पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा को अपेक्षित परिणाम न मिलने के चार प्रगट कारण दिख रहे हैं। यद्यपि भाजपा ने पूरे प्रयास किये और कोई लापरवाही भी नहीं दिखी, फिर भी 2019 के लोकसभा चुनावों में 121 विधानसभा सीटों पर बढ़ दर्ज करने के बाद विधानसभा चुनावों में 77 सीटों पर रुक जाने के बाद पार्टी को आत्ममंथन करने की जरूरत है।
प्रयासहीन या लापरवाह तो नहीं लेकिन गलत प्रयोग ने पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए एक विपरीत परिस्थिति पैदा कर दी क्योंकि जिस पार्टी को 2019 के लोकसभा चुनाव में 121 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली हो और उस चुनाव की तुलना में इस बार अधिक समय, ताकत और प्रयास दिया गया हो, उसमे मात्र 77 सीट पर रुक जाना अवश्य ही एक बड़े आत्ममंथन को आमंत्रित कर रहा है। इसी कड़ी में हम यह कह सकते हैं कि टीएमसी द्वारा विभिन्न योजनाओं के जरिये लाभार्थी बना के रखना, अंत के दो चरण के मतदान पर कोरोना महामारी का असर पड़ना और भाजपा द्वारा टीएमसी के उन नेताओं को पार्टी में लेना, जिनकी स्थानीय स्तर पर साख खराब हो चुकी हो, इस प्रकार के महत्वपूर्ण कारणों से भाजपा अपने सपने को पूरा नहीं कर सकी। 2019 के चुनाव की तुलना में भाजपा के मतों में 2 प्रतिशत की कमी और कांग्रेस-लेफ्ट के 5 प्रतिशत मत टीएमसी में चले जाना इस पूरी स्थिति को स्पष्ट करता है।
ऊपर दी गई सारणी से यह स्पष्ट है कि भाजपा ने आखिरी दो चरण के मतदान में बहुत खराब प्रदर्शन किया जिसका एक कारण कोरोना महामारी भी हो सकती है। अगर हम 2019 की स्थिति से तुलना करें तो पाते हैं की 65 वे सीटें हैं जहां भाजपा दोनों ही चुनावों में जीत गयी, 12 वे सीटें हैं जहां भाजपा 2019 में हार गयी लेकिन 2021 में जीत गयी लेकिन 56 वे सीटें हैं जहां भाजपा 2019 में जीती थी और अभी 2021 में हार गयी। इसने भाजपा के लिए काफी मुश्किल खड़ी कर दी और इस कारण से ही टीएमसी को आसानी से जीत का रास्ता मिल गया। अगर कांग्रेस और लेफ्ट अपने 2019 के समर्थन को कायम रख लेते तब भाजपा कम से कम 93 सीट पर पहुंच जाती लेकिन कांग्रेस और लेफ्ट का कम से कम 5 प्रतिशत समर्थन टीएमसी की तरफ चला गया जिसके कारण भाजपा को बढ़त प्राप्त करनी मुश्किल हो गई।
इस चुनाव में यह स्पष्ट है कि बंगाल में चार ऐसे बड़े जिले हैं जहां भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली, जैसे झारग्राम, दक्षिण 24 परगना, पूर्व बर्धमान और कोलकाता। जंगलमहल क्षेत्र, जहाँ कुल 51 सीट है और आदवासी की संख्या अधिक है, वहां भाजपा को मात्र 17 सीटें मिलीं। इससे यह स्पष्ट है कि भाजपा को अपेक्षा के अनुरूप अनुसूचित जाति और जनजाति का समर्थन नहीं मिला। यहाँ तक की जिस मतुआ समुदाय के बारे में चुनाव के दौरान बहुत बातें हुई, उसने भी भाजपा को पूरी तरह समर्थन नहीं दिया। यानी सभी समुदायों में टीएमसी द्वारा दिए गए कुछ लाभ जैसे साइकिल, कन्याश्री के तहत पैसा आदि अन्य चुनावी मुद्दों पर भारी रहे। एक सिर्फ जलपाईगुड़ी क्षेत्र है जहाँ भाजपा को वहां की कुल 27 सीटों में से 21 सीटें मिलीं जिससे यह स्पष्ट है कि गोरखालैंड के क्षेत्र में भाजपा अपनी पकड़ मजबूत बनाये हुए है।
पाञ्चजन्य ब्यूरो
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