रविवार 2 मई की देर शाम पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे साफ हो गए। दक्षिण भारत के दो राज्यों और एक संघशासित प्रदेश में नतीजे एक बड़ा बदलाव लाने वाले रहे। इन तीनों राज्यों के चुनाव कई अलग—अलग पहलुओं से प्रभावित रहे। मोटे तौर पर कह सकते हैं कि नतीजे लगभग वैसे ही रहे जिसकी संभावना व्यक्त की जा रही थी और जैसा कुछ ‘एग्जिट पोल’ बता रहे थे। तीनों स्थानों के नतीजों पर एक संक्षिप्त विश्लेषण करना समीचीन होगा।
केरल
केरल में चार दशक बाद पहली बार ऐसा हुआ कि सत्तारूढ़ दल अपनी कुर्सी कायम रख सका। भ्रष्टाचार, सोना घोटाला, विदेशी फंड में कानूनों के उल्लंघन, कुरान के आयात, यौन अपराधों के आरोपियों के प्रति पुलिसिया नरमी आदि तमाम आरोपों से घिरे होने के बावजूद वहां शासन कर रहे वाम लोकतांत्रिक मोर्चे को ही जनता ने एक बार फिर राज्य की कमान थमाई है। कामरेड पिनरई विजयन एक बार फिर मुख्यमंत्री बनेंगे। कुछ 140 सीटों में से वाममोर्चे को 99 तो कांग्रेस की अगुआई वाली यूडीएफ को 41 सीटें मिली हैं। भाजपा इस बार एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हुई। पिछली विधानसभा में भाजपा की एक सीट थी। हालांकि वोट प्रतिशत के लिहाज से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और कांग्रेस के बाद भाजपा यहां तीसरी सबसे बड़ी पार्टी हो गयी है। माकपा के लगभग 25.4 प्रतिशत और कांग्रेस के लगभग 25.1 प्रतिशत वोटों के मुकाबले भाजपा को 11.3 प्रतिशत वोट मिले हैं।
वाममोर्चे की इस जीत का श्रेय मोटे तौर पर राज्य सरकार के सरकारी पैसे पर किए जनसंपर्क अभियान को दिया जा सकता है। इसके लिए सरकारी खजाने से कथित 170 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। इसमें संदेह नहीं कि अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के लिए बदनाम एलडीएफ को मुस्लिमों के एकमुश्त वोट मिले हैं। इस्लामी कट्टरवादी दलों ने खुलकर एलडीएफ को समर्थन दिया था। अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए पिनरई सरकार ने विधानसभा में सीएए के विरोध में प्रस्ताव भी पारित किया था। वाममोर्चा सरकार ने सरकारी योजनाओं की आड़ में केन्द्र से आया पैसा अल्पसंख्यकों में खुलकर बांटा था।
एलडीएफ की जीत ने कांग्रेस नीत यूडीएफ के सत्ता में लौटने के अरमानों पर घड़ों पानी उड़ेल दिया है। इसमें संदेह नहीं कि पूर्व में उनके द्वारा माकपा के साथ की गई समझौतावादी राजनीति का ही ये परिणाम है। यूडीएफ वाममोर्चे की नाकामियों को भी जनता के बीच प्रचारित नहीं कर पाया और इस बार उसे सत्ता से बेदखल ही रहना पड़ा। भाजपा को भी चुनाव नतीजों पर गहन मंथन करना होगा कि कमी कहां रह गई, क्योंकि भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित कई बड़े नेताओं को प्रचार में उतारा था।
कुल सीट—140, एलडीएफ—99, यूडीएफ—41
पुदुच्चेरी
पुदुच्चेरी के चुनाव नतीजों ने वहां राजग की सरकार बनना तय कर दिया है। दक्षिण भारत में इसे एक बड़े और सुखद बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है। कांग्रेस और डीएमके, दोनों मिलकर भी यहां भाजपा के बढ़ते कदम को रोक नहीं पाए। इस जीत से उनके मुंह पर भी ताला लग जाना चाहिए जो भाजपा को उत्तर भारत की पार्टी कहा करते हैं।
कुल सीट—30
राजग—15 (एआईएनआरसी—10, भाजपा—5)
संप्रग—7 (द्रमुक व कांग्रेस), अन्य—6
तमिलनाडु
धुर दक्षिण के तमिलनाडु प्रदेश में एआईएडीएमके के हाथ से सत्ता निकलकर स्टालिन की डीएमके के हाथ में चली गई है। लेकिन डीएमके को जिस तरह एआईएडीएमके के सूपड़ा साफ होने की उम्मीद थी वह पूरी नहीं हो पाई। चुनाव नतीजों से साफ है कि एआईएडीएमके ने अच्छी-खासी सीटें जीती हैं और अच्छे अंतर से जीती हैं। जाहिर है, सदन में स्टालिन की डीएमके के सामने एक दमदार विपक्ष होगा। विपक्ष में भाजपा के भी तीन विधायकों का होना विपक्ष की ताकत को ही बढ़ाएगा। इस बार इस राज्य में यह एक बड़ा बदलाव ही माना जाएगा कि द्रविड़ भावनाओं को उभारने वाली ताकतों के रहते भाजपा को मोर्चे के घटक के नाते यहां तीन सीटों पर जीत मिली है।
कुल सीट 234
डीएमके गठबंधन—152 (डीएमके—128, कांग्रेस—16, माकपा—2, भाकपा—2, वीसीके—4)
एआईएडीएमके गठबंधन—81 (एआईएडीएमके—72, पीएमके—6, भाजपा—3)
टी. सतीशन
टिप्पणियाँ