पाकिस्तान का सैन्य तंत्र न केवल एक समानांतर राजनीतिक सत्ता का दावा करता है बल्कि इसके प्रभाव के कारण उसने एक विशाल आर्थिक साम्राज्य का निर्माण कर लिया है, जो किसी भी उत्तरदायित्व से पूर्णत: परे है और एक समानांतर अर्थव्यवस्था में परिणत हो चुका है, जिसमें पाकिस्तान की सरकारें भी हस्तक्षेप करने में डरती हैं
पाकिस्तान आजादी के पिछले सत्तर वर्षों में अपने औपनिवेशिक अतीत से पीछा नहीं छुड़ा सका है और उल्टा किसी न किसी रूप में उसे प्रोत्साहित ही करता आ रहा है। ब्रिटिश शासन के दिनों से ही भारत को जिस सैन्य शक्ति के बल पर शिकंजे में रखा गया, आज स्वतंत्र होने के बाद भी पाकिस्तान की सेना इस ब्रिटिश सैन्य तंत्र के अभाव को प्रतीत भी नहीं होने देती। आज पाकिस्तान का सैन्य तंत्र जिसे ‘डीप स्टेट’ भी कहा जाता है, न केवल एक समानांतर राजनीतिक सत्ता का दावा करता है बल्कि इसके प्रभाव के कारण उसने एक विशाल आर्थिक साम्राज्य का निर्माण कर लिया है, जो किसी भी उत्तरदायित्व से पूर्णत: परे है और एक समानांतर अर्थव्यवस्था में परिणत हो चुका है, जिसमें पाकिस्तान की सरकारें भी हस्तक्षेप करने में डरती हैं। और, अभी हाल ही में एक मामले में पाकिस्तान की न्यायपालिका ने एक सुनवाई के दौरान सेना के विरुद्ध जो टिप्पणियाँ की हैं, वह आँखें खोल देने वाली हैं।
मामला क्या है?
इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान में डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी (डीएचए) पर लगभग 40 से 50 एकड़ जमीन पर अवैध रूप से कब्जा करने का आरोप लगाते हुए तीन याचिकाएं दायर की गई थीं। और इन्हीं याचिकाओं की सुनवाई करते हुए लाहौर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद कासिम खान ने पिछले सप्ताह बुधवार को डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी (डीएचए) को भूमि के “अवैध” कब्जे में शामिल होने के लिए फटकार लगाई और इस बात पर खेद व्यक्त किया कि सेना आज “सबसे बड़ी जमीन हड़पने वाली” बन गई है। उल्लेखनीय है कि डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी (डीएचए) पाकिस्तान की सेना द्वारा बनाया गया व्यावसायिक उपक्रम है, जो पूरे देश में सेना के स्वामित्व में विनिर्माण और भूमि विकास संबंधी गतिविधियों को संचालित और नियंत्रित करता है।
मुख्य न्यायाधीश खान ने न्यायपालिका का दर्द भी बयान किया कि स्वयं पाकिस्तान की न्यायपालिका भी सेना की इन गतिविधियों की शिकार बन चुकी है और सेना पंजाब उच्च न्यायालय के स्वामित्व की 50-कनाल भूमि को भी हड़प चुकी है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कि सेना की वर्दी देश की सेवा के लिए है, न कि राजा के रूप में शासन करने के लिए। सेना के वकील के इस जवाब पर कि सेना ने देश के लिए बलिदान दिया है, जस्टिस खान ने कठोर टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या यह केवल सेना ही है जो बलिदान देती है? क्या पुलिस, वकील और न्यायाधीश जैसे अन्य संस्थान बलिदान नहीं देते? इस बलिदान के तर्क के प्रत्युत्तर में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सेना के पास अपने अधिकारियों के लिए सेवानिवृत्ति के बाद व्यापक कल्याण योजनायें हैं जबकि पुलिस और न्यायपालिका जैसी अन्य संस्थाओं के लिए इनका सख्त अभाव है। कहने का अर्थ स्पष्ट है कि सेना जो कर रही है, उससे कहीं अधिक वह पा रही है।
हड़पने का इतिहास
यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान की सेना पर जमीन कब्जाने का आरोप लगा है। 2010 में, सेना की एक बटालियन ने कराची में 3,500 एकड़ जमीन हड़प ली जिसमें सदियों पुराना एक कब्रिस्तान भी शामिल था। इसके बाद 2017 में, पूर्व सेना प्रमुख जनरल राहील शरीफ को बिना किसी स्पष्टीकरण के लाहौर में कृषि के लिए 90 एकड़ भूमि आवंटित की गई थी। और जब सक्षम प्राधिकरण से इस हस्तांतरण का कारण जानने की सभी कोशिश की गई तो इन कोशिशों को देशद्रोह करार दिया गया। जनवरी 2019 में इसी तरह के एक अन्य मामले में सुनवाई करते हुए पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने देश में सैन्य स्वामित्व वाली भूमि पर वाणिज्यिक गतिविधियों को रोकने के आदेश जारी किये थे। सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश जस्टिस गुलज़ार अहमद ने आदेश पारित करते हुए कहा कि “कराची की डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी (डीएचए) ने समुद्र तक में अतिक्रमण कर लिया है। और अगर उनके पास अपना रास्ता होता तो वे समुद्र पर एक शहर बना लेते। डीएचए के मालिक समुद्र से होते हुए अमेरिका तक अतिक्रमण करेंगे और फिर वहां अपने झंडे लगाएंगे। डीएचए के मालिक सोच रहे हैं कि वे भारत में कैसे प्रवेश कर सकते हैं!” इसी सुनवाई में जस्टिस गुलज़ार अहमद की टिप्पणी की थी कि, पाकिस्तान के सशस्त्र बल, आखिर शादी हॉल और सिनेमाघर क्यों चला रहे हैं? प्रत्येक वर्ष सैन्य भूमि पर लगातार निर्माण होता जा रहा है और सेना नए आर्थिक क्षेत्रों और उद्योगों में प्रवेश कर रही है और कृषि, ऊर्जा, प्राकृतिक संसाधनों, रसद और निर्माण के प्रमुख क्षेत्रों में लगातार मजबूत होती जा रही है।
अवैध आर्थिक साम्राज्य!
आज पाकिस्तान के सशस्त्र बल कम से कम 50 वाणिज्यिक उपक्रम संचालित कर रहे हैं जिनमें बैंक, बेकरी, पेट्रोल पंप, स्कूल, विश्वविद्यालय, खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ, दूध डेयरी, सीमेंट संयंत्र, बीमा कंपनियां शामिल हैं। ये सारे व्यवसाय फौज़ी फ़ाउंडेशन, आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट, (दोनों पाकिस्तानी सेना के नियंत्रण में) शाहीन फ़ाउंडेशन (पाकिस्तानी एयरफ़ोर्स), बहरिया फ़ाउंडेशन (पाकिस्तानी नेवी) और डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी- यानी जिसकी हम इस ज़मीन हड़पने वाले मामले बात कर रहे हैं, द्वारा चलाये जाते हैं। इमरान खान जैसे पिट्ठू को प्रधानमंत्री के रूप में बिठाए जाने के बाद सेना की आर्थिक गतिविधियों में और भी वृद्धि हुई है। सेना ने 2019 में फ्रंटियर ऑयल कंपनी की स्थापना के साथ तेल कारोबार में भी कदम रखा है और इसे पुरस्कारस्वरूप 370 मिलियन डॉलर मूल्य की तेल पाइपलाइन बनाने का ठेका भी मिल चुका है।
यह दिखाता है कि पाकिस्तान की सेना की योग्यता केवल जमीन हड़पने में ही नहीं है बल्कि यह देश की आर्थिक व्यावसायिक गतिविधियों पर बलपूर्वक कब्जा जमाने हेतु दृढ़ संकल्पित है, और वह भी बिना किसी जवाबदेही के। पाकिस्तान की सेना हमेशा से दावा करती आई है कि वह मातृभूमि की सबसे बड़ी रक्षक है परन्तु लाहौर उच्च न्यायालय का हालिया वक्तव्य यह दिखाता है कि वास्तविकता में सेना मातृभूमि के बजाय अपनी भूमि की रक्षा करने में और दूसरों की भूमि पर अवैध कब्जे जमाने में अधिक व्यस्त है।
एस. वर्मा
टिप्पणियाँ