पांच साल पहले तक जो सेना से सवाल पूछ रहे थे, वही केजरीवाल दिल्ली को मरने की हालत में पहुंचा कर, आज सेना से मदद मांग रहे हैं। क्या केजरीवाल को यह सलाह उनके विधायको ने नहीं दी कि भारतीय सेना से मदद मांगने से पहले उन्हें पांच साल पहले की गई अपनी ‘करनी’ पर माफी मांग लेनी चाहिए। उन्होंने पांच साल पहले भारतीय सेना के शौर्य पर संदेह किया था। उन्होंने सेना के काम के लिए उससे सबूत मांगा था।
बात, 2016 की है। जब भारतीय सेना ने सीमा पार करके सर्जिकल स्ट्राइक की थी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे पर पाकिस्तान को कहीं से समर्थन नहीं मिल पा रहा था। यह भारत में मोदी सरकार की विदेश नीति की सफलता थी कि पूरी दुनिया में पाकिस्तान अलग—थलग पड़ गया था। जिस सर्जिकल स्ट्राइक को पाकिस्तान भी गलत कह पाने की स्थिति में नहीं था, उस पर भारत में ही कुछ विपक्ष के नेता सवाल उठाने लगे थे। सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाने वाले नेताओं में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का नाम प्रमुख था।
अरविन्द केजरीवाल ने सोशल मीडिया पर वीडियो जारी कर सर्जिकल स्ट्राइक के ऊपर सवाल उठाया था, बिना इस बात पर विचार किए कि यह पराक्रम भारतीय सेना का है। केजरीवाल ने ना सिर्फ सेना की कार्रवाई पर सवाल खड़े किए बल्कि सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत भी मांगे। इस वीडियो के बाद केजरीवाल के बहाने पाकिस्तान को भारत पर सवाल उठाने का मौका मिल गया था।
केजरीवाल ने सोशल मीडिया पर जारी संदेश में कहा, ”पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों को लेकर बॉर्डर पर जा रहा है और यह दिखाने की कोशिश कर रहे है कि देखो सर्जिकल स्ट्राइक तो हुआ ही नहीं। मेरी प्रधानमंत्री से अपील है कि जैसे सेना और प्रधानमंत्री ने मिलकर जमीन पर पाकिस्तान को मजा चखाया है, ऐसे ही यह जो पाकिस्तान झूठा प्रोपेगंडा कर रहा है, उसे बेनकाब करें।”
वास्तव में वीडियो की पूरी स्क्रीप्ट को सुनकर ऐसा लग रहा था कि इसे लिखा शरहद पार से गया है और पढ़ा भारत में जा रहा है। पाकिस्तान के नैरेटिव को भारत में थोड़ा महत्व सिर्फ इसलिए मिल पाया क्योंकि भारत के एक प्रदेश के मुख्यमंत्री उसे सामने लेकर आए। इस बात को पाकिस्तान के रणनीतिकार भी खूब समझते होंगे। इसलिए जैसे ही केजरीवाल का वीडियो भारत में सोशल मीडिया पर चला, वह शरहद पार पाकिस्तान की मीडिया की सुर्खियां बटोरने लगा।
पांच साल पहले तक जो सेना से सवाल पूछ रहे थे, वही केजरीवाल दिल्ली को मरने की हालत में पहुंचा कर, आज सेना से मदद मांग रहे हैं। क्या केजरीवाल को यह सलाह उनके विधायको ने नहीं दी कि भारतीय सेना से मदद मांगने से पहले उन्हें पांच साल पहले की गई अपनी ‘करनी’ पर माफी मांग लेनी चाहिए। उन्होंने पांच साल पहले भारतीय सेना के शौर्य पर संदेह किया था। उन्होंने सेना के काम के लिए उससे सबूत मांगा था।
हर मुश्किल समय में सेना देश के साथ खड़ी हुई है। दूसरी तरफ केजरीवाल जब—जब दिल्ली को जरूरत पड़ी है, मौके से लापता रहे हैं। केजरीवाल जिस दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य व्यवस्था को विश्व स्तरीय बताकर सालों से करोड़ों रुपए का विज्ञापन जारी करते रहे, आज जब दिल्ली को उनके सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था की जरूरत है तो केजरीवाल स्थिति को संभालने की जगह पर सेना की शरण में जा रहे हैं। अरविन्द केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल तक को दिल्ली सरकार की कथित विश्व स्तरीय सेवाओं पर विश्वास नहीं हुआ और वह जाकर निजी अस्पताल में दाखिल हो गईं।
दिल्ली की हालत बिगड़ने से बचाई जा सकती थी। लेकिन केजरीवाल ने मानो जान बूझकर अराजकता की स्थिति पैदा करने के लिए दोनों हाथ खड़े कर दिए थे। मानों वे दिल्ली के लिए कुछ भी करने को तैयार नहीं हैं। मानों दिल्ली ने उन्हें मुख्यमंत्री चुनकर कोई बड़ी भूल कर दी। इसी का परिणाम था कि दिल्ली से मोहल्ला क्लिनिक गायब कर दिए गए। कोविड काल में आम आदमी पार्टी के वॉलंटिर्स गलियों से गायब हो गए। मानो केजरीवाल चाहते हों कि दिल्ली में कोविड की वजह से इतनी मौते हों कि पूरे शहर में अफरा—तफरी मच जाए। यदि वे ऐसा नहीं चाहते तो बचाव के लिए प्रयास करते। केजरीवाल की तरफ से वह प्रयास पूरे साल नजर नहीं आया।
अब जब पानी सिर से ऊपर निकल चुका है, दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को दिल्ली में कोविड के हालात की जानकारी देते हुए चिट्ठी लिखी है। जिसमें उन्होंने भारतीय सेना से मदद मांगी है। दूसरी तरफ दिल्ली कैंटोनमन्ट क्षेत्र में सेना के बेस अस्पताल के आक्सीजन का कोटा दिल्ली सरकार ने कम कर दिया है। सेना के बेस अस्पताल में इस वजह से हड़कम्प की स्थिति है। उन्होंने दिल्ली सरकार को बताया है कि यदि बेस अस्पताल के आक्सीजन का कोटा कम किया गया तो हालात नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं। इस समय बेस अस्पताल में कोविड के 450 मरीजों के लिए बिस्तर लगे हुए हैं। मिल रही जानकारी के अनुसार उन्हें आक्सीजन सिलेंडर के लिए 3.4 मीट्रिक टन आक्सीजन की जरूरत है। जबकि दिल्ली सरकार उन्हें अब तक मात्र 1 मीट्रिक टन आक्सीजन ही उपलब्ध करा रही है। सोमवार से उसमें भी 0.42 मीट्रिक टन आक्सीजन कम किया गया है।
दूसरी तरफ यह भी एक सच है कि दिल्ली के पास आक्सीजन की कोई कमी नहीं है। गड़बड़ी दिल्ली सरकार के स्तर पर हो रही है। उनके वितरण की सारी व्यवस्था फेल है। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि केजरीवाल सरकार दिल्ली में कुछ ऐसी स्थिति पैदा करना चाहती है कि चारोंं तरफ अराजकता का माहौल हो। जैसी स्थिति पिछले साल आनंद विहार बस अड्डे पर दिल्ली सरकार ने पैदा कर दी थी, उसकी वजह से एक साथ हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर बस स्टैन्ड पर जमा हो गए थे।
वर्ना देश को मौत के मुहाने पर पहुंचा कर सेना से मदद मांगने का शिगूफा क्या है ? क्या इस देश में सिर्फ दिल्ली ही है। यदि पूरे देश में कोविड प्रभावित क्षेत्रों की देखभाल का काम सेना संभालेगी तो भारत की सीमा की रक्षा इस मुश्किल समय में कौन करेगा ? उसे केजरीवाल जी के भरोसे तो नहीं छोड़ा जा सकता ?
दिल्ली सरकार को सेना मांगने का अधिकार तो तब होता, जब उसने हर तरह से कोशिश की होती। विज्ञापन पर पैसे खर्च करने की जगह पर दिल्ली के स्वास्थ्य के आधारभूत ढांचे को दुरुस्त करने के लिए खर्च किया होता। उसके बाद हालात ना संभल रहे होते तो सेना से मदद की मांग उचित ठहराई जा सकती थी। लेकिन एक ऐसा मुख्यमंत्री जिसने जान बूझकर दिल्ली की स्थिति खराब होने दी। लोगों को मरने के लिए सड़कों पर छोड़ दिया। दिल्ली को ठीक मौत के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया। वह अगर सेना की मांग कर रहा है तो ऐसे मुख्यमंत्री पर दिल्ली शर्मिन्दा ही हो सकती है।
आशीष कुमार ‘अंशु’
टिप्पणियाँ