पश्चिम बंगाल में जारी हिंसा को लेकर देश के संस्कृतिकर्मियों ने एक संयुक्त बयान जारी कर उसकी निंदा की है। यहां उसी बयान को प्रकाशित किया जा रहा है
प. बंगाल में दंगे कराने के लिए किए जा रहे घृणित प्रयास अत्यंत निंदनीय हैं। लोकतांत्रिक तरीके से अपनी जीत का जश्न मनाने के बजाय, सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) लगातार अपने ही नागरिकों, अपने लोकतांत्रिक कर्तव्यों का निर्वहन करने वाले भाजपा कार्यकर्ताओं को आतंकित कर रही है। टीएमसी की क्रूरता का शिकार होने वालों में भाजपा कार्यकर्ताओं के परिवारों की महिलाएं और मासूम बच्चे भी शामिल हैं। राहत की बात थी कि आठ चरणीय चुनाव प्रक्रिया के दौरान छिटपुट हिंसा के बावजूद ऐसी धारणा बनी थी कि पश्चिम बंगाल में कांटे की टक्कर का चुनाव निर्विघ्न सम्पन्न हो गया। इसी वजह से चुनाव आयोग, राजनीतिक दलों, सुरक्षा बलों और अन्य सभी ने लोकतंत्र के त्योहार के इस सफल आयोजन के लिए बंगाल के लोगों की प्रशंसा भी की थी।
परंतु राज्यभर में हिंसा के जघन्य कृत्यों ने मानवता की अंतरात्मा को झिंझोड़ दिया है। भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को गरिमापूर्ण जीवन और विचारों की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, परंतु भारी पैमाने पर हिंसा, नृशंस हत्याएं, बलात्कार देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर धब्बे के रूप में सामने आए हैं। यह अकल्पनीय है कि अलग राजनीतिक राय रखने के ‘पाप’ के कारण किसी को अपनी जान गंवानी पड़े; उसके घर पर हमला हो जाए; उसे अपने ही देश में शरणार्थी बनना पड़े और महिलाओं के साथ बलात्कार हो!
खबरों के मुताबिक, चुनाव परिणाम घोषित होने के कुछ ही घंटों में कम से कम 14 लोगों की जान चली गई। लगभग 1,00,000 नागरिक बेघर हो गए। जीतने वालों का समर्थन कर रहे गुंडों की प्रतिशोधात्मक कार्रवाई के कारण भाग कर शरण लेने वाले बहुत से लोगों के लिए पड़ोसी राज्य असम को व्यवस्था करनी पड़ी। यह हमारे देश पर एक धब्बा है।
जनता और लोकतंत्र के प्रेमियों को निराश करने वाली बात है कि पश्चिम बंगाल में एक पार्टी की जीत के बाद फैली हिंसा के इस दौर में असंख्य महिलाओं पर हमले हुए हैं। विडंबना यह है कि महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटनाएं एक महिला राजनीतिज्ञ की जीत के बाद हो रही हैं। यह अकल्पनीय है कि बंगाली ‘अस्मिता’ पर गर्व करने वाली दुर्गा पूजा की भूमि महिलाओं के लिए नरक बन गई है।
शांति निकेतन की भूमि को आग लगा दी गई है। टैगोर की भूमि को आज उन्हीं लोगों ने आग लगा दी है जो उनके वारिस होने का दावा करते रहे हैं। जाहिर है कि यह सब रबींद्रनाथ टैगोर की स्मृति का मजाक उड़ाने जैसा है। यह और दु:खद बात है कि हिंसा की कई घटनाएं ‘शांति निकेतन’ क्षेत्र में हुई हैं।
दुर्भाग्य से, पश्चिम बंगाल में पिछले दशकों में राजनीतिक हिंसा का इतिहास रहा है, जो माकपा के लाल आतंकवादियों से विरासत में मिला है। इसके अलावा, लोगों के दिमाग में विभाजन के दिनों में हुई हिंसा की कटु स्मृतियां हैं। परंतु पिछले सप्ताह हमने कुछ ऐसा देखा है जो बंगाल में राजनीतिक हिंसा के हाल के इतिहास की तुलना में भी बदतर है। इस पृष्ठभूमि में हम बंगाल के अधिकारियों का आह्वान करते हैं कि वे शांति पुनर्स्थापित करने के साथ ही बिना किसी भय के राजनीतिक गतिविधियों की स्वतंत्रता भी सुनिश्चित करें। यह भारतीय संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को प्रत्याभूत अधिकार है। मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी है कि वह राज्य के प्रत्येक नागरिक के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करे। अतएव, बंगाल के अधिकारियों को सुनिश्चित करना है कि राज्य में हिंसा फैलाने वाले अपराधियों को दंड दिया जाए, पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाए और उन्हें घर वापसी पर सुरक्षा का आश्वासन दिया जाए। उन्हें शांतिपूर्ण तरीके से अपना दैनिक जीवन-यापन करते हुए गरिमापूर्ण तरीके से अपनी रोजी-रोटी कमाने दिया जाना चाहिए। इसमें किसी भी तरह की देरी स्वामी विवेकानंद, श्री अरबिंद, टैगोर और ईश्वर चंद्र विद्यासागर की भूमि की पहले से ही खराब हो रही छवि को और धूमिल करेगी।
टिप्पणियाँ