रटगर्स विश्वविद्यालय में हिन्दूफोबिया की परिभाषा मान्य होना विदेशी धरती पर पहला बड़ा कदम है जो वहां बसे हिन्दुओं में एक स्वाभिमान का भाव जगाएगा। सेकुलर हिन्दूफोबिक मुखौटों के विरुद्ध एकजुट हुए हिन्दू छात्र
ऊपनी भोगवादी और बाजारवादी संस्कृति में डूबा पश्चिम हमेशा से हिन्दू धर्म और इसके अनुयायियों के प्रति एक दुर्भावना और तिरस्कार का भाव अपनाता आया है। इसलिए हैरानी की बात नहीं कि कभी उसने चप्पलों पर भगवान शिव का चित्र बनाया, तो कभी ‘टॉयलेट सीट’ या ‘कमोड’ पर भगवान गणेश की छवि बनाई, कभी मां काली को तिरस्कृत किया तो कभी भगवान विष्णु का भद्दा चित्रण किया। और ऐसा इसलिए होता रहा क्योंकि वहां बसे भारतीय अपनी रोजी-रोटी में इतने गुम रहे कि सेकुलर होने की बात कहकर ऐेसे अपमान को सहते रहे, मुंह से आवाज नहीं उठाई। ‘हम सहिष्णु हैं’ के खोल में खुद को ढांपकर पश्चिमी संस्कृति की ‘मौज—मस्ती’ में डूबे रहे।
वह दौर था जब पश्चिम की ऐसी हरकतों के खिलाफ वहीं पर आवाज उठाने वाले हिन्दू कम थे। लेकिन गंगा में काफी पानी बह चुका है अब। भारतवंशी अब हर सामाजिक-धार्मिक-सांस्कृतिक मंच पर अपने स्वाभिमान के प्रति जागरूक हो रहे हैं। अमेरिका और या ब्रिटेन, हिन्दूफोबिया की हर हरकत के खिलाफ हिन्दू धर्मावलंबियों ने अपनी एकजुट आवाज की शक्ति पहचानी है और इसलिए जब कभी कोई हिन्दुत्व विरोधी नैरेटिव खड़ा करने की कोशिश की जाती है तो उसका कड़ा प्रतिकार होता है। सेकुलर ईकोसिस्टम वहां भी भारत विरोधी भावनाएं भड़काने में कसर नहीं रखता, लेकिन अब उसे दमदार जवाब दिया जाता है। इसके कई उदाहरण देखने को मिले हैं बीते कुछ दिनों में।
फरवरी 2021 में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (यू.के.) में रश्मि सावंत का छात्र संघ अध्यक्ष चुना जाना, फिर एक सेकुलर भारतवंशी प्रोफेसर का उसके विरुद्ध रंगभेदी, धार्मिक पहचान को लेकर दुष्प्रचार करके उसे त्यागपत्र देकर भारत लौटने के लिए मजबूर कर देना, मैरीलैंड की प्रतिनिधि सभा में हिन्दू आस्था चिन्ह स्वस्तिक के विरुद्ध प्रस्ताव लाने की कोशिश या रटगर्स विश्वविद्यालय में एक हिन्दुत्वविरोधी हिन्दूफोबिक महिला प्रोफेसर की सेकुलर करतूतों पर लगाम ही न लगाना बल्कि दुनिया में पहली बार किसी विश्वविद्यालय में हिन्दूफोबिक की बाकायदा एक परिभाषा पारित कर हिन्दू छात्रों को एक राहत का माहौल देना।
गत 24 अप्रैल को रटगर्स यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स असेंबली अमेरिका में ऐसी पहली विश्वविद्यालय छात्र सरकार बनी जिसने ‘हिन्दूफोबिया’ और उसकी परिभाषा को मान्य किया है। असेंबली ने इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया है। यह परिभाषा और प्रस्ताव ‘अंडरस्टेंडिंग हिन्दूफोबिया’ सेमिनार में विशद चर्चा के बाद तैयार किया गया है। रटगर्स के हिन्दू छात्रों में एक संतोष का भाव है जो मानते हैं कि यह कदम विश्वविद्यालय परिसर में हिन्दू छात्रों के हितों की रक्षा के लिए जरूरी था। पारित हुई हिन्दूफोबिया की परिभाषा है, ‘‘सनातन धर्म और हिन्दुओं के प्रति प्रतिरोधी, विध्वंसात्मक और अपमानजनक रवैया जो भय या नफरत के रूप में सामने आता है।’’ इस परिभाषा का मान्य होना अमेरिकी विश्वविद्यालयों में हिन्दू छात्रों के सम्मान और स्वाभिमान की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। आखिर रटगर्स विश्वविद्यालय में हिन्दुओं और हिन्दू धर्म के प्रति नफरती माहौल कौन और क्यों बना रहा है, इसे समझने के लिए परिसर में हुर्इं पिछले कुछ दिनों की गतिविधियों पर नजर डालनी होगी।
न्यूआर्क स्थित यह विश्वविद्यालय पिछले कुछ समय से हिन्दुत्व विरोधियों की गतिविधियों का केन्द्र बना हुआ है। वहां की एक प्रोफेसर आॅड्री ट्रश्के मौके-बेमौके हिन्दुत्व के विरुद्ध जहर उगलती रही हैं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर। मार्च 2021 में विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने रटगर्स न्यूआर्क विश्वविद्यालय के सामने एक याचिका दायर करके हिन्दुत्व पर लांछन लगाने के लिए ‘इतिहासकार’ और प्रोफेसर आॅड्री ट्रश्के के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की थी। याचिका में कहा गया था कि ‘हमारे धर्म, हमारे देवी—देवताओं, हमारे पवित्र ग्रंथों के लगातार अपमान के जरिए हिन्दुओं के विरुद्ध फैलाई जा रही मतांधता से वे हैरान हैं।’
7 मार्च 2021 को ‘परिसर के हिन्दू’ समूह ने ट्रश्के के हिन्दू विरोधी कृत्यों और बयानों का पर्दाफाश कर दिया। हिन्दुओं के विरुद्ध उनके रंगभेदी बयानों को उजागर किया। 6 जनवरी 2021 को अमेरिका में कैपिटाल हिल पर हुए हमले को ट्रश्के ने ‘हिन्दू दक्षिणपंथी’ लोगों से जोड़कर पेश किया, महज उस भीड़ में दिखे ‘भारतीय तिरंगे’ के आधार पर। इस आशय का ट्रश्के ने ट्वीट किया। इसी तरह एक बार, इसी ‘इतिहासकार’ ने भगवद्गीता की भ्रामक व्याख्या करते हुए इसे ‘जनसंहार’ की पैरवी करने वाली बताया। उन्होंने भारत में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना को महाभारत की एक घटना से जोड़ा। उनका निष्कर्ष यही था कि ‘हिन्दू संस्कृति बलात्कार की संस्कृति और नारी अपमान की पैरवी करती है।’
इसके बाद, रटगर्स के तमाम सेकुलर शिक्षक ट्रश्के के बचाव में उतर आए। 17 मार्च को उन्होंने एक पत्र लिखकर बयान जारी किया कि एक राजनीतिक विचारधारा, हिन्दुत्व का अलोचनात्मक मूल्यांकन कोई हिन्दूफोबिया नहीं है। इन शिक्षकों ने ट्रश्के के ‘हिन्दुओं और हिन्दू धर्म के प्रति सम्मान में विश्वास’ जताया। इस सारे घटनाक्रम से मौजूदा और आगे भर्ती होने वाले हिन्दू छात्रों में सिहरन सी दौड़ गई और अंतत: उन्होंने उपरोक्त याचिका दायर करने का फैसला किया। इतने सबके बावजूद, ट्विटर पर मौजूदा और भविष्य के हिन्दू छात्रों के वक्तव्य साझा करने पर रटगर्स विश्वविद्यालय के ‘विविधता और समावेश’ विभाग के वरिष्ठ उपाध्यक्ष ने ‘हिन्दूज आॅन कैम्पस’ के ट्विटर हैंण्डल को ‘ब्लॉक’ कर दिया।
लेकिन अब हिन्दूफोबिया पर रटगर्स विश्वविद्यालय छात्र असेंबली द्वारा परिभाषा को मान्य करने के बाद परिसर के हिन्दू छात्रों ने राहत की सांस ली है, क्योंकि इससे उनके हिन्दू होने का मजाक उड़ाने वालों पर एक हद तक रोक लगने की उम्मीद है। अमेरिका के किसी भी विश्वविद्यालय में हिन्दू छात्रों के हित में इसे एक असाधारण कदम माना जा रहा है जो वहां हिन्दू छात्रों की आवाज में आ रही ताकत का परिचायक भी है।
अमेरिकन इंस्टीट्यूट आॅफ वैदिक स्टडीज के निदेशक डेविड फ्रॉली उपाख्य पं. वामदेव शास्त्री ने पाञ्चजन्य से विशेष बातचीत में कहा कि ईसाइयों और मुस्लिमों में हिन्दूफोबिया एक अर्से से देखने में आ रहा है। इसके पीछे वजह है उनके मतों का एक खास प्रकृति का होना, हिन्दुओं को कन्वर्ट करने के प्रयास, और हिन्दुओं को मूर्तिपूजक और अंधविश्वासी के तौर पर देखना। हिन्दूफोबिया अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन का एक अंग रहा था, भारत में अपने दमनकारी राज को न्यायोचित ठहराने के लिए।
उन्होंने आगे कहा कि हिन्दूफोबिया मार्क्सवादियों में आम देखने में आया है, जिसकी शुरुआत भारत से हुई क्योंकि हिन्दुओं ने उन्हें सत्ता अपने हाथ में लेने से रोका था। लेकिन इसके बावजूद, औपनिवेशिक राज के दौरान, पश्चिमी शैक्षिक समुदाय ने हिन्दूफोबिया के मुद्दे पर कभी गौर नहीं किया, जबकि गैरप्रगतिशील माने जाने वाले अन्य कई परंपरागत समूहों को पूरा महत्व दिया। कुछ तो मानते तक नहीं कि हिन्दूफोबिया भी कोई चीज है, हालांकि पश्चिमी शिक्षा जगत में हिन्दू अध्ययन का एक भी ऐसा संस्थान नहीं है जो हिन्दू परंपराओं का सकारात्मक नजरिया सामने रखता हो। इसके साथ ही, हिन्दू विरोधी मानसिकता को परास्त करते हुए, पश्चिम में अनिवासी भारतीय समुदाय ने शिक्षा, प्रभाव और सामाजिक सौहार्द में नए आयाम छुए हैं।
योग और वेद के मर्मज्ञ पं. वामदेव शास्त्री ने साफ कहा कि रटगर्स विश्वविद्यालय में, हिन्दूफोबिया को मान्य करने और इसे चुनौती देने की हाल की घटनाओं ने दिखा दिया है कि शैक्षिक जगत में हिन्दू विरोधी पूर्वाग्रह अब बेरोकटोक चलते नहीं रहने दिए जाएंगे। हमें उम्मीद है कि इससे पश्चिम में हिन्दुत्व के प्रति दृष्टिकोण में एक बड़ा बदलाव आएगा। लंबे वक्त से प्रतीक्षित यह बदलाव लाने के महत कार्य के लिए रटगर्स यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स असेंबली प्रशंसा की पात्र है। आशा है, सभी विश्वविद्यालय इस दृष्टि से बदलाव लाएंगे ल्ल
हिन्दूफोबिक अभिजीत सरकार के विरुद्ध लामबंद यू.के. के हिन्दू
बात 11 फरवरी 2021 की है। कर्नाटक से आॅक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में उच्च स्तरीय पढ़ाई के लिए गई रश्मि सावंत के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब वह विश्वविद्यालय के छात्र संघ की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष चुनी गई। पद के तीन दावेदारों में रश्मि को 3708 वोट में से 1966 वोट मिले थे। लेकिन विश्वविद्यालय में अर्से से सेकुलर अर्थात हिन्दू विरोधी, हिन्दूफोबिक माहौल बनाने में लगी जमात को आखिर यह बात हजम कैसे होती। 22 साल की रश्मि की जहां अखबारों में तारीफ होने लगी तो वहीं दूसरी तरफ उसे उसके हिन्दू होने की वजह से नस्लवादी हमलों का सामना करना पड़ा। सोशल मीडिया पर उसे लेकर छींटाकशी की जाने लगी। इतने ज्यादा नफरती हमलों से आहत होकर पांच दिन बाद रश्मि ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। क्यों? क्यों उस पर नस्लवादी हमले हुए? बताते हैं, रश्मि की कुछ पुरानी सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर उस विश्वविद्यालय के ‘रेशियल अवेयरनेस एंड इक्वेलिटी कैम्पेन’ ने हंगामा खड़ा कर दिया जो खुलेपन और सभी विचारों का स्वागत करने का दम भरता है। हालांकि पुरानी पोस्ट पर रश्मि स्पष्टीकरण दे चुकी थी लेकिन उसके खिलाफ माहौल बनाया जाता रहा। अब उसके हिन्दू होने और उसके माता-पिता के सोशल अकाउंट पर श्रीराम का चित्र होने को लेकर विरोध होने लगा। शिक्षकों में से एक ने यहां तक कहा कि रश्मि के छात्र संघ के चुनाव में भारत के प्रधानमंत्री ने पैसा लगाया है। रश्मि को नस्लवादी, इस्लामोफोबिक, ट्रांसफोबिक और यहूदी विरोधी कहा जाने लगा।
रश्मि के खिलाफ सोशल मीडिया पर हमलों का कथित संचालन किया आक्सफोर्ड के एक घोर नास्तिक और सेकुलर शिक्षक अभिजीत सरकार ने। अभिजीत अपने खुले हिन्दू विरोध के लिए जाना जाता है। उसके ट्वीट में हिन्दू आस्था, पर्वों, देवी-देवताओं का खुलकर अपमान होता है। अपनी ऐसी ही एक पोस्ट में अभिजीत ने माता सरस्वती की फोटो साझा करके लिखा है-‘मुझे याद है, जब मैं बच्चा था तब मैंने सरस्वती की कई मूर्तियों को तोड़ा था। मैं बचपन से ही धर्म विरोधी हूं।’ आक्सफोर्ड में हिन्दूफोबिया की कमान संभाल रखी है अभिजीत ने। उसके विचारों में हिन्दुओं के लिए इतनी नफरत भरी है कि पिछले दिनों यू.के. के हिन्दू संगठनों ने प्रधानमंत्री बोरिस जानसन को पत्र लिखकर इस बारे में चिंता व्यक्त की है। पत्र में लिखा है, ‘डॉ. अभिजीत सरकार ने सोशल मीडिया ट्रोल्स को रश्मि सावंत के विरुद्ध भड़काया, जिससे सावंत को अंतत: देश छोड़ना पड़ा। अभिजीत सरकार लगातार रश्मि की सोशल मीडिया स्टॉकिंग कर रहे थे और उनकी हिन्दू पहचान के कारण उन पर एवं उनके परिवार पर हमले कर रहे थे। इस कारण सावंत अवसाद की शिकार हो गई थीं और अंतत: उन्हें अस्पताल में भी भर्ती होना पड़ा।’ यू.के. के हिन्दू संगठनों के पत्र में मांग की गई है कि थेम्स वैली पुलिस को नफरती अपराध के लिए अभिजीत की जांच करनी चाहिए। उन पर मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए। डॉ. सरकार असाधारण हुनर वीसा पर यू.के. आए हैं। लेकिन उनकी भेदभावपूर्ण और घृणास्पद हरकतों के कारण उनके वीसा की समीक्षा की जानी चाहिए।
इस पत्र पर 119 संगठनों ने दस्तखत किए हैं। इनमें फ्रेंड्स आॅफ इंडिया सोसायटी इंटरनेशनल, अक्षयपात्र फाउंडेशन यू.के., हिन्दू काउंसिल यू.के., हिन्दू फोरम आॅफ यूरोप, विश्व हिन्दू परिषद यू.के. और नेशनल काउंसिल आॅफ हिन्दू टेम्पल आदि संगठन शामिल हैं।
आलोक गोस्वामी
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