पश्चिम बंगाल में मतगणना के बाद हिंसा का नंगा नाच देखने को मिला। तृणमूल कार्यकर्ताओं ने भाजपा समर्थकों की जान, घर, तालाब, मवेशी – किसी को नहीं बख्शा। मतदान के दौरान भी पिछले चुनाव के मुकबाले तीन गुनी हिंसा हुई। भय और आतंक के कारण मतदान प्रतिशत भी पिछले चुनावों के मुकाबले कम रहा। चुनाव के दौरान ममता का यह ऐलान कि सुरक्षा बलों को रवाना होने दो और उसके बाद भाजपा वाले रहम की गुहार लगाएंगे, सही साबित हुआ।
भारी खून-खराबे के बाद प्रचंड बहुमत से जीती तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के तुरंत बाद कहा कि सभी राजनीतिक दल शांति बनाए रखें। मैं शांति के पक्ष में हूं। बंगाल में शांति थी, है और रहेगी। यह अलग बात है कि शांतिपूर्ण राज्य पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के आठ चरणों में हुए शांतिपूर्वक मतदान के दौरान लगभग 60 लोग मारे गए। मतगणना के बाद 36 घंटों में ही 18 से ज्यादा लोग मारे गए। यानी हर दो घंटे में एक आदमी की जान गई।
चुनाव के दौरान हिंसा की आशंका के कारण चुनाव आयोग ने आठ चरणों में मतदान कराने का फैसला किया और एक हजार से ज्यादा केंद्रीय सुरक्षा बलों की कंपनियों को तैनात किया गया। भय और आतंक का असर मतदान पर पड़ा। 2011 और 2016 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले मतदान प्रतिशत कम रहा। 2016 में छह चरणों में हुए मतदान के दौरान लगभग 20 लोग मारे थे और इस बार यह संख्या तिगुनी है। 2021 में 1 जनवरी से लेकर 4 मई तक 90 से ज्यादा लोगों को जान राजनीतिक रंजिश में गई है। हजारों लोग घायल हुए हैं। हजारों लोगों के घर फूंक दिए गए। बड़ी संख्या में वाहनों में आग लगा दी गई। भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों की दुकानों को आग लगाकर स्वाहा कर दिया गया। करोड़ों रुपये का सामान बर्बाद हो गया। राजनीतिक रंजिश को लेकर जानवरों तक को नहीं बख्शा गया। नदिया जिले में भाजपा कार्यकर्ताओं के तालाबों में जहर मिला दिया गया। लाखों रुपये की मछलियां जहर के कारण मर गर्इं। कांकुड़गाछी इलाके में एक भाजपा कार्यकर्ता अभिजीत सरकार को पीट-पीट कर मार डाला। इतना नहीं, उसके पांच कुत्तों को भी पीट-पीट कर मार डाला। कुछ स्थानों पर भाजपा कार्यकर्ताओं के मवेशियों को जिन्दा जला दिया गया।
ममता राज की झलक
ममता राज के तीसरे अध्याय में आगे क्या होगा, इसकी एक झलक शपथ ग्रहण के बाद दिखाई दी। ममता ने राज्य में शांति बताई तो राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने माइक उठाया और आशा जताई कि बंगाल में बदले की राजनीति अब नहीं होगी। उन्होंने यह आशा भी व्यक्त की कि ममता बनर्जी बंगाल में संविधान और कानून के अनुसार राज करेंगी। ममता ने तुरंत माइक उठाया और हिंसा का पूरा ठीकरा चुनाव आयोग पर मढ़ दिया। उनका कहना था कि बंगाल में चुनाव होने के कारण चुनाव आयोग ही व्यवस्था संभाल रहा था। सभी हिंसक घटनाओं के लिए चुनाव आयोग जिम्मेदार है। इनता तो तय है कि आने वाले दिनों में राज्यपाल और मुख्यमंत्री में हिंसा को लेकर टकराव बढ़ेगा। 2011 में सत्ता संभालने वाली ममता बनर्जी का इससे पहले बंगाल के राज्यपाल एमके नारायणन और केसरीनाथ त्रिपाठी से भी हिंसा के मुद्दे पर लगातार टकराव रहा था।
ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के नेताओं ने चुनाव की घोषणा से पहले चुनाव आयोग और केंद्र्रीय सुरक्षा बलों को भाजपा का एजेंट बताना शुरू कर दिया। चुनाव आयोग के अफसरों हटाने को लेकर ममता बनर्जी ने खुली चुनौती दी थी कि चुनाव बाद किसी को बख्शा नहीं जाएगा। चुनाव के दौरान कई बार उन्होंने ऐलान भी किया कि सुरक्षा बलों को रवाना होने दो और उसके बाद भाजपा वाले रहम की गुहार लगाएंगे। मतगणना के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने राजनीतिक हिंसा रोकने की मांग की। कैलाश विजयवर्गीय और दिलीप घोष को तो ममता बनर्जी से अनुरोध करना पड़ा कि हिंसा रोक दीजिए। नंदीग्राम में ममता बनर्जी को परास्त करने वाले शुवेन्दु अधिकारी तो तृणमूल कांग्रेस की गुंडागर्दी के कारण भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ बैठक नहीं कर पाए। बंगाल में जारी हिंसा के बीच भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कोलकाता में पहुंचकर धरना दिया। धरना के दौरान जेपी नड्डा ने बंगाल से राजनीतिक हिंसा समाप्त कराने के लिए शपथ दिलाई।
कांग्रेस-वाम का समर्पण
राजनीतिक हिंसा की आशंका के कारण इस बार मतदान आठ चरणों में कराए गए। चुनाव के दौरान बड़े पैमाने पर हुई हिंसा को पूरी नजरअंदाज किया गया। आठ चरणों में मतदान और हर चरण में बड़ी संख्या में केंद्र्रीय सुरक्षा बल तैनात करने के बावजूद चुनाव आयोग मतदाताओं का भय दूर नहीं कर पाया। इस कारण पिछले दो चुनावों के मुकाबले मतदान कम रहा। नरेंद्र्र मोदी को हराने के लिए कांग्रेस और वाम मोर्चा के नेताओं की ममता बनर्जी से मिलीभगत थी। कांग्रेस के बड़े नेता प्रचार करने ही नहीं पहुंचे। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी केरल में लेफ्ट सरकार को तस्करों की सरकार बता रहे थे और पश्चिम बंगाल में प्रचार की औपचारिकता करने पहुंचे तो केवल कोरोना को लेकर केंद्र्र सरकार पर हमला बोला। यह बात भी वाम मोर्चा के समर्थकों में चर्चा का विषय रही कि राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष शरद पवार की सलाह पर माकपा नेता सीताराम येचुरी ने मोदी को हराने के लिए ममता बनर्जी का समर्थन कर दिया है। इस कारण पूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस और वाम मोर्चा ने प्रचार में ताकत नहीं झोंकी। कुछ स्थानों पर वाममोर्चा के कार्यकर्ताओं का निजी कारणों से तृणमूल कांग्रेस के साथ टकराव रहा। माकपा के भी कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुई हैं। कांग्रेस और वाममोर्चा के नेताओं के ममता बनर्जी के सामने समर्पण की चर्चाओं के कारण उनके समर्थकों ने भय और आतंक के कारण तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों को जिताने के लिए मतदान किया। यही कारण है कम्युनिस्ट और कांग्रेस राज्य से पूरी तरह साफ हो गए। विधानसभा चुनाव का प्रचार शुरू होते ही कई वाम दल मोदी को हराने के लिए ममता बनर्जी को समर्थन देने लगे थे। बार-बार यह ऐलान किया कि मोदी को हराने के लिए तृणमूल को वोट दें।
2011 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने तृणमूल कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और 9.1 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। 2021 में कांग्रेस ने वाम मोर्चा और मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन इंडियन सेकुलर फ्रंट के साथ गठबंधन बनाया और केवल 2.93 प्रतिशत वोट हासिल किए हैं। 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने वाम मोर्चा के साथ ही गठबंधन किया था और 44 सीट जीतकर 12.4 प्रतिशत वोट लिए थे। 2016 में वाम मोर्चा को 26.6 प्रतिशत वोट मिला था। माकपा ने 26, भाकपा ने एक, फारबर्ड ब्लॉक और आरएसपी ने तीन-तीन सीटें जीती थी। इस तरह कांग्रेस-कम्युनिस्ट गठबंधन को 39 प्रतिशत वोट मिला था। 2021 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने 214 सीटों पर जीत हासिल करके 47.9 प्रतिशत वोट बटोरे हैं। भाजपा ने पिछली बार तीन सीटें जीती थी, इस बार 77 सीटों पर कामयाबी हासिल की है। भाजपा को 2011 में केवल 4.1 प्रतिशत वोट मिला था, अब दस साल में वोट प्रतिशत 38.1 प्रतिशत हो गया है। इस बार माकपा को केवल 4.96 प्रतिशत वोट मिला है। यह चर्चा हो रही है कि भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस और कम्युनिस्टों का वोट तृणमूल का चला गया। इस बात पर गौर करने की जरूरत है कि लंबे समय से तृणमूल कांग्रेस के आतंक के कारण ही कम्युनिस्टों और कांग्रेसियों ने जान बचाने के लिए तृणमूल की शरण में ज्यादा सही समझा। मुस्लिम मतों का धुव्रीकरण भी तृणमूल कांग्रेस की जीत का एक बड़ा कारण बना। मुस्लिम बहुत इलाकों में कांग्रेस और कम्युनिस्ट उम्मीदवारों ने कोई प्रचार ही नहीं किया।
भय से घटा मतदान प्रतिशत
तृणमूल कांग्रेस की भारी जीत के बाद राज्य में जारी राजनीतिक हिंसा के कारण भय और आंतक के माहौल में हुए मतदान को लेकर चर्चा नहीं हो रही है। भारी राजनीतिक हिंसा के बावजूद चुनाव आयोग भी मतदान के चरण को शांतिपूर्ण बताता रहा। भय और आतंक के वातावरण में विधानसभा चुनाव के केवल पहले चरण की 30 सीटों पर ही 2016 के मुकाबले कम मतदान नहीं हुआ। 2016 के विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस का मुकाबला कांग्रेस-कम्युनिस्ट गठबंधन से ही हुआ था। कांग्रेस और कम्युनिस्टों की कमजोर होती हालत के कारण पिछले चुनाव में इस बार के मुकाबले हिंसा कम हुई। पहले चरण की 30 सीटों पर इसबार 84.63 प्रतिशत मतदान हुआ और 2016 के चुनाव में इन 30 सीटों पर 85.50 फीसदी मतदान हुआ था। 2011 के विधानसभा चुनाव में 86.13 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस तरह मतदान के हर चरण में पिछले चुनावों के मुकाबले मतदान कम रहा।
बंगाली और बाहरी का मुद्दा जोरशोर से उठाकर ममता बनर्जी ने यह जता दिया था कि हिन्दीभाषी इलाकों में तृणमूल कांग्रेस को समर्थन न करने वालों की खैर नहीं होगी। आठवें व अंतिम चरण के लिए हुए मतदान में कुल मतदान प्रतिशत 78.32 प्रतिशत रहा। खासतौर शहरी क्षेत्र में मतदान प्रतिशत बहुत कम रहा। कोलकाता उत्तर में 59.4 प्रतिशत, चौरंगी में 53.32 प्रतिशत, इंटाली में 67.65, बेलियाघाटा में 62.38, श्यामपुकुर में 57.79, मानिकतला में 62.85 और काशीपुर बेलगछिया में 59.59 प्रतिशत रहा। कोलकाता शहर की इन सीटों पर कोरोना के कारण मतदान कम होना माना गया। सच तो यही है कि तृणमूल के आतंक के कारण भाजपा को वोट देने वाले घरों से ही नहीं निकले। सब देख ही रहे हैं कि बंगाल में भाजपा का झंडा उठाने वालों का मारा जा रहा है। उनके घरों और दुकानों को फूंका जा रहा है। हिंसा के कारण 400 से ज्यादा लोगों को असम में शरण लेनी पड़ी हैं। जान बचाने के लिए बर्दवान के 40 परिवारों को नदिया में जाकर शरण लेनी पड़ी है। उत्तर बंगाल में तो तृणमूल कांग्रेस ने कोहराम मचा दिया है। कूचबिहार, दार्जिलिंग, उत्तर और दक्षिण दिनाजपुर, नदिया, पूर्व और पश्चिम बर्दवान, बीरभूम, मुर्शिदाबाद, उत्तर और दक्षिण 24 परगना, हुगली, हावड़ा जिलों के अलावा कोलकाता के आसपास बड़े पैमाने पर हिंसा जारी है। इसी तरह की हिंसा फैलाकर भय और आतंक के दम पर बंगाल में सत्ता पर काबिज होने का खेल चलता रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और बंगाल की रक्त रंजित राजनीति पर तीन चर्चित पुस्तकें रक्तांचल-बंगाल की रक्तचरित्र राजनीति, रक्तरंजित बंगाल-लोकसभा चुनाव 2019 तथा बंगाल-वोटों का खूनी लूटतंत्र प्रकाशित हुई है।)
रास बिहारी
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