तृणमूल कांग्रेस के गुंडों से अपनी जान बचाने के लिए पश्चिम बंगाल के लगभग 500 भाजपा कार्यकर्ता और उनके परिजन असम में शरण ले चुके हैं। इनका दोष केवल इतना है कि इन लोगों ने तृणमूल कांग्रेस को वोट नहीं दिया। इस कारण उन्हें अपने ही देश में शरणार्थी बनना पड़ा है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।
गत 2 मई को जब पांच राज्यों में चुनाव परिणाम आए तो दो पड़ोसी राज्यों पश्चिम बंगाल और असम में इन परिणामों को लेकर ज्यादा हलचल रही। दोनों ही राज्यों में सत्ताधारी दलों ने सत्ता में पुनर्वापसी की, लेकिन परिणामों की घोषणा के बाद के घटनाक्रमों ने दोनों दलों के चरित्र में अंतर स्पष्ट कर दिया। असम में जहां सत्ताधारी भाजपा की गंवाई हुई कई सीटों पर जीत-हार का अंतर 50,000 से लगभग 1,50,000 तक होने के बावजूद शांति-व्यवस्था बनी रही और जनादेश शांतिपूर्वक स्वीकार किया गया वहीं, ज्यादातर सीटों पर अपेक्षाकृत कम अंतराल से परिणाम निश्चित करने वाला पश्चिम बंगाल रक्तरंजित हो उठा। बंगाल में शुरू हुई हिंसा से भयभीत होकर भाजपा कार्यकर्ताओं को अपने ही देश के भीतर दूसरे राज्य असम में शरण लेनी पड़ी। यह राजनीति में आई गिरावट का एक ही नहीं, बल्कि तृणमूल कांग्रेस की दादागिरि का जीता-जागता उदाहरण भी है। तृणमूल के गुंडों ने सारी हदें पार कर दी हैं। जिन लोगों ने तृणमूल को वोट नहीं दिया, उन पर हमला कर दिया और वे लोग जान बचाने के लिए असम पहुंचने को मजबूर हुए।
प्राप्त जानकारी के अनुसार लगभग 500 की संख्या में पश्चिम बंगाल से पलायन करने वाले ये लोग कूचबिहार जिले के तूफानगंज विधानसभा क्षेत्र के निवासी हैं। ये लोग हिंसा व अत्याचार से डरकर असम के सीमावर्ती धुबरी जिले के गोलकगंज थानान्तर्गत छत्रसाल, रंगपागली, छागलिया, हालागुड़ा, आदि इलाकों में आए हैं। तूफानगंज विधानसभा क्षेत्र में भाजपा विधायक मालती राभा रॉय ने तृणमूल कांग्रेस के प्रणव कुमार डे को 31,000 से ज्यादा मतों के भारी अंतर से हराया है। फिर भीर, राज्य समर्थित हिंसा का आलम यह है कि भाजपा कार्यकर्ताओं को घर-बार छोड़कर भागने के लिए मजबूर होना पड़ा।
रंगपागली के शिविर में मौजूद एक महिला ने अपना नाम न बताने की शर्त पर बताया, ‘‘रात को तृणमूल के लोगों ने हम लोगों के घरों पर हमला कर दिया। अचानक से पत्थरबाजी होने लगी, साथ में वे भद्दी-भद्दी गालियां भी दे रहे थे। उनकी भाषा इतनी खराब थी कि कुछ कहा भी नहीं जा सकता। लगातार फेंके जा रहे पत्थरों से बचने के लिए घर से भागना पड़ा। हम अपने मवेशियों को भी नहीं देख पाए, उनके साथ क्या हुआ होगा, पता नहीं। उन लोगों की शिकायत बस इतनी ही है कि हमने भाजपा का साथ क्यों दिया।’’ पूर्व दसपाड़ा के पास झावकुटी के एक निवासी ने कहा, ‘‘दो दिन पहले मेरी मां का निधन हो गया था। मुझे उनके क्रिया-कर्म में होना चाहिए था, लेकिन अपनी जान बचाने के लिए मुझे भागना पड़ा है। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा?’’
असम आए भाजपा समर्थकों में दर्जनों लोग अल्पसंख्यक समुदाय के भी शामिल हैं। झावकुटी के फखरुल इस्लाम ने कहा, ‘‘जिस दिन ममता ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, उसी दिन हमें अपना छोड़कर भागना पड़ा। उनका नाम भले ही ममता है, लेकिन उनके दिल में ममता नहीं है।’’
इस घटना पर असम भाजपा की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया भी आई। राज्य में भाजपा के वरिष्ठ नेता और शिक्षा, स्वास्थ्य, वित्त आदि मामलों के मंत्री डॉ. हिमंत बिस्व शर्मा ने 4 मई को सोशल मीडिया के माध्यम से यह मुद्दा उठाते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को आड़े हाथों लिया। उन्होंने अपनी पोस्ट में कहा, ‘‘एक दु:खद घटनाक्रम में 300 से 400 भाजपा कार्यकर्ता व उनके परिजन पश्चिम बंगाल से असम के धुबरी जिले में आश्रय लेने पहुंचे हैं। इन लोगों के आश्रय व भोजन की व्यवस्था की जा रही है।’’ उन्होंने अपने ट्वीट को ममता बनर्जी को ‘टैग’ करते हुए कहा, ‘‘दीदी को लोकतंत्र के इस बदसूरत नंगा नाच को रोकने के लिए कदम उठाना चाहिए।’’
इसके बाद भी पश्चिम बंगाल में प्रताड़नाओं का दौर थमा नहीं। 5 मई को भी पश्चिम बंगाल से 100 से ज्यादा भाजपा कार्यकर्ता भागकर असम पहुंचे। 5 मई को शरणार्थियों से मिलने धुबरी पहुंचे असम भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रंजीत दास ने राष्ट्रपति शासन की भी मांग कर डाली। उन्होंने कहा, ‘‘मैं भाजपा कार्यकर्ताओं से संयम बरतने की अपील करता हूं। हम लोग सरकार में विश्वास करते हैं। राज्य सरकार यदि अपना काम ठीक से नहीं करती है तो राष्ट्रपति शासन लगाया जाना चाहिए।’’
वहीं, भाजपा सांसद डॉ. राजदीप रॉय ने देश विभाजन के समय की कुछ तस्वीरों को साझा करते हुए व्यंग्यपूर्ण लहजे में लिखा, ‘‘जो भारत ने कभी सोचा नहीं, वह पश्चिम बंगाल ने कर दिखाया, दीदी को बधाई! जिस बंगाल ने 1971 में लाखों लोगों को शरण दी थी, अब वही बंगाल उन्हीं लोगों को अपने राज्य से विस्थापित कर रहा है। ममता के बंगाल में लैंड जिहाद शुरू। असाधारण खेला होच्छे।’’
इस बीच सीमांत चेतना मंच की पूर्वोत्तर इकाई के साथ ही स्थानीय नागरिकों ने पश्चिम बंगाल से आए लोगों के आश्रय व भोजन-पानी की व्यवस्था की है। मंच द्वारा संचालित सिलाई प्रशिक्षण केंद्र और कुछ अन्य स्थानों पर इनके लिए भोजन, बिस्तर आदि जन सहयोग से जुटाया गया। बाद में रंगपागली पाठशाला और छागलिया में स्थानीय लोगों की मदद से व्यवस्थित शिविर बना लिया गया। असम पहुंचने के बाद इन लोगों को यह विश्वास तो हो गया कि उनकी जान बच गई है, लेकिन आने वाले समय में अपने घर जाने, अपनी रोजी-रोजगार कैसे चलाएंगे, इसकी चिंता उन्हें खाई जा रही है। लाचारी और बेचारगी सभी के चेहरे पर साफ तौर पर नजर आ रही है। 5 मई को जब वे लोग शिविर में दोपहर को जमीन पर एक साथ बैठकर भोजन कर रहे थे, तो उस समय उनका चेहरा देखकर मन में सवाल उठ रहा था कि बंगाल में हो क्या रहा है? यह सवाल हर उस व्यक्ति के लिए है, जिनके लिए भारत केवल जमीन का एक टुकड़ा नहीं, बल्कि एक पुण्यभूमि है। सबको सोचना होगा कि बंगाल जिस रास्ते की ओर बढ़ रहा है, वह भारत देश के लिए ठीक नहीं है।
स्वाति शाकम्भरी
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