कोरोना महामारी के कारण दुनिया भर में त्राहिमाम की स्थिति है। क्या विकसित राष्ट्र तो क्या विकासशील, दुनिया के सारे देश कोरोना से जूझ रहे हैं। ऐसे में जबकि सभी देश अपने-अपने स्तर पर संसाधनों का उपयोग करते हुए महामारी से निपटने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में विरोधी मानसिकता के लोग नकारात्मकता फैलाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं
चिकित्सा क्षेत्र की प्रतिष्ठित कहे जाने वाली पत्रिका दी लेंसेट ने 08 मई को प्रकाशित अपने संपादकीय में भारत सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए अनर्गल प्रलाप प्रकाशित किया है। संपादकीय के अनुसार भारत में कोरोना की दूसरी लहर के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जवाबदेह ठहराते हुए उनके अपराधों को अक्षम्य बताया है। वहीं कुम्भ मेले व पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव प्रचार को भी नरेन्द्र मोदी से जोड़कर एक खास वैचारिक वर्ग को खुश करने का प्रयास किया गया है। इसके इतर भी पत्रिका ने अपने संपादकीय में ऐसा दृश्य उत्पन्न करने का प्रयास किया है मानो भारत में आई इस आपदा से देश लड़ ही नहीं सकता और इन सबकी जवाबदेही मोदी सरकार को लेना चाहिए।
दी लेंसेट निश्चित तौर पर पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर भारत के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसकी छवि को ध्वस्त करने की मंशा से काम कर रहा है। इससे पूर्व यह समूह जम्मू-कश्मीर से धारा 370 के उन्मूलन का भी विरोध कर भारत की छवि को आहत कर चुका है। यह तब कहां था जब इस आपदा ने इटली को लाशों के ढेर में बदल गया था ? तब कहां था जब अमेरिका में लाशों के ढेर के छायाचित्र लेने पर सेना जेल में डाल देती थी? तब क्या कर रहा था जब चीन के ऊपर इस महामारी को फैलाने के आरोप लग रहे थे ?
तब कहां था जब विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना को लेकर अनिश्चय की स्थिति में था और उस दौर में लाखों लोगों की मृत्यु हो रही थी? देखा जाए तो दी लेंसेट ने अपने वाम नैरेटिव को भारत की जनता के मन में भरकर सरकार के विरुद्ध षड्यंत्र की साजिश की है। दी लेंसेट ने अपने सम्पादकीय में जिस स्वतंत्र वैश्विक स्वास्थ्य अनुसंधान संगठन ‘इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन’ का हवाला दिया है वह स्वयं संदेह में घेरे में है। दूसरा, ऐसे समूहों में कैसे कार्य होता है, कहां से धन प्राप्त होता है, किसके अधिकार क्षेत्र में यह कार्य करते हैं जैसे सभी जानते हैं अतः ऐसे समूहों की भ्रामक व डर उत्पन्न करने वाली रिपोर्ट को सिरे से नकार देना चाहिए। सरकार को भी ऐसे अंतर्राष्ट्रीय भ्रामक समूहों पर कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करना चाहिए।
यह सत्य है कि कोरोना की दूसरी लहर ने अपेक्षा से अधिक हाहाकार मचाया है। लेकिन यह अर्थ नहीं है कि इस तरह से झूठ नैरेटिव खड़ा किया जाए और हम चुप्पी साधे बैठे रहें।
भारत में कोरोना की दूसरी लहर को लेकर मद्रास उच्च न्यायालय से लेकर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर टिप्पणी की है कि कोरोना से बचाव के लिए और कड़े कदम उठाए जाने चाहिए, लेकिन लेंसेट ने जो लिखा उसे ध्यान से पढ़े जाने की जरूरत है। लेसेंट ने अपने संपादकीय में ममता बनर्जी की 100 से अधिक चुनावी सभाओं पर कुछ नहीं कहा। जब राहुल गांधी ने बड़े स्तर पर तमिलनाडु और केरल में चुनावी सभाएं की उस पर कुछ नहीं कहा। असम में प्रियंका गांधी खूब सक्रिय रहीं। तब भी लेंसेट ने कुछ नहीं लिखा।
वामपंथी एजेंड की इससे बड़ी बानगी और क्या होगी इन्हें कुंभ में भीड़ तो दिखाई देती है लेकिन वे रमजान के महीने में मस्जिद में उमड़ी भीड़ को लेकर कभी कुछ नहीं कहते। उन्हें दिल्ली का कथित किसान आन्दोलन भी नहीं दिखाई देता और और न ही वे महीनों तक चलते शाहीन बाग आंदोलन पर सवाल उठाते हैं।
दी लेंसेट ने अपने संपादकीय में यह आरोप भी लगाया है कि सरकार ने टीकाकरण को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई। यह तो हास्यास्पद आरोप हुआ। जब भारत में कोरोना से लड़ने का टीका विकसित हुआ तो तमाम विरोधी विचार समूह के नेताओं ने एक स्वर में इसे भाजपा का टीका कहते हुए भ्रम की स्थिति उत्पन्न की।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व विदेश से उच्च शिक्षित पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सार्वजनिक तौर पर इसे भाजपा का टीका बताकर लगवाने से मना कर दिया था। उन्हीं के दल के एक अल्पसंख्यक नेताजी को यह टीका नपुंसक बनाने की भाजपाई चाल लगा जिससे उन्होंने मुस्लिम समुदाय को जमकर भरमाया। जिस समय देश में टीकाकरण हेतु अनुकूल वातावरण था उस समय विपक्षियों ने ऐसे कुतर्कों से टीकाकरण के प्रति अविश्वास उत्पन्न किया। उसी वातावरण में भारत ने विश्व बिरादरी को टीका भेज कर ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा को भी पुष्ट किया। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं टीकाकरण करवाया तो देश में विश्वास उत्पन्न हुआ किन्तु दो माह बाद आई कोरोना की दूसरी लहर ने इस महत्वाकांक्षी जीवनदायी परियोजना को बीच में ही रोक दिया। अब वही समूह टीके की कमी का रोना रोकर सरकार के अश्वमेधी प्रयासों पर पानी फेरना चाहते हैं।
दी लेंसेट ने जिन समूह व लेखों को अपने संपादकीय का सोर्स बताया है वह सदा से ही भारत विरोधी षड्यंत्रों में शामिल रहा है चाहे वह अलजजीरा हो या बीबीसी अथवा ब्लूमबर्ग। यहां तक कि इंडियन लेखक डॉट कॉम जैसी वेबसाइट के समाचार भी इसके सोर्स हैं। ऐसे में सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पत्रिका का यह संपादकीय चिकित्सीय लेख न होकर विशुद्ध रूप से वामपंथी एजेंडे से प्रेरित लेख है जो मात्र सरकार की आलोचना, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसकी छवि खराब करने का प्रयास भर है।
सिद्धार्थ शंकर गौतम
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