पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून की आड़ में अल्पसंख्यकों के बढ़ते दमन के खिलाफ यूरोपीय संघ की संसद में प्रस्ताव पारित होना पहली बार अंतरराष्ट्ीय बिरादरी का इस ‘रक्तपिपासु कानून’ पर कड़ा रुख दर्शाता है
पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून उस हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है जिससे ‘इस्लाम के विरोधियों’ को रास्ते से हटाया जाता रहा है। एक नहीं, सैकड़ों उदाहरण हैं जिनमें इस कानून की आड़ में वहां के भोले—भाले अल्पसंख्यकों को ‘सबक’ सिखाया जाता है और फर्जी अदालती कार्रवाई के बाद कड़ी सजा दी जाती है या सूली टांग दिया जाता है।
पाकिस्तान के इसी ईशनिंदा कानून के खिलाफ 1 मई 2021 को यूरोपीय संघ की संसद में एक प्रस्ताव पारित किया गया है जिसमें पाकिस्तान से ईशनिंदा कानून को खत्म करने पति—पत्नि शफकत इमैनुएल और शगुफ्ता कौसर को तुरंत रिहा करने की अपील की गई है। इस ईसाई दंपति को जुलाई 2013 में ईशनिंदा कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था और 2014 में जिन्हें पाकिस्तानी अदालत ने उन्हें ईशनिंदा का दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। यूरोपीय संघ के प्रस्ताव में इमानुएल और कौसर को जरूरी मेडिकल सुविधाएं देने को भी कहा गया है।
इस प्रस्ताव के बाद से पाकिस्तानी हुक्मरानों, खासकर प्रधानमंत्री इमरान खान खासे परेशान हैं। कारण, प्रस्ताव में सिर्फ ईशनिंदा कानून को खत्म करने की ही मांग नहीं की गई है, बल्कि पाकिस्तान को 2014 में यूरोपीय संसद द्वारा दिए गए वरीयता के ओहदे के साथ ही इसकी वजह से मिलने वाले लाभ को भी खत्म करने की मांग की गई है। उल्लेखनीय है कि 2014 से ही यूरोप की पाकिस्तान के साथ कारोबारी साझेदारी रही है। वरीयता मिलने से होता यह आ रहा है पाकिस्तान का माल बिना कोई आयात शुल्क दिए यूरोप के बाजारों में पहुंचता रहा है। प्रस्ताव में है कि पाकिस्तान का यह दर्जा खत्म किया जाए क्योंकि ईशनिंदा कानून की आड़ में लोगों का दमन, हिंसा और हत्याएं की जा रही हैं।
दरअसल यूरोपीय संघ के इस कड़े रुख के तार पाकिस्तान में पिछले दिनों की घटनाओं से जुड़े हैं जब कट्टर मजहबी पार्टी तहरीके—लब्बैक ने फ्रांस के खिलाफ हिंसक तेवर अपनाते हुए वहां गृह युद्ध जैसे हालात पैदा कर दिए थे। अन्य शहरों के अलावा, कराची और लाहौर में जबरदस्त प्रदर्शन हुए थे फ्रांस के राष्ट्पति इमानुएल मैक्रां और राजदूत के खिलाफ। प्रधानमंत्री इमरान खान पर इतना दबाव पड़ा था कि उन्हें पाकिस्तान में फ्रांस के राजदूत को निकाल बाहर करने का प्रस्ताव पारित करने की घोषणा करनी पड़ी थी। इतना ही नहीं, इमरान ने यूरोप के देशों में भी ईशनिंदा कानून बनाने की पैरवी की थी। और तो और, इमरान ने तमाम इस्लामी देशों से कहा था कि वे पश्चिमी देशों के सामने ईशनिंदा से जुड़े मामले रखने की अपील की थी।
बहरहाल, यूरोपीय संसद में इस प्रस्ताव के पक्ष में 681 मत पड़े जबकि 3 मत विरोध में पड़े। इसमें संदेह नहीं कि आने वाले दिनों में यूरोपीय संघ पाकिस्तान को लेकर अपना रुख और कड़ा करने वाला है। इसके अलावा पश्चिमी देशों में इस्लामी कट्टरवाद को लेकर जागरूकता बढ़ती जा रही है। इस्लाम के नाम पर फतवों और आएदिन की हत्याओं से लोग परेशान हैं।
ईशनिंदा कानून की आड़ में हैवानियत
8 जनवरी 2021 को कालेज के एक शिक्षक को पाकिस्तान की एक अदालत ने 10 साल जेल की सजा सुनाई थी। उस पर 2017 में छात्रों को ईशनिंदात्मक पाठ पढ़ाने का आरोप लगाया गया था। पिछले ही दिनों आतंकरोधी अदालत ने तीन लोगों को ईयानिंदा कानून के तहत मौत की सजा सुनाई थी। आरोप था सोशल मीडिया पर पैगम्बर मोहम्मद की तौहीन करने वाली पोस्ट डालना। जून 2020 में पेशावर की एक अदालत में सुनवाई के दौरान ताहर अहमद नसीम को गोली मार दी गई थी। कारण, वह खुद को पैगम्बर मोहम्मद बताता था। 28 जनवरी 2021 को कराची में ईशनिंदा का आरोप लगाते हुए सोभराज मैटरनिटी हॉस्पीटल में तबीता नाजिर गिल नाम की एक ईसाई नर्स की कमरे में बंद करके उसके मुस्लिम सहकर्मियों द्वारा पिटाई की गई। पुलिस पर उसके खिलाफ ईशनिंदा कानून के तहत मामला दर्ज करने का दबाव बनाया गया था जिसकी सजा मौत है। तबीता का कसूर बस इतना था कि दर्द से तड़पती एक मुस्लिम गर्भवती महिला को उसने कहा था कि वह उसके लिए प्रार्थना करेगी। यह सुनते ही वहां काम कर रहीं मुस्लिम नर्सों ने उस पर हमला बोल दिया।
आलोक गोस्वामी
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