पश्चिम बंगाल की नवनिर्वाचित विधायक चंदना बाउरी के पास घर के नाम पर फूस की एक झोपड़ी है। पति राजमिस्त्री का काम करते हैं। चंदना खुद मनरेगा मजदूर हैं। चौका-बासन और बच्चों का लालन-पालन करते हुए उन्होंने भाजपा के लिए काम किया और आज उसका फल सामने है। उनकी जीत को किसी चमत्कार से कम नहीं माना जा रहा है
यह लोकतंत्र की खूबी है कि एक आम इंसान रातों-रात खास हो जाता है। कुछ ऐसा ही हुआ है चंदना बाउरी के साथ। एक बहुत ही गरीब परिवार से संबंध रखने वालीं चंदना अब पश्चिम बंगाल विधानसभा की सदस्य यानी विधायक बन गई हैं। उन्होंने भाजपा के टिकट पर बांकुड़ा जिले की सालतोरा सीट से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के संदीप मंडल को 4,000 से अधिक मतों से हरा कर जीत हासिल की है। उन्हें कुल 91,648 मत मिले हैं। उनकी इस जीत की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है।
चंदना कहती हैं, ‘‘मैंने सपने में नहीं सोचा था कि एक दिन विधायक बनूंगी। यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के आशीर्वाद और सालतोरा के लोगों के स्नेह और समर्थन से संभव हुआ है। मेरी जीत ने ‘मोदी हैं, तो मुमकिन है’ के नारे को और धारदार बना दिया है।
उल्लेखनीय है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से कुछ दिन पहले ही चंदना भाजपा से जुड़ी थीं। वे कहती हैं, ‘‘मैं प्रधानमंत्री जी के कार्यों से प्रभावित होकर भाजपा से जुड़ी हूं। मोदी जी गांव और गरीब के लिए जो कार्य कर रहे हैं, वे भारत में कभी नहीं हुए थे। इसलिए मैं लोगों से अपील करती हूं वे उनके साथ डटकर खड़े रहें। यह देश के लिए जरूरी है।’’
2019 में भाजपा में शामिल होने के बाद उन्हें गंगाजल घाटी के उत्तर मंडल में महिला मोर्चा में काम करने को कहा गया। कुछ दिन बाद ही उन्हें महिला मोर्चा की मंडल महासचिव का दायित्व दिया गया। इस नाते उन्होंने गांव-गांव में दौरा किया और महिलाओं को पार्टी से जोड़ा। इसका लाभ उन्हें चुनाव में मिला। चंदना कहती हैं, ‘‘राजनीति में आने के दो साल बाद ही मैं विधायक बन जाऊंगी, ऐसा तो सपने में भी नहीं सोचा था। अभी भी मैं विश्वास नहीं कर पा रही हूं कि विधायक हो गई हूं। इसके लिए मैं भाजपा नेतृत्व, उसके लाखों कार्यकर्ता और अपने क्षेत्र के लोगों के प्रति आभार व्यक्त करती हूं।’’
चंदना के राजनीति में आने के पीछे सत्तारूढ़ टीएमसी की गुंडागर्दी है। वे कहती हैं, ‘‘मैंने 2018 में पंचायत चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर ली थी। नामांकन के लिए सारे कागज भी तैयार हो गए थे, लेकिन तृणमूल के कार्यकर्ताओं ने नामांकन करने से ही रोक दिया। उसी समय प्रण लिया कि तृणमूल के अत्याचारों को खत्म करने के लिए किसी राजनीतिक दल से जुड़ना है और मोदी जी के कार्यों ने भाजपा से जुड़ने के लिए मजबूर कर दिया।’’
उनके चुनाव लड़ने के पीछे की कहानी बहुत दिलचस्प है। चंदना कहती हैं, ‘‘एक दिन अचानक पार्टी नेतृत्व ने मुझे बताया कि चुनाव लड़ना है। यह सुनकर मैं दंग रह गई। मैंने कहा यह कैसे हो सकता है? न तो मेरे पास पैसे हैं और न ही राजनीति का कोई अनुभव। इसके बाद भी पार्टी नेतृत्व ने कहा कि सारी चीजें हो जाएंगी, आप नामांकन की तैयार करें। पार्टी ने जैसा कहा, वैसा ही मैंने किया। इसे आप भगवान की कृपा कह सकते हैं या फिर भाजपा नेतृत्व का समझदारी से भरा निर्णय मान सकते हैं।’’
अब उनका लक्ष्य है अपने क्षेत्र की समस्याओं को दूर करना और तृणमूल की बदमाशी को उजागर करना।
कौन हैं चंदना
चंदना बांकुड़ा जिले के केलाई गांव की रहने वाली हैं। इनके पति श्रवण बाउरी राजमिस्त्री हैं। 31 वर्षीया चंदना अपने तीन बच्चों का लालन-पालन करने के साथ-साथ मनरेगा योजना के अंतर्गत मजदूरी भी करती रही हैं। मजदूरी करने के बाद जो समय मिलता था, उसमें वह पार्टी का कार्य करती थीं। परिवार में सास और ससुर भी हैं। चंदना बाउरी के पास संपत्ति के नाम पर 31,985 रु., तीन गाय, तीन बकरियां और एक झोपड़ी है। चंदना अनुसूचित जाति से आती हैं।
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