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दिल्ली को श्मशान बनाने का षड्यंत्र

by WEB DESK
May 4, 2021, 12:33 pm IST
in भारत, दिल्ली
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अदालत ने दिल्ली सरकार को कई मौकों पर डांटा कि आपके पास सफाई कर्मचारी को वेतन देने के लिए पैसा नहीं है पर विज्ञापन में पानी की तरह पैसा बहा रहे हो। अदालत ने तो यह भी कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री लोकसेवक रहे हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि आम इंसान के लिए तंत्र काम कैसे करता है। सरकार सिर्फ हाहाकार मचा रही है, करना कुछ भी नहीं चाहती। इनकी नीयत सिर्फ केन्द्र सरकार को बदनाम करने की है।

दिल्ली में बड़ी तादाद में हो रहीं मौतों का जिम्मेदार कौन है? आखिर दिल्ली को श्मशान बनाने के पीछे किसकी लापरवाही है? ऐसा नहीं है कि किसी ने जानबूझकर ऐसा किया, लेकिन कहीं तो कोई चूक हुई, कोई कोताही हुई है। आखिर यह हुआ कैसे? इस समय दिल्ली में भ्रम का एक बहुत बड़ा जाल फैला हुआ है। इसे भारत सरकार की बहुत बड़ी नाकामी करार दिया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दुष्प्रचार किया जा रहा है। दिल्ली के संदर्भ में इस सबको देखें तो दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य का अलग विभाग है। लेकिन, दिल्ली में कोरोना की दूसरी लहर की भीषणता को रोकने एवं आक्सीजन की आपूर्ति और मरीजों को अस्तपालों तक पहुंचाने का काम व्यवस्थित ढंग से नहीं हो पाया। इसमें चूक कहां पर हुई? ये सारा मामला अदालत तक पहुंचा। इस मामले को देखने वालों में से एक हैं सर्वोच्च न्यायालय की वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीमती मोनिका अरोड़ा।

पाञ्चजन्य यूट्यूब चैनल द्वारा गत 26 और 28 अप्रैल को ‘दिल्ली को श्मशान बनाने का षड्यंत्र’ विषय पर दो कड़ियों में एक टॉक शो आयोजित किया गया। इसमें मुख्य वक्ता के नाते श्रीमती अरोड़ा ने एंकर राज चावला द्वारा पूछे सवालों के जवाब में जो कहा, उसके प्रमुख अंश यहां प्रकाशित किए जा रहे हैं

आज हम कोरोना से जूझ रहे हैं। रोज हमारे सामने सगे-संबंधी दम तोड़ रहे हैं। आक्सीजन नहीं है, दवाई नहीं है, अस्पतालों में जगह नहीं है। इस सब पर कोई बात करने को राजी नहीं है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इसे एक सुनामी कहा है। इसमें बेशक कहीं न कहीं जबरदस्त लापरवाही दिखती है दिल्ली सरकार की। जिंदगियां बच सकती थीं। 20 अप्रैल 2021 का दिल्ली उच्च न्यायालय का आदेश है जिसमें कहा गया है कि केन्द्र सरकार कह रही है कि हमने दिसम्बर 2020 में कहा था दिल्ली सरकार से कि आप आक्सीजन प्लांट लगाइए लेकिन राज्य सरकार ने केवल एक प्लांट लगाया। केन्द्र सरकार ने यह भी कहा कि हमने 480 मिट्रिक टन आक्सीजन दिल्ली सरकार को आवंटित की थी। दिल्ली सरकार को अपने टैंकर भेजने चाहिए थे। आक्सीजन दिल्ली में आ जाती। दिल्ली सरकार ने टैंकर ही नहीं भेजे। जहां दिल्ली सरकार को प्रतिदिन 20 टैंकर भेजने चाहिए थे, वहां केवल दो भेजे।
दूसरी बात, यहां एक आपूर्ति कंपनी है आइनॉक्स, जो लगभग पूरे हिन्दुस्थान में 800 जगह अस्पतालों को आक्सीजन देती है। दिल्ली में इसकी आपूर्ति श्रृंखला को भी बाधित कर दिया गया। इसके बाद दिखावा करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री ने जिंदल इंडस्ट्रीज को चिट्ठी लिखी कि आप अपनी आक्सीजन हमें दीजिए। इतना ही नहीं, वे बाकी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से भी आक्सीजन की मांग करते हैं। केन्द्र सरकार ने जितनी आक्सीजन दिल्ली को दी, उतनी ही सही ढंग से इस्तेमाल कर लेते तो इतनी परेशानी नहीं होती। जिंदगियां बच सकती थीं अगर दिल्ली के मुख्यमंत्री राजनीति की जगह आपूर्ति श्रृंखला सही करते।

जब दिल्ली को केन्द्र सरकार से पैसा मिला तो दिल्ली में आक्सीजन प्लांट क्यों नहीं लगाए गए? दूसरी बात, दिल्ली ही नहीं, और बहुत से अन्य राज्य भी ओद्यौगिक राज्य नहीं हैं। इसमें दिल्ली सरकार को टैंकरों की व्यवस्था करनी चाहिए थी। दुर्भाग्य से 4-5 दिन का समय बर्बाद कर दिया गया और टैंकर ही नहीं भेजे गये। अदालत ने दिल्ली के मुख्य सचिव को फोन करके कहा कि आप आक्सीजन सप्लायर से बात करें। जिन हॉस्पिटल में आक्सीजन जानी है, आप सबसे बात करें। आक्सीजन अस्पतालों में पहुंचनी चाहिए, लोग मरने नहीं चाहिए। इसमें राजनीति नहीं होनी चाहिए। यदि दिल्ली सरकार इसको काबू करने में कामयाब नहीं हो रही है तो कुछ समय के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल स्वास्थ्य विभाग को अपने हाथ में ले लें जिससे लोगों की जान बचे।

इसमें दिल्ली सरकार की नाकामी साफ दिखती है। जिम्मेदार सरकार तो समस्या का अहसास करते हुए उसका समाधान ढूंढने का प्रयास करती है। ऐसे में, केन्द्र्र सरकार ने कई कदम उठाए हैं-पहला, वर्चुअल कंट्रोल जिसमें कोई भी राज्य अपनी मांग तत्काल दर्ज कर सकता है, जिस पर तत्काल कार्रवाई करने का प्रयास होगा। कोई एक राज्य से दूसरे राज्य में टैंकर जाने से नहीं रोक सकता। केन्द्र सरकार 24 घंटे राज्यों के संपर्फ में रहेगी और इसमें मदद करेगी।
दुनिया में जो हो रहा है, उससे हमें सीख लेनी ही चाहिए। हमारे यहां इस स्थिति को रोकने के लिए पहले से प्रयास होना चाहिए था। मरीजों से अस्पताल इतनी मोटी रकम लेते हैं कि वे अपना आक्सीजन प्लांट लगा सकते हैं। इस पर ध्यान नहीं दिया गया। अदालत ने दिल्ली सरकार को कई मौकों पर डांटा कि आपके पास सफाई कर्मचारी को वेतन देने के लिए पैसा नहीं है पर विज्ञापन में पानी की तरह पैसा बहा रहे हो। अदालत ने तो यह भी कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री लोकसेवक रहे हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि आम इंसान के लिए तंत्र काम कैसे करता है। सरकार सिर्फ हाहाकार मचा रही है, करना कुछ भी नहीं चाहती। इनकी नीयत सिर्फ केन्द्र सरकार को बदनाम करने की है।

अदालत दिल्ली सरकार से कह रही है कि आक्सीजन तो आ रही है पर आप वितरण नहीं कर पा रहे हैं। अदालत इस बात को सुनकर हैरान रह गई कि आपूर्ति करने वाली कंपनी के पास 16000 मीट्रिक टन आक्सीजन है, पर उसे नहीं पता कि यह कहां देनी है। कंपनी ने तो कहा था कि जहां राज्य सरकार बताएगी, वह आक्सीजन वहां पहुंचा देगी, आक्सीजन की कमी नहीं है। दिल्ली सरकार ने अदालत को जो रीफिलर्स की सूची दी है, उसमें सबसे बड़े रीफिलर का नाम ही नहीं है। इसका मतलब दाल में कुछ काला है। अदालत ने कहा कि आप इस श्रृंखला को ठीक करिए नहीं तो हम केन्द्र सरकार से कहेंगे कि आपकी रीफिलिंग श्रृंखला को अपने हाथ में ले। बत्रा अस्पताल ने कहा कि हमें सेठ कंपनी आक्सीजन देती थी, उसे दिल्ली सरकार ने बंद कर दिया जिसके कारण हमारे यहां इतने लोगों की मौत हो गयी। अदालत ने कहा कि आप एफिडेविट में सूची देकर बताएं कि वे 21 लोग आक्सीजन की कमी से मरे हैं, हम इसकी जांच करवाएंगे। लोग मर क्यों रहे हैं, क्योंकि दिल्ली सरकार की इसमें मंशा स्पष्ट नहीं है। हिन्दुस्थान की सबसे बड़ी आपूर्ति कंपनी आइनॉक्स, जो 800 अस्पतालों को आक्सीजन देती है, उसका कहना है, वह सभी राज्यों में आक्सीजन भेजती है पर कहीं से कोई शिकायत नहीं आ रही है, सिर्फ दिल्ली से शिकायत आती है। आईनॉक्स ने अदालत से कहा है कि 105 मीट्रिक टन आक्सीजन दिल्ली के 45 अस्पताल को भेजी जाती भी परंतु दिल्ली सरकार से आदेश आया कि आप 45 अस्पतालों को नहीं, केवल 17 अस्पतालों को आक्सीजन भेजेंगे। 98 मीट्रिक टन आक्सीजन देंगे। कंपनी ने पूछा, बाकी 28 अस्पतालों का क्या होगा? लेकिन बाकी के अस्पतालों को अनदेखा कर दिया गया। आईनॉक्स का कहना है कि उनके टैंकर को बीच में रोक कर कहीं और भेज दिया जाता है। अदालत ने दिल्ली सरकार को फटकार लगायी कि तुमने आईनॉक्स को आपूर्ति करने से मना क्यों कर दिया? लोगों को आक्सीजन मिल सकती थी। कोविड की पहली और दूसरी लहर के बीच घर—घर आक्सीजन पहुंचाने के दिल्ली सरकार के वादे खोखले रहे।
दिल्ली एमसीडी के डॉक्टरों, कर्मचारियों, इंजीनियरों आदि को भी कई महीनों से वेतन नहीं दिये जा रहे हैं। इस पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को कहा कि हम आपके विज्ञापन का आडिट करवाएंगे कि आप कितना पैसा विज्ञापन में बेमतलब खर्च कर रहे हैं। जबकि आपके पास अपने कर्मचारियों को देने के लिए पैसा नहीं है। इसके फटकार के बावजूद कोई फर्क नहीं पड़ा। कोविड की इस लहर में समाधान कम, पर दिल्ली के मुख्यमंत्री ज्यादा दिख रहे हैं। दिल्ली सरकार की काम करने की नीयत नहीं है, वह सिर्फ बहाने ढूंढती है।

हमें तो दिल्ली उच्च न्यायालय का धन्यवाद देना चाहिए जो रोज 5-6 घंटे इस विषय पर बैठकर चर्चा कर रहा है। अदालत ने कहा है कि अव्यवस्था को खत्म करो और आक्सीजन की तुरंत व्यवस्था करो। आक्सीजन का पूरा ब्योरा दो। मरीज के घर से अस्पताल तक पहुंचने पर अदालत पूरी गंभीरता से नजर रखे हुए है। इन चीजों पर ध्यान रखने के लिए अदालत ने दो आईटी विशेषज्ञों को भी साथ जोड़ा है। दिल्ली सरकार से लिखित में लगातार जबाव मांगे जा रहे हैं कि आप फलां चीज के लिए लिए क्या कदम उठाने जा रहे हैं। यदि दिल्ली सरकार जमीनी स्तर पर काम करती तो आज कई परिवार उजड़ने से बच जाते।

पाञ्चजन्य ब्यूरो

मौत के पंजे से जीवन छीन लाने का समय है
ध्वंस मुंह बाये खड़ा है
मृत्यु का पहरा कड़ा है
घाट धू-धू जल रहे हैं
हर लहर मातम जड़ा है
यह बिखरने का नहीं, हिम्मत जुटाने का समय है
मौत के पंजे से जीवन छीन लाने का समय है
मृत्यु का विकराल वैभव इस जगत् पर छा चुका है
आंसुओं के अर्घ्य से कब काल का ताण्डव रुका है
अब हमें अड़ना पड़ेगा
अनवरत बढ़ना पड़ेगा
श्वास पर विश्वास रखकर
यह समर लड़ना पड़ेगा
आत्मबल से भाग्य का रुख मोड़ आने का समय है
मौत के पंजे से जीवन छीन लाने का समय है
चाह अमृत की रखी पर, विष उलीचा है जलधि ने
सृष्टि भर के प्राण दूभर कर दिये फिर से नियति ने
काल प्रलयंकर बना है
मृत्यु हर कंकर बना है
जब हवा में विष घुला है
तब कोई शंकर बना है
फिर इसी जलधाम से अमृत जुटाने का समय है
मौत के पंजे से जीवन छीन लाने का समय है
अपशकुन पर ध्यान क्यों दें, हम शकुन के गीत गाएं
इस अंधेरे से डरें क्यों, क्यों न इक दीपक जलाएं
हर लहर का क्रोध फूटे
साथ जीवट का न छूटे
सिर्फ हिम्मत साथ रखना
टूटती हो नाव टूटे
यह प्रलय पर पांव रखकर पार जाने का समय है
मौत के पंजे से जीवन छीन लाने का समय है

चिराग जैन

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