उनके विधायकों से बरामद किए जा रहे हैं।” लेखी के अनुसार— जब भी ऑक्सीजन के ऑडिट की बात आती है तो केजरीवाल ऐसे विषयों से भागना चाहते हैं, ये ऑक्सीजन और पैसों के ऑडिट की बात नहीं करते हैं क्योंकि ये जानते हैं कि दिल्ली के साथ मोहल्ला क्लीनिक की तरह ऑक्सीजन का भी फ्रॉड कर रहे हैं।”
दिल्ली सरकार के इस तरह के फ्राड के चर्चे दिल्ली में इतने आम हो गए हैं कि लोगों ने चुटकुले बनाने शुरू कर दिए हैं। ऐसे ही एक चुटकुले में एक व्यक्ति केजरीवाल से पूछता है—
”आप चाहते हैं कि केंद्र आपको ऑक्सीजन भी दे, टैंकर भी दे, वेंटिलेटर भी दे, अस्पताल भी दे, तो आप क्या दोगे?” केजरीवाल उस सज्जन से कहते हैं — ”मरीज तो हम ही दे रहे हैं।”
आशीष कुमार ‘अंशु’
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