टिकरी बॉर्डर बलात्कार कांड मामले में एफआईआर को जब आप यह रिपोर्ट पढ़ रहे हैं, 72 घंटे गुजर गए हैं। अब तक आरोपितों की गिरफ्तारी नहीं हो सकी है। जबकि इस मामले की एक आरोपित की तरफ से पुलिस पर ही मानहानि का दावा किए जाने की बात सामने आ रही है।
वामपंथी इको सिस्टम वाली वेबसाइट, टीवी चैनल, पूर्व पत्रकारों का यू ट्यूब चैनल सब खामोश हैं। वे पूरे मामले में वह एंगल तलाश रहे हैं कि कैसे इस दुष्कर्म के लिए केंद्र को घेरा जा सके। संभव है कि कोई पूर्व पत्रकार अपने यू ट्यूब चैनल पर यह कहता हुआ नजर आ जाए कि यदि मोदीजी ने किसानों की तीन मांगे मान ली होती तो टिकरी बॉर्डर के टेंट हाउस में बंगाल की बीटिया के साथ यह जघन्य अपराध न होता। जिस तरह दिल्ली एनसीआर की छोटी—छोटी खबरों पर लुटियन मीडिया टूट पड़ता है, टिकरी बॉर्डर बलात्कार कांड पर उसकी चुप्पी कई सवाल खड़े करती है।
दिल्ली के टिकरी बॉर्डर पर एक आंदोलनकारी युवती के पिता ने बीटिया के साथ आंदोलकर्मियों पर दुष्कर्म का आरोप लगाया है। 12 अप्रैल को पश्चिम बंगाल से एक युवती आई थी इस आंदोलन में शामिल होने के लिए। अब वह युवती हमारे बीच नहीं है, 30 अप्रैल को उसकी कोविड से मृत्यु हो चुकी है। मरने के बाद उसके साथ हुए दुष्कर्म की बात अब सामने आई है। पीड़ित युवती के पिता की शिकायत पर 08 मई को बहादुरगढ़ थाना पुलिस ने इस मामले की शिकायत दर्ज की है।
इसमें किसान सोशल आर्मी से जुड़े चार लोगों पर एफआईआर दर्ज हुआ है। इस अपराध में दो महिला वॉलिंटियर भी शामिल थी। संयुक्त किसान मोर्चा आरोपियों के बायकाट की घोषणा करके पूरे मामले से पल्ला झाड़ती हुई नजर आ रही है। इसमें अनिल मलिक, अनूप सिंह, अंकुश सांगवान, जगदीश बराड़ और दो वॉलिंटियर कविता आर्य, योगिता सुहाग को आरोपी बनाया गया है। मीडिया रिपोर्टस के अनुसार पुलिस ने आरोपियों पर सामूहिक दुष्कर्म के अलावा, अपहरण, ब्लैक मेलिंग, बंधक बनाने और धमकी देने की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है। पुलिस का दावा है कि आरोपी जल्द ही सलाखों के पीछे होंगे।
बहादुरगढ़ के थाना अधिकारी विजय कुमार के अनुसार — युवती के पिता ने बताया कि उनकी लड़की 24—25 की रात को अस्पताल में भर्ती हुई थी। जहां उसका कोविड का ईलाज चल रहा था। 30 को उसकी मौत हो गई। अब पुलिस की तरफ से मामले की जांच शुरू कर दी गई है। जल्द ही सारे तथ्य सामने आ जाएंगे।”
दिल्ली में जारी किसान आंदोलन पर पहले भी कई दाग लगे हैं। अब यह आंदोलन महिलाओं के लिए भी सुरक्षित नहीं रहा। जब पीड़ित के साथ आंदोलन के नेता ही खड़े नहीं होंगे तो कोई भी परिवार क्यों चाहेगा कि उसकी बेटी इसका हिस्सा बने। इस मामले में झज्जर के डीएसपी की अगुआई में तीन इंस्पेक्टर और साइबर सेल को मिलाकर एसआईटी का गठन कर दिया गया है।
इस पूरे मामले पर किसान मोर्चा ने बयान जारी किया है— ”मीडिया और सोशल मीडिया में पिछले महीने टिकरी बॉर्डर पर बंगाल से आई एक महिला साथी के साथ बदसलूकी की घटना के खबर के बारे में संयुक्त किसान मोर्चा यह साफ कर देना चाहता है कि वह अपनी शहीद महिला साथी के लिए इंसाफ की लड़ाई के साथ खड़ा है। संयुक्त किसान मोर्चा ने पहले ही इस मामले में आरोपियों खिलाफ कार्रवाई की है और हम इंसाफ की इस लड़ाई को मुकाम तक पहुंचाएंगे।”
जबकि किसान मोर्चा को जवाब देना चाहिए था कि एक लड़की अपना घर—परिवार सब छोड़कर आंदोलन के नेताओं के भरोसे इसका हिस्सा बनने आई थी। उसकी सुरक्षा की जिम्मेवारी क्या आंदोलन के नेताओं की नहीं थी? सिर्फ आरोपियों को आंदोलन से बाहर कर देने से उस युवती को न्याय मिल जाएगा? फिर क्या गारंटी है कि वहां दूसरी बहन के साथ ऐसी घटना आंदोलन स्थल पर नहीं होगा। क्या फिर कुछ लोगों को टिकरी बॉर्डर से बाहर निकाल कर नेता अपनी जिम्मेवारी पूरी मान रहे हैं? यदि ऐसी स्थिति रही तो कोई मां अपनी बेटी को या कोई भाई अपनी बहन को इस आंदोलन का हिस्सा बनते हुए क्यों देखना पसंद करेगा? जिस पर एक युवती के बलात्कार का दाग लगा हो।
संयुक्त किसान मोर्चा यह मानता है कि पीड़िता के साथ दिल्ली पहुंचने के दौरान और टिकरी बॉर्डर पर भी गलत व्यवहार हुआ था। यह कैसे संभव है कि किसी किसान नेता को इसकी भनक तक नहीं लगी। संयुक्त किसान मोर्चा के अनुसार—
”जैसे ही यह बात हमारे नोटिस में आई वैसे ही संयुक्त किसान मोर्चा की कमेटियों ने राय कर इस पर सख्त कार्रवाई करने का फैसला किया। मोर्चा के टिकरी कमेटी के मुताबिक किसान सोशल आर्मी नामक संगठन के टेंट और बैनर आदि चार दिन पहले ही हटा दिए गए थे। मोर्चा के मंच से इस घटना के आरोपियों को आंदोलन से बहिष्कृत करने और उनके सामाजिक बहिष्कार की घोषणा हो चुकी है। संयुक्त किसान मोर्चा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह संगठन कभी भी संयुक्त किसान मोर्चा का अधिकृत प्रतिनिधि नहीं था, और अबसे इसके किसी भी हैंडल का हमारे आंदोलन से संबंध नहीं रहेगा।”
दैनिक भास्कर के अनुसार लड़की के पिता का आरोप है कि युवती के साथ हुए दुष्कर्म की जानकारी मोर्चा के वरिष्ठ नेताओं को थी। यह जानकारी होने के बावजूद उन्होंने पुलिस को जानकारी क्यों नहीं दी ? समाचार पत्र के अनुसार योगेन्द्र यादव ने माना कि उन्हें घटना की जानकारी थी। जब युवकों ने यादव को बताया कि वे लड़की को घर छोड़ने पश्चिम बंगाल जा रहे हैंं और आगरा पहुंच गए तो उन्होंने लड़की से लोकेशन मांगी। जो हांसी के पास की थी। लोकेशन मिलने के बाद यादव ने युवकों को फोन करके धमकाया फिर वे महिला को टिकरी बॉर्डर पर छोड़ कर फरार हो गए। इतना बड़ा अपराध आंदोलन के अंदर अंजाम दिया जाता है, ऐसे में कोई भी नेता कानूनी कार्रवाई का निर्णय लड़की के पिता पर यदि छोड़ने की बात करता है तो इससे क्या यह साफ नहीं होता कि संयुक्त किसान मोर्चा मामले को दबाना चाहता है।
सवाल है कि लड़की आई थी योगेन्द्र यादव, बलवीर सिंह राजेवाल, युद्धवीर सिंह, गुरनाम सिंह चढूनी, हनन मौला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, अभिमन्यू कोहाड़ जैसे लोगों की लड़ाई को मजबूत करने के लिए और जब उसके साथ दुष्कर्म हुआ। उसकी मृत्यु हुई तो ये सारे नेता उस लड़की से पल्ला झाड़ रहे हैं। देश भर के किसानों की लड़ाई का दावा करने वाला आंदोलन अपने आंदोलन में शामिल होने आई एक लड़की को न्याय नहीं दिलवा पा रही। उसके न्याय की लड़ाई को उसके पिता पर छोड़ देती है फिर उससे हम कैसे उम्मीद करें कि वह देश के करोड़ों किसानों को जो दिलवाने का दावा कर रहे हैं, वह ‘न्याय’ ही है।
योगेन्द्र यादव ने एक टेलीविजन चैनल को बताया कि आंदोलन में शामिल योगिता और पीड़िता के पिता ने जब लड़की के मृत्यु के बाद आकर सारी कहानी उन्हें बताई, फिर उन्हें पता चला कि लड़की के साथ जो हुआ है वह छेड़खानी से ‘कुछ’ ज्यादा हैं। यह यादव के शब्द हैं। उन्हें बलात्कार जैसा घृणित अपराध छेड़खानी से कुछ ही ज्यादा लगता है।
योगेन्द्र यादव और उनके साथी वही लोग हैं जो देश के किसी कोने होने वाले अपराध के लिए प्रधानमंत्री मोदी से सवाल जवाब करते हैं। यहां अपने आंदोलन के टेन्ट में अपराध होता है और पूरा आंदोलन पल्ला झाड़ लेता है।
कुमारी अन्नपूर्णा चौधरी
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