इस संक्रमण काल में सबसे जरूरी है हौसला और उम्मीद बनाए रखना। सकारात्मक रहें और कोरोना से जुड़ी खबरों व सोशल मीडिया से दूर रहें। यदि आप हौसला बुलंद रखते हैं तो घर पर ही स्वस्थ हो सकते हैं
दो सप्ताह कोरोना हमारे लिए ऐसी मानसिक यातना लेकर आया, जिसका अंत नजर नहीं आ रहा था। परिवार में इसका पहला शिकार मैं हुआ। पहले दिन पूरे शरीर में हल्का-हल्का दर्द महसूस हुआ, बुखार भी था, लेकिन थर्मामीटर में नहीं दिखा रहा था। दूसरे दिन बुखार आया तो बदन दर्द कम हो गया। तीसरे दिन सिरदर्द होने लगा और फिर एक-दो दिन ऐसा लगा जैसे सब ठीक हो गया। इसी बीच, पत्नी को बुखार आना शुरू हो गया। उन्हें भी सिरदर्द शुरू हो गया और फिर मुझे दोबारा बुखार आने लगा। इस दौरान बेटी को भी दो दिन बुखार आया, लेकिन वह ठीक हो गई। बाद में जब बेटे को भी बुखार आने लगा तो घबराहट बढ़ने लगी। फैसला किया कि डॉक्टर को दिखाते हैं और कोरोना जांच करवा लेते हैं। किसी तरह से चारों का रैपिड टेस्ट करवाया, जिसमें पत्नी कोरोना पॉजिटिव निकलीं और हम सभी की रिपोर्ट निगेटिव आई। खैर, डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने बेटे के टॉन्सिल बढ़े होने की बात कहकर कोरोना का डर खत्म किया। दूसरी तरफ मुझे और पत्नी को कोरोना प्रोटोकॉल के तहत दवाएं दे दीं।
अब असली परीक्षा यह थी कि घर में हम चार लोग हैं और दोनों बच्चे इतने छोटे हैं कि अपने सारे काम स्वयं नहीं कर सकते। पत्नी को एक कमरे में आइसोलेशन में रखा और मैंने ड्रॉइंग रूम पर कब्जा जमा लिया, क्योंकि यह रसोई से जुड़ा है। बच्चों को अपने बेडरूम में बंद कर दिया। बीमार होने के बावजूद पूरे परिवार की जिम्मेमदारी मुझ पर थी। इसमें खाना बनाने से लेकर उनकी हर छोटी-बड़ी जरूरत का ध्यान रखना, सब कुछ शामिल था। खुशकिस्मत रहा कि सोसाइटी में कुछ दोस्तों ने हाथ आगे बढ़ाया। किसी ने नाश्ता पहुंचा दिया तो किसी ने दोपहर और रात का खाना। डॉक्टर को दिखाने के बाद पहले पांच दिन तक दवा से लेकर भोजन और हर छोटी-बड़ी जरूरत का ध्यान इन दोस्तों ने ही रखा। मुझे बस सबके लिए पानी गर्म करना, काढ़ा बनाना और बच्चों को समय पर दूध आदि देना था। पहले तीन-चार दिन तो 10 साल की बेटी ने बर्तन धोकर मेरी मदद की। जब मुझे लगा कि अब मैं कर सकता हूं तो मैंने रसोई संभाल लिया। प्रतिकूल परिस्थितियों में बड़ी हिम्मत की जरूरत थी, लेकिन दूर-दूर तक उम्मीद की किरण नजर नहीं आ रही थी। इस दौरान कुछ अन्य दोस्त फोन करके हौसला बढ़ाते रहे। उनके लगातार हिम्मत बंधाने पर ही हम इस महामारी को हरा सके।
पूरे दो हफ्ते तक सुबह-शाम भाप लेना और नमक वाले गर्म पानी के गरारे, दिनभर गर्म नींबू पानी का सेवन और हर्बल काढ़ा जीवन का अहम हिस्सा थे। कच्ची हल्दी वाले दूध का भी सेवन करता रहा। डॉक्टर की सलाह पर डॉक्सीसाइक्लिन-100, सेफटम-500 जैसी एंटी-बैक्टीरियल और आइवरमेक्टीन के रूप में एंटी पैरासाइटिक दवाओं के साथ विटामिन सी और बीकासूल भी नियमित रूप से लेता रहा। समय-समय पर आॅक्सीजन स्तर व बुखार जांचता और कहता कि हम जल्द स्वस्थ हो जाएंगे। अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत
नहीं पड़ेगी।
इस संक्रमण काल में यदि आप हौसला बुलंद रखते हैं तो घर पर ही स्वस्थ हो सकते हैं। सकारात्मक रहने के साथ एक काम और करें, कोरोना से जुड़ी खबरों और सोशल मीडिया से भी दूर रहें। जितना हो सके आराम करें, घर पर बच्चे हैं तो उनसे दूर रहें और मास्क पहनकर रहें।
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